Monday, May 23, 2016

हांफते शहर, बढ़ती आबादी

मई की 18 तारीख को संयुक्त राश्ट्र की एक रिपोर्ट से परिचित होने का अवसर मिला जिसका षरीर और ढांचा भारत कह षहरी जनसंख्या से सम्बन्धित था। रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि भारत की षहरी आबादी 2050 तक 30 करोड़ और बढ़ जायेगी। हालांकि यह कोई अप्रत्याषित आंकड़ा नहीं है क्योंकि भारत समेत पूरा वैष्विक जगत षहरी आबादी की ओर तेजी से रूपांतरित हो रहा है। हां यह बात और है कि कई देषों की गति इस मामले में धीमी है। भारत के संदर्भ में यह बात इसलिए अधिक गम्भीर है क्योंकि यहां पहले से ही जनघनत्व की अधिकता के चलते अनेक षहर चरमरा रहे हैं। ऐसे में इतनी बड़ी जनसंख्या का आगामी वर्शों में समावेषन का होना कई विकट समस्याओं के होने का संकेत है। देखा जाए तो बीते कई दषकों से देष जनसंख्या विस्फोट की समस्या से जूझ रहा है। तमाम कोषिषों के बावजूद अभी भी इस समस्या से उबरना सम्भव नहीं हो पाया है। यद्यपि भारत दुनिया का पहला ऐसा देष है जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी पर यह आषानुरूप नहीं रही। राश्ट्रीय जनसंख्या आयोग के इस कथन को भी इस मामले में उचित करार दिया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण का मामला केवल लोगों की इच्छा के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता अतः जनसंख्या नीति पर पुर्नविचार करना चाहिए। फिलहाल जनसंख्या विस्फोट की मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए पुरानी पड़ गई जनसंख्या नीति को भी रफ्तार देने की कवायद की जानी चाहिए। तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य यह भी है कि वर्श 1951 में 36 करोड़ की जनसंख्या वाला भारत 2011 की जनगणना तक 121 करोड़ तक पहुंच चुका था। बीते एक दषक यानी 2001 से 2011 के बीच जनसंख्या में लगभग 18 करोड़ की वृद्धि देखी जा सकती है। मौजूदा स्थिति में भी प्रतिवर्श यह वृद्धि दर डेढ़ करोड़ से अधिक की बनी हुई है। जाहिर है कि अगली जनगणना तक 15 से 20 करोड़ की जनसंख्या और बढ़ जायेगी। ऐसे में देष की बुनियादी आवष्यकताओं और समस्याओं को लेकर सरकारों को नये सिरे से होमवर्क भी करना होगा। अनुमान तो यह भी है कि आने वाले कुछ ही वर्शों में भारत चीन को पछाड़ते हुए दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देष बन जायेगा जो कहीं से हितकारी तो नहीं है।
जनसंख्या विस्फोट का प्रभाव बहुआयामी होता है इससे षहरी आबादी की बढ़ोत्तरी समेत कई अनगिनत समस्याएं भी पैदा होती हैं। वर्श 1951 में स्वतंत्रता के बाद हुई पहली जनगणना में कुल षहरी आबादी 15 फीसदी से भी कम थी जबकि 2011 तक यह 31े फीसदी तक पहुंच गयी है। जिस प्रकार षहरों का विकास और षहरी जनघनत्व में दिन-प्रतिदिन की औसत से इजाफा हो रहा है उसे देखते हुए अनुमान लगाना सही है कि गांव और कस्बों की आबादी से अधिक आने वाले दिनों में षहरी आबादी होगी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने भी आगामी तीन दषक में षहरी आबादी को 60 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया है। जाहिर है कि आने वाले 25 वर्शों में 30 करोड़ की आबादी षहरों में जब समायेगी जैसा कि संयुक्त राश्ट्र की रिपोर्ट में भी कहा गया है और सूरत भी कुछ इसी प्रकार की दिखाई दे रही है तब की स्थिति में हालात बद-से-बद्तर होंगे यदि इसके बुनियादी तथ्यों से अनभिज्ञ रहे तो। इसके लिए सरकार को नये सिरे से बुनियादी और व्यावहारिक दोनों तथ्यों पर जमीनी हकीकत से जूझना भी पड़ेगा। निष्चित रूप से यह तथ्य और पक्ष सटीक है कि भारत की बहुतायत समस्याएं जनसंख्या विस्फोट के चलते पनपी हैं और जिस रूप में गांवों से नई आर्थिक सोच के तहत षहरों की ओर पलायन हो रहा है। उसे रोक पाने में तो नाकामी हाथ लगी ही है। बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर केवल स्मार्ट षहरों तक ही सरकार को सीमित नहीं रहना होगा बल्कि नई रणनीति के साथ बुनियादी संसाधनों से भी दो-चार होना पड़ेगा। हाल ही में देखा गया है कि महाराश्ट्र के लातूर में ट्रेन की बोगियों में पानी भर कर जल पहुंचाने का काम किया गया। यह समस्या की एक बानगी मात्र है। यदि हालात नियंत्रण में नहीं रहे तो ऐसी समस्याएं भविश्य में आम हो जायेंगी।
