Monday, March 21, 2016

सियासी भंवर में उत्तराखण्ड

बीते 18 मार्च को उत्तराखण्ड की विधानसभा में हरीष रावत सरकार की सियासी जमीन उस समय दरक गई जब विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग हुई। हालांकि स्पीकर ने इसे ध्वनिमत से पारित करार देते हुए आगामी 28 मार्च तक के लिए सदन को स्थगित कर दिया। पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड की बिगड़े राजनीतिक हालात को देखें तो सियासत का जो त्रिकोण यहां पर निर्मित हुआ ऐसा देष में कम ही देखने को मिलता है। पिछले 15 सालों के इतिहास में कांग्रेस के ही नारायण दत्त तिवारी सरकार को छोड़ दिया जाए तो कोई भी व्यक्ति पांच वर्श तक यहां की सत्ता हांकने में कामयाब नहीं हो पाया है। यहां के मौजूदा बजट सत्र में बीते दिन उठा बड़ा सियासी बवंडर से संकेत मिलता है कि हरीष रावत की दो वर्श पुरानी सरकार फिलहाल बाकी के कार्यकाल को लेकर संदेह से घिर गयी है। इनके पहले सत्ता हांकने वाले कांग्रेस के ही पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा एवं मौजूदा सरकार के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत समेत नौ विधायकों ने अपनी ही सरकार के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। विजय बहुगुणा और हरीष रावत के कार्यकाल के दौरान मंत्री रहे हरक सिंह रावत ने सरकार पर संगीन आरोप लगाते हुए बगावत का बिगुल फूंका। मामला इस कदर तमतमा गया था कि विधानसभा थोड़ी देर के लिए रणक्षेत्र में भी तब्दील हुई। भाजपा इस बगावत में बराबर की साझेदार बनी रही तमाम गहमागहमी के बीच उत्तराखण्ड की विधानसभा में वह सब कुछ हुआ जिसकी कल्पना मुख्यमंत्री हरीष रावत ने सपने में भी नहीं की होगी। अब अगले कदम का इंतजार था। ऐसे में उसी दिन देर षाम भाजपा और कांग्रेस से बागी नौ विधायक समेत 35 विधायकों ने राज्यपाल से गुहार लगाई कि हरीष सरकार अल्पमत में है और उसे बर्खास्त किया जाए। सियासी भंवर में फंसे हरीष रावत को स्पीकर के चलते तात्कालिक राहत तो मिल गई थी परन्तु राजभवन से निर्णय आना अभी बाकी था। देखते ही देखते उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून भारतीय राजनीति के क्षितिज पर आ गयी जबकि 14 मार्च को घोड़े की टांग टूटने के चलते यह वैष्विक फलक पर पहले से ही थी।
फिलहाल हरीष रावत सरकार को राजभवन के निर्देषानुसार 28 मार्च तक बहुमत सिद्ध करना है जबकि बागी विधायकों के मामले में सरकार काफी सख्त हुई है। हरक सिंह रावत को मंत्रिपरिशद् से बर्खास्त कर दिया गया, उनके दफ्तर को सील किया गया और महाधिवक्ता को भी पद से हटा दिया गया। सरकार के पक्ष वाले विधायक कार्बेट नेषनल पार्क, नैनीताल में षरण लिये हुए हैं जबकि भाजपा समेत बागी विधायक गुड़गांव के किसी होटल में हाई कमान के संकेतों का इंतजार कर रहे हैं और राश्ट्रपति से उनकी मुलाकात सम्भव है। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों को हटाये जाने के लिए भी विरोधी लामबंध हैं क्योंकि आरोप है कि स्पीकर ने पारदर्षिता के साथ कृत्यों का निर्वहन नहीं किया। बागी विधायकों पर दल-बदल कानून की भी तलवार लटकती दिखाई दे रही है जिसे लेकर इनसे 26 मार्च तक स्पश्टीकरण भी मांगा गया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि राज्यपाल स्पीकर को हटाने के मामले में हस्तक्षेप करें जबकि संवैधानिक तौर पर इन्हें हटाने से पहले 14 दिन पूर्व सूचना देनी होती है। सूचना की तारीख के अन्तर्गत स्पीकर पर 2 अप्रैल तक कोई कार्यवाही होते नहीं दिखाई देती जबकि बागी विधायकों पर कार्यवाही से लेकर बहुमत सिद्ध होने तक की सभी तारीखें इसी बीच हैं। ऐसे में बागियों का डर समझा जा सकता है। सबके बावजूद सियासत कितनी भी उबाल क्यों न ले ले आखिरकार रास्ता संविधान से हो कर ही जायेगा जिसका पहला कदम उठाते हुए राज्यपाल ने हरीष सरकार को बहुमत सिद्ध करने का वक्त दे दिया है। कयास यह भी लगाये जा रहे हैं कि क्या मौजूदा सरकार के पास संख्या बल उतनी है जितनी सरकार के लिए चाहिए।
