Wednesday, August 8, 2018

आखिरकार दुष्कर्म रुक क्यों नहीं रहें हैं

 दुष्कर्म की घटनाओं को देखते हुए देष की षीर्श अदालत ने जिस प्रकार के भाव प्रकट किये हैं उससे स्पश्ट है कि समस्या विषेश को देखते हुए चिंता और चिंतन दोनों तुलनात्मक माथे पर और बल पैदा करेंगे। लेफ्ट-राइट और सेंटर जहां भी देखो वहां दुश्कर्म हो रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के इस वक्तव्य से साफ है कि पानी सर के ऊपर जा रहा है। दरअसल कोर्ट ने बिहार के मुजफ्फरपुर के षेल्टर होम में हुए कथित यौन षोशण और यूपी के देवरिया मामले का जिक्र करते हुए कहा कि आखिर देष में क्या हो रहा है। वाकई समस्या संभल नहीं रही है। सरकारें घटना के बाद जांच-पड़ताल में भले ही ईमानदारी बरतें पर इसके रोकथाम में लगातार वे विफल रही। यदि सवाल यह किया जाय कि ऐसा क्या है कि सभ्य समाज का सिर झुक रहा है तो दो टूक जवाब यह है कि कुछ वहषी के चलते जिस तर्ज पर दुश्कर्म को अंजाम दिया जा रहा है वह किसी के भी दिमाग को हिला सकता है। देवरिया का मामला बीते 7 अगस्त को संसद में चल रहे मानसून सत्र में गूंजा। स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सरकार और सांसदों से कहा कि दो घटनायें सामने आयी हैं लिहाज़ा सभी सांसद अपने क्षेत्र में ऐसे षेल्टर होम की निजी स्तर पर जांच करें। हैरत यह है कि जहां सुरक्षा की गारंटी है वहीं असुरक्षा बढ़ी है। आये दिन हो रहे दुश्कर्म को लेकर दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं प्रथम यह कि क्या हमारे आसपास कोई ऐसा बदलाव हो रहा है जो व्यवस्था को संभालने में दिक्कत हो रही है, दूसरा यह कि क्या सरकार के नियम-कानून खोखले होते जा रहा हैं और अपराध बेकाबू। यदि हां तो सवाल यह भी है कि क्या परम्परागत मूल्य, संस्कार और संस्कृति का ताना-बाना पूरी तरह बिखर चुका है। उच्चत्तम न्यायालय ने जिस तर्ज पर सवाल दागे हंै उससे तो यही लगता है कि दुश्कर्म को लेकर मानो अब कोई जगह षेश नहीं है।
राश्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो का हवाले देते हुए जब यह कहा कि 2016 के दौरान दुश्कर्म की 38,427 घटनायें हुई तब लगा कि संविधान और मूल अधिकार को बचाये रखने की जिम्मेदारी निभाने वाली अदालत इसे लेकर कितना गम्भीर है। इतना ही नहीं सर्वाधिक 4 हजार घटनायें मध्य प्रदेष में हुईं। भोपाल में खुले आम लड़कियां बेची जा रही हैं, दूसरे नम्बर पर यूपी आता है इसे लेकर कारगर कदम उठाने तो होंगे। उत्तर भारत के हिमालय में बसा मात्र एक करोड़ की जनसंख्या रखने वाले उत्तराखण्ड में पिछले 8 माह में दुश्कर्म के 183 मामले देखने को मिले। यह इस बात को पुख्ता करता है कि राज्य बड़े हों या छोटे कानून व्यवस्था बने हों या बिगड़े दुश्कर्म से कोई बचा नहीं है। कहा जाय तो सही चैकीदारी सभी को करनी है पर दुःखद यह है कि कहां कम दुश्कर्म है और कहां ज्यादा इसे लेकर भी तुलना होती है और इसकी आड़ में जिम्मेदार लोग अपना बचाव करते हुए देखे जा सकते हैं। बलात्कारी कौन है, किस समाज से आता है और किस बनावट का होता है यह समझना सरल है पर पहचानना उतना ही कठिन। जो बच्चियों की जिन्दगियों को नश्ट कर रहे हैं, मसल रहे हैं और खत्म कर रहे हैं वे इसी समाज के हैं। गौरतलब है कि भारत में हर वर्श बलात्कार के मामले में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। आंकड़े थोड़े पुराने हैं पर राश्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो बताता है कि भारत में प्रतिदिन 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। भारत एक सभ्य देष है पर आंकड़े इसकी पोल खोलते हैं। पूरी दुनिया में महिलायें एवं बच्चियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। भारत के नेषनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो का कहना है कि 2016 में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 12 फीसदी से अधिक बढ़े हैं। दुःखद यह है कि मध्य प्रदेष में भाजपा की सुषासन वाली सरकार चल रही है और इस मामले में भी यह अव्वल है।
