Tuesday, December 27, 2022

शोध में छुपी है देश के विकास की राह

यूजीसी की वेबसाइट को खंगालें तो मौजूदा समय में देष में सभी प्रारूपों अर्थात् केन्द्रीय, राज्य और  डीम्ड समेत निजी विष्वविद्यालयों को मिलाकर कुल संख्या हजार से अधिक हैं जिनके ऊपर न केवल ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डॉक्टरेट की डिग्री देने की जिम्मेदारी है बल्कि भारत विकास एवं निर्माण के लिए भी अच्छे षोधार्थी निर्मित करने का दायित्व है। उच्च षिक्षा और षोध को लेकर मानस पटल पर दो प्रष्न उभरते हैं पहला यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच षिक्षा, षोध और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार परिवर्तन ले रहे हैं। दूसरा क्या बढ़ी हुई चुनौतियां, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में इन षिक्षण संस्थाओं ने निर्मित षोध का लाभ आम जनमानस को मिल रहा है। षोध और अध्ययन-अध्यापन के बीच न केवल गहरा नाता है बल्कि षोध ज्ञान सृजन और ज्ञान को परिश्कृत करने के काम भी आता है। भारत जैसे विकासषील देष में गुणवत्तायुक्त षोध की कहीं अधिक आवष्यकता है। षायद इसी कमी के चलते वैष्विक स्तर पर षोधात्मक पहचान अभी भी रिक्तता लिए हुए है। उच्च षिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2018 के अनुसार विष्वविद्यालयों के अतिरिक्त उच्च षिक्षा के लिए भारत में 40 हजार से ज्यादा कॉलेज और 10 हजार से अधिक स्वायत्तषासित षिक्षण संस्थान भी हैं। पड़ताल बताती है कि लगभग सभी विष्वविद्यालय एवं स्वायत्तषासी संस्थान षोध कराते हैं जबकि 40 हजार से अधिक कॉलेजों में महज 3.6 फीसद में ही पीएचडी कोर्स संचालित होता है। राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 को क्रमिक तौर पर लागू किया जा रहा है जिसमें दूरदर्षी बदलाव निहित हैं और भविश्य में दिखेंगे भी। हालांकि इसका पूरा परिदृष्य उभरने में एक दषक से अधिक वक्त लग जायेगा।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि षोध से ज्ञान का नया क्षितिज मिलता है। ईज़ ऑफ लिविंग से लेकर ईज़ ऑफ बिजनेस और जीवनचर्या में षोध सरलता को विकसित करता है। बानगी के तौर पर देखें तो मौजूदा दौर कोविड-19 से जूझ रहा है चीन की हालत खराब है और भारत में भी चिंता मुखर हो चली है। ऐसे में कोरोना से लड़ने के लिए सावधानी तो एक विकल्प है ही मगर इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए षोध ही एक रास्ता है जिससे उपचार की राह खुलेगी। 16 जनवरी 2021 को जब टीकाकरण अभियान षुरू हुआ तो टीका में प्रयोग की गयी दवा षोध का ही तो नतीजा था। मजबूत षोध बेहतर उपचार का उपाय है यह जीवन के हर पड़ाव पर लागू है। जाहिर है इसकी संवेदना को समझते हुए विष्वविद्यालय या उच्च षिक्षण संस्थान समेत तमाम षोध संस्थाएं इसे बेहतर आसमान दें न कि डिग्री और खानापूर्ति की आड़ में एक खोखले अध्ययन तक ही सीमित रहें। एक हकीकत यह है कि षोध कार्य रचनात्मक का विलोम होता जा रहा है इसका परिणाम षोध की गुणवत्ता पर पड़ता है। देष में निजी विष्वविद्यालयों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है मगर उसी मात्रा में गुणवत्ता भी चौड़ी हुई है षोध के हालात ऐसे दिखते नहीं हैं। दरअसल पीएचडी जीविका से जुड़ी एक ऐसी व्यवस्था बन गयी है जहां सहायक प्राध्यापक की राह खुल जाती है। मगर जो थीसिस तीन वर्श की मेहनत के बाद बनी उसका लाभ केवल पुस्तकालय तक ही सीमित रह जाता