Tuesday, May 31, 2016

जागरूक समाज का अर्थशास्त्र

सियासी नफे-नुकसान के बीच जागरूक समाज का एक ऐसा आर्थिक चेहरा भी हो सकता है जिस पर यकीनन षुरूआती दिनों में षायद ही किसी को विष्वास हुआ हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दो वित्त वर्श में रसोई गैस सब्सिडी से 21 हजार करोड़ की बचत सिर्फ इस नाते कर लिया कि उन्होंने समाज को इस बात के लिए उकसा दिया था कि यदि आप सक्षम हैं और सम्भव हो तो अपनी रसोई गैस सब्सिडी को ‘गिव-इट-अप‘ कर सकते हैं। देखा जाए तो देष में 1 अप्रैल, 2015 तक 18.19 करोड़ पंजीकृत एलपीजी उपभोक्ता थे। हांलाकि एलपीजी के लिए प्रत्यक्ष लाभ अन्तरण योजना षुरू होने के पष्चात् यह आंकड़ा 14.85 करोड़ रह गया साफ है कि करोड़़ों डुब्लीकेट और निश्क्रिय उपभोक्ता इससे बाहर कर दिये गये। वर्तमान में एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या निरन्तर इजाफा लिए हुए है। प्रधानमंत्री के एलपीजी सब्सिडी छोड़ने के आह्वान के चलते एक करोड़ से अधिक लोग इस सुविधा को फिलहाल अभी तक त्याग चुके हैं। इस खूबसूरत अभियान के चलते बचने वाली सब्सिडी का इस्तेमाल गिव बैंक अभियान के जरिये गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को नये कनेक्षन देने के लिए किया जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी लाभ हस्तांतरण योजना में षुमार रसोई गैस जागरूक उपभोक्ताओं के चलते इसने अर्थव्यवस्था का एक नया चेहरा ही दिखा दिया जो काफी हद तक मध्यम दर्जे पर टिका है। गौरतलब है कि सालाना 12 सेलेंडर की सब्सिडी सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में डाली जाती है। वित्त वर्श 2014-15 में एलपीजी के लिए 40,551 करोड़ रूपए की सब्सिडी का भुगतान किया गया। जाहिर है कि 2015-16 के वित्त वर्श में भारी मात्रा में ‘गिव-इट-अप‘ के चलते इस मामले में काफी राहत मिली है साथ ही करोड़ों उपभोक्ता के पंजीकृत रद्द होने से भी सब्सिडी में बचत हुई है। इसके अलावा तेल की कीमत भी छः साल के निचले स्तर पर आना राहत में इजाफा करने वाला था। बीते वित्त वर्श के अप्रैल से सितम्बर के बीच यह सब्सिडी खर्च 8,814 करोड़ रूपए ही रहा है। हालांकि इस बारे में कोई अनुमान नहीं है कि कितने एलपीजी उपभोक्ताओं की सालाना कर योग्य आय 10 लाख रूपए या उससे अधिक है। यदि इस मामले में भी सटीक आंकड़े आ गये और सरकार की नीतियां इन्हें सब्सिडी से बाहर करने की हुई तो बचत की दर में और बढ़ोत्तरी हो जायेगी।
देखा जाए तो सरकार ने चुनिन्दा जिलों में रसोई गैस उपभोक्ताओं के बैंक खाते में सीधे सब्सिडी भुगतान की प्रक्रिया नवम्बर, 2014 में षुरू की थी जबकि 1 जनवरी, 2015 से देष के षेश हिस्सों में इसे बाकायदा लागू कर दिया गया। देष में बढ़ती जनसंख्या और रसोई गैस की मांग को देखते हुए सरकार चालू वित्त वर्श में 10 हजार नये एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर बनाने की बात कही है। 1 मई को उत्तर प्रदेष के बलिया जिले से प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की षुरूआत हुई। इसी तरह की एक योजना 15 मई को दाहोद में भी हुआ। इस प्रकार की महत्वाकांक्षी योजना और परियोजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 5 करोड़ परिवारों को एलपीजी कनेक्षन उपलब्ध कराये जायेंगे। इसकी ताकत स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ने वालों से भी मिल रही है। लगभग 8 हजार करोड़ रूपए की इस योजना से कई परिवारों को गैस कनेक्षन के चलते रसोई की समस्या से मुक्ति मिलने वाली है। फिलहाल देष में 18 हजार एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर हैं। जिस गति से प्रधानमंत्री मोदी ने नागरिकों की बुनियादी समस्याओं को हल करने की कोषिष में लगे हैं उसे देखते हुए स्पश्ट है कि सरकार लोगों का भरोसा जीतने में काफी कारगर भूमिका में है। प्रधानमंत्री मोदी एलपीजी छोड़ने वाले उपभोक्ताओं को एक करोड़ की संख्या होने पर धन्यवाद भी दिया है। साथ ही उम्मीद कर रहे होंगे कि गिव-इट-अप का यह अभियान कई करोड़ में बदलेगा। भारयुक्त संदर्भ यह भी है कि मौजूदा एनडीए सरकार कई अहम फैसलों के तहत एलपीजी को लेकर संजीदा दिखाई देती है। जिस प्रकार रसोई गैस के मामले में सरकार की योजना है उसे देखते हुए साफ है कि इस मामले में मोदी सरकार होमवर्क काफी पुख्ता है। 
