Tuesday, June 22, 2021

जीवन का अधिकार और संविधान

 यद्यपि देश कोरोना की दूसरी लहर के कहर से बाहर निकलने का भरसक प्रयास कर रहा है, बावजूद इसके बीमारी कब नियंत्रण में आयेगी कहना कठिन है। साथ ही तीसरी की संभावना भी व्यक्त की जा रही है। रोजाना लाखों की तादाद में लोंगो का कोरोनावायरस से संक्रमित होना और चार हजार के आसपास प्रतिदिन मौत का आंकड़ा इसकी भयावह स्थिति को दर्शाता है। जिस पैमाने पर लोगों की जान जा रही है यह जीवन के अधिकार को ही मानो हाशिए पर धकेल दिया है। गौरतलब है कि मानव प्रतिष्ठा हमारे संविधान का एक बहुमूल्य आदर्श है और यह आदर्श लोगों के जीवन को संवारता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में अनुच्छेद 21 को एक नया आयाम दिया था। और इसके क्षेत्र को अत्यंत विशाल बनाया और न्यायालय ने कहा था कि प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाए रखते हुए जीने का अधिकार है।


 जाहिर है संविधान जीवन के अधिकार को एक आदर्श स्वरूप दिया है लेकिन आज वही जीवन हाशिए पर है। हालांकि बचाव और रखरखाव के लिए सरकार और समाज की ओर से प्रयास जारी है लेकिन कुछ और प्रयास की आवश्यकता हो सकती है। मसलन जीवन के अधिकार को संबल देने वाले अनुच्छेद 21 के तहत सभी करोना पीड़ितो का सरकारी व गैर सरकारी हॉस्पिटल्स में हर तरीके से मुक्त इलाज किया जाना। इससे ना केवल सभ्यता का ठीक से रखरखाव हो सकेगा बल्कि मानवता को भी ऊंचाई तथा सरकार को भी एक नया प्रतिमान गढने के लिए जाना जायेगा। भारतीय संविधान के भाग 3 के अंतर्गत मूल अधिकारों में पहला मूल अधिकार समता का अधिकार है। अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष सभी बराबर होते हैं जबकि अनुच्छेद 19 में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है मगर 21 में जीवन संवारने और  गरिमामय जीवन के अधिकार की अनूठी व्यवस्था देखी जा सकती है। 

 यह बात भी गौर से समझने की आवश्यकता है कि कोरोना एक व्यक्ति की नहीं बल्कि परिवार और समाज  के साथ राष्ट्र की समस्या है। ऐसी बीमारी जहां पीड़ितों की संख्या गुणात्मक बढ़त के साथ सुनामी का रूप लिए हुए है वहीं आर्थिकी के दबाव चलते कई इलाज के लिए पैसे के आभाव से भी जूझ रहे होंगे। इतना ही नहीं मनोवैज्ञानिक टूटन के बीच जीवन इन दिनों कई परीक्षा से भी गुजर रहा है। देखा जाए तो समाज में रहने वाला सामाजिक प्राणी कठिनाइयों से जूझ रहा है। एक अनुमान यह भी रहा है कि कोरोना संक्रमितो में केवल 10 फीसद को ही अस्पताल की आवश्यकता पड़ती है। इस लिहाज से भी देखें तो करोना जब से देश में आया है अब तक पीड़ितों की संख्या पौने तीन करोड़ हो चुकी है। स्पष्ट है कि 27-28 लाख लोगों को अस्पताल की आवश्यकता पड़ी होगी। हालांकि आयुष्मान भारत के तहत देश के 20 हजार हॉस्पिटल में मुफ्त इलाज का भी संदर्भ रहा हैं पर इसकी संख्या मामूली हैं। ऐसे में  कोरोनावायरस से पीड़ितो की एक बड़ा हिस्सा इलाज के लिए स्वयं के पैसों पर निर्भर है। गौरतलब है कि रोजगार और कमाई के ख़ात्मे के चलते इलाज करा पाना सभी के लिए आसान तो कत्तई होगा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) की ओर से जारी रिपोर्ट को देखें तो 16 मई 2021 को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान ग्रामीण बेरोजगारी बीते 1 हफ्ते में दोगुनी उछाल के साथ 14.34 फीसद हो गई है। पिछले हफ्ते में ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.29 फीसद थी। इसी दौरान शहर की बेरोजगारी में भी बढ़ोतरी हुई है जो लगभग 11.72 फीसद थी जो अब बढ़कर 14.71 फीसद हो गई है। जब बेरोजगारी एक हफ्ते में दुगनी होगी तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के कमाई पर इसका क्या असर पड़ रहा होगा। ऐसे में चाहिए कि सरकार बड़ा दिल दिखाएं और कोरोना पीड़ितो के लिए मुफ्त इलाज वाला रास्ता अपनाने में अब देरी ना करें।
(19  मई, 2021))

डॉ सुशील कुमार सिंह

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