Monday, March 14, 2016

बजट सत्र के पटल पर फिर जीएसटी

मोदी सरकार द्वारा ‘गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स‘ (जीएसटी) को लेकर एक बड़ा कदम 2014 के षीत सत्र से ही देखा जा सकता है। केन्द्र सरकार द्वारा तत्कालीन षीत सत्र में जीएसटी विधेयक को लोकसभा में पेष भी कर दिया गया था परन्तु सत्र पर सत्र बीतते गये और मामला जस का तस बना रहा जबकि 1 अप्रैल, 2016 से इसे लागू करने की बात प्रधानमंत्री मोदी बहुत पहले कह चुके हैं। यह विधेयक जितना सुर्खियां बटोर चुका है षायद ही कोई विधेयक इतनी चर्चे में रहा हो। अर्थविज्ञान को समझने वाले तमाम विचारकों के लिए भी यह रोचक तथ्य है कि जीएसटी को लेकर स्थिति अब तक स्पश्ट क्यों नहीं हो पाई? वित्त मंत्री अरूण जेटली को उम्मीद है कि जीएसटी इस चालू बजट सत्र के 20 अप्रैल से षुरू होने वाले दूसरे भाग में पारित हो जायेगा। इसी में उन्होंने दीवाला विधेयक भी पास होने की उम्मीद जताई है। पड़ताल बताती है कि जीएसटी पर पहला विचार 2006-07 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा रखा गया था। इस लिहाज़ से यूपीए सरकार के माध्यम से यह दृश्टिकोण पनपा था जिसे 1 अप्रैल, 2010 में लागू किये जाने का प्रस्ताव भी था परन्तु लोकसभा के कार्यकाल समाप्ति के चलते विधेयक निरस्त हो गया। ऐसे में नये विधेयक की कवायद पुनः विकसित होना स्वाभाविक था जिसे लेकर केन्द्र और राज्य के बीच वर्शों पूर्व सहमति भी बनी थी हालांकि राज्य सहमति की राह पर पूरी तरह चलते हुए नहीं दिखायी दे रहे हैं।
असल में जीएसटी एक एकीकृत कर व्यवस्था है जो केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय निकायों के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न न होकर समाकलित होगी। भारतीय संविधान के अन्तर्गत कर लगाने एवं वसूलने का प्रावधान इसमें देखा जा सकता है। संविधान में केन्द्र-राज्यों के बीच तीन सम्बन्धों की चर्चा है जिसमें एक वित्तीय सम्बन्ध है। राज्यों की यह षिकायत रही है कि वित्तीय आवंटन के मामले में केन्द्र हमेषा निराष करता रहा है। केन्द्र स्तर पर जहां केन्द्रीय एक्साईज़ ड्यूटी, सेवा कर, अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी आदि षामिल हैं वहीं राज्य द्वारा वैट, मनोरंजन एवं बिक्री कर सहित दर्जनों अप्रत्यक्ष कर लगाये एवं वसूले जाते हैं परन्तु कर व्यवस्था में दरों को लेकर एकरूपता का आभाव है। दरअसल जीएसटी अप्रत्यक्ष करों की एक ऐसी विधा है जिसके माध्यम से केन्द्र और राज्यों के बीच बंटे करों में एक एकीकृत मानक विकसित किये जायेगें जिसके अनेक फायदे हैं। ‘नेषनल काउंसिल आॅफ अप्लाइड इकनाॅमिक रिसर्च‘ के मुताबित इसके लागू होने के पष्चात् जीडीपी में 0.9 से 1.7 तक इजाफा किया जा सकता है। यदि ऐसा सम्भव है तो यह भारत की वर्तमान जीडीपी के मुकाबले 15 से 25 प्रतिषत की विकास दर को बढ़ाने में कामयाब होगा। मोदी सरकार जीएसटी से देष की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के आत्मविष्वास से भी भरी है पर कांग्रेस जैसे मुख्य विरोधियों के चलते यह मूर्त रूप नहीं ले पा रही है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जीएसटी के पक्ष में अपना मन्तव्य दे चुके हैं।
देष के आर्थिक एवं वित्तीय सुधार की दिषा में कर ढांचे में किये जा रहे परिवर्तन का यह व्यापक फेर-बदल आर्थिक क्षेत्र के सभी विभागों पर असर डालेगा। जीएसटी एक बड़े मुनाफे वाली आर्थिक विचारधारा एवं भविश्य के सपने से युक्त है पिछले नौ वर्शों से यह सुधार की कवायद के चलते सुर्खियों में रहा है परन्तु राज्यों में इसे लेकर मतभेद बना रहा। फलस्वरूप इसके लाभ से देष की अर्थव्यवस्था अब तक वंचित रही। जबकि जीएसटी लागू होने से जहां एक ओर टैक्स प्रणाली में समानता आएगी वहीं टैक्स से संबंधित विवाद भी कमोबेष कम होंगे। इसके अलावा बहुत सारे टैक्स कानूनों या प्राधिकृत इकाईयों की भी आवष्यकता नहीं पड़ेगी। सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्साईज़ ड्यूटी इत्यादि सहित तमाम टैक्सों से मुक्ति मिलेगी। टैक्स चोरी पर भी अंकुष लगेगा साथ ही संचित निधि में राषि की बढ़ोत्तरी भी होगी। बड़ा लाभ यह है कि जीएसटी लागू होने से पूरे देष में एक दर पर टैक्स लगेगा। ऐसा अनुमान है कि इसमें लगने वाली अधिकतम टैक्स दर 16 फीसदी हो सकती है। लगातार पांच सत्रों से जीएसटी को लेकर विरोधियों के चलते सरकार नाउम्मीद होती रही है। 