Tuesday, June 22, 2021

आईएएस के तर्ज स्वास्थ सेवा !

बदलती परिस्थितियों और परिमार्जित दृष्टिकोण के अंतर्गत देखा जाए तो समय के साथ ढांचा, प्रक्रिया और व्यवहार को बदल लेना ही अच्छा होता है। वर्तमान दौर स्वास्थ्य व  चिकित्सा की दृष्टि से बहुत कठिन कहा जाएगा। चुनौतियां बता रही हैं कि इसके स्वभाव को बदलने का सही वक्त आ गया है। गौरतलब है कि लोक स्वास्थ्य, संविधान की सातवीं अनुसूची में निहित राज्य सूची का विषय है। जिस पर कानून बनाने का जिम्मा राज्यों का है। बावजूद इसके दायित्व की दृष्टि से केंद्र की भूमिका कमतर नहीं होती। बिगड़े हालात में चिकित्सीय व्यवस्था चरमराई है और अलग-अलग राज्यों की अपनी मजबूरियां जनमानस के लिए कठिनाई भी पैदा कर रही है।

यह बात पहले से ही उठनती रही है कि आईएएस की तर्ज पर स्वास्थ्य सेवा कैडर बने। हाल ही में स्वास्थ्य पर बने एक स्वतंत्र आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि समाज और समुदाय तक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा की तरह स्वास्थ्य सेवा को भी विकसित किया जाए। कुछ दिन पहले ही 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष ने स्वास्थ्य को संविधान की समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने की बात कही थी। जाहिर ऐसा होने से केंद्र का प्रभाव लोक स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर बड़े पैमाने देखा जा सकेगा। गौरतलब है कि जब कोई विषय समवर्ती सूची में होता है तो उसमें केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं लेकिन असहमति की स्थिति में केंद्र की ही बात अंतिम सत्य होती है। 

अखिल भारतीय स्वरूप देने में इसकी सघनता और स्पष्टता और बढ़ सकती है। विशेषज्ञता का प्रयोग और स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी भी संभव है। हालांकि वित्त आयोग ने स्वास्थ्य पर साल 2025 तक जीडीपी का 2.5 फीसद खर्च करने की बात कही है। कोरोना को  देखते हुए साल 2021-22 के स्वास्थ्य बजट में 137 फीसद की बढ़ोत्तरी की गई थी। गौरतलब है यदि स्वास्थ्य को अखिल भारतीय रुप दिया जाता है तो इस सेवा के गठन से अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी को दूर करना, स्वास्थ्य सुविधाओं का आधारभूत संरचना व दवाइयों की किल्लत से निपटने में आसानी हो सकती है। कुशल व प्रशिक्षक नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की भारी कमी का निपटान भी संभव है। ध्यानतव्य हो  विश्व स्वास्थ्य संगठन एक हजार जनसंख्या पर एक डॉक्टर की नियुक्ति की बात करता है। जबकि भारत में 11हजार से अधिक लोगों पर एक चिकित्सक है। अंदाजा लगा सकते हैं कि चिकित्सकों की एक बड़ी तादात की कमी है। हॉस्पिटल की संख्या तो कम है उसमें बेड भी सीमित संख्या के साथ अन्य सुविधाएं भी कठिनाई में है। अखिल भारतीय स्वरूप मिलने से बजट की कमी को दूर करना शायद आसान होगा। हालांकि स्वास्थ्य बजट की हालत को देखते हुए उम्मीद कम ही है। 


