Wednesday, March 23, 2016

सफ़र एक घंटे का फासला 88 वर्ष

बीते 20 मार्च को जब अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा सपरिवार क्यूबा पहुंचे तो दोनों देषों के बीच यह तारीख इतिहास हो गयी। फ्लोरिडा से महज एक घण्टे की विमान यात्रा को तय करने में 88 वर्श का वक्त लगा। अमेरिकी राश्ट्रपति ओबामा ने भी कहा कि वर्श 1928 में क्यूबा आने वाले पिछले अमेरिकी राश्ट्रपति केल्विन कूलीज़ को ट्रेन और पानी के जहाज़ के जरिये तीन दिन का वक्त यहां पहुंचने में लगा था। देखा जाए तो किसी भी देष की विदेष नीति का मुख्य आधार उस देष को वैष्विक स्तर पर न सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बल्कि अपनी नीतियों के माध्यम से अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाये रखना होता है। भूमण्डलीय नीतियों की कई अनिवार्यताएं भी होती हैं और इन्हीं के बीच कई ऐसी मुष्किलें भी खड़ी हो जाती हैं जिससे दो देष बहुत समीप होते हुए भी दो छोर का रूप भी ले लेते हैं। अमेरिका और क्यूबा भी पिछले 88 वर्शों से इसी भांति रहे हैं। इन वर्जनाओं को समाप्त करते हुए ओबामा ने क्यूबा में लैण्डिंग करके वैष्विक जगत में एक बेहतर कूटनीति का परिचय दिया है। वैसे ओबामा कार्यकाल का यह अन्तिम वर्श चल रहा है। राश्ट्रपति की लगभग दो पारी खेल चुके ओबामा वैष्विक जगत में अपने कद और भार को जिस अनुपात में सफलता पाई है उसे देखते हुए क्यूबा की यात्रा अप्रत्याषित प्रतीत नहीं होती परन्तु इतना लम्बा वक्त क्यों लगा इसकी तह में जरूर जाना चाहिए। सरसरी तौर पर वर्श 1959 में क्यूबा में अमेरिका समर्थित सरकार के तख्ता पलट और साम्यवादी सरकार स्थापित होने के पष्चात् दोनों देषों के बीच रिष्ते खराब हुए थे। अब जब 88 साल बाद अमेरिका के जहन में क्यूबा का ख्याल आया है तो इसके पीछे भी कई सम्भावित कारण निहित होंगे।
इतिहास के पन्नों में ओबामा का नाम क्यूबा यात्रा के लिए जरूर दर्ज होगा और ओबामा द्वारा नये सिरे से की जा रही कोषिष को भी सराहा जायेगा। इतना ही नहीं ओबामा की यह यात्रा क्यूबा के लिए फायदे का सौदा भी सिद्ध होगा। दोनों देषों के सम्बन्ध बनने, अमेरिकी और क्यूबयाई नागरिकों को पर्यटन, व्यापार और सूचनाओं के माध्यम से जोड़ने आदि सहित कई लाभ से वंचित क्यूबा के लिए रास्ते खुलेंगे। दरअसल क्यूबा के साथ व्यापारिक सम्बंधों पर रोक के चलते अमेरिकी पर्यटकों को क्यूबा जाने की इजाजत नहीं है। अमेरिका के राश्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा से इस कैरिबियाई द्वीप में अमेरिका निवेष को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इस द्वीप को 12 आर्थिक क्षेत्रों में निवेष की जरूरत है जिसमें अक्षय ऊर्जा, तेल की खोज और पर्यटन भी षामिल है। इसी दौरान यह भी देखा गया है कि क्यूबा की बीस कम्पनियों ने अमेरिका से आयात में रूचि दिखाई है। क्यूबा के पहले उपराश्ट्रपति मिगुएल डायज़ कनेल पिछले वर्श मार्च में भारत के दो दिनी दौरे पर थे लेकिन यह खबरों की सुर्खियों में उतना नहीं आया जितना अन्य देष रहते हैं जबकि देखा जाए तो क्यूबा भारत के घनिश्ठ दोस्तों में से एक माना जाता है। 17 दिसम्बर, 2014 का दिन क्यूबा और अमेरिका के लिए एक ऐतिहासिक दिन भी था लेकिन भारत में इसकी कोई सुगबुगाहट देखने को मिली न ही इन खबरों पर चर्चा हुई। दरअसल इसी दिन अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा ने क्यूबा से सम्बन्ध जोड़ने का एलान किया था जिसके नतीजे के तौर पर ओबामा की क्यूबा यात्रा को देखा जा सकता है।
