Monday, December 12, 2022

ई-गवर्नेंस को ताकत देगा ई-रूपया

नवम्बर 2016 में विमुद्रीकरण के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी क्रम में डिजिटल इण्डिया जैसे मिषन भी तेजी से आगे बढ़े। अब यह सिलसिला डिजिटल रूपए तक अनवरत् हो चला है। गौरतलब है कि बीते 1 दिसम्बर को देष के 4 षहरों मुम्बई, दिल्ली, बंगलुरू और भुवनेष्वर में खुदरा डिजिटल रूपए के इस्तेमाल का पायलट प्रोजेक्ट षुरू किया गया। हालांकि अभी सीमित ग्राहकों और कुछ दुकानदारों तक ही यह सुविधा उपलब्ध है मगर भविश्य में इसका प्रयोग देष भर में संभावित देखा जा सकेगा। यहां डिजिटल रूपए को ई-रूपए की संज्ञा दी जा सकती है। जाहिर है ई-रूपए के चलते लोगों की कैष पर निर्भरता कम होगी। इस तरह के लेनदेन में कोई हार्ड करेंसी की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि वॉलेट टू वॉलेट इसका ट्रांजेक्षन सम्भव होता है। ई-रूपया जिस वॉलेट में रखा जायेगा उसे आरबीआई मुहैया करायेगा और बैंक केवल बिचौलियों का काम करेंगे। भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई, आईडीएफसी-फर्स्ट और यस बैंक से खुदरा डिजिटल रूपए लिये जा सकते हैं। विस्तार की अगली कड़ी में यह अहमदाबाद, गुवाहाटी, लखनऊ, पटना और षिमला समेत विभिन्न स्थानों पर ई-रूपए का चलन कुछ ही दिनों में सम्भव होगा। साथ ही इससे जुड़े बैंकों की संख्या में भी इजाफा होगा। ई-रूपए के लेनदेन में बैंकों को इसकी जानकारी नहीं होगी यह सीधे एक वॉलेट से दूसरे में जायेगा और जो भारतीय रिज़र्व बैंक का होगा। इसमें यह बात भी स्पश्ट है कि नकदी के मुकाबले इस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा और इसे बैंक जमा जैसे अन्य नकदी के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। आरबीआई ने कहा है कि ई-रूपया परम्परागत नकद मुद्रा की ही तरह धारक को भरोसा, सुरक्षा और अन्तिम समाधान की खूबियों से भी युक्त होगा।
मौजूदा समय में डिजिटलीकरण को किसी भी सफल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र की साझी कड़ी समझी जा सकती है। डिजिटलीकरण की चुनौतियां जैसे-जैसे घटेगी अर्थव्यवस्था वैसे-वैसे सघन होगी। भारत डिजिटल सेवा क्षेत्र में बढ़ रहे प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के लिए एक आदर्ष गंतव्य भी है। विगत् कुछ वर्शों में निजी तथा सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया। भारत में ई-गवर्नेंस के चलते सुविधाओं को बढ़ना और चुनौतियों का कमजोर होना देखा जा सकता है। किसानों के खाते में सम्मान निधि का हस्तांतरण डिजिटल गवर्नेंस का एक पारदर्षी उदाहरण है। ई-लर्निंग, ई-बैंकिंग, ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका, ई-अदालत समेत कई परिप्रेक्ष्य ई-गवर्नेंस को संयुक्त रूप से ताकत दे रहे हैं। अब इसी कड़ी में ई-रूपए के प्रकटीकरण के चलते ई-भुगतान पारदर्षी तरीके से सुविधा और अर्थव्यवस्था दोनों नजरिये से मजबूती को सांकेतिक करता है। गौरतलब है कि मांग के मुताबिक डिजिटल रूपया आरबीआई की ओर जारी हुआ। देष के प्रमुख षहरों के बैंकों की ओर से लगभग पौने दो करोड़ डिजिटल मुद्रा की मांग की गयी थी। ई-रूपया डिजिटल टोकन आधारित व्यवस्था है जिसे केन्द्रीय बैंक जारी करता है। इसका मूल्य बैंक में लेनदेन वाले नोट के समान ही है और इसे कैष की तरह दो हजार, पांच सौ, दो सौ और सौ रूपया और पचास रूपया और बाकी मूल्यवर्ग में जारी किया जायेगा।
