अविभाज्य, मजबूत और आर्थिक रूप से सषक्त आसियान अर्थात् दक्षिण-पूर्वी एषियाई राश्ट्रों का संगठन ही भारत के हित में है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आसियान दौरे में इसके अलावा यह भी स्पश्ट किया है कि भारत के लिए हिन्द-प्रषान्त क्षेत्र के नजरिये से एक्ट ईस्ट नीति न केवल अहम् है बल्कि यह आसियान का मूल हिस्सा है। जाहिर है भारत उत्तर-पूर्व में अपने बाजार और कारोबार को लेकर काफी संजीदा रहा है। आसियान के माध्यम से वह चाइना के बढ़ते बाजार और आसियान पर उसकी पहुंच को भी संतुलित करने का काम करता रहा है। यही कारण है कि पष्चिमी देषों के साथ-साथ भारत आसियान देषों को लेकर भी काफी बेहतरी के साथ कूटनीतिक हलचल लिए हुए है। गौरतलब है कि बीते 31 अक्टूबर से 4 नवम्बर के बीच दक्षिण-पूर्व एषियाई देषों (आसियान) की बैठक थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाॅक में सम्पन्न हुई जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी पहले की तरह देखी जा सकती है। स्पश्ट है कि यह मोदी की 7वीं आसियान-इण्डिया समिट और 6वीं ईस्ट एषिया समिट है। पिछले साल जनवरी में भारत ने इण्डो-आसियान समिट की 25वीं वर्शगांठ की मेजबानी की थी जिसमें 10 आसियान नेताओं ने षिरकत की थी। इस दौरान भारत की ओर से यह घोशणा की गयी थी कि वह आसियान-इण्डिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरषिप की सतत् मजबूती के लिए काम करता रहेगा। मोदी बैंकाॅक में विदेषी कम्पनियों को भारत में निवेष के लिए अभी सबसे अच्छा समय है की बात कही। ईज़ आॅफ डूइंग बिज़नेस, ईज़ आॅफ लिविंग, प्रत्यक्ष विदेषी निवेष आदि संदर्भों को देखें तो भारत की हालत इतनी खराब नहीं कि विदेषी कम्पनियों को आकर्शित न कर सकें। गौरतलब है कि इन दिनों भारत आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और कई अर्थव्यवस्था के सुधारने वाले कदम उठाये जा रहे हैं। पर यह कहना मुष्किल है कि आर्थिक सुधार कितना हुआ है। वैसे जीडीपी की हालत देखते हुए सुधार नाकाफी कहे जा सकते हैं। स्थिति को देखते हुए चीन से बोरिया-बिस्तर समेटने वाली दुनिया की करीब 200 कम्पनियों पर भारत की नजर है। वित्त मंत्री इस मामले में अपना रूख भी स्पश्ट कर चुकी हैं। खास यह भी है कि भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था चाहता है जिसकी पूर्ति बिना दक्षिण-पूर्व के बाजार के सम्भव नहीं है।
गौरतलब है कि 2014 में जब मोदी सरकार ने कार्यभार संभाला था तब भारत की जीडीपी 2 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर थी और बीते 5 वर्शों में यह लगभग 3 ट्रिलियन अमेरिका डाॅलर के बराबर हो गयी। अब आगे के 5 वर्शों में इसे 5 ट्रिलियन डाॅलर करना है जो बिना एक संतुलित विकास दर के पाना सम्भव ही नहीं है। यहां स्पश्ट करते चलें कि चीन 12 ट्रिलियन डाॅलर से अधिक की अर्थव्यवस्था और कई मामले में पड़ोसी होने के नाते उससे विवाद है तो कई संदर्भों में उसी से कारोबारी समस्या भी है। जिस बाजार पर भारत की दृश्टि है उस पर कमोबेष चीन पर पहले से कब्जा है और जिन सार्क देषों को लेकर भारत बड़े भाई की भूमिका में निहायत सकारात्मक और उदार रवैया रखता है उन पर भी चीन की तिरछी नजर रहती है। इस मामले में पाकिस्तान अपवाद है। विदित हो कि पाकिस्तान ने भारत से जन्मजात दुष्मनी कर ली है और चीन इस दुष्मनी का पनाहगार है। किसी भी देष की विदेष नीति का मुख्य आधार उस देष की वैष्विक स्तर पर न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बल्कि अपनी नीतियों के माध्यम से दूसरे देषों को अवगत कराते हुए उनके सही-गलत होने का अहसास भी कराना होता है। आज से दो साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी ने 14 नवम्बर को आसियान के मंच से पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेष देने का प्रयास किया था तब देष आतंकवाद और चरमपंथ का बेहद षिकार था। पूरे दक्षिण चीन सागर पर एकाधिकार की फिराक में रहने वाले चीन को भी इस मंच से कई बार सजग किया गया है। मोदी का थाईलैण्ड की 3 दिवसीय यात्रा और आसियान समिट में उपस्थिति स्वाभाविक तौर पर अन्य पक्षों को भी सषक्त बनाता है। 5 अगस्त को जम्मू कष्मीर से अनुच्छेद 370 का समापन का जिक्र करना मोदी यहां भी नहीं भूले। हजारों भारतीयों को बैंकाॅक में सम्बोधित करते हुए अपनी उपलब्धियों का जमकर बखान किया।
