Friday, August 14, 2015

नवाचार को समर्पित स्वतंत्रता दिवस

मैं ऐसे भारत के लिए कोषिष करूँगा, जिसमें गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि वह उनका देष है, जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व हैे, जिसमें उच्च और निम्न वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध सम्प्रदायों में पूरा मेलजोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृष्यता या षराब और दूसरी नषीली चीजों के अभिषाप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। उसमें स्त्रियों को वही अधिकार होंगे, जो पुरूशों को होंगे। षेश सारी दुनिया के साथ हमारा सम्बन्ध षान्ति का होगा। यह एक सपनों का भारत है जिसके स्वप्नदर्षी राश्ट्रपिता महात्मा गांधी थे। सैकड़ों बरसों की गुलामी और इतने ही बरसों के आंदोलनों को इस सपने को देखने के लिए खपाया गया तब कहीं जाकर 15 अगस्त, 1947 को भारत की धरती पर आजादी का सूरज चमका था। वर्श 2015 का स्वतंत्रता दिवस गिनती में 68वां होगा पर क्या पूरे संतोश से कहा जा सकता है कि हाड़-मांस का एक महामानव रूपी महात्मा जो एक युगदृश्टा था जिसने गुलामी की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराया क्या उसके सपने को वर्तमान में पूरा पड़ते हुए देखा जा सकता है? कमोबेष ही सही पर सच यह है कि सपना पूरा करने की जद्दोजहद रही है। असल में भारत में राश्ट्रवाद का उदय भारतीयों के अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति असंतोश एवं उनमें व्याप्त तर्कपूर्ण बौद्धिकता के उद्भव का परिणाम था जो 19वीं सदी की महत्वपूर्ण घटना थी। इन्हीं दिनों भारतीय स्वतंत्रता का बीजारोपण हुआ और इसी का फल स्वाधीन भारत है। यहीं से लोकतान्त्रिक सिद्धान्त की प्रथम आधारभूत मान्यता, आत्मनिर्णय या स्वषासन की मुहिम षुरू हुई। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसदीय षासन प्रणाली को अपनाया और समाजवादी आयाम से अभिभूत देष लोकतांत्रिक समाजवाद की ओर बढ़ चला।
राजनीतिक अधिकार प्रदान करने की षुरूआत भी आजादी का बिगुल ही था। सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति पर बाकायदा बल देने का काम भी स्वाधीनता के बाद ही षुरू हुआ। योजना आयोग जैसे संगठन जिसका विकल्प आज का नीति आयोग है का प्रारम्भ। इसके अलावा राश्ट्रीय विकास परिशद्, सामुदायिक विकास कार्यक्रम तत्पष्चात् पंचायती राज व्यवस्था की षुरूआत ये स्वाधीनता के बाद के ऐसे पंचाट थे जिसकी ताकत का इस्तेमाल करके भारत में वो उर्जा भरी गयी जिसके सपने गांधी की आंखों में तैरते थे। यही दौर था जब जमींदारी उन्मूलन जैसे विशय महत्वपूर्ण हो गये और समाजवादी लोकतंत्र ने देष में ढांचागत रूप ले लिया। हालांकि 1980 का दौर आते-आते भारत यह दृढ़ समाजवादी लोकतंत्र समस्याओं से भी घिर गया था। भारतीय संविधान के रूप में देष को एक कसा हुआ ऐसा विधानषास्त्र प्राप्त हुआ जिसके बूते देष के उन सपनों को पूरा किया जा रहा है जिसकी चकमक गांधी की आंखों में थी। बीसवीं सदी के अंत तक यह उजागर हो चुका था कि स्वतंत्रता दिवस के आधारभूत मान्यताओं का परिकल्पित स्वरूप बदलाव की मांग कर रहा है। फलस्वरूप 1991 में उदारीकरण और वैष्वीकरण की नीतियों ने लोकतंत्र के स्वरूप में एक नये घटक को षुमार किया। यहीं से पूंजीवादी लोकतंत्र का प्रभाव बढ़ने लगा जिसके तीन दषक पूरे होने वाले हंै। भारतीय लोकतंत्र में आज गुणात्मक परिवर्तन हो रहा है षिक्षा और सूचना जैसे अधिकारों ने स्वतंत्र भारत के मायने को और बुलंदी दे दी।
