Tuesday, November 1, 2022

सामाजिक अपसंस्कृति बनती भोजन की बर्बादी

भारतीय संस्कृति में ऐसी अवधारणा है कि जहां अन्न का अपमान होता है वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता मगर अब यही सामाजिक अपसंस्कृति में तब्दील होती जा रही है। भारत समेत दुनिया के लोग षायद इस बात को गम्भीरता से नहीं ले पा रहे हैं कि भोजन के जिस हिस्से को वे कूड़ेदान में फेंक रहे हैं उससे किसी भूखे की भूख मिटाई जा सकती है। विकसित और विकासषील देषों में भोजन की बर्बादी का सिलसिला लगातार जारी है। इस मामले में चीन पहले तो भारत दूसरे नम्बर पर है। हैरत इस बात की है कि दुनिया में जहां 83 करोड़ से अधिक लोग भूखे सो जाते हैं वहीं खाने की बर्बादी कई करोड़ टन रोज की दर से हो रहा है। इंटरनेषनल डे ऑफ अवरनेस ऑफ फूड लॉस एण्ड वेस्ट 2022 यूएनईपी की रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन हर साल 9.6 करोड़ टन भोजन बर्बाद करता है और भारत में यही आंकड़ा 6.87 करोड़ टन का है। अमेरिका 1.93 के आंकड़े के साथ तीसरे स्थान पर देखा जा सकता है। यूएनईपी फूड इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में पूरी दुनिया में कुल जमा 93 करोड़ टन से अधिक खाना बर्बाद हुआ अब यह आंकड़ा और बड़ा हो चुका है। नेषनल हेल्थ सर्वे को देखें तो 130 करोड़ के भारत में 19 करोड़ लोग रोजाना भूखे सो जाते हैं। यहां खाद्य उत्पाद का 40 फीसद हिस्सा बर्बाद होता है। रूपए में देखा जाये तो भारत में सालाना 92 हजार करोड़ रूपए का भोजन कूड़ेदान में चला जाता है। आंकड़े यह इषारा करते हैं कि समस्या खाद्य पदार्थों की उतनी नहीं जितनी बर्बादी के चलते कई भोजन की थाली से दूर हैं। आष्चर्य की बात यह भी है कि देष में हालिया हंगर इंडेक्स 2022 में भारत 101वें से खिसक कर 107वें पर चला गया है जो भोजन की बर्बादी और भूख के बीच एक नये चिंतन की ओर इषारा कर रहा है। गौरतलब है कि प्रति व्यक्ति भोजन बर्बादी में ऑस्ट्रेलिया प्रथम स्थान पर है जबकि फ्रांस, स्पेन और इंग्लैण्ड क्रमषः दूसरे, तीसरे और चौथे नम्बर पर हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि देष चाहे विकासषील हो या विकसित भोजन बर्बादी में कोई कम नहीं है। अंतर है तो इस बात का कि विकसित देष इतनी बड़ी भोजन बर्बादी के बावजूद हद तक उच्च जीवन जीने में सक्षम हैं जबकि भारत जैसे देष की एक बड़ी जनसंख्या भोजन की फिराक में रोज दो-चार होती है और इसमें से करोड़ों भूखे भी सो जाते हैं।
भारत में भोजन की बर्बादी एक गम्भीर समस्या है जिसका समाधान जागरूकता और बढ़ी हुई चेतना से ही सम्भव नहीं है बल्कि इसके लिए संवेदनषीलता और भूख के प्रति बेहतरीन चिंतन से ही इसे रोकना सम्भव होगा। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रथम विष्व खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर भारत के सभी नागरिकों को ‘कम खाओ, सही खाओ‘ मुहिम को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया और इस संकल्प की बात कही कि एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। जाहिर है भोजन की बर्बादी को रोक कर और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाकर देष की गरीबी, भुखमरी और कुपोशण को जड़ से मिटाया जा सकता है। देष की षीर्श अदालत ने भोजन बर्बादी पर दिषा-निर्देष दिया था कि सभी वैवाहिक स्थल, होटल, मोटल और फार्म हाउस में होने वाले षादी समारोहों में भोजन