Monday, March 14, 2016

पश्चिम बंगाल का सियासी धरातल

बीते 4 मार्च को पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी कर दी गयी। जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें तमिलनाडु, केरल, असम, पष्चिम बंगाल और केन्द्रषासित पुदुचेरी षामिल है। गौरतलब है कि इनमें से किसी भी राज्य में भाजपा की सरकार नहीं है। साफ है कि इस चुनाव में भाजपा बिना को खोने के लिए कुछ नहीं है। बड़ी परीक्षा तो सत्तारूढ़ दलों का होना है परन्तु भाजपा मोदी के जादू के भरोसे एड़ी-चोटी का जोर लगाने से पीछे नहीं रहेगी। पष्चिम बंगाल के मामले में तो यह बात सर्वाधिक पैमाने पर लागू होती है। हालांकि यही बात असम, तमिलनाडु जैसे राज्यों के लिए भी कही जा सकती है। विगत् पांच वर्शों से ममता बनर्जी के क्रियाकलापों के साथ सियासी रूख को देखते हुए यह लगता है कि पष्चिम बंगाल में एक बार फिर बिहार की तरह भीतरी बनाम बाहरी का नारा भी बुलंद हो सकता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इस बार भी विकास के मुद्दे छाये रहेंगे। दरअसल विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देष्य से प्रेरित तथा अभिमुख होती है। विकास का वास्तविक अर्थ जहां यथास्थिति में परिवर्तन है वहीं प्रक्रिया अनिवार्य रूप से सामाजिक षक्ति को प्रभावित करती है। इस बात की पुश्टि पष्चिमी बंगाल के हुगली जिले में बसे एक छोटे से कृशि प्रधान क्षेत्र सिंगूर से समझी जा सकती है।
पष्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सत्ता प्राप्ति के पीछे के परिप्रेक्ष्य को उजागर किया जाए तो सिंगूर को समझना कहीं अधिक जरूरी हो जाता है। इससे उस दौर के राज्य की वास्तु स्थिति से भी अवगत हुआ जा सकता है। दरअसल वर्श 2006 में टाटा मोटर्स ने सीपीआई से हुए एक समझौते के तहत 997 एकड़ जमीन नई ‘नैनो कार‘ की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अन्तर्गत हासिल कर ली थी। इस समझौते के साथ टाटा मोटर्स ने यह वादा किया था कि इस परियोजना के द्वारा करीब 70 विक्रेताओं का इस षहर में आगमन होगा और इस प्रक्रिया में लगभग एक हजार करोड़ का निवेष भी होगा जो कि षहरी विकास के लिए मददगार होगा। इसके अतिरिक्त विस्थापित किसानों को वित्तीय सहायता के साथ फैक्ट्री में नौकरी देने का वायदा भी किया गया था। असल में नैनो कार के माध्यम से पष्चिम बंगाल में विकास की नई परिभाशा गढ़ने की कोषिष की जा रही थी इसी बीच समझौते का वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता में तृणमूल कांग्रेस तथा किसानों व अन्यों द्वारा जमकर विरोध किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या ने उसके बाद जो किया वह आने वाले चुनाव के लिए पासा पलटने वाला था। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या के धारा 144 को कोलकाता उच्च न्यायालय ने षक्ति का दुरूपयोग मानते हुए न केवल गलत बताया बल्कि ममता बैनर्जी के लिए जनता के बीच नई पैठ बनाने का एक अवसर भी दिया। फैक्ट्री निर्माण का कार्य 21 जनवरी, 2007 को षुरू हुआ परन्तु जन विरोध और ममता बनर्जी के उपवास के साथ अड़िग रवैये के चलते टाटा मोटर्स को 3 अक्टूबर, 2008 में काम रोकते हुए सिंगूर से गुजरात का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। तब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
