Thursday, March 3, 2016

राष्ट्रपति पद के समीप हिलेरी क्लिंटन

अमेरिका में राश्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवारी की दौड़ में षामिल रिपब्लिकन के डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट की हिलेरी क्लिंटन के बीच कड़ी टक्कर बनते दिख रही है। दोनों प्राइमरी चुनाव में जीत दर्ज करते हुए सात राज्यों में विजयी रहे। इस बार का अमेरिकी राश्ट्रपति का चुनाव काफी रोचक कहा जायेगा क्योंकि ऐसा पहली बार हो रहा जब कोई महिला इस मुकाबले में है। हालांकि 2008 के चुनाव में भी डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलेरी क्लिंटन की चर्चा जोरों पर थी पर उम्मीदवारी बराक ओबामा को मिली। उसके बाद वे राश्ट्रपति भी बने और अपना दूसरा कार्यकाल समाप्त करने के कगार पर हैं। अमेरिका में लोकतंत्र की पड़ताल की जाए तो वर्श 1788-89 में अमेरिकी लोकतंत्र मील का पत्थर तब सिद्ध हुआ जब जाॅर्ज वांषिंगटन पहले चुने हुए राश्ट्रपति बने। तब से लेकर बराक ओबामा तक 44 लोग इस पद के धारक बने, पर एक भी महिला इस षीर्शस्थ पद तक नहीं पहुंच सकी। देष चाहे अध्यक्षीय प्रणाली के हों या संसदीय 50 से अधिक ऐसे देष हैं जहां सरकार की मुखिया महिलाएं रही हैं और वर्तमान में भी कई देषों में यही स्थिति है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा बांग्लादेष चार ऐसे पड़ोसी एषियाई देष हैं जहां महिलाएं षीर्श सत्ता को हासिल कर चुकी हैं। विष्व में सर्वप्रथम महिला सरकार के मामले में श्रीलंका का नाम आता है जबकि भारत में आजादी के दो दषक के अन्दर ही महिला प्रधानमंत्री बनी तत्पष्चात् राश्ट्रपति, स्पीकर आदि उच्चस्थ पद भी महिलाओं के हिस्से आये। आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी, कनाडा और इंग्लैण्ड सहित तमाम देषों ने महिलाओं को षीर्शस्थ पदों तक पहुंचने का अवसर दिया है पर अमेरिका इस अवसर से अभी भी परे है। सवाल है कि लोकतंत्र की पराकाश्ठा से निपुण अमेरिका ने महिलाओं को षीर्शस्थ तक पहुंचाने में इतना विलम्ब क्यों किया जबकि यह राय आम है कि नेतृत्व के मामले में महिलाएं भी पुरूशों से तनिक मात्र भी कमतर नहीं हैं।
इस वर्श अमेरिका में एक बार फिर राश्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। सब कुछ अनुकूल रहा तो 227 वर्श के लोकतंत्र को खर्च करने के बाद हिलेरी क्लिंटन के रूप में व्हाइट हाऊस को एक महिला राश्ट्रपति मिल सकता है। ओबामा के पहले कार्यकाल के दौरान हिलेरी क्लिंटन विदेष मंत्रालय का कार्यभार भी संभाल चुकी हैं। कहा जा रहा है कि हिलेरी षानदार राश्ट्रपति साबित होंगी। देष की पहली महिला राश्ट्रपति बनने की प्रबल दावेदार हिलेरी क्लिंटन का सामना आठ साल से सत्ता से विमुख रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प से होगा। वैष्विक स्तर पर ऐसा रहा है कि महिलाओं की षीर्शस्थ पदों पर पहुंचने के मार्ग काफी दुरूह रहे हैं साथ ही लोकतंत्र के बड़े-बड़े कसीदे गढ़ने वाले भी इस मामले में चूक कर चुके हैं। अमेरिका एक विकसित देष है जिसकी ताकत विष्व भर में प्रबल मानी जाती है साथ ही तमाम बेहतरी के बावजूद महिला षासक देने में चूकता रहा है। आने वाला चुनाव इस चूक से मुक्ति देने का काम कर सकता है। हिलेरी क्लिंटन पूर्व राश्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हैं इन्हें प्रथम अमेरिकी महिला होने का गौरव आठ वर्श तक मिल चुका है। व्हाइट हाऊस का इन्हें अनुभव भी है। ऐसे में यदि हिलेरी अमेरिका की राश्ट्रपति बनती हैं तो एक ओर अमेरिकी लोकतंत्र में महिला राश्ट्रपति का गौरव बढ़ेगा तो दूसरी ओर बिल क्लिंटन के साथ प्राप्त अनुभव से अमेरिका को तो फायदा होगा ही साथ ही कई देषों के साथ बेहतर सम्बंध की गुंजाइष भी रहेगी जिसमें भारत षीर्शस्थ देषों में षुमार होगा।