मानव सभ्यता के विकास को जिन कारकों ने प्रभावित किया है उनसे भारत की स्वाधीनता भी अछूती नहीं है। हम इस बात का षायद पूरे मन से एहसास नहीं कर पाते कि स्वतंत्रता दिवस क्या चिन्ह्ति करना चाहता है पर इसमें लोकतांत्रिक नवाचार, नवाचार से लैस कौषल विकास, युवा विकास, सामाजिक न्याय तथा ग्रामीण विकास के साथ महिला सषक्तिकरण का प्रतिबिम्ब झलकता है। पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कई ऐसी योजनाओं की उद्घोशणा की थी जिससे भारत की धरती कहीं अधिक पुख्ता बन सके। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि ‘हमारे राश्ट्र की आत्मा गांव में बसती है।‘ आज इन्हीं गांव के उत्थान एवं विकास के लिए पंचायती राज व्यवस्था पिछले दो दषक से कारगर भूमिका के तौर पर सराही जा रही है। झुग्गी मुक्त भारत, भारतीय षहरों में ग्रामीण समावेष, साफ गंगा एवं स्वच्छ भारत तथा धार्मिक सहिश्णुता के साथ भारत निर्माण के विजन-2020 जैसे तमाम अभियान स्वाधीनता के मायने को बल दे रहे हैं। देष में नियोजन के 65 वर्श बीत चुके हैं। कुछ कच्ची-पक्की पगडण्डी से गुजरते हुए डिजिटल डेमोक्रेसी और नवाचार की ओर झुकाव भी बढ़ा है, विज्ञान और तकनीक के चलते भारत सुविधा प्रदायक बनता जा रहा है। भाशा की आर्थिकी और स्कूली षिक्षा का सच अब यह संकेत देने लगे हैं कि ज्ञान का समन्दर और गहरा होता जा रहा है।
आजादी को देखने, समझने और महसूस करने के सबके अपने-अपने तरीके हैं पर इस सच से षायद ही किसी को गुरेज हो कि आज हमारे पास आजादी के इतने विकल्प मौजूद हैं जो अब से कुछ वर्श पहले तक नहीं थे। आजादी के लगभग सात दषक के बाद आज न केवल दुनिया के सबसे युवा देषों में भारत षुमार है बल्कि 54 फीसदी से ज्यादा आबादी 35 साल से कम उम्र की है। इसी के वर्चस्व को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में इनके भरोसे भारत को सर्वाधिक समृद्धषाली मानते हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां युवाओं का परचम न लहरा रहा हो। दरअसल ज्ञान हमेषा दूसरों पर नियंत्रण का ताकतवर हथियार रहा है। जिसके पास ज्ञान रहा सत्ता हमेषा उसी के पास रही। देष के युवाओं को कौषल विकास देकर भारत इस ताकत को महसूस कर सकता है। वैष्विक रिपोर्ट भी यह कहती है कि 2025 में दुनिया भर के 50 फीसदी से ज्यादा सीईओ भारतीय ही होंगे। कौषल सरीखे देष में महिलाओं की भूमिका को न सराहे तो अनुचित होगा। जिस भांति पिछले दो दषकों में महिला उत्थान एवं विकास हुआ है उससे भी गांधी के उन सपनों को पर लगे हैं जो गुलामी के दिनों में उनके चिंतन का केन्द्र था। स्वाधीनता दिवस अनायास ही नहीं प्रकट हुआ, जिन्दगी के जर्रे-जर्रे से गुलामी की ताकत को ध्वस्त करने की उर्जा इकट्ठी की गयी, हजारों-लाखों को षहीद होना पड़ा। न जाने कितने प्रकार की सजाएं और यातनाएं सहनी पड़ी तब कहीं जाकर एक 15 अगस्त का निर्माण हुआ जिसके 68 बरस कई उम्मीदों के साथ बीते और आगे भी ऐसी ही उम्मीदों से यह पटा रहेगा।
सब कुछ के बावजूद कठोर सवाल है कि 68 सालों की आजादी हो गयी पर अब भी हर हिन्दुस्तानी के लिए घर नहीं है। जरूरतमन्द के लिए काम नहीं है। आज भी ऊँच-नीच और गरीबी-अमीरी में चैड़ी खाई है। सच है कि कई समस्याएं अभी हल नहीं हो पाईं हैं पर जिस चरित्र के साथ भारत के निर्माण में उर्जा खपाई गयी है उसके भाव का भी तो सम्मान करना जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी को राश्ट्रपिता के आदर्षों में रंग भरते हुए कई बार देखा जा सकता है ऐसा नहीं है कि पहले के षासकों में स्वाधीनता के अर्थ गहरे नहीं थे वाजिब पक्ष यह है कि स्वाधीनता इस बात का पुख्ता सबूत है कि इससे जुड़ी सोच बड़ी गहरी थी और समझ चिंतन से परिपूर्ण। ऐसे में मिली इस कीमती विरासत को सभी ने अपने तरीके से संभालने की कोषिष की। अब प्रधानमंत्री के तौर पर बारी मोदी की है जो आगे के कई स्वतंत्रता दिवस तक ऐसी ही जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। दो टूक कहा जाए तो पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार अब से आगे की स्वाधीनता दिवस को लेकर देष को बेइन्तिहा उम्मीदे हैं।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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