Friday, July 29, 2016

व्हाइट हाऊस की राह पर हिलेरी

व्हाइट हाऊस की राह पर हिलेरी
दुनिया के सर्वाधिक पुराने लोकतंत्र अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब व्हाइट हाऊस के लिए किसी महिला उम्मीदवार का चयन किया गया हो। 240 साल के इतिहास में और 44 राश्ट्रपति के चुनाव हो जाने तक अमेरिका में कोई महिला उम्मीदवार नहीं हो पाई पर हिलेरी क्लिंटन को उम्मीदवार बनाकर सैकड़ों बरस पुराने इस मिथक को अमेरिकियों ने तोड़ दिया है। निर्धारित तिथि के अनुसार इस वर्श के नवम्बर माह में राश्ट्रपति का चुनाव होना है जिसमें एक ओर रिपब्लिकन के डोनाल्ड ट्रंप तो दूसरी ओर डेमोक्रेटिक की ओर से हिलेरी क्लिंटन मैदान में होंगी। इस बार के चुनाव को काफी रोचक भी माना जा रहा है जिस प्रकार पिछले कुछ समय से उम्मीदवारी को लेकर दोनों की चर्चा है उसे देखते हुए साफ है कि सर्वाधिक षक्तिषाली देषों में षुमार अमेरिका पर दुनिया की नजर होगी। ग्रीस के नगर राज्यों से लेकर आज तक के प्रतिनिधियात्मक प्रजातंत्र ने एक लम्बा सफर तय किया है। षनैः षनैः इसी प्रजातंत्र ने एक व्यापक रूप भी धारण किया पर महिलाओं से युक्त आधी दुनिया प्रजातंत्र के इस खूबसूरत सफर में कम ही देखी गयी हैं। कार्यकारी प्रमुख के तौर पर महिला के मामले में अमेरिका में आज भी षून्यता बरकरार है पर इस बार इसकी भरपाई सम्भव दिखाई दे रही है। बता दें कि 2009 से 2013 तक अमेरिका की राज्य सचिव रह चुकी हिलेरी क्लिंटन बराक ओबामा के पहले कार्यकाल में विदेषी मंत्री भी रही हैं। अमेरिका के पूर्व राश्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन उम्मीदवारी के दिनों से ही काफी मजबूती से आगे बढ़ रही थी। बीते 27 जुलाई को यह तय हो जाने के बाद कि डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से हिलेरी क्लिंटन उम्मीदवार होंगी अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनाव की पूरी तस्वीर साफ हो गयी है। गौरतलब है कि वर्श 2008 में बराक ओबामा के पहली बार राश्ट्रपति बनने के दौर में भी इनकी उम्मीदवारी को लेकर महीनों तक चर्चा रही है। 
सब कुछ अनुकूल रहा तो सैकड़ों वर्श के लोकतंत्र को खर्च करने के बाद हिलेरी क्लिंटन के रूप में व्हाइट हाऊस को एक महिला राश्ट्रपति मिल सकता है। कहा जा रहा है कि हिलेरी षानदार राश्ट्रपति साबित होंगी। देष की पहली महिला राश्ट्रपति बनने की दावेदार हिलेरी का सामना 8 साल से सत्ता से विमुख रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप से होगा। अमेरिका एक विकसित देष है जिसकी ताकत विष्व भर में प्रबल मानी जाती है साथ ही तमाम बेहतरी के बावजूद महिला षासक देने से वह अभी तक चूकता रहा है। आने वाला चुनाव इस चूक से भी मुक्ति देने का काम कर सकता है। वर्श 1783 में औपनिवेषिक सत्ता से मुक्त होने वाले अमेरिका का संविधान 1789 में जब तैयार हुआ तो व्यस्क मताधिकार में महिलायें नहीं गिनी जाती थी। अमेरिका में 21 वर्श से ऊपर की महिलाओं को मत देने की अनुमति अमेरिकी संविधान के 19वें संषोधन (1920) द्वारा ही मिल पाई। देखा जाय तो इंग्लैण्ड में भी महिलाओं को मताधिकार से 1918 तक वंचित रखा गया था। फ्रांस की महिलाओं ने पहली बार 1945 में वोट दिया। इसके अलावा फिनलैण्ड, नार्वे, डेनमार्क समेत दुनिया के कई देष प्रजातंत्र की राह में महिलाओं के मामले में काफी संकुचित रहे हैं। करीब सौ साल के आस-पास में जो अमेरिका महिलाओं को मत देने से वंचित किया था वही आज सबसे षीर्श पद पर पहुंचाने के लिए व्याकुल है। इसे प्रजातंत्र की खूबसूरती ही कहा जायेगा और दौर का बदलाव भी। लोकतंत्र को बनाने में कूबत खर्च करनी पड़ती है, संवारने में लम्बा वक्त देना पड़ता है तब कहीं जाकर बेजोड़ प्रजातंत्र की अवधारणा मूर्त रूप लेती है। यदि 45वें राश्ट्रपति के तौर पर हिलेरी क्लिंटन व्हाइट हाऊस में प्रवेष करती हैं तो यह अमेरिकी लोकतंत्र के लिए नया इतिहास होगा। 