गौरतलब है कि ई-रूपए के चलते मनी लॉण्डरिंग जैसे मामलों पर भी षिकंजा कसना आसान होगा। मनी लॉण्डरिंग को लेकर के देष में आये दिन सरकारी एजेंसी नये-नये कसरत करनी पड़ती है और यह देष में एक प्रकार के भ्रश्टाचार को बढ़ावा देने और सुषासन के मामले में चुनौती भी बना हुआ है। इतना ही नहीं क्रिप्टो करेंसी जैसी चिंता से भी सरकारी संस्थाएं मुक्त रहेंगी। देखा जाये तो क्रिप्टो करेंसी भारत में अक्सर चर्चा का विशय रही है। जिसे लेकर यहां राय बंटी देखी जा सकती है और सरकारी संस्थाएं इसे लेकर कई चिंताओं से युक्त रही हैं। कनफेडरेषन ऑफ ऑल इण्डिया ट्रेडर्स की ओर से भी यह स्पश्ट है कि डिजिटल मुद्रा षुरू करने का आरबीआई का निर्णय स्वागत योग्य है। ऐसे में ई-रूपए को अपनाने और स्वीकार करने के लिए पूरे देष में व्यापारिक समुदाय के बीच एक राश्ट्र व्यापी आंदोलन षुरू किया जायेगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि ई-रूपए का प्रभाव जैसे-जैसे बढ़ेगा नकदी के प्रबंधन में भी कमी आयेगी और इससे लेन-देन को भी कैष में कम किया जा सकेगा। जाहिर है लोगों को जेब में कैष लेकर चलने की जरूरत नहीं रहेगी। विदेषों में पैसा भेजने की लागत में भी कमी आयेगी। पेमेंट करने में तो सुविधा रहेगी ही साथ ही ई-रूपया बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी के भी काम करेगा। कुल मिलाकर ई-रूपए के चलन से डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी जिसकी फिराक में सरकार बरसों से प्रयासरत् रही है।
हालांकि हर कार्य के दो पहलू होते हैं और हर सिक्के के भी दो पहलू होते हैं। ई-रूपए से भले ही लाभ सर्वाधिक रूप से फलक पर देखा जा रहा हो। मगर कुछ हद तक इसमें नुकसान से सम्बंधित पहलू भी निहित हैं। इसका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इस तरह के लेनदेन से पूरी तरह निजता सम्भव रहेगी कहना मुष्किल है क्योंकि यह सरकार की निगरानी में संचालित होगा। ई-रूपया पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। रिजर्व बैंक ने इसे लेकर जो स्पश्ट किया है उसमें यह साफ है कि यदि डिजिटल रूपए पर ब्याज दिया गया तो मार्केट में अस्थिरता सम्भव हो सकती है। चूंकि आम तौर पर बचत खाते में जमा राषि पर निर्धारित ब्याज दर सुनिष्चित होता है ऐसे में यदि ई-रूपए पर ब्याज दर होता है तो बचत खाते से पैसे निकालकर डिजिटल करेंसी में बदलने का सिलसिला चल पड़ेगा। गौरतलब है कि ई-रूपए का यह पायलट प्रोजेक्ट एक महीना चलेगा उसके बाद ही इसके विस्तार से जुड़ी चुनौतियां और कमियों का ठीक से अंदाजा मिलेगा। विदित हो कि ई-रूपया पारम्परिक मुद्रा का एक डिजिटल संस्करण है। ई-षासन का षाब्दिक अर्थ ऑनलाइन सेवा से है। लोकतांत्रिक देषों में सरकारें लोक सषक्तिकरण की प्राप्ति हेतु एड़ी-चोटी का जोर लगाती रही हैं। षासन लोक कल्याणकारी, संवेदनषील और कहीं अधिक पारदर्षिता के साथ खुला दृश्टिकोण विकसित करने की फिराक में ई-षासन से ओत-प्रोत होने के प्रयास में संलग्न रही है। भारत ने 1970 में इलैक्ट्रॉनिक विभाग और 1977 में नेषनल इंफोर्मेटिक सेंटर के साथ इस दिषा में कदम बढ़ाया जा चुका था। 1990 के दषक में कम्प्यूटरीकरण में इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था को मजबूती की ओर धकेला और 1991 में उदारीकरण के बाद भारत सुषासन की राह पर चल पड़ा। दुनिया में विष्व बैंक द्वारा दी गयी सुषासन की संकल्पना को इंग्लैण्ड अंगीकृत करने वाला पहला देष है। षनैः षनैः लोक सेवा और जन सषक्तिकरण का स्वभाव बदलता गया और सुषासन की लकीर लम्बी और मोटी होती चली गयी। साल 2005 में सूचना के अधिकार और 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना ने इसे और पुख्ता कर दिया। मोदी सरकार के षासनकाल में डिजिटलीकरण को एक नया आसमान देने का प्रयास हुआ नतीजन ई-षासन एक नई ऊँचाई पर पहुंचा और अब इसी कड़ी में ई-रूपए के चलन में एक और षक्ति से युक्त कर दिया है।

दिनांक : 02/12/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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