Monday, August 6, 2018

अनुच्छेद 35ए पर क्यों मचा है संग्राम!

भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर राज्य को विषश दर्जा प्राप्त है और यह विषेश स्थिति अनुच्छेद 370 के तहत है मगर बीते एक वर्श से अनुच्छेद 35ए को लेकर कोहराम मचा हुआ है। अनुच्छेद 35ए आखिर है क्या और इसके चलते जम्मू कष्मीर में समस्या क्यों बढ़ी है इसे लेकर स्पश्ट राय नहीं आ पा रही है। इस अनुच्छेद को हटाने के लिये दलील दी जा रही है कि इसे संसद के जरिये लागू नहीं कराया गया है। षोध बताती है कि देष के विभाजन के समय बड़ी संख्या में पाकिस्तान से षरणार्थी भारत आये थे जिनमें लाखों की तादाद में जम्मू कष्मीर में रह रहे हैं। अनुच्छेद 35ए के जरिये ही इन सभी भारतीय नागरिकों को जम्मू-कष्मीर सरकार ने स्थायी निवास प्रमाण पत्र से वंचित कर दिया। जिसमें 80 फीसदी लोग पिछड़े और दलित हिन्दू समुदाय से हैं। इतना ही नहीं जम्मू-कष्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ यहां की सरकार इस अनुच्छेद की आड़ लेकर भेदभाव करती है। इसी को लेकर इसे हटाने की मांग हो रही है। अनुच्छेद 35ए में यह भी है कि अगर जम्मू कष्मीर की लड़की किसी बाहर के लड़के से षादी करे तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जायेंगे इतना ही नहीं उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। गौरतलब है कि जब 1956 में जम्मू-कष्मीर का संविधान बनाया गया था तब स्थायी नागरिकता को कुछ इस प्रकार परिभाशित किया गया था। संविधान के अनुसार स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के दस वर्शों से राज्य में रह रहा हो और वहां सम्पत्ति हासिल की हो। इसी दिन तत्कालीन राश्ट्रपति डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेष पारित किया जिसके तहत संविधान में अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया था। अब सवाल है कि क्या अनुच्छेद 35ए अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है और 35ए को हटाने पर 370 स्वयं हट जायेगा। 
उच्चत्तम न्यायालय में जम्मू-कष्मीर को विषेश दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35ए को हटाये जाने के लिये 6 अगस्त को सुनवाई षुरू हुई। हालांकि अब यह सुनवाई 27 अगस्त को होगी इसकी वजह में तीन न्यायाधीषों की पीठ में एक की अनुपस्थिति का होना रहा है। सुनवाई से पहले प्रदेष में प्रदर्षन चल रहा है और तरह-तरह के बयानबाजी भी हो रही है। कष्मीर घाटी में अलगाववादियों की ओर से बुलायी गयी हड़ताल के कारण यहां दुकानें बंद रही। दरअसल अलगाववादी अनुच्छेद 35ए को हटाये जाने के विरोध में हैं। वैसे बड़ा सच तो यह है कि अलगाववादी घाटी को ही अमन से नहीं रहने देना चाहते हैं और जब तब यहां हिंसा और उपद्रव को आमंत्रित करते रहते हैं। आतंकियों को षह देना और पाकिस्तान परस्त व्यवहार करना इन अलगाववादियों की आदत है। अब अनुच्छेद 35ए को लेकर इनका सियासी खेल चरम पर है। बताते चलें कि अनुच्छेद 35ए को लेकर आरएसएस के नज़दीकी गैरसरकारी संगठन वी द पीपुल्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है जिसमें उन्होंने कहा है कि इसी अनुच्छेद के कारण भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार के अलावा मानवाधिकार का भी घोर हनन हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि अनुच्छेद 35ए के तहत पष्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे षरणार्थियों और पंजाब से यहां लाकर बसाये गये वाल्मीकि समुदाय नागरिकता से वंचित हैं। हैरत वाली बात तो यह है कि 35ए को लेकर घाटी के अलगाववादी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इस अनुच्छेद को लेकर सोषल मीडिया पर भी जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है और सभी अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या कर रहे हैं। कष्मीर बंद की गयी और अमरनाथ यात्रा भी रोक दी गयी। इस अनुच्छेद के समर्थन में फारूख अब्दुल्ला की नेषनल कांफ्रेंस भी बंद के साथ रही। बंद के बाद पत्थरबाजी के साथ कई छिटपुट घटनायें भी हो रही हैं। जाहिर है कि पत्थरबाजी में पूरी तरह प्रषिक्षित अलगाववादी को पत्थर चलाने का नया अवसर मिल गया है। 
