Wednesday, August 29, 2018

आसान नहीं 2019 मे 2014 को दोहराना

बीते चार साल की मोदी सत्ता में विकास की कितनी बयार बही और जनमानस में उनकी साख कितनी बढ़ी यह पड़ताल का विशय है। सरकार जब अपना पांच साल का रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करेगी तब यह संदर्भ कहीं अधिक फलक पर होगा कि वास्तव में सरकार ने क्या किया और जनता के बीच क्या परोसा गया। हालांकि समय-समय पर मोदी सरकार कहां, कितना और क्या-क्या किया का लेखा-जोखा देती रही है पर भरोसा षायद पूरी तरह इसलिये नहीं बन पाया क्योंकि सिद्धांत और व्यवहार एक से नहीं प्रतीत होते मसलन रोज़गार के मामले में सरकार के आंकड़े गले नहीं उतर रहे हैं। बीते 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने मुद्रा योजना के तहत रोज़गार से जुड़ने वालों के आंकड़े 13 करोड़ बताये थे जिसे लेकर असमंजस बरकरार है। प्रति वर्श दो करोड़ रोज़गार देने का वायदा 2014 के चुनाव में किया गया था जिस पर सरकार खरी नहीं उतरी है। पिछले 1 फरवरी को पेष बजट में सरकार ने 70 लाख रोज़गार देने की बात कही है। अनमने ढंग से ही सही पर यहां यह कहना गैर वाजिब नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी पकौड़ा तलने वालों को भी रोज़गारयुक्त बता चुके हैं। फिलहाल 2019 में लोकसभा का चुनाव होना है साथ ही कयास यह भी है कि मध्य प्रदेष, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का चुनाव भी इसी के साथ हो सकते है। खास यह भी है कि भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है मगर यह तो नहीं कहा जा सकता कि विपक्ष इससे बेखबर है पर उसमें असमंजस बरकरार है। असमंजस इस बात का कि किस रणनीति से मोदी का सामना किया जाय और उन्हें सत्ता से बेदखल किया जाय।
 समय 2019 की ओर तेजी से बढ़ रहा है जिसे देखते हुए भाजपा को रणनीतिक तौर पर बड़े कदम उठाने जरूरी हैं। इसी को देखते हुए भाजपा के मुख्यमंत्री परिशद् की बैठक 28 अगस्त को दिल्ली में हुई जिसमें प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित षाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत अरूण जेटली और नितिन गडकरी समेत 15 प्रदेषों के मुख्यमंत्री और कई उपमुख्यमंत्री षामिल थे। जाहिर है मुख्यमंत्रियों को एक बड़े रण में जाने का गुर सिखाया गया होगा। दावा किया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मौजूदा से ज्यादा सीटों पर भाजपा जीत हासिल करेगी। हालांकि पूरी रणनीति का खुलासा अभी हुआ नहीं है मगर जिस साहस और बल के साथ सत्ता से युक्त मोदी सरकार हुंकार भर रही है उससे लगता है कि चुनाव जीतने का कोई पुख्ता रास्ता उन्होंने खोज लिया है। यूपी, एमपी, राजस्थान, गुजरात और महाराश्ट्र के मुख्यमंत्रियों पर काफी भरोसा किया गया है। राजस्थान और मध्य प्रदेष के सामने फिलहाल दोहरी चुनौती है एक विधानसभा की जीत तो दूसरे 2019 के लोकसभा के मामले में पहली वाली स्थिति बनाये रखना। गौरतलब है कि मध्य प्रदेष के 29 लोकसभा सीट में 27 पर भाजपा काबिज है जबकि राजस्थान में सभी 25 सीटें भाजपा के हिस्से में है। इसी तर्ज पर देखें तो गुजरात की लोकसभा की सभी सीटें भाजपा के खाते में हैं जबकि महाराश्ट्र में 48 में 23 पर कब्जा है वहीं उत्तर प्रदेष में 80 के मुकाबले 71 पर भाजपा और गठबंधन सहित 73 पर जीत हासिल की थी। हालांकि उपचुनाव में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना की हार से यह संख्या घट गयी है। 2014 की इतनी बड़ी जीत को एक बार फिर दोहराना लोहे के चने चबाना जैसा प्रतीत होता है। कोई भी राजनीतिक पण्डित षायद ही यकीन से कह पाये कि लगभग सभी सीटों पर काबिज भाजपा 2019 में इतिहास को दोहरा पायेगी।
