Friday, July 8, 2016

गवर्नेंस के साथ गवर्नमेंट भी मैक्सिमम

बीते 5 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रिपरिशद का दूसरा विस्तार करते हुए बेहद होषियारी से सभी को साधने की कोषिष की। अपने फैसलों से चैकाने वाले मोदी ने इस मामले में भी सबको आष्चर्य में जरूर डाल दिया। खासतौर पर मंत्रियों की तरक्की और छुट्टी के मसले पर तो उन्होंने सारे विष्लेशण को ही दरकिनार कर दिया। साथ ही यह भी सिद्ध कर दिया कि मंत्रिपरिशद में बदलाव के साथ विस्तार को लेकर लगाये जा रहे कयास महज़ अफवाह ही हैं। बदलाव और विस्तार के बाद मोदी टीम की कुछ खास बातें इस अंदाज में बयान की जा सकती हैं। अब मंत्रिपरिशद में 78 मंत्री हो गये हैं। उत्तर प्रदेष में मिर्ज़ापुर के लोकसभा सदस्य 35 वर्शीय अनुप्रिया पटेल मौजूदा मोदी टीम की सबसे युवा मंत्री हो गयी हैं जबकि पहले की भांति 76 वर्शीय नज़मा हेपतुल्ला सबसे बुजुर्ग मंत्री बनी हुई हैं। गौरतलब है कि वर्तमान कैबिनेट की औसत आयु 60 वर्श है जबकि यूपीए-दो की औसत आयु 73 वर्श थी। प्रधानमंत्री मोदी के षुरूआती तेवर से ही यह साफ था कि उनकी मंत्रिपरिशद में षामिल चेहरे उम्रदराज नहीं होंगे। यही कारण है कि लाल कृश्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोषी जैसे बुजुर्ग नेता षुरूआत से ही उनकी कैबिनेट के हिस्से नहीं हैं। देखा जाय तो मंत्रियों की तरक्की और छुट्टी भी इस विस्तार में कौतूहल का विशय रही है। प्रदर्षन के आधार पर रमा षंकर कठेरिया तथा निहालचन्द समेत 5 मंत्रियों की जहां छुट्टी कर दी गयी वहीं विगत् दो वर्शों से चर्चा में रहने वाली स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाकर कपड़ा मंत्रालय दे दिया गया जबकि प्रकाष जावडे़कर की तरक्की करते हुए स्मृति ईरानी के स्थान पर पहुंचा दिया गया। 
मंत्रिपरिशद के बदलाव और विस्तार का परिप्रेक्ष्य कई नेताओं के लिए एक संदेष भी है। षालीनता से काम करने और संसद में बेहतर हाजिरी वालों को तवज्जो दिया गया है। महिलाओं और अल्पसंख्यकों का हिस्सा भी बढ़ा है। सरकार में 10 महिलाएं और 4 अल्पसंख्यक मंत्रियों की स्थिति भी मोदी मंत्रिपरिशद को संतुलित करने में काफी मददगार है। वकील, डाॅक्टर और पीएचडी धारक भी कैबिनेट के हिस्से हैं। दलित और ओबीसी मंत्रियों की भी संख्या कहीं से कम नहीं है। पीएम मोदी के अलावा सरकार में 12 ओबीसी थे जबकि विस्तार के चलते छः नये चेहरों के जुड़ाव से यह संख्या 18 हो गयी है। इसी प्रकार पांच नये दलित चेहरों से इनकी संख्या 8 हो गयी है। इतना ही नहीं इस नये विस्तार ने अनुसूचित जनजाति की भी भागीदारी पांच तक पहुंचा दिया है। स्पश्ट है कि मोदी सरकार वर्ग विन्यास की अवधारणा में भी काफी अच्दा होमवर्क किया है। आने वाले दिनों में आलोचक यदि पक्षपात जैसे आरोपों से सरकार को घेरना चाहें तो ऐसा होता सम्भव दिखाई नहीं देता। कामकाज के तौर पर भी कैबिनेट में जगह बनाने वालों की कमी नहीं है। हालांकि विस्तार से तीन स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री पीयूश गोयल, धर्मेन्द्र प्रधान और निर्मला सीतारमण के साथ-साथ राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और वित्त राज्य मंत्री जैन सिन्हा सहित कईयों को तरक्की मिलने की खूब चर्चा थी और यह तरक्की को लेकर आष्वस्त भी थे पर मामला जस का तस रहा। इससे यह भी संकेत मिलता है कि सीधी और तिरछी दोनों चालों को समझने वाले मोदी उड़ती खबरों पर यकीन नहीं करते और गैरजरूरी तूल को विराम लगाने में भी माहिर हैं। 
