इजराइल, फिलिस्तीन सहित खाड़ी के देषों में लगातार परिवर्तन हो रहा है जिसका असर पष्चिम एषिया पर गहरे तरीके से पड़ा है। भारत इन परिवर्तनों के मद्देनजर अपनी नीतियों में आये दिन बदलाव करता रहा है। भारत का दृश्टिकोण कभी एकांगी न था जितनी षिद्दत से उसने पूरब की ओर देखने की कोषिष की उतनी ही चाहत लिए वह पष्चिम की ओर भी ताकने का प्रयास किया। खाड़ी देष तेल निर्यात के मामले में वैष्विक भण्डार है जबकि आयात के मामले में भारत की निर्भरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। वर्श 2020 तक खाड़ी क्षेत्र द्वारा कच्चे तेल पर वैष्विक आवष्यकताओं का 54 से 67 फीसदी आपूर्ति सम्भव मानी जा रही है। इसके अलावा कई ऐसे कारक विद्यमान हैं जिसके चलते पष्चिम के देषों के साथ भारत नए सिरे से एक बेहतर सम्बन्ध की आवष्यकता महसूस कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसी कुछ सम्भावनाओं से ओत-प्रोत बीते रविवार को यूएई की दो दिवसीय यात्रा पर पहुंचे। उम्मीद की जा रही है कि व्यापार और आतंकवाद का मुकाबला जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के उपायों का दोनों देषों के बीच एक सकारात्मक चर्चा होगी। साथ ही यह भी प्रयास रहेगा कि यूएई का ध्यान ‘मेक इन इण्डिया‘ के माध्यम से भारत में निवेष के लिए खींचा जाए। यह सर्वविदित है कि ‘पूर्व की ओर देखो‘ की नीति व्यापार एवं आर्थिक सम्बन्धों में मजबूती के कारण ही काफी हद तक सफल हुई है। इसी फलसफे को ध्यान में रखते हुए पीएम का एजेण्डा ‘पष्चिम की ओर देखो‘ का भी है ताकि व्यवसायिक रिष्तों को सुधारा जा सके और यूएई के साथ द्विपक्षीय नीतियों को आगे बढ़ाया जा सके। इन दिनों आतंकी संगठन इस्मालिक स्टेट की वजह से पनपे संकट को लेकर भी दोनों देषों में बातचीत की दरकार है।
भारत और यूएई के बीच सामाजिक और व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन काल से रहे हैं। सामान्यतः यह मैत्रीपूर्ण अवस्था अभी भी कायम है। भारत से मसाले और कपड़े अमीरात क्षेत्र को और अमीरात क्षेत्र से भारत को मोती और खजूर भेजे जाते रहे हैं। पष्चिमी तट विषेश रूप से मालावार तट में भारत के प्रमुख व्यापारिक अड्डे षारजाह एवं दुबई जो अरब सागर को जोड़ने के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक सम्बन्धों के काम आते रहे हैं। दोनों देषों के बीच होने वाली अनेक उच्चस्तरीय यात्राएं इनके बेहतर सम्बन्धों के प्रमाण है। मार्च 2007 में उप-राश्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा दुबई के षासक षेख मोहम्मद ने भारत की यात्रा की। 2008 भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात के मध्य मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय सम्बंधों को कहीं अधिक मजबूत बनाने का वर्श था। तत्कालीन विदेष मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसी वर्श अरब की यात्रा की थी। इसके पूर्व अप्रैल माह में यूएई के विदेष मंत्री की भी भारत यात्रा हुई थी। तभी से दोनों देषों के बीच एक नए अध्याय की षुरूआत हुई थी। इतिहास के पन्नों में दोनों देषों के सम्बन्धों को उकेर कर देखा जाए तो पिछले तीन-चार दषकों में काफी सकारात्मक कूटनीति देखने को मिलती है। 1994 में नषीली दवाओं और तस्करी की रोकथाम से जुड़ा समझौता, 1989 में नागरिक उड्यन समझौता जबकि इसके पूर्व 1975 में सांस्कृतिक सहित कई समझौते देखने को मिलते हैं मोदी जिस भी देष की यात्रा करते हैं वहां के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं में षामिल होना नहीं भूलते। इसी तर्ज पर वे अबू धाबी की षेख जायद ग्रांड मस्जिद भी गये। वहां उन्होंने मस्जिद के सामने सेल्फी ली। सेल्फी का प्रकरण भी मोदी चलन के चलते अधिक चर्चे में माना जा सकता है। बहरहाल किसी मस्जिद में प्रधानमंत्री मोदी पहली बार गये हैं।
