Thursday, March 17, 2016

एथिक्स कमेटी की रडार पर राहुल और माल्या

नीति निर्माण जितना सधा हो, उतनी ही स्वच्छ नीति निर्माता की छवि हो तो बात कहीं अधिक बेहतरी के साथ बन सकती है पर यह आदर्ष वाक्य व्यावहारिक तौर पर कहीं पीछे छूटता दिखाई दे रहा है। बजट सत्र के इस दौर में जहां एक ओर देष की जनता को लेकर कुछ अच्छा करने की फिराक में एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है तो वहीं राज्यसभा सदस्य विजय माल्या का देष छोड़कर भागना और लोकसभा के सदस्य और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ब्रिटिष नागरिकता को लेकर जवाब तलब का सुर्खियों में होना कई सवाल खड़े करता है। बीते 14 मार्च को लोकसभा की एथिक्स कमेटी ने इसी बाबत राहुल गांधी को एक नोटिस भेजा है जिसमें पूछा गया कि क्या उनके पास ब्रिटिष सिटीजनषिप है? जिस पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने भी कह दिया कि हम इससे निपट लेंगे। हालांकि अभी इसे लेकर चित्र पूरी तरह साफ नहीं है पर यदि इसमें जरा मात्र भी सच्चाई है तो यह देष का दुर्भाग्य कहा जायेगा। इस मामले को पूरी तरह समझने के लिए थोड़े पीछे चलने की आवष्यकता है। दरअसल भाजपा नेता डाॅ. सुब्रमण्यम स्वामी ने राहुल गांधी पर ब्रिटिष नागरिक होने का आरोप बीते कुछ माह पहले मढ़ा था। उनके मुताबिक राहुल ने ‘ब्लैकाॅप्स‘ लिमिटेड कम्पनी खोलने के लिए 2003 और 2006 के दौरान स्वयं को ब्रिटेन का नागरिक बताया था जिसके वे निदेषक और सचिव भी थे। साथ ही अपनी जन्मतिथि का भी सही ब्यौरा दिया और कहा था कि वे ब्रिटेन के नागरिक हैं। इसी के चलते डाॅ. स्वामी ने नवम्बर, 2015 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर निवेदन किया था कि राहुल गांधी की ओर से जो ब्यौरा ब्रिटेन की कम्पनी को दिया गया है उस सच्चाई का पता लगाया जाए और तथ्य सही पाये जाते हैं तो उनकी भारतीय नागरिकता के साथ संसद की सदस्यता भी खत्म की जाए। इसी साल के जनवरी माह में बीजेपी सांसद महेष गिरी ने स्पीकर सुमित्रा महाजन को भी चिट्ठी लिखी। मामले की गम्भीरता को देखते हुए स्पीकर ने इसे एथिक्स कमेटी को सौंपना सही समझा। इसी कमेटी के अध्यक्ष भाजपा के भीश्म पितामह कहे जाने वाले लालकृश्ण आडवाणी हैं। जाहिर है आडवाणी एक सुलझे हुए वरिश्ठतम् लोकसभा सदस्यों में से एक हैं। ऐसे में जांच को लेकर भरोसा जैसी चीज़ बेषक अधिक रहेगी।
  हालांकि लोकसभा की 11 सदस्यीय एथिक्स कमेटी द्वारा जारी नोटिस को लेकर कांग्रेस बदले की कार्यवाही बता रही है। उसका आरोप है कि उनके पास कोई मुद्दा नहीं है। ऐसे में विरोधी नेताओं को गलत आरोपों से घेरने की कोषिष कर रहे हैं। नोटिस का जवाब देने के लिए राहुल गांधी को 14 दिन का समय दिया गया है। जाहिर है जो सच डाॅ. सुब्रमण्यम जानते हैं और जिस आरोप से राहुल गांधी घिरे हैं उससे निजात पाने के लिए उन्हें कड़ी मषक्कत करनी पड़ेगी। अच्छा होगा कि आरोप निराधार सिद्ध हों ताकि देष की संसदीय गरिमा आहत होने से बचे, पर एक छोटी सी कहावत यह भी है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता है। यदि राहुल गांधी पर लगे आरोप खारिज नहीं होते हैं तो यह किसी अनहोनी से कम नहीं होगा। इसी दौरान एक और प्रकरण देखा जा सकत है। बीते 2 मार्च से राज्यसभा सदस्य और व्यावसायी विजय माल्या के देष छोड़ने के चलते बजट सत्र भी काफी गर्माहट लिए हुए है। देष की न्याय व्यवस्था का सामना करने के बजाय भगोड़ापन दिखाकर माल्या ने संसद को भी षर्मसार किया है जिसे लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार की लानत-मलानत की है। बीते 10 मार्च को इस मामले पर जमकर हंगामा हुआ। अब इस मुद्दे को संसद की एथिक्स कमेटी को सौंपा गया है। दरअसल यह कमेटी