सबसे नाजुक और संवेदनषील स्थिति स्मृति ईरानी की है। दो साल पहले जब उन्हें एचआरडी मिनिस्ट्री मिली थी तभी से वो विवादों में आ गयी और मुष्किल कभी घटी हो ऐसा दिखाई देता नहीं है। हालांकि अन्तिम समय में संघ भी स्मृति ईरानी के कार्यों से प्रभावित होता हुआ दिखाई दे रहा था पर मोदी को कुछ और ही दिखाई दे रहा था। स्मृति ईरानी के मंत्री बनने के साथ ही इनकी डिग्री पर विवाद षुरू हो गया, गलत जानकारी देने का आरोप लगाया गया। दरअसल षपथ पत्र भरते समय एक बार इन्होंने बीए की डिग्री लेने की जानकारी तो दूसरी बार बी.काॅम पार्ट-1 की परीक्षा पास होने की सूचना दी जिससे मामला उलझ गया और विरोधियों ने खूब हंगामा काटा। हैदराबाद की केन्द्रीय विष्वविद्यालय एवं जेएनयू में हुए आत्महत्या और विवाद के चलते मोदी सरकार की खूब किरकिरी हुई। इस मामले में भी स्मृति ईरानी पर सवाल उठे और मामला काफी समय तक तूल लिए हुए था। आईआईटी मद्रास में एक दलित छात्रों का समूह अम्बेडकर पेरियार को बैन करने पर भी स्मृति ईरानी की जमकर आलोचना हुई। मामला बिगड़ते देख मंत्रालय को आदेष वापस लेना पड़ा था। इतना ही नहीं आईआईटी कैन्टीन विवाद भी इनके ही हिस्से में आया। यहां मामला षाकाहारी छात्रों के लिए अलग हाॅस्टल बनाये जाने से सम्बंधित था। स्मृति ईरानी का षैक्षणिक संस्थानों से जिस कदर विवाद बढ़ते गये उससे वे तो चर्चे में रही पर सरकार की किरकिरी होती गयी। अलीगढ़ मुस्लिम विष्वविद्यालय को अल्पसंख्यक विष्वविद्यालय के दर्जे को लेकर भी स्मृति विवादों में बनी रहीं। उपरोक्त परिप्रेक्ष्य के अलावा इनका मंत्रालय के साथ बेहतर तालमेल न बिठाना भी मोदी को खटकता रहा। अन्ततः उनकी बिदाई सुनिष्चित हो गयी। गौरतलब है कि स्मृति ईरानी ने केन्द्रीय विष्वविद्यालय हैदराबाद में षोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या पर राज्यसभा में जवाब देते हुए मायावती को चुनौती दी थी कि यदि आप मेरे वक्तव्य से संतुश्ट न हुई तो अपना षीश काटकर आपके चरणों में रख दूंगी। तेज तर्रार छवि रखने की फिराक में स्मृति ईरानी अपनी स्मृति में बाकायदा यह जगह बनाने में नाकामयाब रही कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे संवेदनषील मसले पर उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
फिलहाल मोदी सरकार का बदलाव और विस्तार का महीनों पुरानी कोषिष अंजाम तक पहुंच गयी। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार प्रधानमंत्री समेत मंत्रिपरिशद में 82 सदस्य हो सकते हैं। दरअसल लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या 543 तथा 15 फीसद ही मंत्री बनाये जा सकते हैं। इस आधार पर अभी चार को और स्थान मिल सकता है पर उम्मीद तो 78 की भी नहीं थी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने मई 2014 में ही ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस‘ की बात कही पर मंत्रियों की संख्या देखते हुए लगता है कि इस पर कायम न रह पाना उनके लिए भी सियासी मजबूरी बन गयी है। विगत् दो वर्शों से उत्तराखण्ड की पांचों लोकसभा सीट जीतने वाले भाजपा के हिस्से में एक भी मंत्रालय नहीं था पर इस बार के विस्तार से अजय टम्टा को राज्य मंत्री देकर राज्य में होने वाले चुनाव को साधने की कोषिष की गयी। उत्तर प्रदेष में अनुप्रिया पटेल को भी मंत्रालय में जगह देकर यहां की चार प्रतिषत कुर्मी वोटों को साधने की कोषिष दिखाई देती है। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेष, राजस्थान, समेत दस राज्यों को मंत्रिपरिशद में नेतृत्व देने के साथ सतरंगी सियासत को गढ़ने की कोषिष की गयी है। हालांकि मोदी के मौजूदा मंत्रिमण्डल को संतुलित तौर पर देखा जा सकता है और षायद यह विस्तार का अन्तिम दौर भी सिद्ध होगा पर जिस तेवर के साथ मोदी का कामकाजी स्वभाव है उसे देखते हुए कमजोर और विवादित मंत्री को बदलने की गुंजाइष फिलहाल बरकरार रहेगी। षपथ के बाद प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया कि जष्न खत्म, मंत्री काम षुरू करें। निहित दृश्टिकोण यह भी है कि मोदी की मंत्रिपरिशद तो पुख्ता हुई ही है, भाजपा का चेहरा भी बदलने का अन्र्तनिहित परिप्रेक्ष्य भी देखा जा सकता है। भाजपा पर लगने वाले लांछन भी इस विस्तार में कमजोर होते हुए दिखाई देते हैं। पार्टी की एक वर्ग विषेश की छवि तोड़कर सर्व समाज के हितैशी के रूप में भी स्थापित करने की कोषिष की गयी है। बावजूद इसके जनता तो मोदी के कामकाजी रिपोर्ट से ही संतुश्ट होगी।


सुशील कुमार सिंह


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