Wednesday, June 23, 2021

सरकार को संतुलन भरा कदम उठाना ही चाहिए

देश में कोविड-19 की वर्तमान लहर का संक्रमण पहली लहर की तुलना में काफी तेजी से फैला जिससे शासन के हाथ पांव तो फूले ही स्वास्थ्य सुशासन भी हांफता नजर आया। राज्य सरकारें लॉकडाउन और कर्फ्यू की ओर कदम बढ़ाया और कमोबेश ये अभी जारी है। महामारी ने एक बार फिर जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया। कोरोनावायरस की लहर ने देश में स्टार्टअप और एमएसएमई यानी छोटे उद्योगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया। वैसे देश में 94 फीसद असंगठित क्षेत्र की हालत रोजगार और अर्थिक दृष्टि से बहुत कमजोर हुई है। सर्वे से यह पता चलता है कि देश के स्टार्ट अप और छोटे उद्योगों के पास पूंजी संकट है जिसमें 59 फीसद अगले एक साल में अपना आकार कम करने के लिए भी मजबूर हो जाएंगे। लॉकडाउन के चलते रोजगार से लोगों को हाथ धोना पड़ा, बचत खत्म हो गई और पाई-पाई के मोहताज हो रहे हैं। परिवार को घर चलाने के लिए कर्ज लेने के लिए भी मजबूर होना पड़ रहा है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट को देखें तो  41 करोड़ से अधिक श्रमिक देश में काम करते हैं जिन पर कोरोना का सबसे बड़ा असर पड़ा है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि गरीबी 20 फीसद शहरी तो 15 फीसद ग्रामीण इलाकों में बढ़ गई है। कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए तमाम रेटिंग एजेंसियों नेेेे भारत के विकास अनुमान को भी घटा दिया है। गौरतलब है कि पिछले साल देश व्यापी लॉकडाउन के चलते 12 करोड़ से अधिक लोगों की नौकरी खत्म और 20 करोड़ का काम-धंधा बुरी तरह प्रभावित हुआ था। वैसे एक हकीकत यह भी की केरोना ने रोजगार और काम-धंधे को कहीं अधिक चौपट किया है। मसलन फैक्ट्री पर तालाबंदी,  दफ्तर का बंद होना, स्कूल- कॉलेज मेंं पढ़ाई-लिखाई बंद होना व कोचिंग का कारोबार ठप्प होना आदि। नतीजन करोड़ो का घर बैठ जाना, इसमें कमाई कम और खर्च निरंतरता लिए रहता है और आखिरकार चुनौती आर्थिकी खड़ी हो जाती है। इन सब का सीधा असर बैंक से लिए गए ऋण पर भी पड़ रहा है। गौरतलब हैै कि जिन्होंने बैंकों से मकान, दुकान,गाड़ी या स्टार्टअप या छोटा कोई उद्योग शुरू करने के लिए कर्ज लिया था। अब उन्हे  ईएमआई जमा करना मुश्किल हो रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 8 करोड़ 54 लाख कर दाताओं में करीब 3 करोड़  के ऑटोमेशन पेमेंट या चेक  बीते अप्रैल में बाउंस हुए है। जबकि मार्च में इसकी प्रतिशत कम थी। बीते एक साल में ऐसी स्थिति जून 2000 में भी आई थी जब 45 फीसद ईएमआई बाउंस कर रहे थे । अभी स्थिति 34 फीसद की है लेकिन जिस तरीके की स्थितियां बनी है उसे देखते हुए कैसे दिए जाएंगे और बैंक अपने को एनपीए होने से कैसे रोक पाएंगे।  


कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए कंपनियों ने ऑफिस और मैनेजमेंट वाली नौकरियां पर रोक लगा दी। कंपनियों का एक दृष्टिकोण यह भी रहा है कि उनकी पहली प्राथमिकता अपने मौजूदा कर्मियों और कारोबार को कोरोनावायरस से बचाना। यही कारण है कि वह विस्तार वाली योजना को ठंडे बस्ते में डाल रहे हैं। गौरतलब है कि शहर के अधिकांश वाहन कंपनियों के डीलर ने शोरूम भी बंद कर दिये। रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में 26500 शोरूम है महामारी के चलते 20 से 25 हजार करोड़  नुकसान की आशंका बताई जा रही है।  फैक्ट्रियों के उत्पादन पर भी अच्छा खासा प्रभाव पड़ा है। रोजगार की कमी के चलते शहर से गांव की ओर एक बार फिर पलायन तेज हुआ है और मनरेगा में रोजगार के लिए पंजीकरण की मात्रा तुलनात्मक बड़ी है।  इसके चलते मनरेगा में रोजगार के लिए पंजीयन अप्रैल महीने में लगभग 4 करोड़ हो गया था वही मार्च में 3.6 करोड़ श्रमिक मनरेगा में पंजीकृत थे। इतना ही नहीं करोना संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकारें नए प्रतिबंधों  लेकर घोषणाएं करती रहीं । इससे अर्थव्यवस्था का पहिया रुकना लाजमी था। देश का विकास कोरोना की दूसरी लहर में भी बुरी तरह चपेट में आया। अधिकांश बाजार,मॉल, शॉपिंग कंपलेक्स आदि बंद है। बाजार बंद होने से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की जरूरत ही कम हो गई। इससे बेरोजगारी बढ़ी और मानसिक दबाव भी तेजी से बढ़ने लगा। संक्रामक रोगों का सभी पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उन पर भी जो वायरस से प्रभावित नहीं है। इसके एक नहीं अनेक कारण हो सकते है। 2003 में सार्स के प्रकोप के दौरान शोधकर्ताओं ने बीमारी के साथ-साथ आने वाली कई मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं को भी रेखांकित किया था। जिनमें अवसाद,तनाव, और मनोविकृति और पैनिक अटैक शामिल था।

