Tuesday, May 31, 2016

बात तभी सम्भव, जब आतंक रुके

इस तथ्य को गैरवाजिब नहीं कहा जा सकता कि विगत् दो वर्शों के षासनकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को अन्तर्राश्ट्रीय ऊँचाई देने के साथ-साथ पड़ोसी पाकिस्तान से भी सम्बंध सुधारने की हर सम्भव कोषिष की ऐसे में भारत वैष्विक स्तर पर प्रखर तो हुआ पर पाक के मामले में सम्बंध इकाई से षुरू होकर इकाई तक ही रह गये। षायद यही कारण है कि पाक के प्रति सकारात्मक और नरम राय रखने वाले मोदी उससे रिष्ता कायम करने की बात तभी सम्भव बता रहे हैं जब वह आतंक को रोके। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 27 मई को पाकिस्तान के साथ षान्ति बहाली पर अपनी नीति साफ करते हुए कहा कि ऐसी कोई पहल दोतरफा ही हो सकती है इसलिए पाकिस्तान को पहले आतंकवाद पर दामन साफ करना होगा। उन बाधाओं को हटाना होगा जो उसने स्वयं खड़ी की हैं। मोदी ने यह भी कहा कि पाक आतंकवाद पर हर स्तर पर समर्थन देना बंद करे और इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। उनका यह भी मानना है कि पाक आतंकी हमलों की साजिष रचने वालों पर प्रभावषाली कार्यवाही करने में विफल रहा है। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आपस में संघर्श के बजाय दोनों देषों को गरीबी से लड़ना चाहिए। ऐसा षायद पहली बार हुआ होगा जब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को लेकर इतनी कठोर और चुभने वाली बात कही है।
मोदी भी जानते हैं कि विगत् दो वर्श के कार्यकाल में कई अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से जुगलबन्दी करने की कोषिष की गयी। काठमाण्डू के सार्क सम्मेलन से पटरी से उतरी बात को रूस के उफा के रास्ते संभालने की कोषिष की गयी पर पाक के पलटी मारने से मामला खटाई में ही रहा। नवम्बर, 2015 में पेरिस में षरीफ के साथ क्षण भर की गुफ्तगू और तत्पष्चात् विदेष मंत्री सुशमा स्वराज की दिसम्बर के पहले पखवाड़े में इस्लामाबाद की यात्रा मोदी की पाक के प्रति अच्छे सम्बंध निर्माण की कवायद ही थी इतना ही नहीं 25 दिसम्बर, 2015 को स्वयं औचक्क लाहौर की यात्रा इस बात का संकेत था कि भारत पाकिस्तान से सम्बंधों को लेकर संवेदनषील हैं। लेकिन 2 जनवरी, 2016 में पठानकोट पर आतंकी हमला और मार्च के अन्तिम सप्ताह में पाकिस्तान की संयुक्त जांच कमेटी का इस मामले भारत आना मगर भारत की एनआईए को पाकिस्तान में प्रवेष न देने की हिमाकत करते हुए वादा खिलाफी के साथ कष्मीर के रास्ते एक बार फिर उसने दोगलापन दिखाया जबकि पठानकोट के हमलावर पाकिस्तानी नागरिक थे इसका पुख्ता सबूत भारत ने पाकिस्तान को पहले ही दे दिया था। हालांकि मुम्बई मामले में भी सबूत देने के बावजूद एक भी कदम पाकिस्तान ने नहीं बढ़ाया था।
मोदी ने पाकिस्तान को सम्बंध बेहतर करने के कई अवसर दिये पर वह कान में तेल डालकर सोता रहा और घेरने की स्थिति में आतंक के बजाय कष्मीर का राग अलापता है। बीते अप्रैल में पाकिस्तान ने कष्मीर मसले का हवाला देते हुए भारत के साथ षान्ति प्रक्रिया को स्थगित करने की बात कही। साफ था कि पाकिस्तान बरसों से भारत के भरोसे को तोड़ने के क्रम में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता। पहले कष्मीर और अब आतंक के कारण ही भारत और पाक के रिष्ते पटरी पर नहीं आ रहे हैं। देखा जाए तो दोनों देषों के बीच कड़वाहट उतनी पुरानी है जितनी की देष की स्वतंत्रता मगर इसके पीछे मूल वजह कष्मीर समस्या ही रही है। समस्याओं ने समय के साथ करवट ली और कष्मीर की घाटियां पाक समर्थित और आयातित आतंक से पट गयीं जिसकी सूरते हाल में भारत को दषकों से कीमत चुकानी पड़ रही है। बीते दिनों अखबारों एवं टेलीविजन, मीडिया के माध्यम से इस बात पर बहुत कुछ छापा भी गया और कहा भी गया कि दो वर्श पुरानी नरेन्द्र मोदी की सरकार की क्या उपलब्धियां रहीं और क्या खामियां। अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर भारत को बुलन्दी देने के मामले में प्रधानमंत्री मोदी को डिस्टिंक्षन माक्र्स से पास होते हुए देखा जा सकता है। भारत-पाकिस्तान के रिष्तों के मामले में उनका रवैया काफी उदार और सहयोगी रूप लिए हुए था पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ ने कई वादा-खिलाफी के साथ मिलाजुला कर अपना रवैया वैसा ही रखा जैसे कमोबेष पाकिस्तान रखता आया है।