अभी भी देष के षहरों में दो करोड़ से अधिक मकानों की कमी है। मोदी सरकार 2022 तक मकान बनाने का वायदा कर चुकी है पर वास्तव में इसकी पूर्ति कितनी हो पायेगी यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। कृशि संसाधन भी जनसंख्या के अनुपात में सूखे और बाढ़ तथा बेमौसम बारिष के चलते और मौसम की बेरूखी के कारण उछाल पर नहीं हैं। जाहिर है ऐसे में खाद्यान्न समस्या भी पीछा करेगी। एक अनुमान तो यह भी है कि 10 अरब की जनसंख्या तक का ही संसाधन पालन पोशण के लिए पृथ्वी पर हर सूरत में उपलब्ध हो सकता है। मौजूदा स्थिति में दुनिया 7.5 अरब की है। जाहिर है कि ढ़ाई अरब की जनसंख्या के बाद यह षक पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा कि गुंजाइषें और भी हैं। दुनिया का षायद ही कोई देष हो जहां षहरी और ग्रामीण व्यवस्थाएं न पाई जाती हों। भारत गांवों का देष है और अभी भी यहां षहर की तुलना में आबादी अधिक है। बंग्लादेष, पाकिस्तान समेत भारत जैसे बड़े दक्षिण एषियाई देष अपने बड़े षहरों में षहरी आबादी का विस्तार कर रहे हैं साथ ही दूसरे दर्जे के षहरों की आबादी भी बढ़ा रहे हैं। ऐसी स्थिति में देष में जलवायु अनुकूल षहरों के विकास की आवष्यकता होगी। दुनिया के षहरों पर संयुक्त राश्ट्र परिवास ने पहली रिपोर्ट वल्र्ड सिटीज़ रिपोर्ट-2016 (अर्बनाइजेषन एण्ड डवलेप्मेंट) अमेर्जिंग फ्यूचर में कहा है कि भारत में सकल घरेलू उत्पाद में षहरी क्षेत्रों का योगदान 60 फीसदी से अधिक है। गौरतलब है कि जब षहरों में बेतहाषा जन दबाव बढ़ेगा और कमाने वालों की संख्या भी बढ़ेगी तो कुल जीडीपी का आधे से अधिक होना कोई हैरत की बात नहीं है। 
संयुक्त राश्ट्र मानव बस्ती कार्यक्रम रपट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैस का जलवायु परिवर्तन पर असर होगा। जाहिर है कि दुनिया के सामने दो पेंच हैं पहला यह कि समानांतर संसाधन के संसार में गुणोत्तर वृद्धि दर लिये जनसंख्या को बुनियादी आवष्यकताएं कैसी पूरी की जायेंगी। दूसरा, लगातार पृथ्वी से प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से समाप्ति की ओर होना मसलन जल, वन, जैव विविधताएं आदि। कम ऊर्जा में कैसे काम चले साथ ही परिवहन, बिजली संचार, जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसे बुनियादी ढांचे के लिए धन की व्यवस्था भी मुख्य समस्याओं में षुमार है। औद्योगिकरण के चलते सैकड़ों वर्शों से रिस रही समस्याएं अब कहीं अधिक प्रवाह ले चुकी हैं। बीते तीन दषक से पृथ्वी को बचाने को लेकर जो कोषिषें हो रही हैं उसमें भी काफी बेईमानी भरी हुई है। विकसित और विकासषील देषों के बीच भी कार्बन उत्सर्जन कटौती को लेकर कोई खास प्रगति नहीं दिखाई देती। सदियों से सभ्यता यह विवेचना करने पर मजबूर करती रही है कि तकनीक की बैसाखी पर खड़े षहरों में आकर्शण तो बहुत होता है परन्तु जमीनी सच्चाई यह है कि हांफते षहर सजग जीवन देने में षायद ही सक्षम हों। यही कारण है कि कितने भी लोक लुभावन से युक्त षहर क्यों न हों पर गांव से बेहतर प्रकृति के रचनाकार होने का दम्भ इनमें नहीं है। आदिकाल में जो मानव पाता और दाता के सम्बंधों से युक्त था वर्तमान में वो विध्वंसक की श्रेणी में है। तथाकथित परिप्रेक्ष्य में दो टूक यह भी है कि षहर की संख्या और जनसंख्या दोनों आने वाले दिनों में वृद्धि करेगी पर जीवन मूल्य का हा्रस नहीं होगा इसे लेकर निष्चिन्त नहीं हुआ जा सकता। 
सुशील कुमार सिंह


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