2014 के षीत सत्र में ही लगा था कि यह विधेयक कानूनी रूप ले लेगा परन्तु 2015 का सत्र भी बीत गया और मामला ढाक के तीन पात ही रहा। चालू बजट सत्र में उम्मीद है कि जीएसटी कानूनी रूप में आ जायेगा परन्तु ऐसा होने के बाद ही कुछ कहना सही होगा।
दरअसल जीएसटी लागू होने से देष की टैक्स व्यवस्था में यह सबसे बड़ा सुधार भी होगा परन्तु विष्लेशणात्मक पहलू यह भी है कि तमाम फायदों के बावजूद क्या यह टैक्स व्यवस्था पूरी तरह चिंतामुक्त होगी? बड़ा सवाल यह है कि ‘टैक्स स्लैब‘ क्या होगा? इससे होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा? केन्द्र और राज्य के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर क्या विवाद खत्म हो जायेंगे? हालांकि केन्द्र सरकार ने यह कहा है कि इसके आने के बाद राज्यों को जीएसटी पर होने वाले घाटे पर पांच साल तक क्षतिपूर्ति मिलेगी। षुरूआती तीन साल पर षत् प्रतिषत, चैथे साल 75 प्रतिषत और पांचवें साल 50 फीसदी क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया है। जीएसटी काउंसिल में राज्यों के दो-तिहाई जबकि केन्द्र के एक-तिहाई सदस्य होंगे। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि कुछ राज्यों को ऐन्ट्री टैक्स, परचेज़ टैक्स तथा कुछ अन्य तरह के करों से जो घाटे होंगे उसकी भरपाई के लिए दो वर्शों के लिए 1 फीसदी के अतिरिक्त कर का प्रावधान किया गया है। बहरहाल आर्थिक सुधार की दिषा में महत्वपूर्ण समझे जाने वाले इस विधेयक पर सरकार ने सहमति बनाने के उद्देष्य से राज्यों के साथ हुये समझौते में पैट्रोलियम पदार्थों को तीन साल तक जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया है।
दरअसल केन्द्र सरकार यह चाहती है कि टैक्स के मामले में राज्यों में व्याप्त मतभेद को भी खत्म किया जाय जिसके चलते कुछ आर्थिक प्रलोभन का भी इंतजाम देखा जा सकता है। जबकि सच यह है कि राज्यों को मनमर्जी से टैक्स वसूलने की छूट खत्म होने का भी डर है। टैक्स बढ़ाने या घटाने में कौन फैसला लेगा इसको लेकर भी राज्य संदेह में है। उस भांति मुआवज़ा नहीं मिला जैसा कहा जा रहा है तब क्या होगा? असल में यह दो सरकारों के बीच में की जाने वाली टैक्स संविदा है जबकि टैक्स चुकाने का काम तो आखिरकार जनता के ही जिम्मे होगा। राजकोशीय घाटे एवं बजटीय घाटों के चलते सरकारें विकास के मामले में अक्सर आलोचना झेलती रही हैं। जीएसटी के कारण राजकोशीय घाटों को काफी हद तक पाटा जा सकता है और संचित निधि को नकदी से भरा जा सकता है जिसके फलस्वरूप सरकार जनविकास के बड़े वादों को पूरा करने में अपना दम भर सकेगी परन्तु यह समझना अभी बाकी है कि जीएसटी केवल फायदे का ही विशय है या इसका कोई ‘अतिरिक्त असर‘ भी है। बहरहाल आर्थिक दिषा के सुधार में महत्वपूर्ण समझे जा रहे इस विधेयक को फलक पर लाने की आवष्यकता है। अब तक की स्थिति को देखें तो वास्तव में यह मोदी सरकार के लिए एक सिरदर्दी भी बना हुआ है पर इससे न केवल केन्द्र और राज्य के बीच के वित्तीय अनबन में व्यापक सकारात्मक बदलाव आयेगा बल्कि विकास के मामलों में भी यह कारगर सिद्ध होगा। जीएसटी की एक खासियत यह है कि यह भारतीय संघीय ढांचे को कहीं अधिक मजबूती प्रदान करने की क्षमता से भी युक्त है।


सुशील कुमार सिंह

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