Tuesday, December 27, 2022

सीमा विवाद खड़ा करना चीन की फितरत

बीते 12 दिसम्बर को अरूणाचल के तवांग में भारत-चीन सैनिकों के बीच एक बार फिर झड़प हुई। दोनों देषों के सैनिकों के बीच आमने-सामने का यह संघर्श कई संदर्भों को उजागर करता है। एक ओर जहां चीन की विस्तारवादी नीति इसके लिए जिम्मेदार है वहीं आंतरिक संकट से जूझ रहे चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग मानो ऐसी घटना को उकसाने के लिए मजबूर हों। गौरतलब है कि चीन इन दिनों आंतरिक संकट से बाकायदा जूझ रहा है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले चीन आर्थिक विरोध से लेकर जिनपिंग विरोध तक का मामला सड़क पर आ चुका है। ऐसे में जिनपिंग की यह मजबूरी है कि आम चीनियों का ध्यान उनके विरोध में हटाते हुए सीमा की ओर धकेलना। विदित हो कि अरूणाचल में चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पार करने की कोषिष की और भारतीय सैनिकों ने उन्हें करारा जवाब दिया। कहा जा रहा है कि संघर्श में दोनों पक्ष के तीस सैनिक घायल हुए हैं। हालांकि वीडियो जिस तरह से दिखाई देता है उससे यह साफ है कि बहुत कम भारतीय सैनिकों ने ज्यादा तादाद वाले चीनी सैनिकों को खदेड़ने में न केवल कामयाब रहे बल्कि पीपुल्स लिबरेषन आर्मी के सैनिकों को यह भी बता दिया कि उन्हें हल्के में न लें। गौरतलब है कि जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में थी तब साल 2020 के अप्रैल-मई में चीन अपने इन्हीं विस्तारवादी नीतियों के चलते पूर्वी लद्दाख में बखेड़ा खड़ा कर दिया जिसकी आग अभी पूरी तरह ठण्डी नहीं कही जा सकती कि तवांग में एक बार फिर आमने-सामने की झड़प हो गई। जून 2020 में भी ऐसी ही झड़प हुई थी जिसमें देष के कई सैनिक षहीद तो कई घायल हुए थे। हालांकि चीन के सैनिकों में मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा थी मगर आंकड़ा साफ-साफ बताया नहीं गया। दो टूक यह भी है कि चीन के वादे हों या इरादे दोनों पर कभी भी भरोसा फिलहाल नहीं किया जा सकता। दरअसल चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अमन-चैन की बहाली का इरादा रखता ही नहीं है। 1954 के पंचषील समझौते को 1962 में तार-तार करने वाला चीन कई बार भारत के लिये मुसीबत का सबब बनता रहा है। जब-जब भारत दोस्ती का कदम बढ़ाता है चीन विस्तारवादी नीति के चलते दुष्मनी की राह खोल देता है। हालिया घटना और पूर्वी लद्दाख से पहले जून 2017 में डोकलाम विवाद 75 दिनों तक चला जिसे लेकर जापान, अमेरिका, इजराइल व फ्रांस समेत तमाम देष भारत के पक्ष में खड़े थे और अन्ततः चीन को पीछे हटना पड़ा था। तवांग घटना के बाद भी अमेरिका खुल कर भारत के पक्ष में है और संयुक्त राश्ट्र संघ ने यह अपील की है कि क्षेत्र विषेश में तनाव को किसी स्थिति में बढ़ने न दिया जाये।
इतिहास के पन्नों में इस बात के कई सबूत मिल जायेंगे कि भारत और चीन के बीच सम्बंध भी पुराना है और रार भी पुरानी है। 1962 के युद्ध के बाद 1967 मे नाफला में चीन और भारत के कई सैनिक मारे गये थे। संख्या के बारे में दोनों देष के अपने-अपने दावे हैं। 1975 में भारतीय सेना के गष्ती दल पर अरूणाचल प्रदेष में चीनी सेना ने हमला किया था। भारत और चीन सम्बंधों के इतिहास में साल 2022 के तवांग घटना का जिक्र भी अब 1962, 1967, 1975 और 2020 की तरह ही होता दिखता है। ऐसा नहीं है कि दोनों देषों के बीच सीमा का तनाव कोई नई बात है व्यापार और निवेष चलता रहता है, राजनीतिक रिष्ते भी खूब निभाये जाते रहे हैं मगर सीमा विवाद हमेषा नासूर बना रहता है। हालांकि बीते ढ़ाई वर्शों से भारत और चीन के द्विपक्षीय रिष्तों पर विराम लगा हुआ है और पूर्वी लद्दाख की घटना के बाद तो भारत ने बड़ा एक्षन लेते हुए कई आर्थिक तौर पर चीन को नुकसान पहुंचाने वाले लिए भी थे। कूटनीति में अक्सर यह देखा गया है कि मुलाकातों के साथ संघर्शों का भी दौर जारी रहता है। भारत और चीन के मामले में यह बात सटीक है पर यह बात और है कि चीन अपने हठ्योग और विस्तारवादी नीति के चलते दुष्मनी की आग को ठण्डी नहीं होने देता जबकि भावनाओं का देष भारत षान्ति और अहिंसा का पथगामी बना रहता है। बावजूद इसके पूर्वी लद्दाख के मामले में भारत ने चीन को यह जता दिया था कि वह न तो रणनीति में कमजोर है और न ही चीन के मनसूबे को किसी भी तरह कारगर होने देगा। ऐसा करने के लिये जो जरूरी कदम होंगे वो भारत उठायेगा। ऐसा ही 2017 में डोकलाम विवाद में भारत के कदम को देखा जा सकता है।
एलएसी की मौजूदा स्थिति की पड़ताल बताती है कि जून 2020 भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई। चीन अरूणाचल की सीमा पर गांव बसा रहा है और पड़ोसी पाकिस्तान को भारत के खिलाफ हथियार बनाने में पीछे नहीं रहता है। गलवान घाटी में जो घटा था उसका कोई सबक चीन ने नहीं लिया है। सितम्बर 2020 में पेंगोंग झील के इलाके में एलएसी पर चीनी सैनिकों ने गोलाबारी की जो घटना अंजाम दी थी उसका भी भारत ने मुंह तोड़ जवाब दिया था इस मामले में भी चीन की हरकत बताती है कि सबक नहीं लिया। षीषे में उतारने वाली बात तो यह भी है कि चीन एक ऐसा पड़ोसी देष है जो सिर्फ अपने तरीके से ही परेषान नहीं करता बल्कि अन्य पड़ोसियों के सहारे भी भारत के लिए नासूर बनता है। मसलन पाकिस्तान और नेपाल इतना ही नहीं श्रीलंका और मालदीव यहां तक कि बांग्लादेष से भी ऐसी ही अपेक्षा रखता है। इन दिनों तो अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता है जो चीन और पाकिस्तान की मुकम्मल सफलता का प्रतीक है। तालिबान के सहारे भी चीन भारत के लिये रोड़ा बनते हुए देखा जा सकता है मगर भारत की रणनीतिक दृश्टिकोण जिस प्रकार अफगानिस्तान के लिए रही है उसे देखते हुए चीन ऐसा करने में सफल होगा कठिन तो है मगर तालिबानी सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
पड़ताल तो यह भी बताती है कि चीन का पहले से लद्दाख के पूर्वी इलाके अक्साई चीन पर नियंत्रण है और चीन यह कहता आया है कि लद्दाख को लेकर मौजूदा हालात के लिये भारत सरकार की आक्रामक नीति जिम्मेदार है। यह चीन का वह चरित्र है जिसमें किसी देष और उसके विचार होने जैसी कोई लक्षण नहीं दिखते। दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था चीन पड़ोसियों के लिये हमेषा अषुभ ही बोया है। चीन की दर्जन भर पड़ोसियों से दुष्मनी है और मौजूदा समय में तो ताइवान तो चीन से आर-पार करने को तैयार है। चीन के आरोपों पर भारत हमेषा साफगोही और ईमानदारी से बात कहता रहा है। पूर्वी लद्दाख में घटना के बाद सैन्य वार्ता का बेनतीजा होना यह चीन की नाकामियों का ही परिणाम था। तवांग में झड़प पर चीन की सेना ने भारत के सैनिकों पर ही मिथ्या आरोप मढ़ दिया है। चीन की यह पुरानी आदत है जो कथनी और करनी में बहुत भेद रहता है। चीन की दक्षिण चीन सागर पर बपौती से लेकर हिंद महासागर तक पहुंच रखने वाली इच्छा उसकी अति महत्वाकांक्षा का नतीजा ही है। ऐसी ही चीनी करतूत को संतुलित करने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत ने क्वाड जैसी व्यूह रचना तैयार की है मगर भारत का दुष्मन नम्बर वन चीन पूर्वी लद्दाख से लेकर अरूणाचल तक किस रूप में एलएसी में समस्या पैदा कर दे बताना कठिन है। फिलहाल भारतीय सैनिक तवांग में चीनी सैनिकों को उनकी हद बताने में कामयाब रहे। 

दिनांक : 15/12/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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