मुख्यमंत्रियों की बैठक में जाहिर है चुनाव को ध्यान में रखकर कई निर्देष दिये गये होंगे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने इसे लेकर कई बातें मीडिया के सामने कही भी हैं। फिलहाल सरकार के सामने पांच साल का लेखा-जोखा देने वाली चुनौती भी है। सरकार की नीतियों से जहां असंतोश व्याप्त है जाहिर है वहां सीटें कम होंगी। दो टूक यह भी है कि उपरोक्त पांचों राज्य भाजपा की दिल्ली की गद्दी तय करेंगे जिसमें उत्तर प्रदेष की अग्रणी भूमिका रहेगी पर यहां सपा, बसपा आदि के गठबंधन के बयार से भाजपा सकते में है। मुख्यमंत्रियों की बैठक इस बात का भी संकेत है कि चुनाव के लिये जो बन पड़े करने की आवष्यकता है साथ ही सरकार के उन तमाम नीतियों को जनता के बीच परोसने का राज्य सरकारें काम करें ताकि मोदी सरकार के प्रति जनता में यदि विष्वास कम हुआ है तो बढ़े, यदि खत्म हो गया है तो पनपाया जाय क्योंकि भाजपा जानती है कि कुछ भी हो 2014 की तरह 2019 का चेहरा भी मोदी का ही होगा और जितना अधिक प्रदेष के मुख्यमंत्री मोदी सरकार की सकारात्मकता को जनता के बीच पेष करेंगे वोट की खेती उतनी ही लहलहायेगी। कल्याण योजनाओं एवं क्रियान्वयन को लेकर समीक्षा बैठक भी इसमें षामिल है। राज्यों ने जो काम किये उनका लेखा-जोखा भी लिया गया। इसके अलावा मुख्यमंत्रियों की बैठक में किसानों के न्यनूतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के सरकार के फैसले, एससी/एसटी का संदर्भ ओबीसी का संवैधानिक दर्जा देने वाला कदम आदि भी चर्चे में रहे।
बीजेपी अपने पक्ष में एक बार फिर मतदाताओं को करने की जुगत भिड़ा रही है जबकि विपक्ष मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए तरकष से नये तीर खोज रही है। माना जा रहा है कि यदि सपा, बसपा व कांग्रेस समेत अन्य में महागठबंधन जैसी कोई व्यवस्था बनती है तो यूपी भाजपा को दिल्ली पहुंचने में कांटा बन सकता है। एमपी में षिवराज सिंह चैहान ताकत झोंके हुए हैं पर बिगड़े हालात पर उनका नियंत्रण नहीं है ऐसे में बहुत बड़ा धड़ा भाजपा विरोधी है जो विधानसभा व लोकसभा दोनों पर भारी पड़ सकता है। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया से गुर्जर व जाट आरक्षण के चलते तथा किसान तथा अन्य विकास को लेकर कहीं अधिक खिलाफ हैं। यहां भी भाजपा की राह आसान नहीं दिखाई देती। गुजरात की स्थिति यह है कि बामुष्किल से भाजपा पिछले साल विधानसभा जीत पायी थी। लोकसभा में कांग्रेस कांटे की टक्कर दे सकती है। रही बात महाराश्ट्र की तो षिवसेना एनडीए में रहते हुए भी भाजपा के खिलाफ है। पालघाट का लोकसभा उपचुनाव इस बात को पुख्ता करता है। यहां दोनों दल आमने-सामने थे हालांकि जीत भाजपा के हिस्से आयी। यहां देवेन्द्र फण्डवीस के सामने 48 के मुकाबले 23 लोकसभा सीट को 2019 में दोहराना सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। वैसे सच यह भी है कि चुनावी दिनों में परिदृष्य बदलते हैं और कयास भी चकनाचूर हो जाते हैं। हालांकि मोदी की लोकप्रियता से बीजेपी खूब फायदे में है। कांग्रेस समेत तमाम विरोधियों के पास 2019 में मोदी को सत्ता से बेदखल करने का कोई मास्टर प्लान भी नहीं है बस जुबानी जंग जारी है। माना भाजपा के लिये आगामी आम चुनाव की लड़ाई आसान नहीं है पर विपक्ष के लिये तो यह कहीं अधिक दुरूह भी है। मजबूत चुनौती पेष हुई तो मोदी की राह कठिन हो सकती है पर इसके आसार कम ही दिख रहे हैं। जिस तर्ज पर मोदी अपने चुनावी मोड में होते हैं उससे तो यही लगता है कि विपक्ष काफी वक्त असमंजस में बिता देता है और जब कुछ रास्ते समतल होते भी हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है। 2014 के चुनाव में ऐसा ही हुआ था। 13 सितम्बर 2013 को मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोशित किये गये थे तब भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे। तब से लेकर 12 मई 2014 के मतदान के अंतिम समय तक मोदी चुनावी मोड में ही रहे और जब 16 मई 2014 को नतीजे घोशित किये तो एक इतिहास बन गया यही इतिहास मोदी एक बार फिर 2019 में दोहराना चाहते हैं मगर तब मोदी सत्ता के विरूद्ध लड़ रहे थे मगर अब सत्ता के साथ चुनाव लड़ना है। जाहिर है कि परिस्थिति एक जैसी नहीं है इसलिए इतिहास एक जैसा होगा कहना सम्भव नहीं है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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