प्रत्येक नागरिक को राज्य द्वारा उचित जीवन यापन का आश्वासन दशकों पहले आजादी के साथ ही अनिवार्य कर दिया गया था। जिसका पूरा लेखा-जोखा भारतीय संविधान में देखा जा सकता है। और समाज के कमजोर लोगों जैसे विकलांग,अनाथ बच्चे, निराश्रित वृद्ध, विधाएं और दलित शोषित लोग आदि को सक्षम और समर्थ बनाने के लिए पूर्ण जिम्मेदारी है राज्यों ने अपने कंधों पर ले ली ताकि इन लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने बनाते हुए स्वास्थ व समतामूलक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण तैयार किया जा सके। समय कहां किसे लाकर खड़ा कर देगा इसका अंदाजा पहले से नहीं लगाया जा सकता। मगर उस समय के आईने में शासन -प्रशासन और सुशासन सभी की परख होती जरूर है। जैसा कि करोना काल में जनमानस की तकलीफों के बीच सरकार और सिस्टम की स्थिति क्या है और उसकी ताकत और कमजोरी कहां और कितनी है इन सबका बाकायदा खुलासा हुआ। कोरोना के इस कालखंड के भीतर जिस कदर समस्याएं बेकाबू हुई है। वह ईज आफ लिविंग से लेकर जीवन के जरूरी और अनिवार्य पक्ष को मील पीछे धकेल दिया। सतर्क रहने और स्वस्थ रहने का भरसक प्रयास अभी निरन्तरता लिए हुए है।हलाकि सरकार द्वारा जो बन पड़ रहा है वो किया जा रहा है। गौरतलब है कि दीपावली तक 80 करोड़ लोगों को भूख मिटाने के लिए अनाज की व्यवस्था और मुफ्त टीके की बात हो चुकी है। भारतीय समाज अधिकांश एक पिछड़ा समाज है। गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी सामाजिक-आर्थिक असमानता, सांप्रदायिकता आदि विकराल समस्याओं से देश को अभी भी जूझता पड़ता है। इन बुराइयों का सामना और समाधान सुशासन से भरी सामाजिक लोकनीति के माध्यम से ही किया जा सकता है। इस दृष्टि से भारत जैसे विकासशील देश में राज्य की भूमिका केवल कानून-व्यवस्था देखने तक सीमित नहीं हो सकती बल्कि एक बेहतर सामाजिक प्रशासन का प्रदर्शन करना और सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के साथ एक संवेदनशील लोक कल्याण को वितरित करना उनकी उनकी व्यापक जिम्मेदारी में शामिल माना जाता है। मगर जब यही राज्य कोरोना के सामने बेबस हो तब सामाजिक प्रशासन को एक बड़ा झटका लगता है
धीमा पड़ चुका कोरोना जिस गति से पैर पसारा। वह आम जनजीवन और सभ्यता के लिए एक बड़े खतरे का सूचक बन गया। देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कहर ढाया। कोरोनावायरस का साइड इफेक्ट आम जनमानस पर भी आसानी से देखा जा सकता है। आंकड़े इशारा करते हैं कि कोरोना ने भारत में करोड़ों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है और मध्यम वर्ग की कमर टूट रही है जो सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से एक बड़ी चुनौती है। दूसरी लहर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी अपना कहर ढा रही है। साथ ही आम जनजीवन को भी हाशिए पर धकेल दिया है। भारत के विकास को लेकर जारी तमाम रेटिंगस् भी अनुमान से नीचे दिखाई दे रहे हैं। साफ है कि एक ओर भारत की अर्थव्यवस्था बेपटरी हुई है तो दूसरी ओर आम जनमानस गरीबी और मुफलिसी के चलते सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के मामले में हाशिए पर है। देश के तमाम अर्थशास्त्रियों का भी यही मानना है कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर से बहुत सारे सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं तो कई ऐसे भी हैं जो जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं और वह अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर लाने और दौड़ाने में अहम रोल अदा कर रहे हैं। ई-कॉमर्स सेक्टर, सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल, दूरसंचार क्षेत्र आदि इस मामले में बेहतर माने जा रहे हैं। गौरतलब है कि लॉकडाउन से पिछले साल रिकॉर्ड 27 फीसद बेरोजगारी दर्ज की गई थी। आर्थिक सुधारों के बाद जनवरी 2021 में हालात कुछ बेहतर होने लगे थे मगर मौजूदा समय में दूसरी लहर ने यह फिर एक खराब स्थिति को पैदा कर दिया। जाहिर है करोना को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से लाखों श्रमिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। पाई-पाई का मोहताज होना पड़ा है और खर्च चलाने के लिए कर्ज लेने के लिए मजबूर भी होना पड़ा।