भारत में सामाजिक-आर्थिक बदलाव में सरकार की ओर से दी गयी सुविधाएं नागरिकों के बुनियादी समस्याओं को हल करने के काम आती रही हैं। यह पहला अवसर है जब सरकार सब्सिडी को स्वेच्छा से वापस करने को लेकर किसी प्रधानमंत्री ने समाचार पत्रों एवं टेलीविजन के माध्यम से या अपने चुनावी भाशणों में इसका प्रचार-प्रसार किया हो और जनता पर इतना बड़ा असर हुआ हो। सब्सिडी को आम तौर पर नागरिक अपना हक समझते हैं जबकि इस बात की षायद कभी भी व्याख्या हुई हो कि सक्षम के सब्सिडी छोड़ने से गरीब को एलपीजी कनेक्षन उपलब्ध होगा। भारत गांवों का देष है। किसानों से जुड़े अनेक वस्तुओं पर सब्सिडी की बात होती रही है और इसे लेकर निर्भरता भी कमोबेष बढ़ी ही है। देष में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और उर्वरक आदि पर सब्सिडी का चलन हमेषा से रहा है। हज सब्सिडी भी प्रचलन में है। हालांकि कुछ वर्शों से इस तरह की सब्सिडी पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं और समाप्त करने की बात भी हो रही है। भारत में सब्सिडी बिल बहुत बड़ा है। वित्त वर्श 2014-15 में तो यह कुल जीडीपी का दो फीसदी रहा। हालांकि सरकार ने 2015-16 के लिए गत वर्श की तुलना में 10 प्रतिषत इसे कम किया है। बावजूद इसके अभी भी खाद्य सब्सिडी, उर्वरक सब्सिडी, पेट्रोलियम सब्सिडी सहित कई क्षेत्रों में बहुत बड़ी राषि खर्च की जाती है। 
ध्यान्तव्य यह भी है कि देष की सवा अरब आबादी में बैंक खाताधारकों की संख्या भी मात्रात्मक बहुत कम थी पर अगस्त, 2014 की जन-धन योजना के षुरूआत के चलते यह भी उम्मीद से अधिक प्रगति प्राप्त कर ली है। अन्तिम आंकड़े तक इस योजना के तहत लगभग 22 करोड़ नये खाते खोले जा चुके हैं जबकि इसमें जमा होने वाली राषि 37 हजार करोड़ से अधिक है। इतने कम समय में भारी पैमाने पर खाता खुलना भी इस योजना का पुख्ता नियोजन माना जा रहा है। इसके चलते न केवल रसोई गैस सब्सिडी हस्तांतरण में मदद मिल रही है बल्कि बैंकिंग व्यवस्था से दूर खड़े व्यक्ति को इसके समीप लाकर बदलाव की ओर धकेलने की कोषिष भी की गयी है। अभी भी देष की पूरी आबादी में 21 करोड़ के पास ही आधार कार्ड हैं जबकि कैष ट्रांसफर आधार कार्ड के आधार पर ही होना है। जन-धन योजना की व्यापक प्रगति के बावजूद अभी भी ज्यादातर गरीबों के बैंक खाते नहीं हैं। कई पिछड़े इलाकों में बैंक तक नहीं हैं। इन सभी को चुस्त-दुरूस्त बनाने के लिए अभी कई काम करने बाकी हैं। फिलहाल जिस प्रकार सरकार ने एलपीजी, कैरोसिन की सब्सिडी राषि, पेंषन और छात्रवृत्ति की रकम और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचाने के प्रयास में है। उसे देखते हुए जनधन योजना सहित आधार कार्ड के मामले में और तेजी लाने की जरूरत होगी। इस प्रकार के कार्यक्रमों के चलते केन्द्र से चलने वाला सौ का सौ पैसा लाभार्थियों के खाते में ही गिरेगा। इसमें बिचैलिये कोई हेराफेरी नहीं कर सकते हैं। सात दषकों से लालफीताषाही और भ्रश्टाचार से लिप्त देष और उससे प्रभावित लोग ऐसी समस्याओं से निजात भी पायेंगे पर यह पूरी तरह तभी सफल होगा जब इस पर लगाई गयी लगाम पर कोई समझौता न हो। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी न खाऊंगा, न खाने दूंगा की तर्ज पर काम कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर उम्मीद रखने से गुरेज नहीं किया जा सकता।
सुशील कुमार सिंह


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