द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी यह मंच काफी कारगर रहा। भारत समेत आसियान क्षेत्र में कुल मिलाकर करीब 2 बिलियन लोगों की आबादी है जो वैष्विक आबादी का एक-चैथाई है और उनका संयुक्त जीडीपी अनुपातिक तौर पर लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर है। आसियान से भारत में निवेष पिछले 17 सालों में 70 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक रहा है जो भारत के कुल प्रत्यक्ष पूंजी निवेष (एफडीआई) का 17 प्रतिषत से अधिक है। जिस तर्ज पर भारत आसियान और दक्षिण-पूर्व देषों को आकर्शित करने की फिराक में है उसमें कई सकारात्मक संदर्भ उन देषों के लिए भी देखें जा सकते हैं जो आसियान के मंच के साथ भारत से द्विपक्षीय सम्बंध बनाने के आतुर हैं। खास यह भी है कि भारत एषिया का ही नहीं दुनिया में एक उभरती अर्थव्यवस्था है और चीन के बाद सर्वाधिक जनसंख्या के चलते सबसे बड़ा बाजार भी है। ऐसे में इन देषों के लिए हर लिहाज़ से भारत एक लाभकारी देष है। मगर यहां पर चीन के कुछ हद तक एकाधिकार के कारण भारत की सोच का प्रसार धीमी गति लिए हुए है। भारतीय परिप्रेक्ष्य को आसियान देषों की दृश्टि से उम्दा प्रदर्षित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में 69वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर आसियान नेताओं को आमंत्रित किया था। यह पहला अवसर था जब गणतंत्र दिवस पर अतिथि एक नहीं अनेक थे। भूमण्डलीकृत विष्व की अनिवार्यताओं को देखते हुए भारत कूटनीतिक फलक पर अपने मन की बात करने से फिलहाल कहीं कोई चूक करता नहीं दिखाई देता। बावजूद इसके आसियान के साथ भारत के सम्बंध और सरोकार क्या उतने सकारात्मक हैं जितना भारत की जरूरत है।
साल 1991 में भारत ने पूर्वी-एषियाई देषों के साथ अपनी संलग्नता सुनिष्चित करने के दृश्टिकोण से पूरब की ओर देखो नीति की घोशणा की। ये आधार इस बात को पुख्ता करते हैं कि भारत का इन देषों के साथ ऐतिहासिक सम्बंध पुराने हैं। साल 1992 में भारत-आसियान का क्षेत्रीय वार्ता भागीदार बन गया और क्रमिक तौर पर भारत की उपादेयता इन क्षेत्रों में वाणिज्य और व्यापार के साथ कृशि तथा अन्य मामलों में परिभाशित होने लगे। इसी मंच से पाकिस्तान को आतंकवाद के मामले में आड़े हाथ लेने का अवसर भी देखा जा सकता है। भारत की बदली व्यवस्था को भी प्रचार-प्रसार करने का यह मंच काम आता रहा। मेक इन इण्डिया के प्रसार के लिए आसियान समिट भी उपयोग होती रही और अब विदेषी कम्पनियों को भारत में निवेष के लिए आमंत्रित करने का बड़ा अवसर इस समिट ने दिया है। भारत ऐसा समझता है कि आसियान देष यहां निवेष करके एक अच्छी कीमत अपने लिए अर्जित कर सकते हैं जबकि आसियान देष का ढुलमुल रवैया इस बात पर रहता है कि कई बुनियादी तत्व को पहले भारत सुधार ले फिर निवेष को वह सोचे। हालांकि यहां जरूरत केवल भारत की नहीं है। ऐसे में सकारात्मक रूख दोनों ओर से होना चाहिए। बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और म्यांमार की काउंसलर आंग सान सूकी के बीच सिटवे बंदरगाह के संचालन से जुड़े मुद्दों को और इसके साथ ही कालाधन, मल्टी-मोडल ट्रंजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट और सीमा-सीमांकन के कुछ हिस्सों को लेकर भी चर्चा की। मोदी ने आसियान देषों के नेताओं को सम्बोधित किया। गौरतलब है षिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले सदस्य देष पूरी दुनिया की आबादी कर 54 फीसदी और जीडीपी का 58 फीसदी हिस्सा है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) 10 आसियान देषों जैसे ब्रूनेई, कम्बोडिया, इण्डोनेषिया, मलेषिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैण्ड, फिलीपींस, लाओस और वियतनाम जबकि उनके 6 एफटीएफ साझेदार देषों चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड का समूह है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन