5 अगस्त 2019 को विषेश राज्य का दर्जा खत्म किये जाने के बाद जम्मू-कष्मीर के सभी बड़े दलों के साथ केन्द्र सरकार की बीते 24 जून को एक बैठक हुई जो हर लिहाज से सर्वदलीय थी। इसकी खास बात यह रही कि इसमें जम्मू-कष्मीर के कई छोटे-बड़े नेतृत्व ने अपनी राय साझा की और राज्य को लेकर कुछ चिंताओं से केन्द्र सरकार को अवगत कराया। गौरतलब है कि नेषनल कांफ्रेंस ने पूर्ण राज्य की जहां जरूरत बतायी वहीं अनुच्छेद 370 वापस लाने के लिए अदालती रास्ते पर जाने की बात भी कही। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने तो अनुच्छेद 370 हटाने को ही अवैध करार दे दिया और इसकी वापसी की बात कही। वैसे देखा जाये तो महबूबा मुफ्ती को अनुच्छेद 370 हटाया जाना सबसे ज्यादा तकलीफ देय है और इनका सियासी पैंतरा पाकिस्तान परस्त रहा है और अभी भी इसी राह पर है। इसके अलावा भी कई भिन्न-भिन्न बातें सर्वदलीय बैठक में हुई हैं। जाहिर है इस बैठक का सकारात्मक संदर्भ जहां अनुच्छेद 370 के खात्मे के साथ कई तल्खी उभरी थी उसको कम करने का यहां काम हुआ और यह भी समझने का प्रयास देखा जा सकता है कि अब जम्मू-कष्मीर को विकास की राह पर कैसे आगे और बढ़ाया जाये। कांग्रेस की भी यह मांग रही है कि पूर्ण राज्य का दर्जा जम्मू-कष्मीर को देते हुए विधानसभा का तुरन्त चुनाव हो, जमीन और नौकरी की सुरक्षा की गारंटी दी जाये तथा कष्मीरी पंडितों को वापस लाया जाये और राजनीतिक कैदियों की रिहाई की जाये। हालांकि केन्द्र सरकार ने अपनी एक मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है जिससे यह साफ है कि मोदी सरकार की ऐसे मुद्दों को लेकर एक तरफा सोच नहीं रख रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पश्ट किया है कि जम्मू-कष्मीर के नेताओं के साथ हुई बैठक राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए कहीं अधिक अहम है। बैठक में यह भी बात बाहर आयी कि परिसीमन के बाद जम्मू-कष्मीर में चुनाव सम्पन्न होगा।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 और 35ए का जम्मू-कष्मीर से समाप्त किया जाना किसी ऐतिहासिक घटना से कम नहीं है। घाटी की परिस्थितियां जिस पैमाने पर बदलाव लेती रही हैं उसे देखते हुए चुनाव के लिए लम्बा इंतजार कोई हैरत की बात नहीं है। केन्द्र सरकार ने साफ किया है कि परिसीमन के बाद राज्य में चुनाव सम्पन्न होंगे। मार्च 2020 में जम्मू-कष्मीर के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है। परिसीमन के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि राज्य के सभी चुनावी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समान रहे। हालांकि कयास यह है कि यहां सीटें बढ़ सकती हैं। परिसीमन सियासी समीकरण को कुछ बदलने में कामयाब जरूर होंगे। जम्मू-कष्मीर में कुल 111 विधानसभा सीटें हैं लेकिन चुनाव केवल 87 सीटों पर होता था। इसमें से बची हुई 24 सीटें पाक अधिकृत कष्मीर में हैं जहां चुनाव सम्पन्न कराना सम्भव नहीं था। 46 सीटें कष्मीर में 37 सीटें जम्मू में और 4 सीटें लद्दाख में आती हैं। बहुमत के लिए 44 सीट की आवष्यकता होती थी। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में बीजेपी कष्मीर में खाता नहीं खोल पायी थी लेकिन जम्मू में 37 के मुकाबले 25 सीट जीती थी और 2015 में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार भी चला चुकी है। यह वही पीडीपी है जो अलगाववाद से प्रेरित है। लद्दाख को एक अलग केन्द्र षासित प्रदेष बना दिया गया है। हालांकि विधानसभा सीट की संख्या इस क्षेत्र में मात्र 4 रही है ऐसे में जम्मू-कष्मीर में जो अलग से केन्द्र षासित प्रदेष है सीटों का बहुत अंतर नहीं पड़ेगा। कयास यह भी है कि विधानसभा की यहां सीटें तुलनात्मक बढ़ सकती हैं। स्पश्ट कर दें कि जब 1993 में जम्मू-कष्मीर के परिसीमन के लिए एक आयोग गठित किया गया था जिसकी रिपोर्ट 1995 में लागू हुई तब यहां 12 सीटें बढ़ी थी। पड़ताल बताती है कि राज्य में विधानसभा की सीटों पर परिसीमन 1963 और 1973 में इसके पहले भी हो चुका है।