वर्श 1783 में औपनिवेषिक सत्ता से मुक्त होने वाले अमेरिका का संविधान 1789 में जब तैयार हुआ तो वयस्क मताधिकारों में महिलायें नहीं गिनी जाती थीं। अमेरिका में 21 वर्श से ऊपर की महिलाओं को मत देने की अनुमति अमेरिकी संविधान के 19वें संषोधन (1920) के द्वारा ही मिल पायी। इंग्लैण्ड में भी महिलाओं को मताधिकार से 1918 तक वंचित रखा गया था। फ्रांस की महिलाओं ने पहली बार 1945 में वोट देने का अधिकार मिला। हालांकि फिनलैंड 1906, नार्वे 1913 और डेनमार्क 1915 में महिलाओं को मताधिकार दिया था। फिर भी सवाल है कि पुरातन लोकतंत्र के बावजूद खुला मिजाज रखने वाले अमेरिका जैसे देष महिलाओं के मताधिकार के मामले में इतने संकुचित क्यों रहे? जबकि भारतीय संविधान अपने लागू होने की तारीख से ही भारत में ऐसे अधिकार थे। जाहिर है जब महिलायें मताधिकार से ही वंचित रहेंगी तो हुकुमरान कैसे बनेंगी? इतिहास के पन्नों को उलट-पलट कर देखा जाए तो महिलाओं का लोकतंत्र के पर्दे पर पर्दापण को सौ बरस भी नहीं हुए हैं। इससे यह भी पता चलता है कि वैष्विक स्तर पर किसी भी देष का लोकतंत्र कितना भी पुराना और सषक्त क्यों न हो, पर वह सैकड़ों वर्शों तक पुरूश लोकतंत्र की ही गिरफ्त में था। फिलहाल लगभग सौ वर्शों से अमेरिका के लोकतंत्र में महिलाओं को मतदाता के रूप में प्रतिश्ठित कर दिया गया। गत् कई वर्शों से अमरिका जैसे प्रबल लोकतांत्रिक देषों में भी यह देखने में आ रहा है कि मतदान के प्रति आतुरता घटी है। पड़ताल करने से यह भी पता चलता है कि 1960 में 63 फीसदी मतदाताओं ने राश्ट्रपति चुनाव में मतदान किया जबकि 1972 से लेकर 1988 तक मत प्रतिषत 55 से घटकर 50 फीसद हो गया। वर्श 1996 में तो मतदान 49 फीसदी पर पहुंच गया। विगत् 55 सालों में देखा जाए तो 63 फीसदी मतदान जो 1960 के चुनाव में हुआ था वह सर्वाधिक है। भले ही अमेरिका सर्वाधिक पुराना लोकतंत्र हो और जागरूकता के लिए जाना जाता हो बावजूद इसके लोकतंत्र के प्रति अमेरिकियों का झुकाव उत्साह से परे ही प्रतीत होता है।
लोकतंत्र को बनाने में काफी कूबत खर्च करनी पड़ती है साथ ही इसे संवारने में लम्बा वक्त देना पड़ता है तब कहीं जाकर बेजोड़ प्रजातंत्र की अवधारणा मूर्त रूप लेती है। सबल पक्ष यह है कि वर्तमान विष्व लोकतंत्र का बढ़िया संरक्षण कत्र्ता है जहां सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं। नवीन लोक प्रबंध और प्रगति के मामले में अब लोकतंत्र अनहोनी का षिकार नहीं हो सकता। विष्व के लगभग सभी लोकतांत्रिक देषों में अब स्त्री-पुरूश दोनों का प्रजातंत्र कायम है। ऐसे में लोकतंत्र भी पहले से कहीं अधिक मजबूत हुआ है। विमर्ष यह भी है कि 21वीं सदी में अमेरिका महिला राश्ट्रपति देकर इस प्रजातंत्र को और षक्तिषाली बना सकता है साथ ही इस आरोप को भी खारिज कर सकता है कि वहां कोई महिला मुखिया नहीं है। उन्नीसवीं सदी के अन्त में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान करने में आॅस्ट्रेलिया ने विष्व का नेतृत्व किया था जबकि बीसवीं सदी के मध्य में प्रथम प्रधानमंत्री देकर श्रीलंका ने लोकतंत्र की नई परिभाशा गढ़ी थी। इतिहास के पड़ताल से पता चलता है कि आॅस्ट्रिया, जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड आदि देषों की महिलाएं बीसवीं सदी के दूसरे दषक में मार्च, विरोध और आंदोलन के जरिये अपना लोकतांत्रिक हक मांग रहीं थी। इन्हीं दिनों वर्श 1914 से अन्तर्राश्ट्रीय महिला दिवस मनाने की अवधारणा भी जन्मी जिसे प्रतिवर्श विष्व भर में 8 मार्च को मनाया जाता है। फिनलैण्ड ऐसा देष है जिसकी संसद में पहली बार 1907 में महिला प्रतिनिधि आयी। इसी तर्ज पर नार्वे ने भी महिलाओं को आगे बढ़ाने का काम किया। हाल फिलहाल में भूटान में भी महिलाओं को पूरी तरह वोट देने का अधिकार वर्श 2008 में दे दिया गया। देर से ही सही कमोबेष विष्व के सभी कोनों में लोकतांत्रिक परिपाटी के निर्वहन में अब महिलायें भी साथ हैं। फिलहाल अमेरिका में यदि मुखिया महिला चुनी जाती है तो विष्व का यह पुराना लोकतंत्र कहीं अधिक सषक्त लोकतंत्र के रूप में भी परिभाशित हो जायेगा।




सुशील कुमार सिंह


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