Thursday, August 16, 2018

लाल किले से पीएम का 2019 पर निशाना

फिलहाल 15 अगस्त 2018 को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी के दिये गये भाशण को एक लेख में समेटना सम्भव नहीं है और इसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न रूपों में हो सकती है। गरीब, किसान, कृशि, काला धन जैसे विशयों पर भाशण कहीं ज्यादा केन्द्रित था। 82 मिनट के भाशण में सबसे ज्यादा 39 बार गरीब षब्द का प्रयोग हुआ, 14 बार किसान, 22 बार गांव का जिक्र था जबकि भाशण में 11 बार स्वच्छता और इतनी बार ही कृशि का जिक्र आया साथ ही 4 बार रोज़गार षब्द भी इसमें षुमार है। जैसा कि कयास था इस साल का 72वां स्वतंत्रता दिवस कुछ सौगातों और उम्मीदों की भरपाई करेगा और प्रधानमंत्री मोदी अपने अब तक के किये गये कार्यों के लिये अपनी पीठ भी थपथपायेंगे ठीक वैसा हुआ भी है। लाल किले की प्राचीर से मोदी ने कहा कि यदि हम साल 2013 की रफ्तार से चलते तो कई काम करने में दषकों लग जाते मगर बीते चार सालों में बहुत कुछ बदला और देष आज बदलाव महसूस कर रहा है। तरह-तरह की उपमा के साथ मोदी ने अपने विचारों को स्वतंत्रता दिवस के इस पावन अवसर पर परोसा और यह समझाने का प्रयास किया सब कुछ पहले जैसा है लेकिन अब देष बदल रहा है और ऐसा होने के पीछे उनकी अब तक की मेहनत है। यही बात थोड़ी नागवार गुजरती है कि 70 साल से अधिक आजादी प्राप्त भारत का सारा विकास केवल चार सालों में कैसे हो गया। मैं बेसब्र हूं क्योंकि जो देष हमसे आगे निकल चुके हैं हमें उनसे भी आगे जाना है। मैं बेचैन हूं हमारे बच्चों के विकास में बाधा बने कुपोशण से देष को मुक्त कराने के लिये और मैं व्याकुल हूं हर गरीब तक समुचित हैल्थ कवर पहुंचाने के लिये। कह सकते हैं कि आयुश्मान योजना इसी व्याकुलता का नतीजा है जिसे फरवरी के बजट में लाया गया और अब क्रियान्वित करने की बारी है। बेषक प्रधानमंत्री बेसब्री और बेचैनी की बात कर रहे हैं पर यह नहीं भूलना चाहिए कि 14 साल से अधिक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने यदि यही बेचैनी और व्याकुलता दिखाई होती तो कुपोशण समेत अनेक बुनियादी समस्याओं से गुजरात आज मुक्त होता। जिस गुजरात माॅडल को केन्द्र में रखकर दिल्ली की गद्दी हथियाई गयी थी अब उस पर कोई चर्चा नहीं होती क्योंकि अब वह पुराना माॅडल हो गया और उसके इस्तेमाल से अब राजनीति को फायदा नहीं होता है। 
रोचक यह भी है कि मार्च 2015 में जम्मू-कष्मीर की अलगाववादियों की समर्थन करने वाली पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनायी। बाकायदा तीन साल सरकार चली और जब गठबंधन टूटा तो कष्मीर की घाटी तबाही के मंजर से दो-चार हो रही थी। लाल किले की प्राचीर से मोदी अब जम्मू-कष्मीर में अमन-चैन के लिये अटल जी का फाॅर्मूला अपनाने की बात कर रहे हैं जिसमें इंसानियत, कष्मीरियत औ जम्मूरियत षामिल है। बीते 10 अगस्त को मानसून सत्र समाप्त हुआ पड़ताल बताती है कि बीते 18 वर्शों में यह सर्वाधिक सफल सत्र था। इसी सत्र में राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में जबरदस्त जोड़-तोड़ के चलते सरकार ने 126 के मुकाबले विपक्ष को 111 पर धराषाही करते हुए विजय प्राप्त की जबकि लाल किले से मोदी जी कह रहे हैं कि तीन तलाक पर हमने संसद में बिल लाया लेकिन कुछ लोग इसे पास नहीं होने दिये। जब सरकार को मुनाफा लेना होता है तो अपना काम किसी तरह कर लेते हैं और जिसे लेकर स्वयं इच्छाषक्ति का आभाव है उसका ठीकरा विपक्ष पर फोड़ देते हैं। सच्चाई यह है कि तीन तलाक के मामले में मोदी सरकार स्वयं चुनाव तक कुछ करना नहीं चाहती। इसके लटकाने में इन्हें राजनीतिक फायदा मिलेगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि आगामी लोकसभा के 2019 के चुनावी फिजा में तीन तलाक को भुनाना चाहेंगे और मुस्लिम महिलायें एक बार फिर भावनात्मक राजनीति की षिकार होंगी। किसानों की फसल का एमएसपी कुछ महीने पहले डेढ़ गुना कहा जा रहा था अब कुछ हद तक दोगुना भी कहा जा रहा है। यह बात समझ के परे है कि जब एमएसपी डेढ़ गुना हो गया है तो सरकार खुलकर क्यों नहीं बोलती कि उसने स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू कर दिया है। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुना कहे जाने वाली बात एक बरस पुरानी हो गयी 2019 में यह सभी बातें जोर पकड़ेंगी। भारत के घर में षौचालय हो, अच्छी और सस्ती स्वास्थ सुविधा सुलभ हो साथ ही हर भारतीय को बीमा का सुरक्षा कवच मिले। ये सभी लाल किले से भरी हुई हुंकार है जो चुनाव के गलियारे में भी षोर मचायेगी। 
इन्हीं सबके बीच भारतीय सषस्त्र सेना में नियुक्त महिला अधिकारियों में पुरूश के समकक्ष पारदर्षी चयन प्रक्रिया द्वारा स्थायी कमीषन की प्रधानमंत्री ने बात कही जो वाकई में तारीफ के काबिल है। पीएम ने वर्श 2014 के पहले दुनिया की कई मान्य संस्थाओं और अर्थषास्त्रियों का हवाला देते हुए कहा कि वे कहते थे कि भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत जोखिम है अब वही लोग सुधारों की तारीफ कर रहे हैं। यह सही है कि विष्व बैंक से लेकर अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश, मुडी रिपोर्ट आदि भारत की अर्थव्यवस्था को सकारात्मक मानते हैं। इतना ही नहीं फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए भारत इंग्लैण्ड की अर्थव्यवस्था के समीप है। बावजूद इसके बड़ा सवाल यह है कि मानव विकास सूचकांक में हम बहुत उम्दा नहीं हैं। हालांकि मोदी प्रधानमंत्री की ंिचंता इन सबको लेकर देखी जा सकती है। एक खास बात यह भी है कि जब मोदी ने कहा कि एक समय था जब पूर्वोत्तर भारत को लगता था कि दिल्ली बहुत दूर है लेकिन हमने दिल्ली को पूर्वोत्तर के दरवाजे पर खड़ा कर दिया। जिस तर्ज पर मोदी ने पूर्वोत्तर के लोगों की तारीफ की वाकई में उसकी जरूरत थी यह संदेष अच्छा है। बुनियादी विकास के साथ विकास के वर्चस्व की भी लाल किले से आवाज सुनायी दी। जहां गरीबी, बीमारी, बेरोज़गारी, किसानों को लेकर चिंता और महिला सुरक्षा की गूंज लाल किले की प्राचीर से आयी वहीं 2022 तक देष का कोई बेटा-बेटी अंतरिक्ष तक पहुंच सकता है इसे लेकर भी उत्साह भरे लव्ज़ मोदी ने कहे। 
प्रधानमंत्री मोदी ने कई ऐसी घोशणायें भी की जिनका सीधा सम्बंध बीते मानसून सत्र में किये गये कार्यों से है और कई ऐसी बातें कहीं जो तमाम चुनावी सभाओं में कहते रहे हैं। मोदी के भाशण में नया और पुराना दोनों का मिश्रण था। जब पहली बार 2014 के 15 अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाशण में कई उत्साहवर्धक विचारों के साथ कई घोशणायें की थी तभी से यह लगा था कि नई सरकार नई सोच के साथ बहुत कुछ नया करेगी मगर वक्त निकलता गया और मोदी भी अन्य सरकारों की तरह वायदे करते गये पर खरे नहीं उतरे। काला धन का मामला आज भी खटायी में है। नवम्बर 2016 में नोटबंदी के बाद देष में कितना काला धन है इसकी भी जानकारी देने में सरकार विफल रही। केषलैस की बात करने वाली सरकार अब न केवल इस पर चुप रहती है बल्कि लेषकैष से जूझ रही है और बैंकिंग सेक्टर अभी भी नोटबंदी के साइड इफैक्ट से जूझ रहे हैं। समय के साथ यह सवाल गहराता गया कि स्वच्छ भारत अभियान कितना सफल है और नमामि गंगे को सबसे ऊपर रखने वाली सरकार इतनी ढ़ीली क्यों हुई कि गंगा की सौगंध लेने वाले पीएम मोदी के कार्यकाल में सफाई छोड़िये गंगा और मैली हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने डांट लगायी पर कुछ हासिल नहीं हुआ। निवेषक देष पर पूरा भरोसा नहीं कर पाये। मेक इन इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया सरपट दौड़ नहीं लगा पाये। देष कई अनचाही समस्याओं में जूझने लगा जैसे माॅब लिंचिंग जैसी समस्या। फिलहाल मौजूदा सरकार का यह अंतिम 15 अगस्त था जिसमें भारत बदलने की बात भी है और 2019 पर निषाना भी।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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