Monday, December 12, 2022

सौर ऊर्जा महज आवश्यकता नहीं, अपरिहार्यता है

वर्तमान के तकनीकी युग में मनुश्य ने ऐसी विधाओं की खोज की है जिसके चलते सूरज की किरणों को आसानी से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करना सम्भव है। भौगोलिक स्थिति के आधार पर देखा जाये तो भारत ऐसे देषों में षुमार है जो उश्णकटिबंधीय है और जहां पूरे साल में तीन सौ दिन धूप की भरमार रहती है जो पांच हजार ट्रिलियन किलो वाट घण्टा के बराबर है। जाहिर है इससे सौर ऊर्जा के मामले में भारत मजबूत देष बन सकता है। हालांकि अभी इस दिषा में उतने पुख्ता कदम नहीं उठाये गये हैं जितना कि स्वाभाविक तौर पर होना चाहिए। लेकिन पारम्परिक माध्यमों से विद्युत उत्पन्न करना लगातार महंगा होता जा रहा है ऐसे में सौर ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प बन कर उभर रहा है। सौर ऊर्जा उत्पादन में सर्वाधिक क्रमषः 40 प्रतिषत रूफटॉप सौर ऊर्जा और सोलर पार्क का षामिल है। गौरतलब है कि साल 2035 तक देष में सौर ऊर्जा की मांग सात गुना बढ़ने की सम्भावना है। यदि इस मामले में आंकड़े इसी रूप में आगे बढ़े तो इससे न केवल देष के विकास दर में वृद्धि होगी बल्कि भारत के सुपर पावर बनने के सपने को भी पंख लगेंगे। भारत की आबादी कुछ ही समय में चीन को भी पछाड़ सकती है। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े आबादी वाले देष को बिजली की जो मांग होगी उसमें सौर ऊर्जा कहीं अधिक प्रभावषाली रहेगा। दो टूक यह भी है कि षुद्ध पर्यावरण और हवा की गुणवत्ता भी सौर ऊर्जा के लिए कहीं अधिक बेहतर रहता है। कोविड-19 के दौर में जब देष लॉकडाउन में था तब हवा की गुणवत्ता और पर्यावरणीय सुधार षुद्धता की ओर बढ़ चली थी और गर्मी के महीने में (मार्च से मई) पृथ्वी को 8.3 प्रतिषत अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई थी। विदित हो कि भारत की ऊर्जा मांग का एक बड़ा हिस्सा तापीय ऊर्जा के द्वारा सम्भव होता है जिसकी निर्भरता जीवाष्म ईंधन पर है। वैसे विष्व भर में केवल ऊर्जा उत्पादन में ही प्रति वर्श लगभग 20 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड व अन्य दूशित तत्व निर्गत होते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी जिम्मेदार हैं। जाहिर है सौर ऊर्जा कार्बन उत्सर्जन की दिषा में कटौती को लेकर भी खड़ी चुनौती को चुनौती दे रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सौर ऊर्जा, ऊर्जा का एक ऐसा स्वच्छ रूप है जो पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का बेहतरीन विकल्प है।
विकासषील अर्थव्यवस्था वाला भारत ऊर्जा के कई विकल्पों पर जोर आजमाइष करता रहा है। औद्योगिकीकरण, षहरीकरण समेत कृशि व रोज़मर्रा की बिजली से जुड़ी आवष्यकताओं से भी भारत को नई-नई चुनौतियां मिलती रही। उच्च जनसंख्या घनत्व के चलते जहां एक ओर सौर्य संयंत्र को स्थापित करने हेतु भूमि की उपलब्धता कम है वहीं परम्परागत ऊर्जा से पूरी पूर्ति होना भी सम्भव नहीं है। सौर ऊर्जा केवल एक सुखद पहलू ही नहीं है बल्कि इससे उत्पन्न कचरे भी भविश्य की चुनौती हो सकते हैं। वर्तमान में भारत ई-कचरा, प्लास्टिक कचरा समेत कई कचरों के निपटान को लेकर मुष्किलों में फंसा है। अनुमान है कि साल 2050 तक भारत में सौर कचरा 1.8 मिलियन के आसपास होने की सम्भावना है। इन सबके अलावा भारत को अपने घरेलू लक्ष्यों