धार्मिक सम्बन्धों का एक गुणात्मक परिप्रेक्ष्य तब और अधिक मजबूती से सामने आया जब यूएई ने भारतीय समुदाय को मन्दिर निर्माण के लिए राजधानी में जमीन आबंटित करने का निर्णय लिया। दुबई में दो मन्दिर हैं एक भगवान षिव का और एक कृश्ण का मगर अबू धाबी में कोई मन्दिर नहीं था जो अब सम्भव हो सकेगा। इतना ही नहीं मन्दिर की यह कूटनीति दोनों देषों के बीच और अधिक ऊर्जा का संचार करेगी। यूएई में आबादी के लिहाज़ से 30 फीसदी भारतीय हैं ऐसे में धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के नजरिये से देखा जाए तो यूएई में एक छोटे हिन्दुस्तान की बसावट है। हालांकि भारतीय जनसमुदाय को यहां अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसमें उनका षोशण भी षामिल है। वित्तीय समस्याएं, एकांकीपन, षराब का सेवन करना तथा वैवाहिक आदि समस्याओं के चलते भारतीयों की आत्महत्या दर विगत् कुछ वर्श पहले बढ़ी थी। भारत में विभिन्न अपराधों में वांछित अनेक असामाजिक तत्व यूएई में सुरक्षित अभ्यारण्य पाते हैं जैसे दुबई आदि। फिलहाल मोदी ने यूएई को मिनी इण्डिया बताते हुए उसे दिल के बेहद करीब बताया। प्रधानमंत्री ने खाड़ी देषों में हिंसा और अस्थिरता पर भी दुःख प्रकट किया। भारत जिस षान्तिप्रियता का द्योतक बनना चाहता है उसमें हिंसा, आतंक, तस्करी एवं कुरीतियों का कोई स्थान नहीं है परन्तु अफसोस की बात यह है कि खाड़़ी देष इन झंझवातों में फंसे हैं। ऐसे में कुछ देषों को छोड़ दिया जाए तो पष्चिम की ओर देखो रणनीति पूरी सफल होगी कहना कठिन है। जिस प्रकार यूएई से भारत का सम्बन्ध रहा है उसे देखते हुए संधियों और समझौतों का विष्वास न किये जाने का कोई गैर वाजिब पक्ष नहीं दिखाई देता। परन्तु आतंकवाद को लेकर जो अपेक्षाएं भारत रखता है उस पर अभी कईयों को खरा उतरना बाकी है। ऐसे में आर्थिक और वाणिज्यिक दृश्टि से सम्बन्धों की षालीनता को तो समझना आसान है पर हिंसा और आतंक के मामले में निष्चित होना थोड़ा मुष्किल है। यूएई जैसे देषों पर कई पष्चिमी देषों की भी नजर रही है। सम्बन्ध को लेकर बहुत खींचातानी तो सम्भव नहीं है पर इतना जरूर है कि एक सकारात्मक निवेष को भारत में इसके माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है ‘मेक इन इण्डिया‘ को प्रभावषाली ढंग से पेष किया जा सकता है साथ ही सुरक्षा सहयोग पर भी वार्ता सम्भव है।
अरब देषों में यूएई एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक एवं आर्थिक हब है। सिंगापुर एवं हांगकांग के बाद पुर्ननिर्यातक केन्द्र भी है। भारत भी विष्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है ऐसे में दोनों के बीच व्यापारिक साझेदारी अपरिहार्य है। अमेरिका के बाद यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है ऐसे में भारतीय उत्पाद के लिए एक बड़ा और बेहतर बाजार हो सकता है। जिस प्रकार आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग के लिए जनवरी 1975 में भारत-यूएई संयुक्त आयोग की स्थापना की गयी थी उससे साफ था कि प्रगति की रेखा लम्बी होनी ही चाहिए। मोदी से पहले 1981 में पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी भी यूएई गयी थी। 