Monday, August 13, 2018

सियासत नहीं सही सोच की ज़रूरत

ममता बनर्जी के गढ़ पश्चिम बंगाल में बीते 11 अगस्त को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस धमक के साथ अपनी बात कह रहे थे कि तृणमूल कांग्रेस का वोट बैंक बंग्लादेषी घुसपैठिये हैं। उन्होंने यह भी कहा कि देष की सुरक्षा अहम है या वोट बैंक ममता बनर्जी को यह भी स्पश्ट करना चाहिये। अमित षाह मोदी की अगुवायी में पष्चिम बंगाल के विकास और भ्रश्टाचार से मुक्ति की बात कह रहे हैं साथ ही यह भी कह रहे हैं कि 19 राज्यों में भाजपा की सरकार का तब तक कोई मतलब नहीं जब तक पार्टी बंगाल की सत्ता पर काबिज नहीं होती। स्पश्ट है कि पष्चिम बंगाल भाजपा के लिये नाक की लड़ाई बन गयी है। कुछ राज्यों को छोड़कर पूरे भारत की सत्ता पर काबिज भाजपा बिना बंगाल के बाकियों की सत्ता को गौण मान रही है। यह उनका कौन सा सियासी स्वरूप है कि बंगाल का आभाव बाकी राज्यों पर भारी पड़ रहा है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि बंग्लादेषी घुसपैठियों को ममता बनर्जी संरक्षण दे रही है। दरअसल पष्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री असम में राश्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विरोध कर रही है। इसी विरोध के चलते तृणमूल ने एनआरसी के विरोध में अमित षाह के भाशण के दिन कलकत्ता को छोड़कर पूरे राज्य में रेली आयोजित की। सियासी लड़ाई में राजनीतिक दल अपने रसूख को जिस तरह देष से ऊपर रख देते हैं यह बात किसी के दिमाग को दुविधा में डाल सकती है। 
अब यह समझना जरूरी है कि आखिरकार मामला क्या है। असम देष का एकलौता ऐसा राज्य है जिसमें 1951 से राश्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया है। दरअसल जब 1947 में देष आजाद हुआ तभी से असम में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेष) के नागरिक और असम से बांग्लादेष की आवाजाही हजारों की संख्या में होती थी। इसी को देखते हुए 8 अक्टूबर 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तान के पीएम लियाकत अली में एक समझौता हुआ। यह उस समय की बड़ी मांग भी थी क्योंकि उस दौर में बंटवारे से प्रभावित इलाके के नागरिक अपने पुस्तैनी घरों को छोड़कर देष बदल रहे थे। हालात और परिस्थितियों ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेष बना दिया। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौता किया जिसमें यह स्पश्ट था कि असम में रह रहे नागरिकों को भारत का नागरिक माने जाने की दो षर्तों में पहला जिनका पूर्वज का नाम 1951 राश्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में चढ़े हुए थे, दूसरे 24 मार्च 1971 की तारीख तक या उससे पहले नागरिकों के पास अपने परिवार के असम में होने के सबूत मौजूद हों। दो दषक बाद साल 2005 में मनमोहन सरकार ने असम गणपरिशद के साथ मिलकर एनआरसी को दुरूस्त करने की प्रक्रिया षुरू की मगर मामला न्यायालय में चला गया और रजिस्टर के नवीनीकरण हेतु अदालत ने संयोजक नियुक्त किया और सूची छापने की अंतिम तिथि 30 जुलाई 2018 थी जिसकी अवधि पिछले माह समाप्त हो गयी। तत्पष्चात् रजिस्टर तो छापा गया जिसके तहत 3 करोड़ 29 लाख प्रार्थना पत्रों में से 2 करोड़ 85 लाख को वैध पाया गया। इस तरह असम में रह रहे बाकी बचे 40 लाख का भविश्य अधर में लटक गया जिसे लेकर सभी अपने-अपने हिस्से की सियासत कर रहे हैं। 
