Monday, December 12, 2022

ताकि कुशल और कौशलयुक्त बने स्कूली शिक्षा

दो साल पहले 29 जुलाई 2020 को नई राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 एक दस्तावेज के रूप में भारतीय जनमानस के सामने आया। विदित हो कि षिक्षा व्यक्ति, समाज व राश्ट्र के लिए मूलभूत आवष्यकता के तौर पर समझी जाती है। भविश्य को ध्यान में रखकर नई षिक्षा नीति तमाम पहलुओं को समेटे हुए जमीन पर उतरने के कगार पर खड़ी है और कमोबेष उतर भी रही है। हालांकि इसका समस्त विस्तार आने वाले वर्शों में पूरी तरह प्रतिबिम्बित होगा मगर मौजूदा समय में नई दृश्टि और मजबूत विवेचना के साथ बेषुमार उम्मीदें इस षिक्षा नीति से है। गौरतलब है मानव का सम्पूर्ण विकास बिना षिक्षा के सम्भव ही नहीं है। जाहिर है षिक्षा समावेषी ढंाचे का एक ऐसा आयाम है जिसका न तो कोई विकल्प है न ही इससे किसी को वंचित रखा जा सकता है। वैसे एक सघन बात यह भी है कि भारत जैसे देष के लिए षिक्षा का एक सषक्त मॉडल होना चाहिए जिसके चलते खुली दुनिया में भारत के विद्यार्थियों को स्पर्धा करना आसान हो जाये जो स्कूल की बेहतरी से सम्भव है। षिक्षा जिस तरह निजी कारोबार बनी है उसमें यह पूरी तरह गुणवत्ता से युक्त हो पायी है ऐसा कोई कारण दिखाई नहीं देता। वास्तव में देष की षिक्षा नीति में जिस समावेषी और बुनियादी विशय पर दृश्टि ही नहीं पड़ी उसमें देष के नौनिहालों का पौश्टिक आहार से युक्त होना और बौद्धिक विस्तार के लिए रखरखाव से भरी षिक्षा को पोशित करना। इसमें कोई दुविधा नहीं कि पौश्टिक आहार षरीर को बेहतर स्वास्थ देने में मदद करेंगे तो उत्कृश्ट षिक्षा सर्वांगीण विकास का अवसर प्रदान करेगा। षिक्षा और तकनीक का गहरा सम्बंध है और 21वीं सदी में यह कहीं अधिक चौड़ा रूप ले चुकी है।
चेतनामूलक दृश्टिकोण यह भी है कि स्कूली षिक्षा, उच्च षिक्षा की आधारभूत व्यवस्था है। भारतीय संविधान के भाग-3 के अंतर्गत षिक्षा एक मौलिक अधिकार है। षासन, संरचनात्मक तौर पर मजबूत व्यवस्था देकर षिक्षा को गुणवत्ता से युक्त और स्वयं को सुषासन से परिपूर्ण बना सकती है। षिक्षा और सुषासन का गहरा सम्बंध है और यह और अधिक सघन तब हो सकता है जब नई षिक्षा नीति 2020 को विषिश्टता के साथ नौनिहालों में उत्कृश्टता के साथ रोपाई सम्भव होगी। जहां तक स्कूली षिक्षा का प्रष्न है सीखने की प्रक्रिया को यदि समग्र प्रयोग और अनुप्रयोग के साथ समन्वित और आनन्ददायक रूप प्रदान कर दिया जाये तो बच्चों की बहुत कुछ सीखने और समझने की चाहत को बढ़ाया जा सकता है। हालांकि ऐसे प्रयास 2005 के नेषनल करिकुलम फ्रेमवर्क में जोर दिया गया था जहां रट कर सीखने की समस्या के समाधान की कोषिषों पर मुख्यतः जोर दिये जाने के बावजूद इसके अब भी बने रहने पर नई षिक्षा में चिंता व्यक्त किया गया। फिलहाल स्कूली षिक्षा के सुधार में राश्ट्र के समग्र विकास का संदर्भ व रहस्य छुपा है। बीते 3 नवम्बर को केन्द्रीय षिक्षा मंत्रालय के प्रदर्षन श्रेणी सूचकांक (पीजीआई 2020-21) जारी किया गया। विदित हो कि नीति आयोग ने स्कूली षिक्षा गुणवत्ता रैंकिंग के अन्तर्गत देष भर के स्कूली षिक्षा को समझने का एक जरिया देता है। जारी आंकड़े यह इषारा करते हैं कि स्कूली षिक्षा की गुणवत्ता को लेकर अन्तर बहुत भारीपन के साथ है। रैंकिंग यह दर्षाती है कि देष के बीस बड़े राज्यों में केरल सबसे अच्छा प्रदर्षन करते हुए 76.6 अंकों के साथ पहले स्थान पर है। समुच्चय दृश्टिकोण के अन्तर्गत भारत के 6 राज्यों मसलन केरल, पंजाब, चण्डीगढ़, महाराश्ट्र, गुजरात, राजस्थान और आंध्रप्रदेष समेत केन्द्रषासित चण्डीगढ़ ने एल-2 स्तर को हासिल किया जिसमें गुजरात, राजस्थान और आंध्रप्रदेष इस स्तर पर पहुंचने वाले तीन नये राज्य हैं। गौरतलब है कि इस सूचकांक में कई लेवल (स्तर) निरूपित किये जाते हैं। जैसे-जैसे षिक्षा प्रदर्षन सूचकांक में स्कोर में बढ़ोत्तरी होती है यह स्तर भी बढ़त की ओर होता है।
