Tuesday, June 22, 2021

फिलिस्तीन और इज़राइल के बीच कहाँ खड़ा है भारत

गौरतलब है कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच इन दिनों गोलाबारी जारी है। हालाकि कि यह हमला फिलिस्तीन की सेना नहीं बल्कि हमास कर रही है और हमले के मद्देनजर हमास के कई बड़े नेता भूमिगत हो गए । गौरतलब है कि हमास फिलिस्तीनी क्षेत्र का सबसे प्रमुख इस्लामी चरमपंथी संगठन है। 1987 में एक जन आंदोलन के चलते हमास का उदय हुआ था। जिसे दुनिया  आतंकी संगठन के रूप में देखती है। खास यह भी है कि फिलिस्तीन भी इसे आतंकी संगठन ही मानता है। फिलहाल इजरायल अपनी तेज धार और के साथ गाजा पट्टी में भीषण हमला जारी किए हुए। बीते 16 मई को जहां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक थी उस दिन सबसे भीषण हमला भी किया गया। हमले में सैकड़ो फिलिस्तीनी की मौत हो चुकी है जिसमें बच्चों की संख्या भी बहुतायत में है जबकि हजारों की तादाद में लोग घायल हो गए हैं। कमोबेश मरने और घायल होने वालों की संख्या इजराइल में भी देखी जा सकती है। इजरायल और हमास के बीच एक हफ्ते से जारी संघर्ष में 16 मई का हवाई हमला अबतक का सबसे भीषण हमला था। हालाकि अंतरराष्ट्रीय पक्षकार भी दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन मुश्किले बढ़ी हुई हैं। क्षेत्र विशेष में तनाव कम करने के लिए संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद की 16 मई को बैठक भी हुई। गौरतलब है कि पूर्वी यरूशलम में मई की शुरुआत में तनाव तब शुरू हुआ था जब फिलिस्तीनियों ने शेख जर्रा से उन्हें निकाले जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया और इजरायली पुलिस ने अल अक्सा मस्जिद में कार्रवाई की। गाजा पट्टी की स्थिति को लेकर 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन की भी 16 मई को ही आपातकालीन डिजिटल बैठक हुई ताकि इजरायली हमले को रोका जा सके। बावजूद इसके मुश्किलें कम होते दिखाई नहीं दे रही हैं और दुनिया के देश इसे लेकर दो गुटों में बटे जरूर दिखते हैं। जिसमें अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश जहां इसराइल की ओर हैं वही अरब देश फिलिस्तीन के पक्ष में खड़े हैं। तुर्की का कहना है कि मुस्लिम वर्ल्ड को इजरायल के खिलाफ स्पष्ट फैसला लेना चाहिए। भारत की मुश्किल यह है कि वह इजरायल और फिलिस्तीन दोनों से द्विपक्षीय संबंध रखता है। ऐसे में उसका दृष्टिकोण एकतरफा तो बिल्कुल नहीं  हो सकता। सिर्फ इजरायल और फिलीस्तीन के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी मायने भारत का दृष्टिकोण मायने रखता है।


विदित हो कि पूर्वी देश हो या पश्चिमी भारत समय के साथ विभिन्न देशों से संबंध हो गाढ़ा करता रहा है। इसी क्रम में भारत-इजराइल संबंध को भी देखा जा सकता है। गौरतलब है कि 14 जनवरी 2018 को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की 6 दिवसीय यात्रा की थी जो कई उम्मीदों की भरपाई करने से युक्त दिखाई था। खास यह भी है कि जिस तर्ज पर प्रधानमंत्री मोदी के इजरायल दौरे के दौरान जो जुलाई 2017 में हुआ था उनके समकक्ष ने उनका स्वागत किया था उसी अंदाज को अपनाते हुए प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उन्हें गले लगाया था। गौरतलब है कि 1948 को दुनिया के नक्शे में पनपा इजरायल का भारत के साथ कूटनीतिक संबंध महज तीन दशक पुरानी है। हालांकि कई मामलों में सम्बन्धों का संदर्भ पहले से भी देखा जा सकता हैं। मगर कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कभी भी इजरायल का दौरा नहीं किया। जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी इजरायल का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हुए। तब बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था कि भारत से मेरा दोस्त आया है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य जिस तरह का है वह सकारात्मकता से ओतप्रोत है। भारत,फिलिस्तीन को लेकर भी उतना ही सकारात्मक है जितना कि इजराइल के मामले में। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दृष्टि से देखें तो इजरायल और फिलिस्तीन के झगड़े पर कई बार यह कह चुके थे कि उनकी सहानुभूति यहूदियों के साथ है लेकिन फिलिस्तीनी क्षेत्र तो अरब के लोगों का ही है और इस विवाद का कोई सैन्य हल नहीं होना चाहिए। जाहिर है ऐसे विचारों से आज का भारत भी अनभिज्ञ नहीं है। शायद यही कारण है कि इन दिनों भारत की स्थिति काफी कुछ चुनौतीपूर्ण तो है। हालांकि बीते 16 मई के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक भारत की ओर से अपना मत बखूबी स्पष्ट कर दिया गया है। जिसका शायद इजरायल के साथ फिलिस्तीन भी कुछ दिनों से इंतजार कर रहा था।

