Tuesday, March 1, 2016

बजट से बही गांव में सुशासन की बयार

मैं किसानों के प्रति आभारी हूं कि वे हमारे देष के खाद्य सुरक्षा की रीढ़ हैं। हमें खाद्य सुरक्षा से आगे सोचना होगा और किसानों को आय सुरक्षा देनी होगी। कृशि और कृशि कल्याण के लिए हमारा कुल आबंटन 35,984 करोड़ रूपए है। इस प्रकार का वक्तव्य बीते 29 फरवरी को वित्तमंत्री अरूण जेटली ने बजट भाशण के दौरान दिया था। इस बार के बजट को कृशि, उद्योग और सेवा क्षेत्र की दृश्टि से विवेचना की जाए तो कोई दो राय नहीं कि इसका झुकाव खेती-किसानी और कृशि उन्मुख है। बजट किसान और ग्रामीण विकास पर केन्द्रित है जिसके तहत कई योजनाओं की घोशणा देखी जा सकती है। सचमुच में यदि योजनाएं अपने साकार रूप को प्राप्त कर लेती हैं तो इसमें कोई षक नहीं कि गांव के साथ किसानों की माली हालत में बड़ा सुधार होगा। बजट आने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 125 करोड़ देषवासी इस बजट के माध्यम से उनकी परीक्षा ले रहे होंगे। बजट पड़ताल को देखने के पष्चात् पता चलता है कि इस बजट में मोदी सरकार भारी अंकों के साथ उत्तीर्ण होती दिखाई दे रही है। बीते तीन साल से लगातार देष सूखे का षिकार रहा है, पिछला वर्श तो बेमौसम बारिष के चलते पानी-पानी भी हो गया था और किसान दो तरफा बर्बादी के षिकार हुए। इसे देखते हुए इस बार सरकार को कुछ बेहतर सोचने का दबाव भी था। बजट के पिटारे से गांवों के लिए जो बयार बही है उससे मोदी सरकार के सुषासन की महत्वाकांक्षी सोच को भी बल मिलता है। इस बजट से सरकार ने एक तीर से दो निषाने लगाये हैं पहला, गांव की खुषहाली की चिंता सरकार को है इसका चित्र दिखाया दूसरे, सरकार ने बीते एक वर्श से बनी किसान विरोधी छवि को भी बदलने में बड़ी कामयाबी पाई है।
बजट गांव की तस्वीर बदलेगी इस पर भरोसा न करने का कोई स्पश्ट कारण नहीं दिखाई देता। ग्रामीण ढांचे को सुधारने पर बल दिया गया है। कृशि एवं सिंचाई के लिए भी बड़े फण्ड का ऐलान इसमें षामिल है। किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुना करने का इरादा काफी रोचकता से परिपूर्ण है। 5 लाख एकड़ खेती से जैविक खेती को बढ़ावा देना। दालों के उत्पादन के लिए 5 सौ करोड़ रूपए की अतिरिक्त व्यवस्था, फसल बीमा के लिए 55 सौ करोड़ रूपए का प्रावधान किया जाना। कृशि क्षेत्र में धन का आभाव खत्म करने के लिए 0.5 प्रतिषत का सरचार्ज लगाना जबकि विदेषी निवेष के जरिये खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों के लिए बाजार सुनिष्चित करने की बात भी षामिल है। मण्डी कानून में बदलाव कर राश्ट्रीय बाजार प्लेटफाॅर्म की षुरूआत भी षुभ मानी जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी को किसान रैलियों या अन्य चुनावी रैलियों में कई बार किसानों की चिंता करते हुए देखा गया है। इस बजट में ग्रामीण किसानों को क्या मिला के बजाय, क्या नहीं मिला पर जोर दिया जाए तो इसकी जांच बहुत बारीकी से करनी पड़ेगी। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना जो किसानों को उर्वरक का उचित उपयोग करने में सहायक होगा। 89 सिंचाई परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक किया जाना जिनसे अगले पांच वर्श के दौरान करीब 90 हजार करोड़ रूपए की तो आवष्यकता होगी इनमें से 23 परियोजनाओं को 31 मार्च, 2017 के पहले पूरा किये जाने का लक्ष्य रखना। एफसीआई अनाज की आॅनलाइन खरीदारी करेगा। उक्त योजनाओं के माध्यम से जिस प्रकार गांव की तस्वीर बदलने की कवायद की गई है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस बजट में मोदी इफेक्ट भी है और इम्पैक्ट भी है।
गांव की सड़कें अब हिचकोले नहीं लेंगी बल्कि इनसे मुक्त होंगी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का क्रियान्वयन जिस तरह किया जा रहा है वैसा पहले नहीं था। 27 हजार करोड़ इस योजना के तहत खर्च किया जाना साथ ही 65 हजार नई बस्तियों को सड़कों से जोड़ना, गांवों के लिए एक सुनहरा उपहार है। 2019 तक करीब सवा दो लाख किलो मीटर तक सड़क निर्माण का लक्ष्य इसमें देखा जा सकता है। बातें कहने के लिए, बड़ी-बड़ी आलोचना करने के लिए भी इस बजट में मसाला है पर इसकी फिक्र किये बगैर ग्रामीण विकास और किसानों के उद्धार को देखते हुए इस बजट को बिना नफे-नुकसान को ध्यान में रखे सकारात्मक कहने का मजबूत इरादा है। खुले में षौच मुक्त होने वाले गांव को इनाम देने के लिए केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के लिए प्राथमिक आधार पर आबंटन। बजट में उर्वरक सब्सिडी को सीधे किसान तक पहुंचाने के लिए डीबीटी नेटवर्क इस्तेमाल की भी बात कही गयी है। लगभग दो वर्श पुरानी मोदी सरकार ने सूखा ग्रस्त क्षेत्र के लिए दीन दयाल अन्त्योदय योजना को भी तवज्जो दिया है। ग्रामीण आधारभूत संरचना पर जोर देने के लिए सरकार बेषुमार योजनाओं की घोशणा की है। वित्तमंत्री अरूण जेटली के बजट ने इस बात को भी साबित किया है कि गांवों की समृद्धि के बगैर बहुत आगे तक चलना मुष्किल है। दूसरे षब्दों में देष के विकास का रास्ता गांवों से होकर जाता है। मई 2018 तक देष के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता को षुरू करने की योजना, एससी, एसटी और महिलाओं को तोहफा, सामाजिक क्षेत्र के लिए आबंटन को बढ़ाया जाना। एक तिहाई आबादी को स्वास्थ्य सम्बन्धी सुरक्षा प्रदान किया जाना भी काफी सषक्त बजट का परिप्रेक्ष्य दर्षाता है।
इसमें कोई षक नहीं कि इस बजट के माध्यम से अरूण जेटली ने गांव की तस्वीर बदलने और सुषासन की नई परिभाशा गढ़ने की कोषिष कर दी है। सवाल अब सिर्फ इसके सही क्रियान्वयन का है। कई खास बातें बजट में और भी हैं जिनका पूरी तरह जिक्र किया जाना सम्भव नहीं है पर इस बात को समझना जरूरी है कि नीतियां कितनी भी सषक्त क्यों न हों, योजनाएं कितनी भी मारक क्यों न रहीं हों जिनके लिए और जितने हिस्सों में इनको आगे बढ़ाना है यदि ये सुचारू नहीं हो पाती हैं तो नतीजे और मूल्यांकन किसी के लिए भी पचाना मुष्किल होगा। जिस मुस्तैदी के साथ बजट में गांव विकास को लेकर एक मोटी लकीर खींचने की कोषिष की गई उसी समर्पण के साथ इसे जरूरतमंदों तक पहुंचाना इसकी कसौटी होगी। गरीब महिलाओं को एलपीजी कनेक्षन से लेकर अनेक कई सहूलियत इस ओर इषारा करते हैं कि सरकार का होमवर्क कहीं से अधूरा तो नहीं है पर पूरा किया जाना अभी चुनौती है। ‘मेक इन इण्डिया‘, ‘डिजिटल इण्डिया‘, ‘स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया‘ से लेकर ‘कौषल विकास‘ तक का बिगुल गांव में भी फूंका जा सकता है बषर्ते आधारभूत संरचना से निपट लिया जाए तो। मोदी सरकार को इस बात के लिए भी सराहना की जा सकती है कि इस बजट के चलते उन्होंने काॅरपोरेट सरकार की संज्ञा से भी अपने को मुक्त कर लिया है। इस बजट की कसौटी इस बात से भी आंक सकते हैं कि अरूण जेटली ने बजट भाशण के दौरान स्वामी विवेकानंद के इस कथन का भी जिक्र किया था जब तक भारत की जनता एक बार फिर से षिक्षित नहीं हो जाती, उसे पर्याप्त भोजन नहीं मिलता और उनकी अच्छी देखभाल नहीं की जाती तब तक उनके लिए राजनीति के कोई मायने नहीं। उक्त कथन से यह भी परिलक्षित कर दिया गया कि सरकार संवेदनषीलता को न केवल समझती है बल्कि उनके लिए कोई भी जोखिम ले सकती है जो हाषिये पर हैं। व्यापक पैमाने पर बजट में गांव को तरजीब दिया जाना इसका पुख्ता सबूत है।


सुशील कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment