Monday, June 28, 2021

दौर ई-एजुकेशन और ई-गवर्नेंस का

महामारी के इस कालखंड में शिक्षा बहुत बड़ी मुश्किल का सामना कर रही है और इससे निपटने के लिए स्कूल,  कॉलेज और विश्वविद्यालयों ने डिजिटल अर्थात ई-शिक्षा का रास्ता चुना। ऑनलाइन कक्षाएं तो किसी तरह पहले और दूसरी लहर में भी जारी रहीं मगर कोरोना के कहर ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा को रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा। जाहिर है पढ़ाई और परीक्षा दोनों दृष्टि से करोना बहुत भारी कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया। गौरतलब है कि जब 2006 में ई- गवर्नेंस आंदोलन मूर्त रूप लिया था तब से देश में डिजिटलीकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ा।  हालांकि ई-शिक्षा दुनिया में नई विधा नहीं है मगर वर्तमान में इसका विस्तार व्यापक रूप ले लिया है। स्टडी ऐट होम की अवधारणा से युक्त ई-शिक्षा एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरी है। कक्षा से लेकर परीक्षा तक इसकी उपादेयता देखी जा सकती है। कोरोनावायरस का प्रभाव हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर न पड़े ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता और नहीं शिक्षा व्यवस्था के पहले जैसे होने की स्थिति दिखती है। बहुत से लोग जब पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पाएंगे कि उनके जीवन की कई चीजें बदल गई है। स्कूल का विद्यार्थी हो या विश्वविद्यालय का शोधार्थी या फिर सिविल सेवा परीक्षा का प्रतियोगी सभी मोबाइल स्टडी की जकड़न में आ चुके हैं। गौरतलब है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देशों और जाने-माने शिक्षण संस्थाएं क्लासरूम टीचिंग से डिजिटल शिक्षा की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी है। दुनिया समय भारत का शैक्षणिक वातावरण ऑनलाइन पर इन दिनों टिक गया है। यूनेस्को की मानें तो पिछले साल 14 अप्रैल 2020 तक जब भारत का पहला 21 दिन का लॉकडाउन समाप्त हुआ था तब तक दुनिया के डेढ़ अरब से अधिक छात्र-छात्राओं की शिक्षा प्रभावित हो चुकी थी। रूस ऑस्ट्रेलिया कनाडा अमेरिका ब्रिटेन इटली फ्रांस जर्मनी समेत ग्रीनलैंड व भारत आदि देश लंबे समय तक लॉकडाउन में रहे जिनका सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव शिक्षा पर भी देखा जा सकता है।  


जब कभी देश में ई-गवर्नेंस की बात होती थी तब नए डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति प्रखर होती थी।  नागरिक केंद्रित व्यवस्था के लिए सुशासन प्राप्त करना एक लंबे समय की दरकार रही है। ऐसे में ई-गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरशाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त व्यवस्था की कठिनाइयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाए तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, प्रशासन में पारदर्शिता की वृद्धि के साथ ही सुशासन प्रक्रिया में व्यापक नागरिक भागीदारी मनमाफिक पाने हेतु ई- गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। ई गवर्नेंस ने ही स्मार्ट एजुकेशन और शिक्षा को रास्ता दिया है जो शिक्षा में सुशासन का एक चौड़ा मार्ग है। गौरतलब है कि इसकी यात्रा पांच दशक पुरानी है। भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में राष्ट्रीय सूचना केंद्र के गठन के साथ ही ई-शासन की दिशा में कदम रख दिया गया था। जिसका मुखर पक्ष जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद दिखाई देता है। साल 2006 में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के प्रकृति करण ने दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेहीता को सुनिश्चित कर दिया। प्रशासनिक प्रक्रियाओं को न केवल सरल किया बल्कि नीति निर्माण से लेकर नीति क्रियान्वयन तक पारदर्शिता और जवाबदेहीता को फलक पर ला दिया।  इसी के चलते सिंगल विंडो कल्चर की प्रासंगिकता देखी जा सकती है जो कार्य सरलीकरण का परिचायक है। शिक्षा को बढ़ावा देने में आज इसकी भूमिका बढ़े हुए कल के साथ देखी जा सकती है। एक दर्जन शिक्षा से संबंधित चैनल का निर्माण किया जाना पठन-पाठन को सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। जबकि करोड़ों छात्र-छात्राएं छात्रवृत्ति हेतु ई-पोर्टल से बरसों पहले ही जुड़ चुके हैं। डिजिटल साक्षरता को भी खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। ई-बैंकिंग को भी बढ़त के तौर पर देखा जा सकता है मगर कोरोना के वर्तमान दौर में डिजिटल लेनदेन घटा है और नगद निकासी में तेजी आई है यह कहीं ना कहीं आर्थिक असुरक्षा के चलते है। 