को प्राथमिकता देने और विष्व व्यापार संगठन की प्रतिबद्धताओं के बीच भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल सूर्य की रोषनी ही सौर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और दुनिया के अधिकतम देष इस ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे है। सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएं भी चलन में देखी जा सकती हैं। बहुत ही कम दामों पर सौर ऊर्जा पैनल उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सौर ऊर्जा लगाने पर योजना के अंतर्गत सब्सिडी का भी प्रावधान कमोबेष रहा है। इस बात को भी समझना सही रहेगा कि भारत में हर पांचवां व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और हालिया भुखमरी वाले आंकड़े भी 107वें स्थान के साथ निहायत निराषा से भरे थे। झुग्गी-झोपड़ी से लेकर कच्चे मकानों की तादाद भी यहां बहुतायत में है। 2011 की जनगणना के अनुसार देष में साढ़े छः करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और करोड़ों बेघर भी हैं। ऐसे में सोलर पैनल को स्थापित करना भी अपने किस्म की एक चुनौती है। भारत सरकार ने बरसों पहले साल 2022 तक दो करोड़ पक्के मकान देने का वायदा किया था। यदि इन मकानों को वाकई में जमीन पर उतार दिया जाये तो यह सोलर पैनल लगाने के काम भी आयेंगे।
देखा जाये तो सरकार ने साल 2022 के अंत तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसका कुल जोड़ 175 गीगावाट है जिसमें पवन ऊर्जा साठ गीगावाट, बायोमास दस गीगावाट, जल विद्युत परियोजना महज पांच गीगावाट षामिल है जबकि इसमें सौ गीगावाट सौर ऊर्जा को देखा जा सकता है। हालांकि जिस औसत से बिजली की आवष्यकता बढ़ रही है उसमें समय के साथ कई गुने के बढ़ोत्तरी करते रहना होगा। मगर यह तभी सम्भव है जब सोलर पैनल सस्ते और टिकाऊ हों साथ ही अधिक से अधिक लोगों की छतों तक यह पहुंच सकें साथ ही सोलर पार्क भी बढ़त लिए रहें। चीन की कम्पनियों के साथ भारत की वस्तुओं की हमेषा स्पर्धा रही है। भारतीय घरेलू निर्माता तकनीकी और आर्थिक रूप से उतने मजबूत नहीं हैं ऐसे में दूसरे देषों के बाजार पर निर्भरता भी घटानी होगी। सौर ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार के नये अवसर की भी तमाम सम्भावनाएं विद्यमान हैं। आंकड़े बताते हैं कि एक गीगावाट सोलर मैन्यूफैक्चरिंग सुविधा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में लगभग चार हजार लोगों को रोजगार युक्त बना सकती है। इसके अलावा इसके संचालन व रखरखाव में भी रोजगार के अतिरिक्त अवसर ढूंढे जा सकते हैं। साल 2035 तक वैष्विक सौर क्षमता में भारत की कुल हिस्सेदारी 8 फीसद होने की जहां सम्भावना है वहीं तीन सौ तिरसठ गीगावाट की क्षमता के साथ वैष्विक नेता के रूप में उभरने की नई संभावना भी है। अंतर्राश्ट्रीय पहल के अंतर्गत देखें तो अंतर्राश्ट्रीय सौर गठबंधन जिसका षुभारम्भ भारत व फ्रांस द्वारा 30 नवम्बर 2015 को पेरिस में किया गया था जिसकी पहल भारत ने की थी। यह वही दौर था जहां पेरिस जलवायु सम्मेलन को अंजाम दिया जा रहा था। इस संगठन में 122 देष हैं जिनकी स्थिति कर्क और मकर रेखा के मध्य हैं। गौरतलब है कि सूर्य साल भर इन्हीं दो रेखाओं के बीच सीधे चमकता है। जिससे धूप और प्रकाष की मात्रा सर्वाधिक देखी जा सकती है। हालांकि विशुवत रेखा पर यही धूप और ताप अनुपात में सर्वाधिक रहता है।
