Thursday, August 23, 2018

किसानो की राह समतल नहीं बन पाई

यह चिंता का विषय है और गम्भीरता से विचार करने वाला भी कि देश की आबादी में सर्वाधिक स्थान घेरने वाले किसान अनगिनत समस्याओं से क्यों जूझ रहे हैं। हम लोकतंत्र से बंधे हैं अतः यह सर्वथा आवष्यक है कि मानवता का ध्यान रखा जाय और देहातों में लोगों की जो कठिनाईयां हैं उससे निपटा जाय। यह काम कौन करेगा जाहिर है इषारा सरकार की ओर है पर दो टूक सच्चाई यह है कि किसानों को लेकर सरकारें मजबूत नीति के बजाय वोट की राजनीति करती रहीं हैं। 70 साल बाद भी किसान न केवल कर्ज की समस्या से जूझ रहा है बल्कि आत्महत्या की दर को भी बढ़ा दिया है। भारत में किसानों की आत्महत्याएं कितना संगीन मामला है इस पर कौन समझ रखेगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो आंकड़ा कुछ समय पहले उपलब्ध कराया था उससे यह पता चला कि हर साल 12 हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कर्ज में डूबे और खेती में हो रहे घाटे को किसान बर्दाष्त नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि सरकार कुछ करती तो है पर उससे किसानों की राह समतल नहीं हो पा रही है इसके प्रमुख कारणों में दषकों से इनके जीवन को निहायत ऊबड़-खाबड़ बना दिया जाना है। मौजूदा सरकार 2013 से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जमा कर रही है। साल 2014 और 2015 में कृशि क्षेत्र से जुड़ 12 हजार से अधिक लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि 2013 में आंकड़ा इससे थोड़ा कम था। हालांकि इस पर पूरा विष्वास षायद ही हो पाये। सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराश्ट्र के किसानों ने किया जबकि इस मामले में कर्नाटक दूसरे नम्बर पर आता है। इसी क्रम में तेलंगाना, मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़ आदि को देखा जा सकता है। हालांकि आत्महत्या की सूचना से कोई राज्य वंचित नहीं है।
यह बात वाजिब ही कही जायेगी कि कृशि प्रधान भारत में कई सैद्धान्तिक और व्यावहारिक कठिनाईयों से किसान ही नहीं सरकारें भी जूझ रही हैं। अन्तर सिर्फ इतना है कि किसान मर रहा है और सरकारें मजा कर रही हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने खरीफ की फसल में कुछ बढ़ोत्तरी की थी मसलन धान की फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1550 से 1750 कर दिया। ऐसे दर्जनों फसलों में कमोबेष वृद्धि की गयी। 2014 की तुलना में इसे ड़ेढ़ गुना कहा जा रहा है जबकि मोदी सरकार 2014 के लोकसभा चुनाव में इस एजेण्डे के साथ उतरी थी कि सरकार की स्थिति में वह किसानों की फसलों की कीमत डेढ़ गुना करेगी। चार साल बीतने के बाद कमोबेष इस स्थिति में आने के पष्चात् सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने किसानों का भला कर दिया जबकि डेढ़ गुना उस दौर के तय मूल्य के अनुपात में करना था न कि चार साल की बढ़त को डेढ़ गुना में बदलना था। वैसे स्वामीनाथन रिपोर्ट को देखें तो उसमें भी एमएसपी को डेढ़ गुने की बात कही गयी है। मगर जैसे सरकार ने किया है वैसे नहीं। यदि मोदी सरकार ने वाकई में किसानों की फसल का डेढ़ गुना एमएसपी किया है तो इसे स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करना क्यों नहीं कहती। जाहिर है यहां सरकार की नीति राजनीति से प्रेरित है। पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले से देष को सम्बोधन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की जिन्दगी बदलने के लिये जिस रास्ते का उल्लेख किया था वह कृशि संसाधनों से ताल्लुक रखता है जिसमें उत्तम बीज, पानी, बिजली की बेहतर उपलब्धता के साथ बाजार व्यवस्था को दुरूस्त करना षामिल था। सप्ताह भर पहले 2018 का 15 अगस्त भी बीता है पर रास्ते तो अभी भी समतल नहीं हुए हैं। इस बार भी लाल किले से खूब बातें कही गयी हैं पर मार्ग किसानों के जीवन में परिवर्तन लाये तब बात बने। 