ई-लर्निंग एक ऐसी व्यवस्था जिससे घर बैठे सुविधा तो मिलती है मगर इसमें कई तकनीकी और इंटरनेट तक सभी का पहुंच न होना इसकी प्रमुख बाधाएं हैं। भारत एक विकासशील देश है यहां साइबरी जाल पूरी तरह अभी मुमकिन नहीं हैऔर ना सबकी पहुंच में है। भारत में साढे छ: लाख गांव, ढाई लाख पंचायतें और लगभग 7  सौ जिले हैं जहां व्यापक आर्थिक असमानता विद्यमान है। फलस्वरुप सभी की पहुंच इलेक्ट्रॉनिक विधायक तक हो अभी संभव नहीं। ऐसे में ई-शिक्षा बड़े और मझोले शहर तक सीमित है। ऑडिट एंड मार्केटिंग की शीर्ष एजेंसी केपीएमजी और गूगल ने भारत में ऑनलाइन शिक्षा 2021 शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें 2016 से 2021 की अवधि के बीच की शिक्षा कारोबार 8 गुना वृद्धि करने की बात है। साल 2016 में यह 25 करोड़ डॉलर का था और 2021 में दो अरब डॉलर की संभावना बताई गई है। फिलहाल देश के हजार विश्वविद्यालय और 40 हजार महाविद्यालय में चार करोड़ से अधिक विद्यार्थी हैं। 10वीं 12वीं कक्षाओं कक्षा में अलग-अलग बोर्डों को मिलाकर करोड़ों के में छात्र हैं। इन्हें देखते हुए इंटरनेट शिक्षा यानी ई-शिक्षा के लाभ और कारोबार को समझा जा सकता है। मगर आने वाले वर्षों में यह सभी तक इसकी पहुंच तभी बना पाएगा जब इंटरनेट और बिजली से भारत का कोना युक्त  होगा। अमेरिका में डेढ़ दशक पहले साल 2006 में ही ई-शिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ और 2014 आते-आते यहां उच्च शिक्षा में ई-शिक्षा बड़े पैमाने पर विकसित हुआ। गौरतलब है कि 33 करोड का की जनसंख्या वाला अमेरिका कोरोना की चपेट में दुनिया के किसी भी देश के सर्वाधिक पीड़ित वाला देश है। हलाकि की दूसरी लहर में यही बात भारत के लिए भी कहा जा सकता है। जाहिर है अमेरिका जैसे देशों इसका सबसे बड़ा फायदा इसलिए संभव हो रहा है क्योंकि यह नेटवर्क इंटरनेट कनेक्टिविटी कमोबेश सभी की पहुंच में है। भारत में ई-शिक्षा व्यापक संभावनाओं से भरा हुआ है। कोरोना के बीच इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर कार्यों में गति आई है। मगर समस्या यह है भी है कि यहां हर चौथा व्यक्ति अशिक्षित युक्त और इतने ही गरीबी रेखा के नीचे है। ऐसे में आर्थिक संकट के चलते उसे इंटरनेट से जोड़ पाना मुश्किल हो रहा है। साल 2017 तक भारत में केवल 34 फीसद आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती थी।  वर्तमान में यह आंकड़ा 65 करोड़ पार कर गया है और 2025 तक यह 90 करोड़ हो जाएगा।

पिछले साल महामारी के बीच ही 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति 2020 का पदार्पण हुआ। नई शिक्षा नीति को आने वाले वर्षों में सशक्त संभावना के रूप में देखा जा रहा है। देश की प्रगति की कुंजी यदि सुशासन है तो उसमें शामिल विभिन्न आयाम उसके उपकरण हैं जिसमें ई-शिक्षा प्रमुख है।  ई-गवर्नेंस का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी कवायद गुड गवर्नेंस है। सुशासन लोक सशक्तिकरण की एक अवधारणा है भारत में उदारीकरण के बाद यह परिलक्षित हुई जबकि इंग्लैंड दुनिया का पहला देश है जिसमें 1992 मैं इसे अपनाया। विश्व बैंक की एक आर्थिक अवधारणा का सीधा आशय समावेशी विकास से है मगर इस मामले में भारत अभी पीछे है। हालांकि 1992 की आठवीं पंचवर्षीय योजना समावेशी विकास पर ही टिकी थी। फिलहाल ई गवर्नेंस के चलते न केवल समावेशी विकास को प्राप्त किया जा सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भारत की कोशिश को भी मजबूती मिल सकती है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई गवर्नेंस कहलाता है। जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन सुशासन का परिप्रेक्ष्य है। जहां नैतिकता जवाबदेही उत्तरदायित्व की भावना के साथ संवेदनशीलता को बल मिलता है। इन दिनों मोबाइल शासन का दौर भारत में देखा जा सकता है और इसी के चलते ही ई-व्यवस्था की बाढ़ आई है तथा इससे  ई-शिक्षा को भी बल मिल रहा है।  गौरतलब है कि कोरोना जैसे संकट के लिए शायद ही कोई देश तैयार रहा हो ऐसे में जहां की ई-व्यवस्थाएं पहले से व्यापकता लिए रही उन्हें काफी मदद मिल रही है। भारत का शानदार आईटी उद्योग डिजिटलीकरण को जिस प्रकार से आगे बढ़ाया है उसी ने ई गवर्नेंस के माध्यम से गुड गवर्नेंस का भी नक्शा बदला है। ई-गवर्नेंस के कारण ही नौकरशाही का कठोर ढांचा नरम हुआ है और स्कूल,कॉलेज और विश्वविद्यालय की महामारी में भी कुछ हद तक शिक्षा से लोगों को जोड़ने का काम किया है। फिलहाल ई-गवर्नेंस का विस्तार शिक्षा के लिए वरदान हो सकता है और न्यू इंडिया के लिए भी कारगर सिद्ध होगा। भारत बीते डेढ़ दशकों से यह ई-लोकतंत्र के ताना-बाना से भी युक्त है। जाहिर है कि शासन, प्रशासन और व्यवस्था जिस अनुपात में गति लेगी उसी अनुपात में शिक्षा स्वास्थ्य व तमाम सुविधाएं प्रसार करेंगी।
(5 जून, 2021)

डॉ. सुशील कुमार सिंह 
वरिष्ठ स्तम्भकार व प्रशासनिक चिन्तक 

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