 कोरोनावायरस महामारी ने विश्व भर के करोड़ों लोगों की पूरी दिनचर्या को बिगाड़ कर रख दिया है। तनाव चिंता और घबराहट की परेशानी से दो-चार होना पड़ रहा है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या केवल भारत के लिए नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों समेत दुनिया के तमाम देश इसमें शमिल हैं। भारत में भी कोरोनावायरस ने करोड़ों लोगों को अलग-थलग और बेरोजगार किया है डॉक्टर भी चेतावनी देते रहे हैं कि चिंता,  डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं और देश में मानसिक स्वास्थ्य नए संकट का रूप ले सकता है। गौरतलब है कि 24 मार्च 2020 को देश भर में पहली बार लॉकडाउन लागू किया गया था। इंडियन साइक्रटी सेंटर के एक सर्वे से पता चला था कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से मानसिक बीमारी के मामले 20 फीसद बढ़े और हर पांच में से एक भारतीय में इसमे शामिल हो गया। भारत में हाल के दिनों में कई कारणों से मानसिक संकट का खतरा पैदा हो गया है। रोजी-रोटी का छिन जाना, आर्थिक तंगी बढ़ना, अलग-थलग होना और घरेलू हिंसा बढ़ना भी इसमें शामिल है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम पेश किया था जिसके अंतर्गत सरकारी स्वास्थ्य देखभाल और इलाज के जरिए लोगों का अच्छा मानसिक स्तर सुनिश्चित करने की बात कही गई थी।  

सवाल है कि अब आगे क्या किया जाए ? रोजगार को कैसे पटरी पर लाया जाए और उत्पादन ईकाई समेत बेपटरी हो चुके छोटे-बड़े कामकाज कैसे रफ्तार दी जाए। पहली लहर के दौरान सरकार ने मई 2020 में 20 लाख करोड़ रुपए का एक आर्थिक पैकेज घोषित किया था। अभी इस बार इसकी मुनादी होना बाकी है। वैसे बेरोजगारी का आंकड़ा 2019 में ही 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुका है। दो टूक यह भी है कि मोदी सरकार रोजगार मामले में उतनी सफल नहीं रही है। सवाल है कि कोरोना के के चलते जो व्यवस्था बिगड़ी है उसमें सरकार को क्या कदम लेना चाहिए। फिलहाल जरूरत अब ऐसे कदमों की है जिसमें खपत का सहारा मिले और उत्पादन में बढ़त्तरी हो। एक बड़ी जरूरत गरीब तबकों को मदद देने की है। उद्द्योगो को आर्थिक पैकेज और अन्य असंगठित क्षेत्र को भी आर्थिक रूप से एक संतुलन विकसित करते हुए कम ब्याज पर उधार या फिर कोई सब्सिडी व आर्थिक पैकेज का ऐलान सरकार को करना चाहिए। ताकि मानसिक विकृति और टूटन में फंसे लोगों का यह सहारा बन सके। इस बात को भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि लघु और कुटीर उद्योगों को पर्याप्त सुविधा मिले और मझोली किस्म की इकाइयां जिसमें रोजगार की मात्रा अधिक है आर्थिक और मानसिक दोनों रूप से बाहर निकालने के लिए एक नया अवसर दिया जाए। मध्यमवर्ग की भी कमर झुकी हुई है उसके लिए सरकार को रास्ता खोजना चाहिए। ताकि वह भी मानसिक व्याधि से बाहर आ सके। समझने वाली बात तो यह भी है कि नागरिक सुशासन का मतलब ईज आफ लिविंग होता है। मगर जब वही जीवन शांति और खुशहाली की राह से भटक कर आर्थिक बदहाली और  मानसिक दुुष्चक्र मेें फंस जाए तो सरकार को संतुलन भरा कदम उठाना ही चाहिए। 
(31 मई , 2021)


 

 डॉ सुशील कुमार सिंह 
वरिष्ठ स्तम्भकार व प्रशासनिक चिन्तक 

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