किसानों से उपजी समस्याओं को लेकर संवेदना भी इधर-उधर होती है और दिमाग भी उथल-पुथल में जाता है। प्रधानमंत्री मोदी 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रहे हैं। इस हकीकत पर 2022 में ही विचार होगा। दिन बदलेंगे, बदल रहे हैं पर किसान कहां खड़ा है। 90 के दषक से मुफलिसी के चलते आत्महत्या के मार्ग को अपना चुका किसान उसी पर सरपट क्यों दौड़ रहा है। देष की 60 फीसदी आबादी किसानों की है। बहुतायत में नेता, मंत्री व प्रषासनिक अमला समेत कई सामाजिक चिंतक इस बात को कहने से कोई गुरेज नहीं करते कि उनके पुरखे भी किसान और मजदूर थे पर जब इन्हीं की जिन्दगी में थोड़ी रोषनी भरने की बात हो तो इनकी नीतियां और सोच या तो सीमित हो जाती है या बौनी पड़ जाती हैं। भारत में किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं। यह लाख टके का नहीं अरब टके का सवाल है और इनकी संख्या लगातार क्यों बढ़ रही है। इतना ही नहीं आत्महत्या से जो राज्य या इलाके अछूते थे वे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। इस सवाल की तह तक जाने के बजाय सरकारें बचाव की नीति पर काम करने लगती हैं। मर्ज का इलाज नहीं बल्कि उसे टालने की कोषिष में लग जाती है। दुख इस बात का है कि सत्ता में आने से पहले यही सभी के जीवन के मार्ग को समुचित और समतल बनाने के वायदे करती है और जब इनके मतों को हथिया कर सत्तासीन हो जाते हैं तो ना जाने इनके विजन को क्या हो जाता है।
आत्महत्या की वजह क्या है, किसानों की स्थिति लगातार क्यों बिगड़ रही है। सरकारों से उनका भरोसा क्यों उठ रहा है और उनकी मुष्किलें कम होने के बजाय क्यों बढ़ रही हैं ये सभी सवाल फलक पर तैर रहे हैं। किसान अपना खून-पसीना बहाकर अनाज पैदा करते हैं और बाकी उन्हीं अनाज से अपनी सेहत ठीक कर रहे हैं इस चिंता से परे कि वे किस हाल में है। पूरे देष के किसानों पर तीन लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है। समय-समय पर कुछ सरकारों ने इसे लेकर माफी वाला कदम भी उठाया। चुनाव से पहले कर्ज माफी का वादा तो होता है पर सत्तासीन होने के बाद कोश की सुरक्षा सरकारों को सताती है नतीजन कर्ज माफ नहीं होता यहां सरकार चालाकी दिखाती है और किसान ठगा जाता है। ज्यादा किसान साहूकार और आढ़तियों से कर्ज लेने को मजबूर है ये किसानों के लिये घातक साबित हो रहा है। गौरतलब है कि जब किसान अनपढ़ थे बैंकों के खाताधारक नहीं थे, न तो किसान क्रेडिट कार्ड था और न ही कर्ज को लेकर किसी प्रकार की निर्भरता। तब षायद किसान ज्यादा सुखी था। हालांकि साहूकारों के कर्ज से एक तबका दबा रहता है जिसके चलते ऋण ग्रस्तता का बोझ तत्पष्चात् बंधुआ मजदूरी का दौर भी देखने को मिला है। यह बात सही है कि कठिनाई उस दौर में भी थी और इस दौर में भी इससे वह बचा नहीं है पर आत्महत्या इतनी नहीं होती थी। आन्ध्र प्रदेष से लेकर महाराश्ट्र और तेलंगाना राजनीतिक दल इसकी वकालत कर रहे हैं कि कर्ज माफी कोई इलाज नहीं है और न ही यह स्थायी उपाय है यदि ऐसा होता तो 2008 में डाॅ0 मनमोहन सिंह सरकार द्वारा 60 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की कर्जमाफी के बाद आत्महत्याएं बंद हो जानी चाहिए थी पर ऐसे विचारधारकों को यह समझना होगा कि किसान कुछ तो राहत पाये होंगे और उनके रास्ते कुछ तो समतल हुए होंगे। मनमोहन सिंह ने जो जोखिम लिया उसे आगे की सरकारें बढ़े रूप में लेकर किसानों को कर्ज मुक्त क्यों नहीं करती। किसानों पर लगा कर्ज उनकी उम्र को घटा रहा है और जीवन के रास्ते में बड़े-बड़े गढ़ढ़े बना रहा है। वाकई में कर्ज माफी पूरा समाधान नहीं है। पूरा समाधान तभी होगा जब उनके जीवन के रास्ते समतल होंगे ताकि वे आत्महत्या की डगर पर नहीं बल्कि टनों अनाज गाड़ियों पर लाध कर बाजार के मार्ग पर हों।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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