Thursday, July 14, 2016

सक्रियता ही नहीं, नतीजे भी दिखें

मोदी सरकार की दो साल की सक्रियता से विदेषों में भारतीयों द्वारा रखी गयी अवैध धन में उल्लेखनीय कमी आयी है उक्त कथन वित्त मंत्री अरूण जेटली का है। उन्होंने यह भी स्पश्ट किया है कि जी-20 के देषों द्वारा षुरू की गयी कार्यवाही के साथ-साथ नई तकनीक लागू होने से देष-विदेष में काला धन छुपाना मुष्किल होगा साथ ही स्वतंत्रता से लेकर मोदी सरकार के पहले तक की पूरी पड़ताल भी कर दी जिसमें उनका मानना है कि 1947 से 2014 तक काले धन को लेकर जो भी कदम उठाये गये वे पिछले दो वर्शों की तुलना में नगण्य हैं। वित्त मंत्री का यह ताजा बयान भले ही बड़ी सुर्खियां न बनी हों पर बड़ी घोशणा बना काला धन एक बार फिर उस उत्तर की तलाष में मुखर होता है जिसकी वापसी को लेकर बड़े-बड़े वायदे किये गये थे। इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि मोदी सरकार काले धन के मामले में सक्रिय रही है पर उन वायदों का क्या होगा जो इसकी वापसी को लेकर हुआ था। वित्त मंत्री ने पिछले दो साल की सक्रियता पर टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि काले धन के खुलासे के लिए मोहलत तथा एचएबीसी, इंटरनेषनल कंसोर्टियम आॅफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट तथा पनामा दस्तावेजों के खुलासे के आधार पर कार्यवाही समेत सरकार के सामूहिक प्रयासों से विदेषों में रखे गये काले धन को वापस लाने में मदद मिली। देखा जाय तो काले धन की वापसी का मामला एक अन्तर्राश्ट्रीय समस्या है जबकि सरकार इस मामले में अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर सहयोग, विमर्ष व चर्चा-परिचर्चा तक ही सीमित रह गयी है। हां यह सही है कि जिस प्रकार इस मामले को विगत् दो वर्शों से तूल दिया गया है उसे लेकर काली कमाई करने वालों के लिए बाहर धन भेजना उतना आसान नहीं रहा होगा। 
प्रधानमंत्री मोदी जब सितम्बर, 2013 में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोशित किये गये थे तब उन्होंने कहा था कि जब सत्ता में आयेंगे तो विदेषों में जमा काली कमाई की एक-एक पाई स्वदेष लायेंगे। मई, 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार आयी और काले धन की जांच के लिए एसआईटी का गठन करके इस दिषा में सकारात्मक रूख भी दिखाया गया। जैसा कि वित्त मंत्री ने भी कहा कि मोदी सरकार ने जो पहला निर्णय किया वह उच्चतम न्यायालय के निर्देष को स्वीकार करना तथा दो सेवानिवृत्त न्यायाधीष के साथ एसआईटी का गठन था। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा सरकार तथाकथित कालेधन के मामले में जोर लगाने में पीछे नहीं रही पर आपेक्षित परिणाम अभी कोसों दूर है। जिस अनुपात में काले धन से सम्बन्धित लोगों की लाॅबी कहीं अधिक मजबूत है उसकी तुलना में भारत के पास ठोस रणनीति का अभी भी आभाव दिख रहा है। गौरतलब है कि काले धन की सूची में नेताओं से लेकर नौकरषाहों और पूंजीपति तक हैं। बीते अप्रैेल में पनामा पेपर्स के खुलासे से दुनिया भर में खलबली मची थी जिसमें दुनिया के 140 हस्तियों समेत 500 भारतीयों के नाम षामिल होने की बात कही गयी। जिस प्रकार पनामा पेपर्स लीक के खुलासे से दुनिया के दिग्गज एक कतार में दिखाई दिये उसे देखते हुए यही लगा कि विदेष में पैसा छुपाने वाले लोगों की तादाद भारत समेत दुनिया के हर कोने में है। भले ही सरकार काले धन के मामले में सक्रिय होने की बात कहकर अपनी पीठ थपथपा रही हो पर गम्भीर सवाल यह बना हुआ है कि मौजूदा रणनीति काले धन वापसी के मामले में कितनी कारगर है और यह कब तक मूर्त रूप लेगी। 