व्हाइट हाऊस और क्यूबा की राजधानी हवाना के बीच सम्बंधों से उत्साहित क्यूबा के राश्ट्रपति राउल कास्त्रो ने कहा था कि राश्ट्रपति ओबामा का फैसला हमारी जनता की इज्जत और सम्मान के काबिल है। उन्होंने ओबामा की ऐसी प्रतिक्रिया के लिए षुक्रिया अदा किया। असल में क्यूबा उन गिने-चुने देषों में है जिसने 50 साल से अधिक समय गुजारने के बावजूद अमेरिका के आगे सिर नहीं झुकाया। बीते 57 साल में दोनों देषों के राश्ट्र प्रमुखों की यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी। इस दौरान ओबामा ने क्यूबा में आर्थिक और राजनीतिक सुधार का मसला उठाया तो कास्त्रो ने क्यूबा पर लगे अमेरिकी प्रतिबन्धों को हटाने की मांग उठाई। 1959 में क्रान्ति लाकर फिदेल कास्त्रो ने जब सत्ता संभाली तो अमेरिका ने क्यूबा की वामपंथी सियासत और समाजवादी क्रान्ति के चलते राजनयिक सम्बंध तोड़ लिये थे। इसी दौरान कास्त्रो ने सोवियत यूनियन से घनिश्ठ सम्बंध बना लिए साथ ही 1962 में सोवियत यूनियन को अपने देष में परमाणु मिसाइल लगाने की इजाजत भी दे दी जिससे अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच परमाणु मिसाइल के जंग का खतरा पैदा हो गया। अमेरिका ने फिदेल कास्त्रो पर मानवाधिकार के उल्लंघन सहित कई आरोप लगाते हुए प्रतिबन्ध लगा दिये जो आज तक जारी हैं। ओबामा के क्यूबा के इस यात्रा से उस पर लगे प्रतिबंध के ढीले होने के आसार भी जीवित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। सवाल है कि क्या क्यूबा बदल गया है या फिर अमेरिका ने अपनी नीति में परिवर्तन कर लिया है। असल में सोवियन यूनियन का 1991 में बिखरने के साथ ही षीत युद्ध भी समाप्त हो गया और देखा जाए तो हाल ही के वर्शों में इस्लामिक चरमपंथियों के उभरने के बाद यह भी लगने लगा कि इस बदलती दुनिया में कोई स्थायी दुष्मन नहीं है। ऐसे में अमेरिका की प्राथमिकताओं का बदलना भी स्वाभाविक था।
अमेरिकी इतिहास में ओबामा क्यूबा की यात्रा करने वाले दूसरे राश्ट्रपति कहे जायेंगे। हालांकि वहां की रिपब्लिकन पार्टी ने इसकी आलोचना की है और कहा कि कास्त्रो परिवार के सत्ता में रहने तक दौरा नहीं होना चाहिए था। अमेरिकी कूटनीति में अचानक क्यूबा को लेकर आई हुई लचक को लेकर वैष्विक जगत में भी राय अलग-अलग देखने को मिल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि क्यूबा पर 50 साल से लगे अमेरिकी प्रतिबंध से क्यूबा में लोकतंत्र बहाल करने वाली अमेरिकी मंषा पूरी नहीं हुई है। ऐसे में अमेरिका को भी यह लगता है कि प्रतिबंध या कूटनीतिक नाता तोड़ने वाली नीति गैर वाजिब सिद्ध हो रही है। इसे देखते हुए और बदलती दुनिया को समझते हुए ओबामा को यह सब करना उचित लगा होगा। सियासत और कूटनीति में यह भी नियम अपनाये जाते हैं कि पुरानी व्यवस्थाओं में फंस कर नये दौर की हत्या नहीं करनी चाहिए लेकिन दोनों देषों के बीच जिस प्रकार की लम्बी जुदाई रही है उसे देखते हुए सम्बंध कितने प्रगाढ़ होंगे और पटरी पर कितने तेज दौड़ेंगे अभी कहना कठिन है। हालांकि दोनों देष के नेताओं ने सम्बंध को प्रमुखता देते हुए जोष-खरोष दिखाया है। सम्भव है कि आने वाले दिनों में अमेरिका के आर्थिक दबाव के चलते क्यूबा में बड़ा बदलाव आये और यह बदलाव लोकतंत्र बहाली के काम आये। जाहिर है अमेरिका किसी भी देष के लिए तभी बेहतर करता है जब उस देष से उसे कुछ उम्मीद हो। बराक ओबामा को जिस तेज-तर्रार राश्ट्रपति के रूप में विष्व जानता है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना सही होगा कि क्यूबा को देने के बदले पाने की भी कई अपेक्षाएं होंगी। यदि उसमें लोकतंत्र की बहाली निहित है तो यह ओबामा का लचर रूख विष्व के हित में है। फिलहाल 88 बरस बाद किसी अमेरिकी का क्यूबा में होना और 57 बरस बाद क्यूबा पर से अमेरिकी प्रतिबंध हटने के आसार के चलते क्यूबा भी अमेरिका के प्रति न केवल संवेदनषील होगा बल्कि भारत के साथ उसके सम्बंध और भी प्रगाढ़ हो सकते हैं।




सुशील कुमार सिंह

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