Wednesday, November 6, 2019

हाउडी मोदी से मज़बूत हुई ट्रम्प की सियासी ज़मीन

षायद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन से किसी अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनावी राह को समतल बनाने का प्रयास किया हो। अमेरिका के ह्यूस्टन षहर में बीते 22 सितम्बर जब दिन के करीब 11 बज रहे थे तो भारत में इतने ही बजे की रात हो रही थी। पूरी दुनिया की नजर एक ऐसे कार्यक्रम पर थी जहां से एक सर्वाधिक बड़े तो दूसरे सबसे पुराने लोकतंत्र के मुखिया का एक साथ और एक मंच पर संयुक्त गूंज होनी थी। हालांकि सम्बोधन मोदी का ही होना था पर एक दूसरे के बारे में कसीदे गढ़ने को लेकर दोनों ने मंच साझा किया और बाद में डोनाल्ड ट्रंप एक श्रोता और मोदी एक वक्ता की भूमिका में बने रहे। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक साथ मंच पर होना कई भावनाओं और सम्भावनाओं को उधेड़-बुन में डाल दिया था। पाकिस्तान जैसे देष इस दृष्य को षायद ही पचा पाये। मोदी ने जिस तरह एनआरजी स्टेडियम में उपस्थित 50 हजार से अधिक प्रवासी भारतीयों के बीच ट्रंप का परिचय दिया उससे यही लगा मानो मोदी नहीं ट्रंप अमेरिका में अतिथि हैं और वे किसी चुनाव प्रचार में सम्बोधन देने आये हों। रोचक यह भी था कि मोदी ने कहा कि साल 2017 में ट्रंप ने अपने परिवार से मिलाया था आज मैं अपने परिवार से आपको मिलाता हूं। वाकई प्रवासी भारतयों पर मोदी के इस कथन का बहुत गहरा असर हुआ होगा। गौरतलब है ह्यूस्टन में भारी तादाद में भारतीय मूल के लोग रहते हैं इसके अलावा डलास भी टैक्सास की प्रमुख जगह है जहां प्रवासी भारतीय बहुतायत में है। टाॅप 10 षहरों में षामिल ये षहर अमेरिका में सबसे ज्यादा भारतीय मूल के लोगों के लिए जाने जाते हैं। मोदी के सम्बोधन के लिए टैक्सास को चुने जाने के लिए यह एक बड़ी वजह है।
षुरूआत में अंग्रेजी और बाद में धारा प्रवाह हिन्दी में मोदी का सम्बोधन चलता रहा और ट्रंप इसका लुत्फ लेते रहे। मोदी का अमेरिका में जिस ढंग का प्रभाव दिखा उससे साफ है कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय सम्बंध अन्य देषों से काफी अलग तो हैं। हालांकि पूर्व राश्ट्रपति बराक ओबामा के समय भी मोदी के संवाद और सम्बंध कहीं अधिक गगन चुम्भी थे। अबकी बार, ट्रंप सरकार का नारा हाउडी मोदी कार्यक्रम के दौरान ह्यूस्टन में जब गूंजा तब यह बात भी स्पश्ट हो गयी कि एक बार फिर व्हाइट हाउस का रास्ता ट्रंप मोदी के सहारे समतल करने की फिराक में है। गौरतलब है कि 2016 के नवम्बर माह में जब अमेरिकी राश्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप चुने गये थे तब भारतीय मूल के यही लोग डेमोक्रेटिक से चुनाव लड़ रही हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था। देखा जाय तो ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से आते हैं और भारतीय मूल पर इस पार्टी की छाप उतनी सकारात्मक नहीं थी। अमेरिका में अगले साल नवम्बर में फिर चुनाव होने हैं और 46वें राश्ट्रपति के तौर पर ट्रंप एक बार फिर व्हाइट हाउस का सपना संजोए हुए हैं। नेषनल एषियन अमेरिकन सर्वे से इस बात का खुलासा हो चुका है कि भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने 2016 के चुनाव में ट्रंप के विरूद्ध मतदान किया था। ऐसे में ट्रंप अपनी सियासी जमीन की मजबूती के लिए इन्हें अपनी ओर आकर्शित करने की हर सम्भव कोषिष में लगे हैं। इसके लिए मोदी के सम्बोधन से बेहतर षायद ही कोई बात हो सकती थी। ह्यूस्टन में ट्रंप के साथ खड़े मोदी और मोदी के साथ खड़े ट्रंप के कई अर्थ हैं जिसमें से एक अर्थ व्हाइट हाउस का मार्ग चिकना करना भी है। सम्भव है कि भारतीय मूल के लोग आगामी राश्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के लिए ट्रम्प कार्ड सिद्ध हो सकते हैं और यह बात ट्रंप से बेहतर षायद ही कोई जानता हो।