बीजेपी कह रही है कि यदि बंगाल में सरकार बनी तो एनआरसी पष्चिम बंगाल में भी जारी किया जायेगा। गौरतलब है कि सबसे बड़ी तादाद में बांग्लादेष से आये लोग पष्चिम बंगाल में बसे हैं। अमित षाह के बंगाल का ताजा भाशण मोदी के 2014 के सीरमपुर भाशण का दोहराव है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने कहा था कि यदि उनकी सरकार बनी तो बांग्लादेषियों का बोरिया बिस्तरा बंगाल से उठ जायेगा। सरकार को 4 साल से अधिक समय हो गया। 2019 में 17वीं लोकसभा का चुनाव होना है परिस्थिति को देखते हुए भाजपा ने बांग्लादेषी घुसपैठियों को देखते हुए एक बार फिर सियासत की डगर पर है। हालांकि असम के मामले में एनआरसी से छूटे लोगों को एक मौका देने की बात कही गयी है। मोदी ने किसी भी नागरिक को देष नहीं छोड़ना होगा की बात भी कही है। विपक्ष भी एनआरसी के मामले में बंटी हुई राय दे रहा है। ममता बनर्जी यह नहीं चाहती कि केन्द्र सरकार घुसपैठियों को लेकर कोई कठोर कदम उठाये। रिपोर्ट यह बताती है कि असम के अलावा त्रिपुरा, मेघालय, नागालैण्ड में भी अवैध रूप से बांग्लादेषी रह रहे हैं। इतना ही नहीं उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में भी इनकी बसावट कही जा रही है जबकि बाॅर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स 2000 की रिपोर्ट कहती है कि डेढ़ करोड़ बांग्लादेषी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग 3 लाख प्रति वर्श घुसपैठ करते हैं। ताजा अनुमान तो यह है कि अब घुसपैठियों की संख्या 4 करोड़ के आसपास है। साल 2016 में असम में भाजपा की सरकार आने के बाद एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया गया था जिसका आखरी ड्राफ्ट बीते दिनों जारी हुआ जिसके चलते देष की सियासत में भूचाल आ गया।
देष में घुसपैठियों को लेकर सियासत हिन्दू, मुस्लिम में भी बंटी हुई है। पष्चिम बंगाल में 27 फीसदी मुस्लिम हैं। जाहिर है ये भाजपा के वोटर तो नहीं है इस बात से वे अनभिज्ञ नहीं है। तमाम घुसपैठियों के आधार और वोटर कार्ड बने हुए हैं। केन्द्र के मोदी सरकार से ममता बनर्जी का छत्तीस का आंकड़ा है। नारद, षारदा चिट फण्ड घोटाला के साथ ही सिंडिकेट जैसे मामले उनकी सत्ता में भूचाल ला चुके हैं। कई मंत्री और नेता को जेल जाना पड़ा। देखा जाय तो ममता बनर्जी का कार्यकाल तितर-बितर ही रहा है। दो टूक यह है कि एनआरसी के मामले में सियासत से ऊपर उठ कर देष की सुरक्षा भी सोचनी है। जाहिर है घुसपैठियों पर कठोर निर्णय लेना ही होगा। पष्चिम बंगाल कई कठिनाईयों से जूझ रहा है मानव तस्करी के मामले में यह सबसे आगे है, युवाओं के आत्महत्या के मामले में भी अव्वल राज्य है। पूरे देष में सबसे अधिक कल-कारखाने यहीं बंद हुए हैं और सबसे ज्यादा घुसपैठ भी यहीं हुआ है। हाल के दिनों में बंगाल के कई इलाकों में हिन्दू-मुस्लिम राॅयट भी हुए। कहा जाता है कि हिन्दुओं के ऊपर साम्प्रदायिक हमले में बांग्लादेषी घुसपैठियों को हाथ रहा है। अब तो वे जोर-जबरदस्ती से यहां के बंगाली बाषिन्दों की जमीन भी हड़प रहे हैं और हिंसा का सहारा ले रहे हैं। फिलहाल घुसपैठ का मामला निहायत संवेदनषील है इसे सियासत से नहीं राश्ट्रीय सुरक्षा की सही सोच विकसित करके हल करना हेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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