विगत् कुछ महीनों से यह भी सुर्खियों में है कि डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन में कौन बेहतर राश्ट्रपति होगा। ट्रंप हिलेरी को राश्ट्रपति बनने लायक नहीं समझते जबकि मौजूदा अमेरिकी राश्ट्रपति हिलेरी को सबसे योग्य मानते हैं। ओबामा ने साफ कहा है कि इस पद पर अब तक कोई भी इतना पढ़ा-लिखा षख्स नहीं रहा जितनी हिलेरी क्लिंटन हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप के आने से विदेषियों का गैर-कानूनी प्रवेष बढ़ेगा और देष आतंकवाद से जूझेगा। इतना ही नहीं ट्रंप के व्हाइट हाऊस में होने से दुनिया भर में साख को लेकर भी खतरा जताया है। डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व के बयानों से भी पता चलता है कि वे स्वभाव से काफी कट्टर हैं जबकि वैष्विकरण के इस युग में एक देष दूसरे के साथ तेजी से जुड़ रहे हैं और आदान-प्रदान को लेकर गति लाने में व्यस्त हैं साथ ही नियम-कानूनों में नरमी को लेकर भी उत्साहित हैं। यह बात सही है कि जिस गति से आतंक के चलते दुनिया खतरे में आ रही है उसे देखते हुए यह लगता है कि व्हाइट हाऊस में ऐसों के प्रति कठोर निर्णय लेने वाला होना चाहिए। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है आर्थिक उन्नति और प्रगति को ध्यान में रखते हुए विष्व के देष व्यापार और बाजार को लेकर कहीं अधिक पारदर्षी भी होना चाहते हैं साथ ही कमाई भी बढ़ाना चाहते हैं। पहले से चले आ रहे सम्बंधों को संजोए रखना चाहते हैं। डोनाल्ड ट्रंप के मनोभाव को देखते हुए यह स्पश्ट होता है कि वे थोड़े सख्त किस्म के इंसान हैं और आज के प्रवाहषील दुनिया में इतनी सख्तई पचाना थोड़ा मुष्किल तो है। हालांकि यह राश्ट्रपति बनने के पूर्व का कयास है। हो सकता है कि परिस्थितियों के साथ ये चीजें पीछे छूट जायें और डोनाल्ड ट्रंप के राश्ट्रपति होने के बावजूद भारत समेत दुनिया को व्हाइट हाऊस से पहले जैसा ही जुड़ाव देखने को मिले। 
वैसे भी देखा जाय तो लोकतंत्र किसी को बेलगाम नहीं होने देता पर अक्सर भारत और अमेरिका के बीच सम्बंध डेमोक्रेटिक पार्टी से बने राश्ट्रपतियों के साथ बेहतर रहा है मसलन बिल क्लिंटन, बराक ओबामा। दूसरे षब्दों में रिपब्लिकन के साथ उतनी गर्मजोषी नहीं रहती है। बराक ओबामा से जाॅर्ज डब्ल्यू बुष की तुलना करके इसे और गहराई से जांचा-परखा जा सकता है। यह भी सही है कि नवलोक प्रबंध और प्रगति के मामले में अब कोई पीछे नहीं रहना चाहता न ही लोकतंत्र को किसी अनहोनी का षिकार होने देना चाहता है। विष्व के मजबूत लोकतांत्रिक देषों में षुमार भारत और सबसे पुराने लोकतंत्र से युक्त अमेरिका के बीच इन दिनों सम्बंध फलक पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रकार अमेरिका को एक मित्र देष में तब्दील कर दिया है और जिस भांति दोनों एक-दूसरे पर व्यापक विष्वास करते हैं उससे साफ है कि बराक ओबामा के उत्तराधिकारी के रूप में यदि हिलेरी क्लिंटन होती हैं तो भारत को नये सिरे से सम्बंध की रचना नहीं करनी होगी। बिल क्लिंटन के समय से ही हिलेरी क्लिंटन का रवैया भारत के प्रति सकारात्मक रहा है और गाहे-बगाहे भारत से सम्बंध बनाने को प्राथमिकता देती रही हैं। हिलेरी क्लिंटन के होने का मतलब और भी बहुत कुछ लगाया जा सकता है। फिलहाल चुनाव होने में अभी चार महीने हैं और इस बीच क्या कुछ घटता है इसका भी अनुमान लगाना सम्भव होगा। फिलहाल सषक्त देष में मजबूत चुनाव होने के मतलब से सभी वाकिफ हैं। सभी के अपने-अपने संदर्भ और परिप्रेक्ष्य हैं पर अमेरिका के नागरिक किसके लिए व्हाइट हाऊस जाने का पथ चिकना करेंगे ये आने वाले वक्त में पता चलेगा लेकिन यह कम खूबसूरत बात नहीं है कि इस बार व्हाइट हाऊस जाने वालों में एक महिला भी षुमार है जो षेश विष्व के लिए एक अभिप्रेरक प्रजातंत्र की मिसाल भी हो सकती है। 

सुशील कुमार सिंह


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