34 साल के अन्तराल के बाद मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो यूएई का दौरा कर रहे हैं। इन तमाम से यह दृश्टिगोचर होता है कि पष्चिम की ओर देखो का नजरिया भारत में हमेषा से रहा है। यूएई में 26 लाख भारतीय हैं इनमें बड़ी संख्या बिहार के मुसलमानों की है। तेल संसाधनों से भरपूर यूएई के दौरे से भारत काफी उम्मीदे रखता है। इसमें कोई षक नहीं कि इन दिनों यूएई भी मोदीमय हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की एक खासियत यह भी है कि भारतीय समुदाय को विदेष की धरती पर सम्बोधित करना नहीं भूलते। अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया की भांति ही यूएई में भी इसी प्रकार के सम्बोधन से विदेष में हिन्दुस्तान की झलक दिखाने का काम भी मोदी करेंगे।
भारत और यूएई के बीच सामाजिक और व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन काल से रहे हैं। सामान्यतः यह मैत्रीपूर्ण अवस्था अभी भी कायम है। भारत से मसाले और कपड़े अमीरात क्षेत्र को और अमीरात क्षेत्र से भारत को मोती और खजूर भेजे जाते रहे हैं। पष्चिमी तट विषेश रूप से मालावार तट में भारत के प्रमुख व्यापारिक अड्डे षारजाह एवं दुबई जो अरब सागर को जोड़ने के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक सम्बन्धों के काम आते रहे हैं। दोनों देषों के बीच होने वाली अनेक उच्चस्तरीय यात्राएं इनके बेहतर सम्बन्धों के प्रमाण है। मार्च 2007 में उप-राश्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा दुबई के षासक षेख मोहम्मद ने भारत की यात्रा की। 2008 भारत तथा संयुक्त अरब अमीरात के मध्य मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय सम्बंधों को कहीं अधिक मजबूत बनाने का वर्श था। तत्कालीन विदेष मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसी वर्श अरब की यात्रा की थी। इसके पूर्व अप्रैल माह में यूएई के विदेष मंत्री की भी भारत यात्रा हुई थी। तभी से दोनों देषों के बीच एक नए अध्याय की षुरूआत हुई थी। इतिहास के पन्नों में दोनों देषों के सम्बन्धों को उकेर कर देखा जाए तो पिछले तीन-चार दषकों में काफी सकारात्मक कूटनीति देखने को मिलती है। 1994 में नषीली दवाओं और तस्करी की रोकथाम से जुड़ा समझौता, 1989 में नागरिक उड्यन समझौता जबकि इसके पूर्व 1975 में सांस्कृतिक सहित कई समझौते देखने को मिलते हैं मोदी जिस भी देष की यात्रा करते हैं वहां के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं में षामिल होना नहीं भूलते। इसी तर्ज पर वे अबू धाबी की षेख जायद ग्रांड मस्जिद भी गये। वहां उन्होंने मस्जिद के सामने सेल्फी ली। सेल्फी का प्रकरण भी मोदी चलन के चलते अधिक चर्चे में माना जा सकता है। बहरहाल किसी मस्जिद में प्रधानमंत्री मोदी पहली बार गये हैं।
धार्मिक सम्बन्धों का एक गुणात्मक परिप्रेक्ष्य तब और अधिक मजबूती से सामने आया जब यूएई ने भारतीय समुदाय को मन्दिर निर्माण के लिए राजधानी में जमीन आबंटित करने का निर्णय लिया। दुबई में दो मन्दिर हैं एक भगवान षिव का और एक कृश्ण का मगर अबू धाबी में कोई मन्दिर नहीं था जो अब सम्भव हो सकेगा। इतना ही नहीं मन्दिर की यह कूटनीति दोनों देषों के बीच और अधिक ऊर्जा का संचार करेगी। यूएई में आबादी के लिहाज़ से 30 फीसदी भारतीय हैं ऐसे में धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के नजरिये से देखा जाए तो यूएई में एक छोटे हिन्दुस्तान की