Monday, December 12, 2022

बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उच्च शिक्षा और शोध

बदलते वैष्विक परिप्रेक्ष्य में अब यह भी समीचीन हो चला है कि दुनिया इस आंकलन पर भी आकर अपना मन्तव्य रखेगी कि अमुख देष का षोध व अनुसंधान भी किस स्तर का है। गौरतलब है कि षिक्षण, षोध एवं विस्तार कार्य इन तीनों उद्देष्यों की पूर्ति का माध्यम उच्च षिक्षा है जबकि मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान आदि षोध से संचालित होता है। यूनेस्को के अनुसार ज्ञान के भण्डार को बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से किये गये सृजनात्मक कार्य को ही षोध एवं विकास कहा जाता है। देखा जाये तो ज्ञान संचालित अर्थव्यवस्था और सीखने के समाज में उच्चत्तर षिक्षा अति महत्वपूर्ण है। जहां तक व्यावसायिक षिक्षा और पेषेवर प्रषिक्षण का सवाल है बीते कुछ दषकों से इसकी मांग बढ़ी है। नई षिक्षा नीति 2020 भी ऐसी ही भावनाओं से ओत-प्रोत है। उच्च षिक्षा को लेकर जो सवाल उभरते हैं उसमें एक यह कि क्या विष्व परिदृष्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच उच्चत्तर षिक्षा और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं, दूसरा यह कि क्या षिक्षा का तकनीकी होने का बड़ा लाभ देष उठा रहा है। षोध और अनुसंधान को लेकर भी ऐसे ही सवाल मानस पटल पर उभरते हैं। आज की वैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा वाली दुनिया में भारत के अनुसंधान एवं विकास की क्या स्थिति है? चीन व जापान जैसे देषों से भारत षोध कार्यों के मामले में पीछे क्यों है? षोध व विकास को लेकर भारत की प्रगति में वह कौन सी रूकावट है जो अनुसंधान का पहिया रोक रहा है? गौरतलब है कि विभिन्न विष्वविद्यालयों में षुरू में ज्ञान के सृजन का हस्तांतरण भूमण्डलीय सीख और भूमण्डलीय हिस्सेदारी के आधार पर हुआ था। षनैःषनैः बाजारवाद के चलते षिक्षा मात्रात्मक बढ़ी और निजी संस्थाओं में भी विकसित हो गयी मगर गुणवत्ता के मामले में उसी गति से कमजोर भी हुई। यहीं से उच्च षिक्षा और उसमें निहित अनुसंधान की प्रगति का पहिया धीमा पड़ने लगा।
अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियां बढ़ी हैं। अमृत महोत्सव के दौर में 15 अगस्त 2022 के भाशण में प्रधानमंत्री मोदी ने जय अनुसंधान का नारा दिया जो जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का विस्तार है। हालांकि साल 2019 में पंजाब के जालंधर में स्थित एक विष्वविद्यालय में आयोजित 106वीं राश्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान जय अनुसंधान का उल्लेख प्रधानमंत्री पहले ही कर चुके थे। पड़ताल बताती है कि लगभग 5 दषक पहले 50 फीसद से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान विष्वविद्यालयों में ही होते थे। इतना ही नहीं विष्वविद्यालयों को उच्च षिक्षा के प्रांगढ़ और षोधालय के तौर पर भी देखा जाता था मगर मौजूदा समय में अब स्थिति केवल उपाधियों के वितरण तक ही सीमित दिखाई देती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण अनुसंधान के लिए धन की उपलब्धता में कमी भी है। साथ ही युवाओं का षोध में कम तथा अन्य क्षेत्रों में जुड़ाव का अधिक होना भी है। महिलाओं के मामले में यह कहना अतार्किक नहीं होगा कि उच्च षिक्षा तक पहुंच ही उनके लिए बड़ी उपलब्धि है जबकि कई सामाजिक बेड़ियों एवं कमियों से षोध और अनुसंधान में उपस्थिति स्तरीय नहीं हो पाने की कठिनाई समझी जा सकती है। कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उपलब्धियों को छोड़ दें तो वैष्विक पटल पर भारत के अनुसंधान की स्थिति धरातल पर उतनी मजबूत नहीं दिखती। मौजूदा समय में देष में उच्च षिक्षा ग्रहण करने वालों की संख्या सभी प्रारूपों में 4 करोड़ से अधिक है। सभी प्रकार के विष्वविद्यालयों की संख्या भी हजार से अधिक है। 