संसद में सदस्यों के आचरण और व्यवहार पर निगाह रखती है। यहां बता दें कि विभिन्न बैंकों से नौ हजार करोड़ रूपए से अधिक ऋण लेने के चलते विजय माल्या न्यायिक कार्रवाई का सामना करने से पहले ही देष से भागना ज्यादा उचित समझा। कांग्रेस का आरोप है कि देष छोड़कर जाने में सरकार ने माल्या की मदद की है जबकि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कांग्रेस के इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि बोफोर्स तोप से सम्बन्धित दलाल कवात्रोची और विजय माल्या के देष छोड़ने में बहुत अन्तर है।
विगत् कुछ वर्शों से जनप्रतिनिधियों को लेकर आचरण और नैतिकता में काफी गिरावट देखी जा सकती है। लगातार प्रतिनिधियों की आपराधिक छवि को देखते हुए देष की षीर्श अदालत ने अपने एक अहम् फैसले में 10 जुलाई, 2013 को जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समानता के अधिकार पर खरी नहीं उतरती है। इस फैसले पर क्या सत्ता, क्या विपक्ष दोनों में खलबली मची थी। दरअसल देष की संसद में बैठे जनप्रतिनिधियों को लेकर देष के अन्दर कई प्रकार का संषय देखा जा सकता है जो इनके आचरण से सम्बन्धित है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि 14वीं लोकसभा में 55 सांसदों पर संगीन आरोप थे जबकि 15वीं लोकसभा में ये संख्या बढ़कर 72 हो गयी थी। नेषनल इलेक्षन वाॅच द्वारा जारी रिपोर्ट में ऐसे ही आरोप विधायकों पर भी हैं जिनकी संख्या 30 फीसद बताई गयी है। जनप्रतिनिधियों का आचरण जिस प्रकार संदेह उत्पन्न करने वाला होता जा रहा है वह काफी चिन्ताजनक है। इसे दुरूस्त करने के लिए आचार संहिता को और मजबूत करने की आवष्यकता पड़ सकती है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51(क) के तहत 11 प्रकार के मौलिक कत्र्तव्य नागरिकों के लिए दिये गये हैं जो उनके आचरण के नियम ही हैं जबकि सरकारी सेवा में भी आचार संहिता का अनुपालन होते हुए देखा जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 के बीच निर्वाचन आयोग का संदर्भ निहित है। चुनावों में पारदर्षिता और निश्पक्षता को बनाये रखने के लिए राजनीतिक दलों की सहमति से चुनाव आयोग द्वारा एक आचार संहिता का निर्माण किया गया जो चुनाव की अधिसूचना जारी करने की तिथि से प्रभावी होते हैं। यद्यपि इनके पालन की कोई विधिक बाध्यता नहीं है। ऐसे में यह नैतिक दायित्व तक ही सीमित रहता है जिसका उल्लंघन हमेषा होता रहता है।
हमेषा यह अपेक्षा रही है कि देष की सर्वोच्च सदन में बैठे सांसद नैतिक रूप से बेहतर उदाहरण पेष करें। बावजूद इसके विजय माल्या जैसे नीति निर्माता देष को छोड़ना वाजिब समझते हैं। भारत में चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने को लेकर जनता को कोई अधिकार नहीं है जबकि स्विट्जरलैण्ड की जनता को ऐसा अधिकार है। संविधान में अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता की बात विस्तार से दी गयी है जिसमें अनुच्छेद 9 में साफ है कि विदेषी नागरिकता ग्रहण करने पर देष की नागरिकता का लोप हो जायेगा। यदि राहुल गांधी पर आरोप सही पाये जाते हैं तो ऐसा होना लाज़मी है जबकि विजय माल्या के मामले में एथिक्स कमेटी की प्रतिक्रिया आना अभी बाकी है। यूरोप और अमेरिका समेत दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देषों में षायद सदन की गरिमा और सदस्यों के लिए आचार संहिता हो और यह हैरत की बात नहीं है पर असल बात तो इसके सही अनुपालन का है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है। यहां उदाहरण भी बड़े होने चाहिए परन्तु देष को सुषासनिक नीति देने वाले नीयत और नैतिकता के मामले में स्वयं खरे नहीं हैं।



सुशील कुमार सिंह


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