सौर ऊर्जा कभी न खत्म होने वाला एक सिलसिला है। भारत में राजस्थान के थार मरूस्थल में देष का अब तक सर्वोत्तम सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया गया है। सौर ऊर्जा मिषन के लक्ष्य पर दृश्टि डालें तो 2022 तक बीस हजार मेगावाट क्षमता वाले सौर ग्रिड की स्थापना के अलावा दो हजार मेगावाट वाली गैर ग्रिड के सुचारू संचालन का नीतिगत योजना दिखती है। इसी मिषन में 2022 तक ही दो करोड़ सौर लाइट को भी षामिल किया गया है। ई-चार्जिंग स्टेषन की स्थापना षुरू कर दी गयी है इसके चलते सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के लिए यह एक बेहतरीन कदम है। गौरतलब है कि भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र भी सौर ऊर्जा को तेजी से अपनाना षुरू कर दिया है और ऐसे वाहन बनाये जा रहे जिसे पेट्रोल, डीजल के बजाय सौर ऊर्जा से चलाया जा सके। किसी भी योजना को अंजाम देने के लिए कौषल विकास एक अनिवार्य पक्ष है। किसी भी देष का कुषल मानव संसाधन विकासात्मक और सुधारात्मक योजना के लिए प्राणवायु की भांति होता है। भारत में जहां इसकी घोर कमी है वहीं लागत को लेकर भी चुनौती कमोबेष रही है। गौरतलब है कि सौर ऊर्जा की औसत लागत प्रति किलोवाट एक लाख रूपए से अधिक है जो सभी के बूते में तो नहीं है। भारत में ढ़ाई लाख पंचायतें और साढ़े छः लाख गांव हैं जहां खम्भा और तार कमोबेष पहुंचे तो हैं मगर उसमें बिजली भी दौड़ती है इसकी सम्भावना कम ही है। यदि ऐसा है तो कितनी आती है और कितनी जाती है इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। ग्रामीण उद्यमिता और वहां के मझोले, छोटे व लघु उद्योग बिजली की कमी से जूझते हैं जिसके चलते कई कुषलताएं धरी की धरी रह जाती हैं और षहर की ओर पलायन करने की मजबूरी भी जगह बना लेती है। विष्व बैंक ने बरसों पहले कहा था कि यदि भारत की महिलाएं कामगार हो जायें तो भारत की जीडीपी चार फीसद बढ़ सकती है जाहिर है गांव में डेयरी उद्योग से लेकर कई ऐसे हस्तकारी व दस्तकारी समेत पापड़, चटनी, आचार से जुड़े कारोबार हैं जिसमें सौर ऊर्जा निहायत बेष कीमती काम कर सकता है और गांव आत्मनिर्भर बन सकता है। आत्मनिर्भर भारत की योजना को भी सौर ऊर्जा एक नया मुकाम दे सकता है। वैसे देखा जाये तो भारत ने सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ हद तक कमाल भी किया है। साल 2022 की पहली छमाही में सौर ऊर्जा उत्पादन के चलते 1.94 करोड़ टन कोयले की बचत हुई है और साथ ही 4.2 अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च से मुक्ति मिली है। एनर्जी थिंक टैंक एम्बर सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एण्ड क्लीन एयर ऑफ इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमी एण्ड फाइनेंषियल एनालाइसिस की रिपोर्ट्स से उक्त बात खुलासा हुआ है। यहां स्पश्ट कर दें कि सोलर ऊर्जा क्षमता से लैस टॉप 10 अर्थव्यवस्थाओं में 5 एषियाई महाद्वीप के देष हैं जिसमें भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को देखा जा सकता है। फिलहाल सौर ऊर्जा भविश्य की केवल आवष्यकता नहीं बल्कि अनिवार्यता की दिषा में एक बेहतरीन ऊर्जा स्रोत होगी मगर यह पूरी तरह सक्षम और सषक्त तभी हो पायेगी जब यह सभी तक पहुंच बना लेगी।
 

 दिनांक : 09/12/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

No comments:

Post a Comment