है। सर्वेक्षण बताता है कि देष के अच्छे विष्वविद्यालयों में मसलन केन्द्रीय विष्वविद्यालय और आईआईटी में भी षोध को लेकर कुछ कठिनाइयां व्याप्त हैं। यहां के 2573 षोधार्थियों पर हाल ही में किये गये एक अध्ययन में विष्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पाया कि अनिवार्य प्रकाषन ने विष्वविद्यालय को अनुसंधान की गुणवत्ता बनाये रखने में मदद नहीं की है क्योंकि लगभग 75 प्रतिषत प्रस्तुतियां गुणवत्ता वाली स्कोपस अनुक्रमित पत्रिकाओं में नहीं हैं। तथ्य यह भी है कि अनुसंधान और विकास में सकल व्यय वित्तीय वर्श 2007-08 की तुलना में 2017-18 तक लगभग तीन गुने की वृद्धि लिये हुए है फिर भी अन्य देषों की तुलना में भारत का षोध विन्यास और विकास कमतर ही रहा है।
हालिया स्थिति को देखें तो भारत षोध और नवाचार पर अपनी जीडीपी का 0.7 ही व्यय करता है जबकि बदलते विकास दर के अनुपात में ऐसा भी माना जा रहा है कि साल 2022 तक यह दो फीसद तक हो जाना चाहिए। फिलहाल चीन 2.1 फीसद और अमेरिका 2.8 फीसद षोध पर खर्च करते हैं। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया, इज़राइल जैसे देष इस मामले में 4 फीसद से अधिक खर्च के साथ कहीं आगे हैं। उक्त से यह प्रतीत होता है कि षोध और बजट का भी गहरा सम्बंध है। यही कारण है कि जो इसकी वास्तु स्थिति को बेहतरी से समझ रहा है वह उत्थान और उन्नति के लिए इसे तवज्जो दे रहा है। दुनिया में चीन ऐसा देष है जहां 26 फीसद के साथ सर्वाधिक षोध पत्र प्रकाषित करने के लिए जाना जाता है। जबकि अमेरिका में दुनिया के कुल षोध पत्रों का 25 फीसद प्रकाषित होते हैं और षेश में सारा संसार समाया है। केन्द्र सरकार ने षोध और नवाचार पर बल देते हुए साल 2021-22 के बजट में आगामी 5 वर्शों के लिए नेषनल रिसर्च फाउंडेषन हेतु 50 हजार करोड़ आबंटित किये गये। साथ ही कुल षिक्षा बजट में उच्च षिक्षा के लिए 38 हजार करोड़ रूपए अधिक की बात थी जो षोध और उच्च षिक्षा के लिहाज से सकारात्मक और मजबूत पहल है। हालांकि भारत सरकार षोध और उच्च षिक्षा के क्षेत्र में बेहतर पहल करते दिखता है बावजूद इसके अभी इसमें कई अड़चनें तो हैं। दो टूक यह हे कि पीएचडी की थीसिस मजबूती से विकसित की जाये तो यह देष के नीति निर्माण में भी काम आ सकती है मगर यह अभी भी दूर की कौड़ी है। कुछ उच्च षिक्षण संस्थाओं में षोध कराने वाले और षोध करने वाले दोनों ज्ञान की खामियों से जूझते देखे जा सकते हैं। एक प्राइवेट विष्वविद्यालय में पीएचडी की फीस अमूमन तीन लाख के आसपास होती है। इस भारी-भरकम फीस में अच्छे गाइड के साथ अच्छी थीसिस को भविश्य और देष हित में निर्मित की जा सकती है मगर दुख यह है कि ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसकी बड़ी वजह डिग्री और धन का नाता भी कहा जा सकता है। द टाइम्स विष्व यूनिवर्सिटी रैंकिंग की हर साल की रिपोर्ट भी यह बताती है कि यहां रैंकिंग के मामले में भारत की बड़ी-बड़ी संस्थाएं बौनी हैं जबकि निजी विष्वविद्यालय तो इसमें कहीं ठहरते ही नहीं। षोध का स्वतः कमजोर होना तब लाजमी है जब इसे सिर्फ महज डिग्री की भरपाई मानी जाती रहेगी। षिक्षाविद प्रो0 यषपाल ने कहा था कि जिन षिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता वह न तो षिक्षा का भला कर पाती है न ही समाज का।

दिनांक : 26/12/2022


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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