दरअसल काले धन वापसी के मामले में कई पेचीदगियां भी हैं जिसे दूर करने के अलावा इसे भारत लाने में अच्छा खासा समय लगेगा। जिस तरह से अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर नियम व कानून हैं उसे देखते हुए इंतजार काफी लम्बा होने वाला है। नवम्बर, 2014 में आॅस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में जी-20 षिखर सम्मेलन के दौरान काले धन के मसले पर प्रधानमंत्री मोदी को बड़ी कूटनीतिक सफलता तब मिली थी जब उनके इस प्रस्ताव को सहमति मिली थी कि सभी देष बिना किसी अतिरिक्त नियम के काले धन के बारे में एक-दूसरे को जानकारी आदान-प्रदान करेंगे। जिस प्रकार का रूख ब्रिस्बेन में देखने को मिला उससे उम्मीदें बढ़ी थी परन्तु कुछ समय बाद स्विस सरकार का ताजा रूख तब देखने को मिला जब उसमें 2018 तक की लक्ष्मण रेखा खींच दी। इससे साफ है कि काले धन को रोषनी में आने में बरसों लगेंगे। एक बात यह भी कि सरकार ने जब काले धन से सम्बन्धित 627 लोगों के नामों का खुलासा किया था जिसमें आधे भारतीय और आधे एनआरआई थे। गौरतलब है कि एनआरआई भारतीय आयकर कानून के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में इनके खातों की जांच नहीं की जा सकती। बड़ा सवाल यह भी रहेगा कि ऐसों के लिए सरकार की क्या रणनीति है। मुद्दा यह भी है कि विदेषों में जमा काला धन पर सरकार सक्रियता ही दिखायगी या वापसी के मार्ग भी खोजेगी। जिस प्रकार काले धन को लेकर चर्चा सुप्ता अवस्था में है उसे देखते हुए प्रतीत होता है कि रणनीतिकार भी इस पर कोई उपजाऊ कदम नहीं उठा पा रहे हैं। दो टूक सच्चाई यह भी है कि इसकी वापसी का मामला चोर दरवाजे से नहीं बल्कि बेहतर सफेद नीति पर निर्भर है। ऐसे में आर्थिक कूटनीति को तुलनात्मक कहीं अधिक बेहतर भी बनाना होगा। एक सच यह भी है कि काले धन के मामले में अभी भी पूरा पक्का अनुमान नहीं लगाया जा सका है कि विभिन्न बैंकों में कितनी राषि जमा है। 
देखा जाय तो विष्व के कई द्वीप ऐसे हैं जिन्हें टैक्स स्वर्ग कहा जाता है। पनामा समेत बहामा, क्रियान  व अन्य कई छोटे द्वीप में तीन से चार कमरों में एक-दो मंजिला मकानों में अन्तर्राश्ट्रीय बैंक खुले हैं जैसे फस्र्ट सिटी काॅरपोरेषन आदि। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि काली कमाई विदेष भेजने के मामले में भारत अव्वल है। अनुमान है कि 70 लाख करोड़ का काला धन केवल स्विस बैंक में जमा है जो फरवरी 2015 में यह जाहिर कर चुका है कि 2018 तक आदान-प्रदान सम्भव नहीं है। दुनिया भर के तमाम देषों में इस धन को आंकड़ों के मुताबिक समझा जाय तो 300 अरब डाॅलर के पार है। कई देषों में बैंकिंग नियम ऐसे हैं मानो वो जान बूझकर काले धन को आमंत्रित करते हों। बारबड़ोस, आईसलैण्ड, मलेषिया, मालदीव, माॅरिषस, फिलीपीन्स आदि दर्जनों देष हैं जो काले धन के षरणगाह बने हुए हैं। विदेष में बेहिसाब जमा धन के टैक्स के मामले में विषेशज्ञ भी यह मानते हैं कि भारतीय कर अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मामले को मजबूती से पेष करने की है। सरकार जिस तरह काले धन के मामले में एक चुनावी जुमला चला था अब वह उसके लिए गले की फांस है पर सक्रियता को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामले में हलचल तो है पर परिणाम का पता नहीं। वित्त मंत्री के हालिया बयान मोदी सरकार के उसी सक्रियता को बेहतर बताने के संदर्भ में देखा जा सकता है पर सच्चाई यह है कि जब तक काले धन की वापसी का मसला पूरी तरह हल नहीं होता तब तक सरकार के लिए इस मामले में जवाबदेही कम नहीं होने वाली। मोदी सरकार यह भली-भांति जानती है कि काले धन को लेकर जनमानस में लोकप्रियता कहीं अधिक है। गांधीवादी नेता अन्ना हजारे से लेकर बाबा रामदेव तक इस मामले में सड़क पर सक्रियता पहले भी दिखा चुके हैं परन्तु बीते दो सालों में अभी जनता का पलटवार काले धन को लेकर सरकार को झेलना नहीं पड़ा न ही जनता इसके विरोध में सड़कों पर उतरी है। इसका ये मतलब नहीं कि ऐसा नहीं होगा। ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस मामले में सक्रियता के साथ नतीजे देने की भी कोषिष करे।

सुशील कुमार सिंह


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