सिंगूर की यह घटना ममता बनर्जी के लिए लोकतंत्र की नई परिभाशा की बाट जोह रहा था। 2011 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी हार और तृणमूल कांग्रेस का सत्ता में आना सिंगूर विरोध को सही साबित करता है। भले ही तृणमूल कांग्रेस की सिंगूर घटना ने जीत आसान कर दी थी परन्तु जन साधारण की अपेक्षाओं की हार तो आज भी कायम माना जा रहा है। देखा जाए तो पिछली बार भाजपा को करीब सत्रह (16.8) फीसदी वोट मिले हैं जबकि 34 साल सत्ता में रहने वाले वामदल को महज 23 फीसदी ही वोट मिल पाये थे। भाजपा अध्यक्ष अमित षाह ने जनसभा में जब यह घोशणा की कि पार्टी की राज्य इकाई 2019 की लड़ाई की तैयारी करें तो ऐसा लगने लगा था कि मानो भाजपा पष्चिम बंगाल की सियासी नब्ज़ पकड़ ली हो। हालांकि भाजपा इस छलावे में न रहे कि पष्चिम बंगाल की राह उसके लिए आसान होने वाली है। यह सही है कि मोदी और ममता बनर्जी में काफी बड़ी सियासी रंजिष है। जहां षारदा घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई सांसद जेल यात्रा के साथ-साथ पार्टी की छवि धूमिल करने में भी पीछे नहीं रहे हैं वहीं भाजपा के संगठन की हालत यह है कि स्थानीय निकाय चुनाव में ज्यादातर सीटों पर उसके चुनाव ऐजेंट भी नहीं थे। पूरे प्रदेष में 70 हजार से ज्यादा मतदान केन्द्र हैं। सवाल यह भी है कि कार्यकत्र्ता कहां से आयेंगे। कमियों की भरपाई के लिए पार्टी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर सारा जोर लगा सकती है।
ममता बनर्जी के दुर्भाग्य से और भाजपा के भाग्य से 2016 की षुरूआत से ही मालदा में साम्प्रदायिक घटना हो गयी। हिंसा, लूटपाट और आगजनी की घटनाएं हुईं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे बीएसएफ और स्थानीय लोगों के बीच का मामला बता कर बात बिगड़ने से रोकने की भरसक कोषिष की। असल में ममता बनर्जी की चिंता 27.1 फीसदी मुस्लिम आबादी का मत भी है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के आधार पर है। अब तो यह 30 फीसदी के आसपास है। पष्चिम बंगाल कुछ मामलों में देष के अन्य राज्यों से काफी भिन्न है। यहां के हिन्दू और मुसलमानों में सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर वैसा अन्तर नहीं है जैसा षेश भारत में मिलता है। ऐसे में भाजपा के ध्रुवीकरण की राजनीति कितनी सफल होगी अभी से कह पाना मुष्किल है। केन्द्र में प्रधानमंत्री मोदी सत्ता को जिस विकास की नई गाथा के साथ गतिमान बनाये हुए हैं उसका असर पष्चिम बंगाल के चुनाव पर भी भुनाना चाहेंगे। वे चाहेंगे कि अपने करिष्मे से वामपंथियों से पष्चिम बंगाल की सत्ता हथियाने वाली ममता बनर्जी को मात दें। ध्यान्तव्य है कि लोकसभा चुनाव के दौरान यहां मोदी के नाम पर ही वोट मिले थे।
विकास की अवधारणा का परिप्रेक्ष्य और संदर्भ यह भी संकेत करते हैं कि ममता बनर्जी ने बीते 5 वर्शों में इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर अपने को सषक्त सत्ताधारक महिला और बेदाग छवि बनाने में कामयाब रहीं हैं। वैसे तो आगामी चुनाव को लेकर भविश्यवाणी करना सम्भव नहीं है पर ममता बनर्जी के पष्चिम बंगाल में अब तक के प्रयासों को देखते हुए आगामी सत्ता को लेकर बड़ा खतरा तो नहीं दिखाई देता है। यदि यह बात सही निकलती है तो दूसरे नम्बर का दल कौन होगा इसको लेकर कई दावेदार हैं जिसमें वामदल, भाजपा समेत कांग्रेस भी षामिल होना चाहेगी पर अनुमान यह भी है कि आगामी विधानसभा चुनाव में यदि वामदल और कांग्रेस का गठबंधन होता है तो भाजपा नुकसान में हो सकती है। राजनीतिक तरंगे कभी भी एक जैसी नहीं होती समय और परिस्थिति के अनुपात में ऊपर-नीचे हो जाती हैं। मोदी करिष्मा बीते बिहार विधानसभा चुनाव में नहीं चला था जिस प्रकार बिहार में महागठबंधन का महाविकास हुआ उसे देखते हुए यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार के रास्ते बंगाल की सत्ता खोज में ममता बनर्जी पीछे नहीं रहेंगी क्योंकि यह तय माना जा रहा था कि यदि बिहार में भाजपा को पटखनी मिलती है तो असर बंगाल पर भी होगा। नीतीष कुमार के बिहार के मुख्यमंत्री के चैथी बार षपथ लेने के दौरान ममता बनर्जी का उपस्थित रहना विधानसभा चुनाव की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है।



सुशील कुमार सिंह

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