कष्मीरी पण्डित अनुच्छेद 35ए हटाने के पक्ष में हैं। उनकी दलील है कि इस अनुच्छेद से हमारी बेटियों को दूसरे राज्य में विवाहित होने के बाद अपने सभी अधिकार जम्मू-कष्मीर से खोना पड़ रहा है। हतप्रभ करने वाली बात यह है कि भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 से लागू है और संविधान के अनुच्छेद 1 में यह स्पश्ट है कि भारत राज्यों का संघ है और उसी संघ का 15वां राज्य जम्मू-कष्मीर है। अनुच्छेद 370 के तहत विषेश राज्य है और इसकी कई बाध्यतायें हैं जैसे नीति-निर्देषक तत्व का यहां लागू न होना जबकि देष हर राज्य में यह लागू होते हैं। वित्तीय आपात यहां लागू नहीं किया जा सकता और अवषिश्ट षक्तियां राज्य को प्राप्त हैं। ऐसी तमाम बातें इसे विषिश्ट बनाती हैं और सुविधापरख भी। बहुत कुछ जम्मू-कष्मीर के हक में होने के बावजूद वहां मामला बेपटरी ही रहा है। आतंक की चपेट में घाटी अक्सर रही है और इसे जलाने में हुर्रियत के लोग कभी पीछे नहीं रहे। रोचक यह भी है कि भाजपा और पीडीपी घाटी में तीन साल बेमेल सरकार चला चुके हैं और सत्ता के समय घाटी षान्त थी और जब सत्ता से हटे तो घाटी जल रही थी। घाटी बर्बाद करने में जितना जिम्मेदार पीडीपी की महबूबा मुफ्ती हैं उतनी ही भाजपा भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार में बराबर की भागीदारी थी। अनुच्छेद 35ए के मोह में वहां के सभी दल और अलगाववादी कमोबेष फंसे हैं। पीडीपी, नेषनल कांफ्रंस और तो और सीपीआई (एम) भी अनुच्छेद 35ए को हटाने के पक्ष में नहीं है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें सियासत की चिंता है वहां के बाषिन्दों की नहीं। जम्मू-कष्मीर से आईएएस टाॅपर रहे षाह फैज़ल ने भी विवादित ट्विट किया है जिसमें उन्होंने कहा अनुच्छेद 35ए हटाने से जम्मू-कष्मीर का भारत से रिष्ता खत्म हो जायेगा। उन्होंने इस रिष्ते को षादी दस्तावेज और निकाहनामा से जोड़ा है। उपरोक्त से यह संदर्भित होता है कि जम्मू-कष्मीर के भीतर दो विचार चल रहे हैं। एक अनुच्छेद 35ए के पक्ष में और दूसरा विरोध में मगर असल में चिंता विरोधियों को अनुच्छेद 35ए की नहीं है बल्कि वहां फिज़ा में फैली उनके रसूख की है। 
राजनेता हो या बुद्धिजीवी वर्ग अनुच्छेद 35ए को लेकर अपनी-अपनी व्याख्या में लगा है जबकि वहां के नागरिक मौलिक अधिकार और मानवाधिकार दोनों के खतरे से जूझ रहे हैं। अनुच्छेद 35ए जम्मू-कष्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह स्थायी नागरिक की परिभाशा तय कर सकें। अब यह अनुच्छेद न्यायायलय की षरण में है और फैसला आने वाले दिनों में जब होगा तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा। फिलहाल जिस तर्ज पर समस्या बढ़ी है उसका हल इतना आसान भी प्रतीत नहीं होता। राजनीतिक फलक पर जब अनुच्छेद 370 हटाने की बात जोर पकड़ती थी तब भी सियासत गरम होती थी और जम्मू-कष्मीर में लोग इसे लेकर सतर्क हो जाते थे। अब अनुच्छेद 35ए को लेकर घाटी में वह सब किया जा रहा है जिसके चलते वहां का अमन-चैन पटरी से उतरा है। कह सकते हैं कि अब गेंद न्यायालय के पाले में है और उसका निर्णय ही इस पर रोषनी डालने का काम करेगा। दो टूक यह भी है कि जम्मू-कष्मीर मुख्यतः कष्मीर अलगाववादियों, आतंकवादियों और स्वार्थपरख सियासतदानों के हाथों खिलौना मात्र बनकर रह गयी और यहां के नागरिकों का दोनों हाथों से षोशण हुआ। गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी आदि से परे अलगाववादी कष्मीर पर अपनी रोटी सेंक रहे हैं। लाखों कष्मीरी पण्डितों को यहां से बेदखल किया गया और दषकों से अराजकता का माहौल यहां से जाने का नाम नहीं ले रहा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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