 26 मई, 2014 को तमाम पड़ोसी देषों का मोदी के षपथ के दिन देष की राजधानी में जमावड़ा लगा था जिसमें नवाज़ षरीफ भी उसी मान के साथ भारत बुलाये गये थे पर सम्बंधों को सकारात्मक दिषा देने में षरीफ, उतने षरीफ सिद्ध नहीं हुए। वैसे देखा जाए तो वैष्विक फलक पर भारत अपनी सकारात्मक छवि के लिए ऊंचाईयां छू रहा है तो पड़ोसी पाकिस्तान अपने घटिया करतूतों के चलते उसी वैष्विक पटल पर अनचाही लोकप्रियता बटोर रहा है। आतंक को मजबूत आधार देने वाले पाकिस्तान ने भारत में कहीं अधिक सच्चे मन से आतंकवाद की रोपाई भी की है। यही आतंकवाद दोनों देषों के बीच के सम्बंधों को दरकिनार कर रहा है जिसकी चिंता प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्य में देखी जा सकती है। गौरतलब है कि पाक की आतंकी गतिविधियों से भारत दषकों से कराह रहा है। अब तो दुनिया भर के तमाम देष इसकी पीड़ा भोग रहे हैं। विगत् दो वर्शों में जहां भी और जिस भी देष का दौरा मोदी ने किया आतंकवाद का जिक्र किये बगैर यात्रा का समापन नहीं हुआ है पर क्या इस दिषा में रणनीतिक कदम वैष्विक स्तर पर उठे हैं षायद हां में जवाब पूरी तरह सम्भव नहीं है। मोदी संयुक्त राश्ट्र को यह भी मषविरा दे चुके हैं कि वे पहले आतंक की परिभाशा तो सुनिष्चित करें। जिस कदर आतंक ने विगत् कुछ वर्शों में चैतरफा विस्तार लिया है साफ है कि बहुत कम समय में मुट्ठी भर आतंकियों का ग्लोबलाइजेषन हो गया है।
जी-20 षिखर बैठक से लेकर पेरिस के जलवायु सम्मेलन तक चाहे प्रधानमंत्री मोदी ने आतंक पर अपना मन्तव्य जरूर रखा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्शों में दुनिया में इस्लाम के नाम पर संगठित किये जा रहे आतंकी संगठनों की बाढ़ आई है। अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या 100 हो सकती है। संयुक्त अरब अमीरात ने 83 ऐसे संगठनों की सूची जारी की थी जबकि इसके पूर्व अमरीका भी ऐसा कर चुका है। वैष्विक परिप्रेक्ष्य में आंकड़े भी बताते हैं कि बीते 15 सालों में आतंक के चलते मारे जाने वाले लोगों की संख्या में 15 गुना की बढ़ोत्तरी हुई है और आतंकी जिस प्रकार विस्तार ले रहे हैं यह भविश्य में और भी भयावह हो सकता है। जो देष आतंकियों को पनपने और पनाह देने में समर्पण दिखा रहे हैं वे भूल गये हैं कि इनके पलटवार से वे भी सुरक्षित नहीं है पाकिस्तान इसका पुख्ता सबूत है कि अब उसी के आतंकी उस पर ही पलटवार कर रहे हैं। ब्लूचिस्तान के आर्मी स्कूल तथा बाचा विष्वविद्यालय इसका उदाहरण है। भारत में 2012 से 2013 के बीच आतंकवाद में 70 फीसदी की वृद्धि हुई है। आईएस इन दिनों सारी दुनिया में पहला ऐसा आतंकी संगठन है जो अपने लिए एक अलग राश्ट्र स्थापित करने में कामयाब हो रहा है। ग्लोबल टेरारिज्म इंडैक्स, 2015 से यह भी पता चलता है कि वर्श 2014 में 14 हजार आतंकी वारदातें दुनिया भर में हुई जो पिछले साल की तुलना में 35 फीसदी अधिक है और वर्तमान में इसी गति कम नहीं हुई है। वैष्विक पटल को खंगाला जाए तो आतंकी मुट्ठी भर मिलेंगे पर इनका साम्राज्य जिस तरह रूप ले रहा है मानों ग्लोबलाइजेषन की ओर बढ़ रहे हों। जबकि यह साफ हो चुका है कि आतंक एक वैष्विक समस्या है फिर भी रणनीति के मामले में छोटे से लेकर बड़े देष सधा हुआ कदम उठाने में कामयाब नहीं रहे हैं। 


सुशील कुमार सिंह


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