जम्मू-कष्मीर के भौगोलिक संदर्भ को समझें तो अब यह पहले की तुलना में कहीं अधिक छोटा और केन्द्र षासित प्रदेष की संज्ञा में है। 5 अगस्त 2019 से पहले लद्दाख समेत इसका क्षेत्रफल विषाल था अब 58 फीसद भूभाग लद्दाख में है षेश जम्मू-कष्मीर में है। यहां का सियासी पारा भी यहां धर्म और वर्ग में बंटे देखे जा सकते हैं। लद्दाख जो बौद्ध बाहुल्य है और आतंक से कोई नाता नहीं है। 26 प्रतिषत भूभाग जम्मू में आता है जो हिन्दू बाहुल्य है मगर आतंक की छिटपुट घटनाएं इसे चपेट में लेती रही। जबकि कष्मीर घाटी और षेश 16 फीसद हिस्सा मुस्लिम बाहुल्य है और यहां आतंक की मण्डी लगती है। सियासी दांव पेंच भी इसके इर्द-गिर्द देखे जा सकते हैं। परिसीमन से यदि सीटें जम्मू की ओर बढ़ती हैं तो कष्मीर में जो राजनीतिक घराने अपना वर्चस्व दषकों से बनाये रखे हैं उनके लिए मुष्किलें होंगी। हालांकि सीटें कहां कितनी बढ़ेगी कहना मुष्किल है मगर सीटों का जोड़-घटाव सियासी पारे का उतार-चढ़ाव भी सिद्ध होगा। नेषनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे कष्मीर के बड़े दल अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने के विरोध में हैं। बाकी दर्जन भर ऐसे भी दल हैं जो ऐसी ही राय रखते हैं मगर परिसंघीय ढांचे में अब जम्मू-कष्मीर भारत के षेश क्षेत्रों की तरह है जिसे देखते हुए अब विरोध बेकार की बात है। हालांकि राजनतिक दबदबा जब जमींदोज होता है तो मुसीबत का पहाड़ टूटता है सभी जानते हैं कि जम्मू-कष्मीर में दो परिवारों की अमूमन सत्ता रही है। हालांकि सत्ता तो कांग्रेस की भी रही है मगर तकलीफ सबसे ज्यादा षेख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती में दिखाई देता है। ऐसा उनका सियासी जमीन खिसकने के चलते है।
दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ 14 वरिश्ठ नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया था। इसमें गुलाम नबी आजाद और फारूख अब्दुल्ला समेत 4 पूर्व मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री षामिल थे। जिस सद्भावना के साथ बैठक को एक मुकाम देने का प्रयास हुआ है उससे यह भी साफ है कि केन्द्र भी कष्मीर के स्थानीय नेताओं के साथ अब किसी प्रकार का तनाव या रार नहीं चाहती। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी क्षेत्र विषेश का विकास जितना विकेन्द्रित भावना के साथ हो सकता है उतना केन्द्रीय दबदबे से नहीं। जम्मू-कष्मीर अनुच्छेद 370 और 35ए की बेड़ियों से 70 सालों तक जकड़ा रहा और इससे मुक्ति का उद्देष्य भी यही रहा है कि राज्य को विषेश से मुख्य धारा की ओर लाया जाये और इसकी संवेदनषीलता को समझते हुए विकास की पटरी पर दौड़ाया जाये। यह तर्क भी गैर वाजिब नहीं है कि इन सबके लिए अभी भी केन्द्र सरकार की आवष्यकता तुलनात्मक अधिक बनी रहेगी। ऐसा वहां के सियासी दलों के अलगाववादी नजरिये के चलते कहा जा सकता है जो 370 और 35ए की अभी भी हिमायत कर रहे हैं। फिलहाल परिसीमन तत्पष्चात् चुनाव जम्मू-कष्मीर की पहली जरूरत है ताकि चुनी हुई सरकार और केन्द्र के प्रयास वहां के निवासियों की अपेक्षा को पूरा करे। संदर्भ निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि जम्मू-कष्मीर से सटे केन्द्र षासित लद्दाख को बेहतर विकास मिलने से इस सीमावर्ती प्रान्त कई अन्य समस्याओं को निपटने में न केवल सहायत होगा बल्कि मजबूत भारत में मददगार भी सिद्ध होगा।
(25 जून, 2021)
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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