Wednesday, August 12, 2015

विपक्षी टूटन पर दांव सफल होगा

सदन में 40 लोग मिलकर 440 से अधिक सदस्यों का हक नहीं मार सकते पूरे देष में इससे गलत संदेष जा रहा है यह लोकतंत्र नहीं बल्कि उसकी हत्या है। यह कथन व्यथित लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का है जो पिछले तीन सप्ताह से संसद के न चलने और विरोधियों द्वारा सदन को बन्धक बनाये जाने के चलते परेषान हैं। हालांकि इन दिनों सियासत का टर्निंग प्वाइंट भी देखने को मिल रहा है। समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव की बदली भूमिका को लेकर प्रधानमंत्री मोदी अब सराह रहे हैं दरअसल ऐसा मुलायम सिंह के संसद चलने देने की मांग को लेकर सम्भव हुआ। इसका एक अर्थ यह भी है कि 44 सदस्यों वाली कांग्रेस के साथ अब मुलायम सिंह यादव नहीं है। समाजवादी पार्टी चाहती है कि सरकार को सदन में बोलने की इजाजत दी जाए। यह एक प्रकार से कांग्रेस को अल्टीमेटम भी है कि आगे विरोध हुआ तो विरोधी की एकजुटता खण्डित हो जाएगी। बावजूद इसके कांग्रेस का विरोध उसी सियासी तल्खी के साथ अभी भी जला-भुना है। देखा जाए तो अब विरोधी खेमा आपसी टूटन पर पहुंच चुका है इसकी बानगी देखने को तब मिली जब मुलायम की बोलने की बारी आयी तो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी षेम-षेम के नारे लगाने लगीं। यह विडम्बना ही है कि जिस सोनिया और मुलायम के बीच विरोध की गुफ्तगु होती थी आज उसी में एक विपक्षी तो एक पक्षकार बन गया है, साफ है कि विपक्षी टूटन की कगार पर हैं।
संसद चलने के लिए राहुल गांधी की षर्त कमोबेष पहले जैसी ही है। पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक सोनिया की तारीफ भी इसलिए कर रही हैं क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने में ममता खलल के चलते केन्द्र सरकार का तिरस्कार इन पर भी हावी रहा है। सोनिया ने भी ममता को मायूस न करते हुए कह दिया कि यह सब तो आप ही से सीखा है। इन दिनों यह भी देखने को मिल रहा है कि मानो सियासत का केन्द्र कुछ महिलाओं तक सीमित है। जहां विरोध में सोनिया हैं वहीं विरोध झेलने में सुशमा स्वराज और इन दोनों के बीच महिला स्पीकर सुमित्रा महाजन हैं। लोकसभा में सदन की कार्यवाही जिस कदर बिगड़ी है इसका मुख्य कारण ‘मिस पार्लिमेन्टरी मेनेजमेन्ट‘ रहा है। ललितगेट और व्यापमं घोटाले पर हंगामा जस का तस बना हुआ है। मर्यादाहीन होती संसद और बिना कार्यवाही के नाष के कगार पर खड़ा मानसून सत्र बड़ी तबाही झेल रहा है। वरिश्ठ नेता लाल कृश्ण आडवाणी का धैर्य भी अब जवाब दे रहा है, वे संसदीय कार्यमंत्री से हाथ जोड़ कर सदन से चलता बने। असल में सदन में इरादा और मर्यादा जब दोनों तबाह होने लगें तो सदन में सर्वाधिक समय बिताने वाले नेता हतप्रभ रह जाते हैं आडवाणी ऐसे ही किस्म के नेता हैं।
हैरानी की बात नहीं कि मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद हुए चार सत्रों में सबसे खराब सत्र मानसून सत्र ही होगा। दुनिया के दूसरे बड़े लोकतंत्र भी हैं जहां सत्र इस तरह से बेहाल नहीं किये जाते और न ही उनकी बैठकें औसतन भारत की तुलना में इतनी मायूस करने वाली होती हैं। अमेरिकी सीनेट में एक वर्श में औसतन 180 दिन, ब्रिटेन के हाउस आॅफ काॅमन्स में 130 दिन और फ्रांस की नेषनल एसेम्बली में 149 बैठकें होती हैं जबकि भारत में यह आंकड़ा मात्र 80 का है। आंकड़े यह दर्षाते हैं कि लोकतंत्र के मामले में अकूत ताकत रखने वाला भारत उन्हीं के बारे में निहायत संकीर्ण सोच रखता है। देष की प्रगति और विकास संसद भवन से होकर गुजरता है पर हैरत की बात यह है कि संसद भवन सत्ता और विपक्ष के अखाड़े में तब्दील है। आने वाले षनिवार को स्वतंत्रता की 68वीं वर्शगांठ मनाई जाएगी पर दुनिया में हमारे राजनीतिज्ञ इन दिनों गांधीगिरी के बजाय एक ऐसा चेहरा प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे विष्व भर में भारत की छवि धूमिल हो रही है। क्या सांसदों को अपने अन्दर झांकने की जरूरत नहीं है यदि झांकेगे तो पाएंगे कि जिस दिन उन्होंने कोई काम नहीं किया है उस दिन देष को उसी गति से पीछे धकेला है जिस गति से जुबानी जंग लड़ रहे हैं। यदि कांग्रेस की मांग इतनी ही वजनदार थी तो उसका अब तक का प्रयास निरर्थक क्यों गया?
विपक्षी टूटन से अब कांग्रेस हाषिये पर जा सकती है पर क्या इसका फायदा सत्ता पक्ष को होगा संदेह है। यदि वामपंथी सहित कुछ को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के साथ कम से कम इस मामले में बाकी सहमत नहीं होंगे कि अभी भी सदन न चले। सरकार नियम 193 के तहत बहस कराना चाहती है इस बहस के बाद वोटिंग का कोई प्रावधान नहीं होता इसके तहत होने वाले बहस को लेकर भी विरोधी एकमत नहीं है। स्पीकर ने झल्लाकर लोकसभा टीवी से यह अनुरोध कर दिया कि वह देष को दिखायें कि उनके सांसद कैसे बर्ताव कर रहे हैं। हालात को देखते हुए जीएसटी बिल भी अब संकट में जाता हुआ दिखाई दे रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक की तो यहां कोई गिनती ही नहीं है। मानसून सत्र में 30 विधेयक चर्चे में आ सकते थे पर स्थिति यह है कि जीएसटी पर बना बनाया खेल भी बिगड़ सकता है। राज्यसभा में चर्चे के लिए इस पर सहमति नहीं हो पायी। वित्तमंत्री का मानना है कि विधेयक प्रवर समिति के पास था इसलिए इसे पहले से पेष माना जाए। कहा जाए तो हर दांव आजमाने के बाद सदन की हालत नहीं सुधरी। राज्यसभा में फिलहाल 244 सदस्य हैं कांग्रेस के 68, वाम के 10 यदि ये खिलाफ जाते हैं या वाकआउट करते हैं तो सरकार को 166 जरूरी वोट मिल जाएंगे और महीनों से अटके विधेयक कानून में बदल जाएंगे। फिलहाल बीते तीन सप्ताह से संसद की पिच पर चलने वाला खेल का परिणाम अनिर्णीत की ओर जा रहा है। यदि अब भी विरोधी विरोध करना नहीं छोड़ते और सरकार स्थिति को संभालने में कामयाब न हो सकी तो यह भविश्य के लिए अच्छे संकेत तो नहीं कहे जाएंगे।



लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्ससाइज आॅफिस के सामने,
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