Monday, June 28, 2021

केंद्र और राज्य के बीच मुख्य सचिव

हालिया विवाद केंद्र-राज्य संबंध के बीच एक नई रंजिश को मानो नये तरीके से हवा दे रहा है। जिसके केंद्र में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव हैं जो बीते 31 मई को रिटायर्ड हुए और आनन-फानन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें अपना प्रमुख सलाहकार भी नियुक्त कर दिया। जाहिर है यह ममता का केंद्र के विरोध में एक बडा दावं है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में बीते अप्रैल में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुआ जिसके नतीजे 2 मई को घोषित हुए थे। जिसमें ममता बनर्जी तीन चौथाई बहुमत के साथ एक बार फिर गद्दी पाने में कामयाब रहीं। इस चुनावी समर में भी व्यक्तिगत और निजी हमलों भी खूब देखने को मिले। हो न हो यही राजनीतिक खटास प्रशासनिक अखाड़ा को भी तैयार कर दिया हो। जाहिर है कि ततत्कालीन मुख्य सचिव अलापन बंधोपाध्याय को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार और ममता बनर्जी आमने-सामने हैं। समझना यह भी सही रहेगा कि आखिर विवाद है क्या? असल में  बीते 25 मई को पश्चिम बंगाल सरकार ने  24 मई को केंद्र की मंजूरी का हवाला देते हुए एक आदेश जारी किया था कि सार्वजनिक सेवा के हित में अलापन बंधोपाध्याय की सेवा का विस्तार 3 महीने के लिए किया जाता है। लेकिन 28 मई को केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने लिखा कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने बंधोपाध्याय की सेवा को तत्काल प्रभाव से भारत सरकार के साथ स्थानांतरित किया है। और राज्य सरकार से यह अनुरोध है कि अधिकारी विशेष को तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त कर दें। दो टूक यह भी है कि केंद्र सरकार की यह कार्रवाई प्रकाश में तब आई जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुख्य सचिव अलापन बंधोपाध्याय प्रधानमंत्री मोदी की समीक्षा बैठक में आधे घंटे देरी से पहुंचे। गौरतलब है कि हाल ही में यास तूफान से बंगाल का सामना हुआ था और उसके नुकसान की समीक्षा बैठक प्रधानमंत्री कर रहे थे। 

परिपेक्ष्य और दृष्टिकोण यह भी है कि अखिल भारतीय सेवा अर्थात आईएएस सरीखे अधिकारी की भर्ती, प्रशिक्षण व नियुक्ति केंद्र सरकार के अधीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा होता है जिसका प्रभार प्रधानमंत्री के पास ही होता है। अनियमितता स्थिति में राज्य इन्हें निलंबित कर सकते हैं पर बर्खास्तगी का अधिकार केंद्र को है। कैडर प्रणाली के तहत राज्यों में काम करते हैं और अवधि प्रणाली व प्रतिनियुक्ति के आधार पर समय-समय पर केंद्र में भी। नियम यह संकेत करता है कि कोई अधिकारी राज्य में तैनात है तो उस पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कार्यवाही करने के लिए राज्यों से अनुमति लेनी होती है और राज्य मानने से इंकार कर सकते हैं। किसी अफसर को दिल्ली तलब करने का भी राज्य की मंजूरी जरूरी है जबकि केंद्र सरकार ने अलापन बंदोपाध्याय दिल्ली तलब किया लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने इससे वास्ता नहीं रखा। अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम1969 के नियम 7 में भी है स्पष्ट है कि यदि अधिकारी राज्य में सेवा कर रहे हैं तो कार्यवाही शुरू करने और जुर्माना लगाने का अधिकार राज्य सरकार का होगा। नियम तो यह भी कहता है कि ऐसे किसी भी अधिकारी के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए राज्य और केंद्र दोनों को सहमत होने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और वन सेवा (आईफएस) ये तीनों मौजूदा समय में अखिल भारतीय सेवाएं है। जिसमें कैडर और अवधि प्रणाली पाई जाती है। अवधि प्रणाली की शुरुआत 1905 में लॉर्ड लॉर्ड कर्जन द्वारा की गई थी। कैडर के अंतर्गत राज्य होता है और अधिकारी वही काम करते हैं। जबकि अवधि प्रणाली ( टैन्योर सिस्टम) में केंद्र समय-समय पर ऐसी सूची तैयार करता है जिसमें राज्य के इन्ही अधिकारियों को केंद्र के लिए दिल्ली में  कार्यरत होते हैं जिसकी अधिकतम अवधि 3 साल है।


भारत में कैबिनेट सचिव सबसे वरिष्ठ आईएएस माना जाता है जबकि राज्यों में मुख्य सचिव। कैबिनेट सचिव की तुलना में मुख्य सचिव कार्य की दृष्टि से कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं। मुख्य सचिव प्रशासनिक दृष्टि से राज्य का सर्वोच्च पद है। अलग-अलग राज्यों में इसकी अपनी भिन्न-भिन्न उपादेयता है। राज्य प्रशासन में सफलतापूर्वक कार्य संचालन के लिए मुख्यमंत्री को परामर्श देना। शासकीय नीतियों के निरूपण में सहयोग, मंत्रिमंडल के उप समितियों के कार्य में मदद और केंद्र-राज्य संबंध के मामले में क्षेत्रीय परिषदों में पत्र व्यवहार एवं समन्वय स्थापित करना। राज्य के विकास के लिए कार्यक्रम योजना का निर्माण व परामर्श देना। केंद्र और राज्य सरकार के बीच यदि कोई विवाद हो तो उसमें समन्वय स्थापित करने जैसे तमाम कार्य देखे जा सकते हैं।  रोचक यह भी है कि जो मुख्य सचिव केंद्र-राज्य के बीच एक सकारात्मक समन्वयकारी भूमिका में होता है वही बंगाल में विवाद का कारण भी बना। फिलहाल सचिवों का सचिव मुख्य सचिव तथा सचिवालय जिसे राज्य विशेष का दिमाग कहते हैं। जाहिर है कि टकराहट पैदा होगी तो केंद्र और राज्य दोनों नुकसान में रहेंगे। 1987 बैच के आईएएस अलापन बंदोपाध्याय को लेकर उठा विवाद किस करवट बैठेगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन ऐसी बातें विकास और संबंध दोनों को चोट पहुंचाती हैं। वैसे एक लोक प्रशासन के साहित्य में जितनी आलोचना लोक सेवकों के बारे में की जाती है संभवत उतनी किसी अन्य व्यवस्था में शायद ही हो। यह एक तार्किक तथा वैध सत्ता के रूप में निर्मित व्यवस्था है और राजनीतिक कार्यपालिका के आवरण यह ढका रहता है। जिसे कार्यकारी दृष्टि से प्रशासनिक सत्ता के रूप में पहचान सकते है। पड़ताल बताती है कि समय-समय पर अखिल भारतीय मुख्य सचिव सम्मेलन और मुख्यमंत्रियों की बैठक होती रही है। ऐसे आयोजनो के पीछे बड़ी वजह यही थी कि संघीय ढांचे को ताकत देना साथ ही राज्य प्रशासनिक और कार्यकारी दृष्टि से कहीं अधिक स्वायत्त और शक्तिशाली रहें। ताकि आर्थिक लोकतंत्र और लोक कल्याणकारी नीतियों बनाने और लागू करने के साथ-साथ संविधान और लोक सशक्तिकरण को ताकतमिलती रहे।
(1 जून, 2021)

डॉ सुशील कुमार सिंह 
निदेशक,  वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

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