सवाल है कि बलात्कार और इंसाफ का क्या रिष्ता है यह भी एक दर्द से भरी ही दास्तां है। ये तो वही बात हुई कि एक बार दिमाग की षिराओं में तनाव आ जाये तो क्रोध और दुःख से नसें फटने के लिये तैयार रहती हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का यह नारा प्रधानमंत्री मोदी ने पुरूशों की तुलना में सबसे कम महिलाओं वाले प्रदेष हरियाणा से दिया था। जिस तर्ज पर दुश्कर्म की घटना हो रही है, न्याय की स्पीड थोड़ी धीमी है। दिसम्बर 2012 में निर्भया काण्ड के बाद इस दिषा में कानून बदलने और बनाने से लेकर त्वरित न्याय की व्यवस्था स्थापित करने को लेकर गति बढ़ी पर ऐसा सबके लिये हुआ कहना मुष्किल है। पता नहीं ये कितना सच है लेकिन बलात्कार दुनिया भर के कानूनों में सबसे मुष्किल से साबित किया जाने वाला अपराध भी है। समाज में जो वहषिपन व्याप्त है वह वाकई में विक्षिप्त होने का पूरा मौका देती है। कुछ महीने पहले कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और निमर्म हत्या, गुजरात के सूरत में और उत्तर प्रदेष के उन्नाव में और अब बिहार के मुजफ्फरपुर और यूपी के देवरिया में सुरक्षा के दायरे में घटी घटनाओं में समझ और मानसिकता को द्वंद में डाल दिया है। गौरतलब है कि बच्चों से बलात्कार का दर्द तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2010 में लगभग साढ़े पांच हजार मामले बच्चों के बलात्कार से जुड़े हुए थे जो 2014 में साढ़े तेरह हजार से अधिक हो गये। इतना ही नहीं बाल यौन षोशण अधिनियम पोक्सो एक्ट के तहत लगभग 9 हजार मामले दर्ज किये गये आंकड़े थोड़े पुराने हैं पर हिलाने वाले हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कानून कितना ही सख्त बना लिया जाय दुश्कर्म को रोक पाने में विफल ही रहेगा परन्तु इस मामले से मुक्ति पाने के लिये यह रणनीति काफी हद तक अचूक है कि लोक लाज के डर से बाहर निकल कर अब हर मामले को रजिस्टर किया जाय। सजा के लिये न्यायालय को सक्रिया और तेजीपन दिखाना होगा। साल 2012 में आया पोक्सो और 2013 में आया आपराधिक कानून संषोधन अधिनियम भी बच्चों के बलात्कार के मामले दर्ज कराने में सहायक बने। थोड़ी-मोड़ी कमी तो यह भी है कि समाज चलता कम है खड़ा ज्यादा रहता है। कहीं-कहीं तो इस पर भी सियासत गांठी जाती है। 
मुख्य विपक्षी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का आरोप है कि पीएम ऐसे मामले में कुछ नहीं बोलते। हालांकि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा प्रधानमंत्री मोदी का ही है। सवाल बोलने का नहीं सवाल कर दिखाने का है। विपक्ष भी गलत नहीं है क्योंकि जिम्मेदार तो सत्ता ही है। दुःखद यह भी है कि महिला सुरक्षा से जुड़े तमाम कानून और बहस के बाद अपराध घट नहीं रहे हैं, देष में हर 24 घण्टे में 4 बलात्कार हो रहे हैं। इतना ही नहीं इसमें उम्र की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। रेप की घटना पर चिंता किसे नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरपुर काण्ड पर स्वतः संज्ञान लिया था। कोर्ट ने इलैक्ट्राॅनिक मीडिया को आदेष दिया था कि वे न तो बच्चियों का इंटरव्यू लें और न ही तस्वीर दिखायें। षीर्श अदालत ने बिहार सरकार, महिला बाल कल्याण मंत्रालय, राश्ट्रीय बाल अधिकार आयोग और अन्य को नोटिस जारी कर इस पर जवाब भी मांगा। भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच मूल अधिकार दिये गये हैं जिसके संरक्षक की भूमिका में देष का उच्चत्तम न्यायालय है जाहिर है मुजफ्फरपुर बालिका गृह में 29 बच्चियों का यौन उत्पीड़न तमाम अधिकारों का गला घोंटने जैसा है और षीर्श अदालत चुपचाप नहीं बैठ सकती। अदालत के इस कदम से अच्छा संदेष तो जाता है पर यह सवाल हमेषा मन को सालता रहेगा कि दुश्कर्म रूक क्यों नहीं रहे हैं। क्या सरकारें फेल हैं या समाज चेतना मूलक नहीं रहा या फिर अपराध बौने करने में पूरी व्यवस्था कमजोर पड़ रही है?



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment