Tuesday, March 22, 2016

जल बंटवारे को लेकर राज्य आमने-सामने

    सतलज-यमुना लिंक नहर पर छिड़े विवाद में एक नया मोड़ तब आया जब पंजाब विधानसभा ने इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव के चलते पंजाब में नहर के लिए अधिग्रहीत की गई किसानों के जमीन वापसी का मार्ग सुगम हो जाता है और माना जा रहा है कि करीब 69 स्थानों पर किसानों का कब्जा भी हो गया है। पंजाब विधानसभा ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित करके हरियाणा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इसके चलते पंजाब की नदियों से हरियाणा को पानी देने के लिए बनाई जा रही लिंक नहर का निर्माण सम्भव नहीं हो सकेगा। पंजाब के इस फैसले से पानी से जूझ रहे हरियाणा को तो समस्या होगी ही दिल्ली भी इस जद में आ सकती है क्योंकि हरियाणा पानी के आभाव में दिल्ली में पानी सप्लाई को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में लिंक नहर के निर्माण रूकने से दोनों प्रदेषों के बीच रिष्तों में भी दरार पड़ सकती है साथ ही पानी को लेकर कम-से-कम गर्मी के महीनों में पेयजल से लेकर सिंचाई तक के लिए हाहाकार भी मचा रहेगा। हांलाकि स्थिति को देखते हुए हरियाणा सरकार ने षीर्श अदालत से गुहार लगाई थी जिसे लेकर कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने के लिए कहा था। बावजूद इसके प्रस्ताव पारित करके पंजाब सरकार ने यह जता दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलें फिलहाल उसके इरादों को नहीं डिगा सकते। इतना ही नहीं पंजाब सरकार ने इस नहर को लेकर हरियाणा सरकार से मिली सारी रकम को वापस करने का फैसला किया जिसके चलते 1,91 करोड़ 75 लाख रूपए का चेक हरियाणा सरकार को भेज दिया। देखा जाए तो पंजाब सरकार ने बिल पास करने के चलते 4 हजार एकड़ जमीन वापस करने का फैसला लेकर सतलज-यमुना लिंक नहर को खटाई में डाल दिया है।
यह कहा जाना कि ‘जल ही जीवन है‘ षायद ही इसे लेकर सभी गम्भीर हो। पानी को लेकर कभी दो पड़ोसी आपस में लड़ते हैं तो कभी दो राज्य और कभी-कभी तो इसे लेकर दुनिया भी आमने-सामने हो जाती है। कई मामलों में प्रखर होने के बावजूद भारत में जब बूंद-बूंद पानी के लिए बड़े-बड़े सियासत और संघर्श होते हैं तो ऐसी उम्मीदों को झटका लगना स्वाभाविक है। पानी पर भी सियासत की कहानी बहुत पुरानी है। भारत में जल बंटवारे को लेकर राज्य सरकारों के बीच अक्सर लड़ाई छिड़ी रहती है जिसका इतिहास 1969 के गोदावरी नदी के जल बंटवारे से देखा जा सकता है। कृश्णा, नर्मदा, रावी और व्यास नदी समेत देष में आधा दर्जन से अधिक नदियों के जल बंटवारे से जुड़े झगड़े क्रमिक रूप से इस फहरिस्त में षामिल हैं। ताजा प्रकरण में अब सतलज-यमुना लिंक इसमें षुमार हो गई है। हालांकि इस मामले में दस साल से राजनीति हो रही है। इस नहर के जरिये हरियाणा को अपने हिस्से का 3.83 मिलियन एकड़ फुट पानी मिलना था। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में फैसला दिया था कि एक साल के भीतर पंजाब सरकार इसका निर्माण करवाये। अगर ऐसा करने में पंजाब सरकार पीछे हटती है तो केन्द्र अपने खर्च पर नहर बनवाये। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के समय हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाष चोटाला थे। बताया जाता है कि उन दिनों लड्डू बांट कर खुषियां मनाई गयी थी। 2005 के चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की वापसी हुई परन्तु इन्हीं दिनो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित करते हुए पहले के सारे जल समझौतों को रद्द कर दिया था जिसके चलते सतलज-यमुना लिंक नहर का मामला लटक गया। आखिरकार हरियाणा सरकार कुछ होता न देखकर मामला राश्ट्रपति की चैखट पर ले गयी जिसे लेकर राश्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और सुप्रीम कोर्ट से राय अभी तक नहीं मिली है।
ऐसा देखा गया है कि राज्यों की जल से जुड़ी समस्याएं बुनियादी तौर पर अक्सर उभरती रही हैं और विवाद भी दषकों तक चलते रहते हैं। कावेरी जल विवाद सहित कई उदाहरण देष में लम्बे समय तक रहे हैं। कहा तो यह भी जाता है कि नदियों का कोई एक क्षेत्र नहीं होता लेकिन जिन इलाकों से यह गुजरती हैं वहां की सरकारें इसके पानी के दोहन के मामले में सर्वाधिकार रखना चाहती हैं। पंजाब पांच नदियों का स्थान है इसी से पंजाब नामकरण भी हुआ है। हरित क्रान्ति का प्रणेता और गंगा-यमुना के दोयाब में बसा यह प्रांत अन्न उत्पादन और खुषहाली के लिए जाना जाता है परन्तु नदियों में घट रहे पानी और पनप रही समस्याओं मे हरे-भरे प्रदेषों को भी उलझन में डाल दिया है। पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं और सरकार कोई ऐसा जोखिम नहीं लेना चाहेगी जिससे कि उसके वोट पर असर पड़े। बेमौसम बारिष और फसल में लगे रोगों के चलते पंजाब के किसान भी आत्महत्या के व्यापक षिकार हुए हैं। जाहिर इस चुनावी वर्श में मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल अपने हितों को साधने की फिराक में हरियाणा को मायूस करने से गुरेज नहीं करेंगे। सतलज, व्यास और रावी नदी के सहारे ये अपनी चुनावी नैया पार लगाना जरूर चाहेंगे जबकि वास्तविकता यह है कि हरियाणा की प्यास बिना पंजाब के नदियों के सहारे बुझ नहीं सकती। ऐसा न होने की स्थिति में हरियाणा का हरित प्रदेष होने का रसूक भी कमजोर पड़ जायेगा।
पानी की किल्लत दुनिया भर में है और दुनिया के लोग भी नदी जल बंटवारे को लेकर आमने-सामने देखे जा सकते हैं। पानी के क्षेत्र में काम करने वाली सलाहकारी फर्म ईए वाटर के एक अध्ययन के अनुसार 2025 तक भारत पानी की कमी से जूझने वाले देषों में षुमार होगा। सच्चाई यह भी है कि जमीन से पानी निकालने वाले देषों में भारत पहले नम्बर पर है। इसकी एक खामी यह है कि इससे जल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। नोएडा जैसे स्थानों पर प्रतिवर्श की दर से तीन से चार फिट के स्तर से नीचे जा रहा है। दुनिया के जल संकट वाले षहरों में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई के अलावा बंगलौर और हैदराबाद समेत कईयों को सूचीबद्ध किया जा सकता है। देष में अभी भी तीन लाख के आस-पास गांव ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सप्लाई नहीं है। भारत के कुल 29 राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेष, राजस्थान, तेलंगाना समेत नौ राज्य गम्भीर जल संकट से जूझ रहे हैं। पंजाब भी भली-भांति जानता है कि उसकी जीवन रेखा पानी ही है इसके आभाव में वह जल संकट वाले प्रदेषों में अव्वल नहीं होना चाहता। गम्भीर समस्या यह भी है कि पानी का उत्पादन सरकारे नहीं करती हैं बल्कि इसके रख-रखाव का बेहतरी से जरूर कर सकती हैं। विडम्बना यह है कि देष में जल को लेकर हाहाकार तो रहता है परन्तु इसके मोल को लेकर कोई भी संवेदनषील षायद ही हो। जिस बेतरजीब तरीके से पानी को अपव्यय किया जाता है उसे देखते हुए आने वाले दिन और भी संकटग्रस्त हो सकते हैं। विषेशज्ञ भी मानते हैं कि तीसरा विष्व युद्ध जल संसाधनों पर कब्जा करने के लिए ही होगा। फिलहाल पंजाब-हरियाणा के बीच उपजे नये जल विवाद का कोई सकारात्मक हल तो खोजना ही होगा। टकराव के बजाय सहमति का कोई मार्ग दोनों के हितों में रख कर किया जाना देषहित में ही होगा।



सुशील कुमार सिंह


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