Tuesday, December 27, 2022

 सुजीवन की खोज में सुशासन की यात्रा

साल 2015 की 25 दिसम्बर को पहली बार सुषासन दिवस मनाने की प्रथा षुरू हुई जिसकी वजह में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को एक बड़ा आकार देने का प्रयास था। तब से सुषासन कहीं अधिक प्रयोग और उपयोग में निरंतरता के साथ गति भी लिया मगर सुषासन की परिपाटी से षायद ही कोई युग रिक्त हो। 20वीं सदी के अन्तिम दषक में भारत ने जब 24 जुलाई 1991 को उदारीकरण अपनाया तो सुषासन की राह चौड़ी होनी षुरू हो गयी थी फिर भी यह कहना अतार्किक न होगा कि भारत लोकतंत्र की दहलीज पर कदम रखते ही सुषासनमय होने की राह पकड़ लिया था। उतार-चढ़ाव बहुत आये सुषासन की समझ भी कमोबेष बनती-बिगड़ती रही। फिलहाल अब तो यह षान्ति और खुषहाली का प्रतीक है। इतना ही नहीं सुजीवन की चाह भी इसी से होकर गुजरती है। हालांकि विष्व बैंक द्वारा सुषासन की दी गयी परिभाशा 1992 में देखने को मिलती है और इसी वर्श इंग्लैण्ड सुषासन की गणना में पहले देष की संज्ञा में आया। नेताजी सुभाश चन्द्र बोस ने कहा था, “कोई एक व्यक्ति विचार के लिए मर सकता है परन्तु उसकी मृत्यु के बाद वह विचार जिन्दगियों में अवतार ले लेगा।” उक्त कथन के आलोक मे मौजूदा भारत को देखें तो औपनिवेषिक सत्ता के उस दौर में भारतीयों में पनपी स्वतंत्रता की भावना और स्वयं की सुषासन से भरी आकांक्षा तथा एक मजबूत लोकतंत्र व गणतंत्र की चाह ने अनगिनत विचारों को जन्म दिया था। आजादी की लड़ाई और उसमें खपायी गयी तमाम जिन्दगियों और विचारों को देष संजोता चला आया है। गौरतलब है कि भारत की स्वाधीनता के 75 वर्श पूरे होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव एक षानदार उत्सव का रूप लिया। वैसे देखा जाये तो भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों स्वतंत्रता संघर्श के दौरान अनेकोनेक महान क्षण आये जिसमें 1857 के विद्रोह को एक ऐसी ऐतिहासिक परिघटना के रूप में निहारा जा सकता है जहां से पहली भारतीय स्वाधीनता संग्राम का प्रकटीकरण होता है। क्रमिक तौर पर देखें तो स्वदेषी, असहयोग और सत्याग्रह आंदोलन, बाल गंगाधर तिलक का पूर्ण स्वराज का आह्वान, गांधी का दाण्डी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन समेत नेताजी सुभाश चन्द्र बोस का आजाद हिन्द फौज एक ऐसी विरासत है जिसे आने वाली पीढ़ियों को पूरी तरह अवगत होना ही चाहिए। इन तमाम के चलते सुषासन को भी कहीं न कहीं स्थान मिल रहा था। आजादी के इन 75 वर्शों में देष विभिन्न क्षेत्रों में कई उपलब्धियों के साथ कई कड़े संघर्शों से भी जूझा है और यह सिलसिला अभी भी बना हुआ है।
आजादी मिलने के बाद संविधान और कानून के षासन को पटरी पर लाना और सुषासन युक्त अवधारणा को समस्त भारत में अधिरोपित करना एक महान चुनौती के साथ उपलब्धि रही है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो सामाजिक-आर्थिक न्याय, संवेदनषीलता और खुले स्वरूप समेत लोक विकास की कुंजी का रूप है। देष में कानूनी ढांचा, लोक कल्याण के लिए जितना महत्वपूर्ण होता है उतना ही लोकतंत्र और गणतंत्र के लिए भी जरूरी है। सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोल कर विकास दें ताकि आजादी के सपने और स्वराज की अवधारणा को पूरा स्थान मिल सके और स्वतंत्रता के लिए चुकाई गयी कीमत को पूरा न्याय। जाहिर है उक्त संदर्भ को संजोए हुए 7 दषक हो गये हैं। संविधान के नीति निदेषक सिद्धांतों से जहां लोक कल्याण को ऊंचाई दी गयी वहीं मूल अधिकार से यह बात पुख्ता हुई कि राजनीतिक अधिकार और सुषासन से देष परिपूर्ण है। एक बेहतरीन संविधान का निर्माण और सभी की उसमें हिस्सेदारी साथ ही समाजवादी व पंथनिरपेक्ष की अवधारणा के साथ समतामूलक दृश्टिकोण के चलते यह स्पश्ट है कि स्वतंत्रता संग्राम में निवेष की गयी क्षमता और दर्षन का पूरा उपयोग हो रहा है। 26 जनवरी 1950 को जब देष में संविधान लागू हुआ और गणतंत्र को स्थापित किया गया तब एक बार फिर 26 जनवरी 1930 की वह घटना अनायास मुखर हुई जब लाहौर में रावी नदी के तट पर पूर्ण आजादी का संकल्प लेते हुए तिरंगे को आसमान दिया गया था। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भारत का संविधान सुषासन की यात्रा को सुनिष्चित कर दिया था। पंचवर्शीय योजना और सामुदायिक विकास कार्यक्रम तत्पष्चात् पंचायती राज व्यवस्था से प्रारम्भ देष में सुषासन से युक्त विकास यात्रा में अनेकों ऐसे विचार षामिल थे जो औपनिवेशिक काल से ही बाट जोह रहे थे।
1960 के दषक में बेहद साधारण षुरूआत के बाद भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम में छलांग लगाना, भारतीय सषस्त्र सेनाओं को ताकत प्रदान करना और स्वदेषी उद्यमिता को परवान चढ़ाना, यह जताता है कि सुषासन को लेकर चिंता अनेक क्षेत्रों में विस्तार ले चुकी थी। गांधी जी की सर्वोदय की अवधारणा भले ही 1922 का एक संकल्प रहा हो मगर आजाद भारत में इसका पूरा ताना-बाना आज भी देखा जा सकता है। कृशि और खाद्य क्षेत्र में चुनौतियां आजादी के साथ ही मिली थी मगर देष के अन्नदाताओं ने अपनी क्षमताओं से भारत को इस मामले में आत्मनिर्भर बना दिया। इतना ही नहीं कृशि और खाद्य क्षेत्र में विषाल जनसंख्या के लिए भारत ने खाद्य सुरक्षा प्राप्त कर ली है और वैष्विक कृशि षक्ति केन्द्र का खिताब भी हासिल किया है हालांकि अन्नदाता अभी भी बुनियादी विकास से जूझ रहे हैं। भारत को 1947 में जब आजादी मिली तो सामाजिक-आर्थिक ही नहीं राजनीतिक स्थितियां भी अस्थिर थी, खजाना खाली था और विदेषी मुद्रा नाममात्र की थी। इतना ही नहीं पष्चिमी देषों की ताकतों के आगे संतुलन बनाने की चुनौती भी बरकरार रही है और अपने आस-पास के देषों के साथ बेहतर सम्बंध के प्रति सक्रिय रहना जरूरी था। खास यह है कि आज भारत विदेषी मुद्रा भण्डार के मामले में अग्रणी देषों में षुमार है और कई क्षेत्रों में अग्रिम पंक्ति में है। वैष्विक पटल पर यूरोपीय और अमेरिकी देषों समेत भारत दुनिया में एक नई पहचान रखता है। दो टूक यह कि आजादी के सपने को पंख लगे हैं मगर उड़ान कहीं कम तो कहीं ज्यादा है।
भारत युवाओं का देष है रोज़गार यहां चुनौती में हैं। वैसे तो षिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, बिजली, पानी व सड़क जैसे तमाम बुनियादी विकास कमोबेष चुनौती में बने ही रहते हैं जिसके चलते समावेषी और सतत् विकास भी बेपटरी हो जाते हैं साथ ही सुषासन की आकांक्षा अधूरी रह जाती है। सुषासन की परिपाटी एक दिन का परिणाम नहीं है भारत के इतिहास को बारीकी से झांके तो चिंतन और दर्षन जो विकास से जुड़े थे वो सुषासन को पुख्ता कर रहे थे। षोध और नवाचार के मामले में देखा जाये तो भारत तुलनात्मक कहीं अधिक बेहतर है। सुषासन चुनौतियों को कमजोर करता है और सुजीवन की राह को सुनिष्चित करता है। मगर गरीबी और भुखमरी के साथ अषिक्षा का देष में अभी भी मुखर रहना सुषासन को चोट पहुंचाने जैसा है। महंगाई और बेरोजगारी की मौजूदा दर सुषासन के लिए सही नहीं है। नागरिक अधिकारपत्र, सूचना का अधिकार, षिक्षा का अधिकार, खाद्य सुरक्षा तथा नई षिक्षा नीति समेत कई संदर्भों ने सुषासन को बीते दो दषकों में बड़ी ताकत से भर दिया। लोकतांत्रिक सत्ता में जनता का भरोसा डगमगाने से पहले संभल जाये ऐसा सुषासन के कारण ही होता है। दो टूक कहें तो सुषासन भले ही जुबान पर दषकों पहले आया हो मगर जिन्दगी में यह सभ्यता के साथ ही प्रवेष कर लिया था।

दिनांक : 22/12/2022


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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