पड़ताल बताती है कि स्वतंत्रता के पश्चात सबसे पहले देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कैडर गठित करने का सुझाव मुदलियार समिति ने दिया था। समिति ने यह भी कहा था कि स्वास्थ्य कल्याण की समस्या से संबंधित कर्मियों के पास एक समग्र दृष्टिकोण के साथ प्रशासन का अनुभव होना चाहिए। दो दशक के बाद साल 1973 में गठित करतार सिंह कमेटी ने कहा था कि संक्रामक रोग नियंत्रण, निगरानी प्रणाली  डेटा प्रबंधन समिति आदि मामलों में चिकित्सकों को कोई औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। स्वास्थ्य कैडर के लिए 1997 में पांचवें वेतन आयोग में भी सिफारिश की थी। साल 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में इस बात की वकालत की गई थी। गौरतलब कोरोना महामारी के बीच  मार्च 2021 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की संसदीय समिति ने अनुदान समिति मांगों पर अपनी 126 भी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि आईएएस आईपीएस और आईएफएस की भांति अखिल भारतीय चिकित्सा सेवा के रूप में एक अलग तरह का कैडर गठित किया जाए। समझने वाली बात यह भी है कि स्वतंत्रता से पहले भारतीय चिकित्सा सेवा एक अखिल भारतीय सेवा का रूप रही है। वैसे यह सेवा 1763 में सबसे पहली बार देखने को मिली और यह उस दौर के तीन प्रेसिडेंसी बंगाल, मद्रास और बाम्बे में स्थापित देखे जा सकते हैं। 

दो टूक यह भी है कि स्वास्थ्य और चिकित्सा  संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है मगर यह सरकारों की दृष्टि में मानो कभी प्राथमिकता में रहा ही न हो।
वर्तमान में देश में तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं, भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा एवं वन सेवा जिनके अधिकारी केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहते हुए भारत के प्रत्येक राज्य में अपनी सेवाएं देते हैं। जिन्हें अखिल भारतीय सेवा कहते हैं। इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से देखा जा सकता है। इसमें दो प्रकार की व्यवस्था पाई जाती है एक का कैडर सिस्टम दूसरा अवधि प्रणाली है। केन्द्र द्वारा भर्ती अधिकारियों को राज्य में आवंटित की जाती है। अखिल भारतीय सेवा के महत्व समझाते हुए एडी गोरवाला ने कहा था कि राष्ट्रीय एकता की स्थापना में सेवाएं एक महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। मगर ऐसी सेवाओं पर यह भी आरोप रहा है कि यह राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर होती है। इन सेवाओं में सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व नहीं है। बाहरी राज्य का व्यक्ति अपनी भाषा संस्कृति तथा मूल्यों से ग्रस्त रहता है। राज्यों की स्वतंत्रता में केंद्र का सीधे हस्तक्षेप होता है। जैसा कि आईएएस आईपीएस और आईएफएस के माध्यम से मौजूदा समय में देखा जा सकता है।

 गौरतलब हो कि अखिल भारतीय सेवाओं की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग और नियुक्ति केंद्र द्वारा होती है। जबकि सेवा राज्यों में देते हैं,  राज्य को ऐसे अधिकारियों को अनियमितता के चलते निलम्बन करने की शक्ति तो है मगर पद से हटाने का काम केंद्र का ही होता है। ऐसे में यह शिकायतें आम रहती हैं कि यह केंद्र के अधिकारी हैं और राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करने में कठिनाई पैदा करते हैं। हालांकि अखिल भारतीय स्वरूप राष्ट्रीय एकता और सुशासन के उस निर्धारक तथ्य और तर्क के तौर पर प्रस्तुत किया गया है जहां से जनकेंद्रीय, लोक कल्याणकारी, और संवेदनशील शासन व्यवस्था का उदय होता है। गौरतलब है कि सुशासन का केंद्र बिंदु नागरिक है और नागरिकों को स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवा यदि समय पर ना मिले तो जीवन के अधिकार को खतरा पहुंच सकता है  ऐसे में स्वास्थ्य  सुशासन से जुड़े इस संदर्भ को सूझबूझ के साथ देखने की आवश्यकता है कि क्या वाकई में आईएएस के तर्ज पर कैडर विकसित करना स्वास्थ्य सुशासन को मजबूत और पुख्ता करेगा साथ ही जनता को  चिकित्सा का पूरा अधिकार सुविधा मिलेगी।           
(25  मई, 2021)

डॉ. सुशील कुमार सिंह 
निदेशक,  वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन

No comments:

Post a Comment