की बर्बादी को रोका जाना चाहिए। इसमें कोई दुविधा नहीं कि मानव सभ्यता में अन्न का पहला और सबसे बड़ा योगदान है। दुनिया सभ्यता की चरम पर भले ही खड़ी हो मगर सुबह का नाष्ता, दोपहर का भोजन और रात की दो रोटी पेट में न जाये तो सब कुछ बेमानी सा लगता है। यह सभ्य समाज के लिए भी चुनौती है कि करोड़ों भूखे क्यों और कैसे सो रहे हैं। भोजन की बर्बादी से न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं। बावजूद इसके यह सिलसिला थम नहीं रहा है। वैसे इस बात पर भी गौर करने की आवष्यकता है कि खाने की बर्बादी का मुख्य कारण क्या है। आम तौर पर बड़े देषों में ज्यादातर खाना खेत और बाजार के बीच होता है। भोजन का खराब भण्डारण और संचालन, खराब पोशण, अपर्याप्त आधारभूत संरचना, घरों में खाने की बर्बादी, रख-रखाव में लापरवाही फलस्वरूप भोजन की खराबी और कूड़ेदान तक पहुंच स्वाभाविक हो जाती है।
यह बड़ा असहज करने वाला सवाल है कि एक तरफ दुनिया भुखमरी का दंष झेल रही है तो दूसरी तरफ करोड़ों टन अन्न बर्बाद हो रहे हैं। इसे देखते हुए मानस पटल पर दो प्रष्न उभरते हैं पहला यह कि मानव जिस सभ्यता की ऊँचाई पर है क्या उसकी जड़ नहीं पहचान पा रहा है? दूसरा क्या मानव यह समझने में नाकाम है कि पृथ्वी एक सीमा के बाद भोजन देने में सक्षम नहीं है? गौरतलब है कि पृथ्वी दस अरब लोगों का ही पेट भर सकती है और दुनिया 8 अरब के आस-पास खड़ी है। भोजन फेंकने की आदत पूरी दुनिया में एक अपसंस्कृति बन गयी है। अनुमान तो यह भी है कि 2050 तक दुनिया भर में अपषिश्ट भोज्य पदार्थों की बर्बादी दोगुनी हो सकती है और यह बर्बादी इसी दर पर जारी रही तो 2030 तक दुनिया भर में भुखमरी उन्मूलन के लिए संयुक्त राश्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्य जीरो हंगर का उद्देष्य हासिल करना भी मुष्किल होगा। दरअसल भोजन की बर्बादी वाली आदत एक ऐसी आर्थिक अवधारणा से युक्त है कि कीमत चुकाया गया है तो चाहे खायें या बर्बाद करें। बड़े-बड़े होटलों या पार्टियों में अतिरिक्त भोजन के साथ विभिन्न रूपों में खाद्य सामग्री परोसने की आदत के चलते बर्बादी में बढ़ोत्तरी हुई। इस बात का समर्थन सभी करेंगे कि भोजन की बर्बादी न केवल सामाजिक और नैतिक अपराध है कि बल्कि अन्न के प्रति स्वयं का बिगड़ा हुआ अनुषासन है। यह न केवल भुखमरी को अवसर दे रहा है बल्कि पर्यावरणीय व सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को भी बढ़ा रहा है। अध्ययन से पता चलता है कि थाली के झूठन से पर्यावरणीय दुश्प्रभाव भी सामने आने लगे हैं। वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट ऑफ रॉकफेलर फाउंडेषन द्वारा किये गये षोध के अनुसार भोजन की बर्बादी के चलते ग्रीन हाउस गैसों में 8-10 फीसद तक की बढ़ोत्तरी होती है। जाहिर है ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज़ से भी भोजन की बर्बादी एक समस्या बनी हुई है। इतना ही नहीं भोजन के सड़े-गले अवषेशों से कई बीमारियां जन्म लेती हैं। आंकड़े बताते हैं कि अवषिश्ट भोजन से प्रत्येक वर्श साढ़े चार गीगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। विदित हो कि पेरिस जलवायु समझौते के अन्तर्गत दुनिया से दो डिग्री सेल्सियस तापमान घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यदि भोजन की बर्बादी पर विराम लग जाये तो ग्रीन हाउस गैसों में न केवल कटौती होगी बल्कि जलवायु परिवर्तन की समस्या के साथ-साथ भुखमरी की समस्या से भी कमोबेष निजात मिल सकता है।
तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य यह दर्षाता है कि भोजन बर्बादी के मामले में भारत की स्थिति दक्षिण एषियाई देषों में थोड़ी बेहतर है यहां साल भर में एक व्यक्ति 50 किलो भोजन व्यर्थ कर देता है जबकि अफगानिस्तान में 82, नेपाल और भूटान में 79, श्रीलंका में 76, पाकिस्तान में 74, बांग्लादेष और मालदीव क्रमषः 65 और 71 किलो भोजन बर्बाद होता है। उक्त को देखते हुए परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि एक अच्छी आदत से भोजन की बर्बादी को कम किया जा सकता है और यह अच्छी आदत बच्चों को बड़े सिखाये और बड़े अन्न की कद्र करें और होटल और रेस्तरां में परोसी गई थाली रूपए से आंकने के बजाये जरूरत और जीवन के आधार पर मूल्यांकन किया जाये ताकि भोजन की बर्बादी रोकी जा सके। बर्बाद होते भोजन को देखते हुए साथ ही इसे लेकर बढ़ी हुई समस्या के चलते दुनिया के तमाम देष सरकारी नीतियों और जागरूकता को लेकर कई सराहनीय पहल भी किये जा रहे हैं। गौरतलब है कि संसार के कई देषों में 2030 तक भोजन की बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य बना लिया है। भोजन बर्बादी रोकने के मामले में सबसे पहला नाम ऑस्ट्रेलिया का है। ऑस्ट्रेलिया ऐसा देष है जहां एक व्यक्ति एक वर्श में 102 किलोग्राम खाना बर्बाद करता है जो सर्वाधिक है। इतने व्यापक पैमाने पर भोजन बर्बादी के चलते वहां की अर्थव्यवस्था पर हर साल 20 मिलियन डॉलर का नुकसान होता है। ऐसे में यहां अन्न बर्बादी रोकने में जुड़ी संस्थाओं को सरकार प्रोत्साहन दे रही है और अच्छा खासा निवेष कर रही है। नार्वे एक ऐसा देष जहां मानव विकास सूचकांक के मामले में षीर्श देषों में षामिल है जबकि वहां भी हर साल साढ़े तीन लाख टन भोजन कूड़ेदान में जाता है। यहां का एक नागरिक भी 68 किलो भोजन बर्बाद कर देता है। इसने भी 2030 तक इस बर्बादी को आधा करने का नियोजन बनाया है। चीन भोजन बर्बादी के मामले में अव्वल है। ऑप्रेषन इंप्टी प्लेट की नीति लागू कर इससे निपटने का उपाय में वह भी लगा हुआ है। इस नीति के तहत थाली में खाना छोड़ने पर रेस्तरां में जुर्माना लगाया जा रहा है। यूरोपीय देषों में फ्रांस दुनिया का पहला देष है जिसने सूपर मार्केट को बिना बिके भोजन को बाहर फेंकने को साल 2016 में प्रतिबंधित कर दिया था। गौरतलब है कि फ्रांस और इटली जैसे देषों में ऐसे भोजन को दान देने पर जोर दिया जा रहा है। कुछ इसी तर्ज पर लंदन, स्टॉकहोम, कॉपेनहेगन, न्यूजीलैंड के ऑकलैण्ड और इटली के मिलान जैसे षहरों में अतिरिक्त भोजन को जरूरतमंदो के बीच बांटने का काम होता है। भारत में रोटी बैंक के माध्यम से भोजन को जरूरतमंदों के बीच बांटा जा रहा है मगर जिस तर्ज पर भारत में भोजन बर्बादी है उसे पूरी तरह से समाप्त करने के लिए रोटी बैंक जैसी संस्थाओं के प्रति लोगों की चेतना और जागरूकता बढ़नी चाहिए ताकि बचे हुए भोजन को बर्बाद होने से पहले इन तक पहुंचाया जा सके। सालों पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में भोजन की बर्बादी को लेकर कुछ बातें कही। मगर विडम्बना यह है कि देष गरीबी और भुखमरी की राह पर सरपट दौड़ रहा है और भोजन की बर्बादी के प्रति लोगों की संवेदनषीलता जमींदोज होती जा रही है।
 दिनांक : 27/10/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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