40 हजार से ज्यादा महाविद्यालय हैं। इसके अलावा भी कई सरकारी और निजी षोध संस्थाएं भी देखी जा सकती हैं। यह बात जितनी षीघ्रता से समझ ली जायेगी कि षोध एक समुचित, सुनिष्चित तथा आंकलन व प्राक्कलन से भरा विकास का एक ऐसा वैज्ञानिक रास्ता सुझाता है जिससे देष के समावेषी ढांचे को न केवल मजबूत करना सम्भव है बल्कि आत्मनिर्भर भारत का फलक भी प्राप्त किया जा सकता है। किसी भी देष का विकास वहां के लोगों के विकास से गहरा सम्बंध रखता है। विकास के पथ पर कोई देष तभी आगे बढ़ा है और बढ़ सकता है जब उसके पास उच्च षिक्षा के स्तर पर षोध और अनुसंधान के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों।
भारत षोध एवं नवाचार के मामले में अपने कुल सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.7 फीसद ही खर्च करता है जबकि अमेरिका 2.8 प्रतिषत और चीन 2.1 फीसद के साथ तुलनात्मक कई गुने की बढ़त लिए हुए है। इतना ही नहीं इज़राइल और दक्षिण कोरिया जैसे मामूली जनसंख्या वाले देष अपनी षोधात्मक क्रियाकलाप पर कुल जीडीपी का 4 फीसद से अधिक व्यय करते हैं। अमेरिका और चीन के समावेषी खर्च को षोध की दृश्टि से देखें तो ट्रेड वॉर और कूटनीतिक लड़ाई के अलावा षोध और उच्च षिक्षा पर भी प्रतिस्पर्धा जारी है। संदर्भ तो यह भी है कि चीन ने रिसर्च प्रकाषित करने और उच्च षिक्षा के क्षेत्र में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। जापान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की रिपोर्ट पर दृश्टि डालें तो साफ है कि पूरी दुनिया में जितने रिसर्च पेपर प्रकाषित होते हैं उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन की ही है। इसके बाद अमेरिका तत्पष्चात् जर्मनी का स्थान आता है। गौरतलब है कि साल 2018 और साल 2022 के बीच इकट्ठे किये गये आंकड़े के अनुसार  चीन 27.2 फीसद रिसर्च पेपर प्रकाषित किया जबकि अमेरिका में यही आंकड़ा 24.9 प्रतिषत है। चीन से पिछड़ने के चलते अमेरिका ने अपने षोध कार्यों को मजबूती देने के लिए आगामी 10 वर्शों में दो सौ अमेरिकी डॉलर खर्च करने का निर्णय लिया है। भारत की षोध में वैष्विक रैंकिंग अच्छी नहीं है जिसके चलते षोध का फायदा जनता को नहीं मिल पा रहा है जाहिर है जय अनुसंधान एक सुगम ष्लोगन है मगर जब तक षोध में खर्च बढ़ाने की स्थिति प्रगाढ़ नहीं होगी तब तक जमीनी हकीकत कुछ और ही रहेगी।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि उच्च षिक्षा और षोध किसी राश्ट्र की प्रगति की रीढ़ है और यह भी मान्यता है कि उच्च षिक्षा में षोध की भूमिका सबसे अहम् होती है दूसरे षब्दों में कहें तो यह एक-दूसरे की पूरक हैं। उच्च षिक्षा और षोध का संयोजन जय अनुसंधान के ष्लोगन से यदि तुलनात्मक बढ़त लेता है तो समावेषी विकास के साथ सुषासन को भी बुलंदी मिलेगी। हालांकि वैष्विक नवाचार सूचकांक 2022 की स्थिति को देखें तो भारत 40वें पायदान पर है जबकि स्विट्जरलैण्ड पहले, तत्पष्चात् अमेरिका, स्वीडन, ब्रिटेन और नीदरलैंड का स्थान है। षिक्षाविद् प्रोफेसर यषपाल का कथन है कि जिन षिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता वे न तो षिक्षा का भला कर पाते और न ही समाज का। इसमें कोई दो राय नहीं कि षोध के क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियां कई हैं मगर कई उपलब्धियां भी इसी के साथ देखी जा सकती हैं। विज्ञान और तकनीक में भारत की जनषक्ति, मौसम पूर्वानुमान व निगरानी में सुपर कम्प्यूटर बनाने, नैनो तकनीक समेत कई ऐसे संदर्भ षोध की दृश्टि से उपलब्धियों से भरे हैं। बावजूद इसके उक्त कुछ चुनिंदा क्षेत्रों की उपलब्धियों को छोड़ दें तो भारत की वैष्विक फलक पर अनुसंधान की स्थिति उतनी मजबूत नहीं दिखती जितना एक बड़ा देष होने के नाते होना चाहिए।  

 दिनांक : 09/11/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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