अमेरिकी रिसर्च एजेंसी प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों पर विश्वास करें तो करोना महामारी के चलते भारत के मध्यम वर्ग खतरे में है। कोरोना काल में आए वित्तीय संकट ने कितनी परेशानी खड़ी की इसका कुछ हिसाब- किताब अब दिखाई देने लगा है। गौरतलब है कि भारत में मिडिल क्लास की पिछले कुछ सालों में बढ़ोतरी हुई थी मगर कोरोना ने करोड़ों को पटरी कर दिया। कोरोना से पहले देश में मध्यम वर्ग की श्रेणी में करीब 10 करोड़ लोग थे अब संख्या घटकर 7 करोड़ से भी कम हो गई है। यह भी है कि चीन की तुलना में भारत के मध्यम वर्ग में अधिक कमी और गरीबी में भी अधिक वृद्धि होने की संभावना देखी जा रही है। साल 2011 से 2019 के बीच करीब 6 करोड़ लोग मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल हुए थे मगर कोरोना ने एक दशक की इस कूवत को एक दशक में ही आधा रौद दिया। गौरतलब है कि जनवरी 2020 में विश्व बैंक ने भारत और चीन की विकास दर की तुलना की थी जिसमें अनुमान था कि भारत 5.8 फीसद चीन और 5.9 फीसद के स्तर पर रहेगा लेकिन कुछ ही महीने बाद भारत का विकास दर ऋणात्मक स्थिति से साथ भर-भरा गया।कोरोना से बिगड़े आर्थिक हालात को देखते हुए सरकार द्वारा मई 2020 में 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज भी आवंटित किए गए मगर भीषण आर्थिक तबाही का सिलसिला जारी रहा और और मध्यम वर्ग के आर्थिक दुर्दशा के साथ करोड़ों गरीबी में गुजर-बसर के लिए मजबूर हो गये।
गौरतलब है कि काम-धंधे पहले ही बंद हो गए थे, कल कारखानों के ताले अभी खुले नहीं थे कि दूसरी लहर आ गई। गांव से शहर तक रोजी-रोजगार का संकट बरकरार है जाहिर है आर्थिक दुष्चक्र से पीछा जल्दी छूटने वाला नहीं है। पहली लहर में 14 करोड़ लोगों का एक साथ बेरोजगार होना काफी कुछ बयां कर देता है। करोड़ों की तादाद में यदि मध्यमवर्ग सूची से बाहर होता है तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। मगर एक यक्ष प्रश्न यह है कि कोरोनावायरस इतनी बड़ी तबाही मचा दी और देश लगातार मुसीबतों को झेलता रहा बावजूद इसके इससे निपटने के बेजोड़ नीति अभी अधूरी क्यों ? ढेड साल से अधिक समय करोना को आए हो गया। तीसरी लहर की संभावना भी व्यक्त की जा चुकी है। यदि लहर पर लहर आती रही और इसका निस्तारण समय रहते ना हुआ तो इसमें कोई शक नहीं कि देश में गरीबों की तादाद बढ़ेगी। भुखमरी और मुफलिसी के आगोश में करोड़ों समाएंगे और विकास के धुरी पर घूमने वाला भारत आर्थिक दुष्चक्र में फंस कर उलझ सकता है साथ ही सामाजिक सुरक्षा बहुत बड़े खतरे की ओर होगा। अब सरकार इस मामले में कितनी खरी उतरती है यह उसे सोचना है और साथ ही जनता को भी यह विचार करना है कि आखिर कोरोना के इस भंवरजाल से कैसे बाहर निकले। सादगी और संजीदगी यही कहती है कि समय रहते दोनों को होश में आ जाना चाहिए ताकि सभ्यता,संस्कृति और देश सभी को आसानी से पटरी पर लाया जा सके। फिलहाल देश में सबसे पहले टीकाकरण की रफ्तार तेज करनी होगी। रोजगार को दुरुस्त करना होगा। पर्यटन समेत कई सेक्टर पर विशेष बल देने की आवश्यकता होगी। शिक्षा व चिकित्सा समेत कई बुनियादी ढांचे एक बार नए सिरे से सही करना होगा। ताकि ऐसी आपदाओं के बीच नुकसान की गुंजाइश कम रहे और सामाजिक सुरक्षा को गारन्टी मिल सके।
(12 जून, 2021)
No comments:
Post a Comment