Friday, August 21, 2015

बिहार के आर्थिक पैकेज का निहितार्थ

बिहार के चुनावी सरगर्मी के बीच मोदी सरकार के भारी-भरकम आर्थिक पैकेज का भले ही राजनीतिक मतलब निकाला जाए पर यह सच है कि बीते कई महीनों से बिहार को एक बड़े आर्थिक पैकेज की दरकार थी। देर से ही सही अरसे से किया जा रहा आर्थिक इंतजार अब पूरा हुआ। यकीनन भाजपा बिहार के लोगों को
1.65 लाख करोड़ की राषि को ध्यान में रखते हुए यह समझाने की कोषिष करेगी कि इसके पीछे उसका मन्तव्य सियासती न होकर बिहार की असल चिंता है पर विरोधी इस बात को कतई नहीं मानेंगे। सवाल यह जरूर उठेगा कि चुनावी मौके पर दिया जाने वाला यह धन केवल वोटरों में साख बढ़ाने की भाजपा की कोषिष तो नहीं है। एक तरफ आर्थिक पैकेज को चुनावी रिष्वतखोरी बताई जा रही है तो दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि मांग विषेश राज्य के दर्जे की थी न कि आर्थिक पैकेज की। वैसे बिहार की सियासत काफी पैनापन लिए होती है मगर इन दिनों विरोधी खेमा भाजपा को षिकस्त देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने के लिए गुटबाजी किए हुए है। जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन की मुष्किल यह है कि इस आर्थिक घोशणा का सीधे-सीधे विरोध करने का खतरा नहीं उठा सकते। फिलहाल पैकेज की घोशणा के साथ ही मोदी ने सूबे का भाग्य बदलने की कवायद षुरू कर दी है।
केन्द्र द्वारा दिये जाने वाले ऐसे आर्थिक पैकेज राज्यों के लिए हमेषा ताकत बढ़ाने का काम करते रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार की जनता को इसका लाभ मिलेगा। एक दषक पहले बिहार और उत्तर प्रदेष सहित कुछ प्रांत को मिलाकर बीमारू राज्य की संज्ञा दी गयी थी। ये ऐसे राज्य थे जहां पर षिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार जैसे तमाम कारक कमोबेष निराषा से भरे थे। चिन्ह्ति राज्यों को समय-समय पर केन्द्र सरकार द्वारा राषि आबंटित की जाती थी ताकि ये अपने विकास की मुख्यधारा में आ सके। केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का विस्तृत वर्णन विधायी, कार्यकारी एवं वित्तीय के तौर पर संविधान में भी देखा जा सकता है। वित्तीय मामलों में राज्यों की यह दरकार रही है कि केन्द्र हर मौके पर उनका साथ दे पर विडम्बना यह है कि कई राज्य केन्द्र की उपेक्षा का षिकार तब होते हैं जब केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारे होती हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार प्रधानमंत्री मोदी के धुर विरोधी हैं। जब भाजपा ने इन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोशित किया था तब एनडीए से सबसे पहले नीतीष कुमार ही हटे थे।
फिलहाल बिहार को एक बड़ी सौगात मिल गयी है। ऐसी ही सौगात वाजपाई सरकार के समय 2003 में और मनमोहन के समय में भी मिली थी। पैकेज का राजनीतिक मतलब यदि होता भी है तो भी सकून इस बात का होना चाहिए कि यह राज्य के विकास में यह सहायक का काम करेगा क्योंकि बिहार में चुनावी माहौल कायम हो रहा है ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप का होना कोई हैरत वाली बात नहीं है। नीतीष कुमार ने पैकेज पर नाखुषी जताई है और ऐसा करने वाली मजबूरी भी उनकी समझी जा सकती है। लालू प्रसाद और राहुल गांधी ने भी बिहार के आर्थिक पैकेज को लेकर आपत्ति जता दी है। धुर विरोधियों से इससे अधिक की अपेक्षा नहीं की जा सकती। अब सवाल है कि पैकेज तो दिया जा चुका है तो फिर ऐसे में बिहार को इसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए, आधारभूत ढांचे के विकास के साथ सुषासन की बयार बहानी चाहिए। यहां उद्योगों की बहुतायत में आवष्यकता है उद्योग स्थापित करके पलायन को भी रोका जा सकता है, रोजगार के अवसर को भी बढ़ाया जा सकता है साथ ही कमजोर आर्थिक आधार से मुक्त होते हुए बिहार बेहतर होने की ओर भी जा सकता है।
बिहार के आर्थिक पैकेज की घोशणा के साथ ही उड़ीसा ने भी मांग तेज कर दी है। सभी राज्यों को समय-समय पर उचित आर्थिक मदद की जरूरत होती है पर किसका समय कब आयेगा यह तो केन्द्र सरकार ही निर्धारित करेगी। फिलहाल आर्थिक पैकेज के पीछे का मन्तव्य चाहे जो हो पर इसका एक सकारात्मक भाव यह है कि इससे तरक्की और उत्थान का कद बढ़ेगा। यदि विषेश पैकेज के प्रावधानों में खामी को देखा जाए तो सिर्फ यह है कि समय ठीक नहीं है लेकिन यह कहां तक ठीक है कि आधारहीन आरोप आर्थिक मुनाफे के बावजूद भी लगाया जाए। नीतीष कुमार को भी यह समझ लेना चाहिए कि भले ही चुनाव और इस आर्थिक पैकेज का कोई सम्बन्ध बनता हो पर उनकी चिंताओं को मोदी ने कम किया है। तल्खी सियासत की रखी जा सकती है परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि जनता को इसमें पीसा जाए। सबकी अपनी-अपनी जिम्मेदारी है और इसे पूरा किया भी जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस इरादे और वादे के साथ धन का लेन-देन हुआ है उसका पूरा लाभ जनता तक पहुंचे। हमेषा यह खतरा बना रहता है कि दिल्ली एवं राज्य की राजधानियों से निर्गत होने वाला धन विकास तक पहुंचते-पहुंचते भारी मात्रा में लोप का षिकार हो जाता है। इस पैकेज को सब्जबाग न समझते हुए, चुनावी सियासत का जुमला न समझते हुए विकास की धारा से जोड़ा जाए तो राजनीति को और चमकदार बनाया जा सकता है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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