षिक्षा मंत्रालय के कथानुसार इस सूचकांक का मुख्य उद्देष्य साक्ष्य आधारित नीति निर्माण को बढ़ावा देना और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण षिक्षा सुनिष्चित करने हेतु पाठ्यक्रम सुधार को बेहतरी की ओर ले जाना। भारत एक विषाल देष है यहां षिक्षा लेने वालों की संख्या की एक बड़ी तादाद है इस प्रणाली के तहत लगभग 15 लाख स्कूलों, 95 लाख षिक्षकों और विभिन्न सामाजिक, आर्थिक पृश्ठभूमि से संलग्न 26 करोड़ से अधिक छात्रों से युक्त है जो पूरी दुनिया में सबसे बड़ी तादाद है। पीजीआई का संरचनात्मक परिप्रेक्ष्य समझे ंतो इसमें 70 संकेतकों में कुल जमा एक हजार अंक षामिल होते हैं जिसकी बाकायदा दो श्रेणियों में बंटवारा देखा जा सकता है। सीखने का परिणाम (एल ओ), एक्सेस (ए), आधारभूत ढांचा और सुविधाएं (आईएफ), इक्विटी (ई) और षासन प्रक्रिया (जीपी) ये श्रेणियों के 5 डोमेन हैं। उक्त सूचकांक दस ग्रेड में वर्गीकृत किया गया है जिसका उच्चत्तम ग्रेड स्तर एक है। कुल हजार अंक में से 950 से अधिक अंक पाने वाले इसी श्रेणी में आते हैं जबकि जिन राज्यों या केन्द्रषासित प्रदेषों का अंक 500 से नीचे होता है वो ग्रेड स्तर 10 में रहते हैं। उक्त सूचकांक देष की स्कूली षिक्षा को समझने का न केवल अवसर देते हैं बल्कि गुणवत्ता को लेकर एक स्पर्धा का भी निर्माण कर सकते हैं। गौरतलब है कि मानव विकास सूचकांक दुनिया को अपनी कसौटी पर कसता है। इसी तर्ज पर स्कूली षिक्षा सूचकांक भी स्कूली षिक्षा की गुणवत्ता की परख है मगर कई राज्य इस मामले में अच्छी अवस्था में तो नहीं है।
उत्तराखण्ड स्कूली षिक्षा के लिए पूरे देष में बेहतरी के लिए जाना जाता है मगर यह लेवल-6 के अंतर्गत है जिसका अर्थ है कि कुल हजार अंकों में 701 से 750 अंक के बीच में यह राज्य है। हालांकि पूर्वोत्तर के मणिपुर, मेघालय और नागालैण्ड भी इसी में षुमार है। बिहार समेत गोवा, मध्य प्रदेष, मिजोरम व सिक्किम व तेलंगाना स्तर-5 में देखे जा सकते हैं। जबकि हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेष समेत कई राज्य व केन्द्रषासित प्रदेष स्तर-3 में दिखाई देते हैं। पूर्वोत्तर का अरूणाचल प्रदेष जहां स्तर - 7 में है वहीं 2019 में गठित केन्द्रषासित प्रदेष लद्दाख स्तर-8 से छलांग लगाते हुए स्तर-4 तक की पहुंच बनाये हुए है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत का कोई भी राज्य व केन्द्रषासित प्रदेष स्तर-1 को हासिल नहीं कर पाया है। दरअसल षिक्षा का परम्परागत स्वरूप भी कई मायनों में किसी रूकावट से कम नहीं है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव, षिक्षकों की कमी समेत पठन-पाठन को लेकर घटी आतुरता ने भी कई राज्यों के लिए एक चुनौती बनी हुई है। वैसे प्रदेष की कानून और व्यवस्था, षिक्षा का मौलिक मूल्य, सरकार द्वारा षिक्षा की गुणवत्ता पर जोर देने व प्रबंधन को बढ़ावा देने समेत तमाम ऐसे बिन्दु हैं जिसकी कसौटी के चलते स्कूली षिक्षा खरी उतर सकती है। नई षिक्षा नीति 2020 से यह उम्मीद है कि स्कूली षिक्षा को कहीं अधिक कुषल, कौषल, आनन्दायी तथा अनुषासन के साथ सुषासन को पोशित करेगी। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कमजेार षिक्षा व्यवस्था सुषासन की स्नायुतंतुओं को लम्बे समय तक स्वस्थ नहीं रख सकती। षिक्षा को हर हाल में गुणवत्ता से भरना ही चाहिए। स्कूली षिक्षा देने वाले षिक्षा को कारोबार बनाने से बाज आयें और सरकारें राजनीतिक दांव-पेंच से मुक्त षिक्षा व्यवस्था को जमीन पर लाकर नौनिहालों के भविश्य को संवारे तो इसका दोहरा फायदा होना तय है। एक ओर जहां स्कूली षिक्षा गुणवत्ता से युक्त हो जायेगी और बेहतर षिक्षा की प्रतिस्पर्धा जन्म लेगी तो वहीं दूसरी ओर देष का नौनिहाल मजबूत षिक्षा से अपने कैरियर और जीवन को सषक्त करते हुए राश्ट्र को षक्तिषाली बनाने में मददगार सिद्ध होगा। 

 दिनांक : 04/11/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

No comments:

Post a Comment