 गौरतलब हो कि नई दिल्ली ने चुप्पी तोड़ते हुए दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील की है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में इस मुद्दे पर अपना स्पष्ट कर दिया। ध्यानतव्य हो कि भारत इसी साल जनवरी 2021 से 2 साल के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में शामिल है। भारत के स्थाई प्रतिनिधि पीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि हम दोनों पक्षों से यथास्थिति  में एकतरफा बदलाव न करने की अपील करते हैं। दोनों को शांति व्यवस्था बनाए रखना की बात कही गई। साथ ही यह भी कहा कि भारत फिलिस्तीन के जायज मांगों का समर्थन करता है और टू नेशन थ्योरी के तहत मामले में हल के लिए वह वचनबद्ध है। इस बात पर भी दृष्टि डाली गई कि इजरायल का यरूशलम भारत के लिए क्या महत्व रखता है। गौरतलब है कि यहां लाखों भारतीय रहते हैं। जाहिर है इजरायल और फिलिस्तीन में विवाद सुलझाने के लिए प्रत्यक्ष और सार्थक बातचीत होनी चाहिए। खास यह भी है कि भारत ने गाजा पट्टी से इजरायल के रिहायशी इलाकों पर होने वाले हमलों की कड़ी निंदा की है। इसी हमले में केरल की सौम्या संतोष की भी मौत हो गई थी। फिलहाल हालिया संदर्भ यह जताता है कि भारत, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच वार्ता बहाल करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का हर संभव प्रयास करेगा। और जो भारत को करना भी चाहिए। पड़ताल बताती है कि इजरायल निर्माण से लेकर अब तक भारत का इजरायल और फिलिस्तीन के सम्बन्धों में कई मोड़ आए हैं। जाहिर है भारत की टिप्पणी कहीं अधिक संतुलित और सकारात्मक है। ऐसे में हो सकता है इजराइल को अपेक्षा कुछ ज्यादा की हो लेकिन शांति प्रिय देश भारत संयम और संतुलन को बाकायदा जानता है।

देखा जाए तो इजरायल और फिलिस्तीन क्षेत्र का विवाद भारत के आजादी से भी पुराना है और भारत हमेशा से अरब देशों का हिमायती रहा है। भारत की स्वतंत्रता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने इजरायल के प्रति महात्मा गांधी के रूख को आगे बढ़ाया। और बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुरोध के बावजूद भारत ने इजरायल के गठन के प्रस्ताव का विरोध किया था। हलाकि सितंबर 1950 में इजराइल को मान्यता भारत ने दे दी । 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ तब तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन को नेहरू ने हथियारों की आपूर्ति का अनुरोध किया। इजरायल की ओर पेशकश मान भी ली गई। मगर भारत ने यह शर्त रखी कि इजरायल समुद्री जहाज से हथियार भेजे और उसका झण्डा जहाज पर ना लगा हो क्योंकि इससे अरब देश नाराज हो जाएंगे। ऐसे में गुरियन ने मना कर दिया। फिलहाल 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान भी इजराइल भारत की मदद के लिए सामने आया था और हथियारों का जहाज भेजा था बदले में शर्त राजनीतिक रिश्ते की थी। 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान भी इजराइल से संबंध को आगे बढ़ाने की बात आई तब तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था कि 25 अरब देश नाराज हो जाएंगे।  फिलहाल भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत 29 जनवरी 1992 मानी जाती। पी वी नरसिंह राव उस समय देश के प्रधानमंत्री थे। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारत और इजराइल का सहयोग बड़ा था और शायद यही वजह थी कि साल 2000 में भारत के तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह इजराइल का दौरा किया था। 2004 में मनमोहन सरकार के समय भारत का इजरायल के प्रति रुख संतुलित था और मोदी शासनकाल में संबंध चरम पर पहुंच गया। उक्त संदर्भ  दर्शाते हैं कि भारत का अरब देशों के साथ प्रगाढ़ संबंध तो था तो था मगर इजरायल के साथ भी उसका ताना-बाना था। हालाकि इसके बावजूद भी भारत की विदेश नीति फिलिस्तीनी लोगों के पक्ष में रही।फिलहाल 2014 के बाद इजरायल और फिलीस्तीन के बीच एक बार फिर लंबे युद्ध के आसार बन रहे हैं। एक ओर जहां अमेरिका ने इजरायल का खुला समर्थन किया वहीं दूसरी ओर अरब देश फिलिस्तीन के साथ खड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने मीडिया संस्थानों की इमारत को ध्वस्त करने और मौत को युद्ध का अपराध करार दिया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी गाजा में मृतकों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंता जताई है। जब-जब फिलिस्तीन और इजराइल के बीच इस तरीके की गतिविधियां हुई है नुकसान हमेशा फिलिस्तीन का हुआ है। देखा जाय तो फिलिस्तीन की जमीन हर युद्ध में सिकुड़ जाती है और इजराइल का क्षेत्रफल बढ़ जाता है।                                                                                                                       
 (17 मई, 2021)

सुशील कुमार सिंह 
वरिष्ठ स्तम्भकार 

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