बसावट है। हालांकि भारतीय जनसमुदाय को यहां अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसमें उनका षोशण भी षामिल है। वित्तीय समस्याएं, एकांकीपन, षराब का सेवन करना तथा वैवाहिक आदि समस्याओं के चलते भारतीयों की आत्महत्या दर विगत् कुछ वर्श पहले बढ़ी थी। भारत में विभिन्न अपराधों में वांछित अनेक असामाजिक तत्व यूएई में सुरक्षित अभ्यारण्य पाते हैं जैसे दुबई आदि। फिलहाल मोदी ने यूएई को मिनी इण्डिया बताते हुए उसे दिल के बेहद करीब बताया। प्रधानमंत्री ने खाड़ी देषों में हिंसा और अस्थिरता पर भी दुःख प्रकट किया। भारत जिस षान्तिप्रियता का द्योतक बनना चाहता है उसमें हिंसा, आतंक, तस्करी एवं कुरीतियों का कोई स्थान नहीं है परन्तु अफसोस की बात यह है कि खाड़़ी देष इन झंझवातों में फंसे हैं। ऐसे में कुछ देषों को छोड़ दिया जाए तो पष्चिम की ओर देखो रणनीति पूरी सफल होगी कहना कठिन है। जिस प्रकार यूएई से भारत का सम्बन्ध रहा है उसे देखते हुए संधियों और समझौतों का विष्वास न किये जाने का कोई गैर वाजिब पक्ष नहीं दिखाई देता। परन्तु आतंकवाद को लेकर जो अपेक्षाएं भारत रखता है उस पर अभी कईयों को खरा उतरना बाकी है। ऐसे में आर्थिक और वाणिज्यिक दृश्टि से सम्बन्धों की षालीनता को तो समझना आसान है पर हिंसा और आतंक के मामले में निष्चित होना थोड़ा मुष्किल है। यूएई जैसे देषों पर कई पष्चिमी देषों की भी नजर रही है। सम्बन्ध को लेकर बहुत खींचातानी तो सम्भव नहीं है पर इतना जरूर है कि एक सकारात्मक निवेष को भारत में इसके माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है ‘मेक इन इण्डिया‘ को प्रभावषाली ढंग से पेष किया जा सकता है साथ ही सुरक्षा सहयोग पर भी वार्ता सम्भव है।
अरब देषों में यूएई एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक एवं आर्थिक हब है। सिंगापुर एवं हांगकांग के बाद पुर्ननिर्यातक केन्द्र भी है। भारत भी विष्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है ऐसे में दोनों के बीच व्यापारिक साझेदारी अपरिहार्य है। अमेरिका के बाद यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है ऐसे में भारतीय उत्पाद के लिए एक बड़ा और बेहतर बाजार हो सकता है। जिस प्रकार आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग के लिए जनवरी 1975 में भारत-यूएई संयुक्त आयोग की स्थापना की गयी थी उससे साफ था कि प्रगति की रेखा लम्बी होनी ही चाहिए। मोदी से पहले 1981 में पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी भी यूएई गयी थी। 34 साल के अन्तराल के बाद मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो यूएई का दौरा कर रहे हैं। इन तमाम से यह दृश्टिगोचर होता है कि पष्चिम की ओर देखो का नजरिया भारत में हमेषा से रहा है। यूएई में 26 लाख भारतीय हैं इनमें बड़ी संख्या बिहार के मुसलमानों की है। तेल संसाधनों से भरपूर यूएई के दौरे से भारत काफी उम्मीदे रखता है। इसमें कोई षक नहीं कि इन दिनों यूएई भी मोदीमय हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की एक खासियत यह भी है कि भारतीय समुदाय को विदेष की धरती पर सम्बोधित करना नहीं भूलते। अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया की भांति ही यूएई में भी इसी प्रकार के सम्बोधन से विदेष में हिन्दुस्तान की झलक दिखाने का काम भी मोदी करेंगे।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
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