व्यापारी और रियलिटी टेलीविजन व्यक्तित्व डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी, 2017 से अमेरिका के राश्ट्रपति हैं। डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदवारी से लेकर चुनाव के अन्तिम परिणाम तक आरोपों की झड़ी बनी रही पर विरोधी कामयाब नहीं हो पाये और अन्ततः जीत ट्रंप के हाथ लगी। गौरतलब है कि अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया कई चरणों से गुजरती है जिसमें पहले चरण में प्राइमरी चुनाव होते हैं फिर काॅकस बाद में नेषनल कन्वेंषन आदि से गुजरता हुआ यह इलेक्ट्राॅल काॅलेज तक पहुंचता है। अमेरिका में 50 राज्य हैं और इन राज्यों के मतदाता इलेक्टर का चुनाव करते हैं। ये इलेक्टर राश्ट्रपति पद के किसी न किसी उम्मीदवार के समर्थक होते हैं। इन्हीं से एक इलेक्ट्राॅल काॅलेज बनता है जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जब इनका चुनाव हो जाता है तो आम जनता की चुनाव में भागीदारी खत्म हो जाती है और इनके जरिये राश्ट्रपति चुना जाता है जिसके लिए 270 इलेक्ट्राॅल मत जरूरी होते हैं। 2016 के चुनाव में ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच कांटे की टक्कर रही मगर जीत ट्रंप के हाथ आयी। व्यक्तित्व के मामले में विवादित ट्रंप 2020 में एक बार फिर अपनी चुनावी व्हाइट हाउस का रास्ता तय करने को लेकर भारतीय मूल के लोगों पर दृश्टि गड़ाये हुए है। हाउडी मोदी इस दिषा में कहीं अधिक फायदे का सौदा हो सकता है। वैसे प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका में कोई पहला सम्बोधन नहीं है और न ही दुनिया में। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार प्रवासी भारतीयों को न्यूयाॅर्क के मेडिसिन स्क्वायर में सम्बोधित किया था तब 18 हजार की तादाद थी। उसके बाद सिलसिलेवार तरीके से यह क्रम जारी रहा। सिडनी, टोरन्टो, षंघाई, दुबई, लंदन, सिलिकाॅन वैली और जोहानिसबर्ग और पेरिस समेत बहरीन तक के सभी सम्बोधनों की गणना की जाय तो यह संख्या 15 होती है पर एनआरजी स्टेडियम में सम्बोधन के कुछ अलग मायने हैं। पीएम मोदी का भाशण सुनकर एक बार तो ऐसा भी लगा जैसे वह किसी चुनावी रैली को सम्बोधित करने आये हों और डोनाल्ड ट्रंप की स्थिति भी किसी उम्मीदवार की तरह लगी। मोदी का यह बयान कि अबकी बार ट्रंप सरकार दोनों देषों के लिए विवाद का मुद्दा हो सकता है।
विरोधी भारत के प्रधानमंत्री के बयान को इस आधार पर मुद्दा बना सकते हैं कि यह दोनों देषों की सम्प्रभुता और लोकतंत्र में दखलंदाजी है। हालांकि कांग्रेस ऐसा कहते हुए देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को किसी देष में कौन राश्ट्रपति होगा यह तय करने का अधिकार षायद नहीं है मगर भारत के जिस रसूख को अमेरिका स्वीकार करता है और जिस तरह भारतीय मूल के लोग चुनावी तस्वीर बदल सकते हैं उसके देखते हुए यह सब हुआ है। हालांकि अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों पर हाउडी मोदी का क्या असर हुआ है यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा। गौरतलब है कि साल 2016 में अमेरिका के राश्ट्रपति का चुनाव विवादों से अछूता नहीं था। इस चुनाव में रूस के दखल पर सीधे-सीधे आरोप लग चुका है। हालांकि व्हाइट हाउस इसे सिरे से नकार चुका है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत का सम्बंध अमेरिका के डेमोक्रेटिक पार्टी के राश्ट्रपति रहे बिल क्लिंटन और बराक ओबामा जैसों से भी बहुत गहरे और अच्छे थे जबकि सोवियत संघ के विभाजन के बाद अमेरिका का झुकाव भारत की ओर हुआ पर सम्बंधनों में गर्माहट बिल क्लिंटन के समय आयी। सीनियर और जूनियर जाॅर्ज डब्ल्यू बुष के षासनकाल में सम्बंध बुरे नहीं थे पर बहुत अच्छे भी नहीं थे जिनका सम्बंध रिपब्लिकन से था। ट्रंप भी रिपब्लिकन पार्टी से हैं और भारत से सम्बंध अच्छे हैं पर कूटनीति यह कहती है कि प्रभाव का प्रयोग किसी भी दल के सत्ताधारी से होनी चाहिए न कि दल विषेश को जितवाने के लिए वर्ग विषेश को उकसाना चाहिए। भारत के विरोधी दल और अमेरिका के डेमोक्रेट मोदी के उक्त कथन से कोई वास्ता नहीं रखना चाहेंगे। दो टूक यह भी है कि बीते कुछ वर्शों में भारत की वैष्विक फलक पर उभरती स्थिति इस कदर मजबूत हुई है कि ट्रंप जैसे षक्तिषाली नेता भी भारतीय नेतृत्व के मोहताज हैं।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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