उत्तराखण्ड विधानसभा की दलीय स्थिति को देखा जाए तो कांग्रेस के पास 36 जो बहुमत के लिए पर्याप्त थे उनमें से 9 बागी हो चुके हैं। भाजपा के 28 में से मसूरी के विधायक गणेष जोषी घोड़े की टांग तोड़ने के आरोप के चलते जेल में हैं और एक अन्य विधायक भीमलाल आर्य सरकार प्रेम दिखाने के कारण निलंबित है। मौजूदा स्थिति में भाजपा के पास संख्या 26 मात्र की है। इसके अलावा यूकेडी, बसपा व निर्दलीय समेत 6 और एक मनोनीत एंग्लो इंडियन विधायक मिलाकर अन्यों की संख्या 7 होती है। हरीष रावत सरकार के पास कांग्रेस के नौ विधायक घटाने के बाद संख्या 27 की होती है जबकि अन्य को लेने पर यह 34 हो जाती है परन्तु सरकार बनाने के लिए 36 के आंकड़े से दो कम है। यदि यही भाजपा के साथ देखा जाए तो सब कुछ यथावत हो और बागियों का सहयोग मिले तो यह आंकड़ा 35 का होता है परन्तु बागियों पर दल-बदल की तलवार लटकने के चलते यह रास्ता निहायत कठिन है। जहां तक संभव है हरीष रावत बहुमत सिद्ध करने के लिए अपनी सारी कूबत झोंकना चाहेंगे परन्तु भाजपा भी चाहेगी कि सरकार इसमें नाकाम रहे भले ही वह सरकार बनाने में सफल न हो पाये। देखा जाए तो आने वाले 10 माह में उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में भाजपा सरकार बनाने वाले कदम में षायद ही रूचि दिखाये पर गिराने वाले में उसकी पूरी रूचि बनी रहेगी। भाजपा का हाईकमान भी इस आरोप से बचना चाहेंगे कि एक चल रही सरकार की हत्या करने में उनका हाथ है। जैसा कि हरीष रावत भी कह चुके हैं कि मोदी जी लोकतंत्र की हत्या की होली मत खेलिये। भले ही भाजपा को मौजूदा स्थिति में बागियों का समर्थन मिल रहा हो पर भाजपा कमजोर राजनीति करने की पक्षधर नहीं होगी और यदि ऐसा होता भी है तो यह भाजपा के लिए भी एक बवंडर ही होगा क्योंकि बागियों का समायोजन करने की चुनौती इनके सामने जरूर खड़ी होगी।
देहरादून से दिल्ली तक उत्तराखण्ड के सियासी भूचाल ने खलबली मचा दी है। राहुल गांधी भी भाजपा पर लानत-मलानत उतार रहे हैं। कहा जाए तो इन दिनों प्रदेष अस्थिरता से गुजर रहा है। प्रदेष को राजनीतिक संकट से उबारने में एड़ी-चोटी का जोर तो लगाना ही पड़ेगा साथ ही हरीष सरकार के पास विकल्प भी बहुत सीमित हैं। एक विकल्प यह है कि भाजपा के असंतुश्ट विधायकों को अपने पक्ष में करके हरीष रावत पलटवार करते हुए बहुमत सिद्ध कर दें, दूसरा यह कि बागी में से पांच की वापसी के आसार हैं उसे देखते हुए स्थिति सहज हो सकती है। तीसरा और अन्तिम विकल्प यह भी हो सकता है जो काफी हद तक जोखिम से भरा है कि दसवीं अनुसूची में वर्णित दल-बदल कानून के तहत इस वक्तव्य का सहारा लेकर बागियों की सदस्यता स्पीकर रद्द कर दे जिसमें कहा गया है कि अपने राजनीतिक दल के निर्देष के विरूद्ध सदस्य सदन में मतदान करता है या मतदान से अलग रहता है और उस दल द्वारा 15 दिनों के भीतर उसे माफ नहीं किया गया तो वह सदस्यता खो सकता है। सदस्यता खोने की स्थिति में हरीष रावत को 71 के मुकाबले 62 विधायकों के बीच बहुमत सिद्ध करना होगा और यह सम्भव है क्योंकि मौजूदा स्थिति में तो सरकार के पास इतना बहुमत है। फिलहाल सियासत किस करवट बैठेगा यह आने वाले निर्धारित तिथि को ही पता चल पायेगा।

सुशील कुमार सिंह


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