Wednesday, May 9, 2018

सम्मान पर विवाद कितना समुचित!

इसमें कोई दुविधा नहीं कि प्रत्येक सम्मान अपना एक सद्आचरण लिये होता है और सम्मान प्राप्त करने वाले आम से नहीं खास दृश्टि से देखे जाते हैं। इसी दृश्टिकोण से ओत-प्रोत दिल्ली के विज्ञान भवन में बीते 3 मई को 65वां राश्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन हुआ। जिसमें 125 विजेताओं को सम्मानित किया जाना था परन्तु परम्परा से हटकर राश्ट्रपति के हाथो इनमें से केवल 11 को ही पुरस्कृत किये जाने का निर्णय था जिसके चलते षेश विजेताओं में से 70 कलाकारों ने इसका बाॅयकाट सविनय अवज्ञा आंदोलन की तर्ज पर किया जो अपने आप में एक अनूठी परम्परा की नींव डालने जैसा है। दरअसल समारोह में प्रोटोकाल की वजह से राश्ट्रपति को केवल एक घण्टे ही मौजूद रहना था जिसके चलते सभी को पुरस्कार देना सम्भव नहीं था। कार्यक्रम के अगले चरण में अन्यों को पुरस्कार देने का काम सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति इरानी और राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन राठौर को करना था और ऐसा हुआ भी। वैसे भी प्रत्येक को पुरस्कार राश्ट्रपति द्वारा इतनी बड़ी मात्रा में दे पाना आसान काज भी नहीं है। पूर्व राश्ट्रपतियों के लिए भी यह सहज नहीं रहा है जिसके चलते कई इस पर आपत्ति भी जता चुके हैं। पूर्व राश्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने बीमारी के चलते एक साल तो पुरस्कार बांटे ही नहीं जबकि प्रणव मुखर्जी ने पुरस्कार के वितरण के दौरान एक ब्रेक भी लिया था। जो भी हो सम्मान के संदर्भ के निहित परिप्रेक्ष्य को देखते हुए इसे तूल देने की आवष्यकता षायद नहीं थी बल्कि इसके लिये कोई बेहतर रास्ता चुना जाना चाहिए था। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस विवाद से राश्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी नाराज हुए। उनका मानना था कि जब प्रोटोकाॅल के बारे में सूचित कर दिया गया था तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने उचित कदम क्यों नहीं उठाये। 
पुरस्कार का बाॅयकाट करने का मामला कुछ हद तक तो तूल पकड़ ही लिया है। फिलहाल यहां बता दें कि राश्ट्रपति के हाथों दादा साहेब फाल्के अवाॅर्ड के लिए अभिनेता स्व0 विनोद खन्ना और नेषनल फिल्म अवाॅर्ड में सर्वश्रेश्ठ अभिनेत्री हेतु स्व0 श्रीदेवी समेत 11 को सम्मान मिला। इन दोनों अभिनेता, अभिनेत्रियों का सम्मान इनके परिवार के सदस्यों ने ग्रहण किया। हालांकि राश्ट्रपति के हाथों पुरस्कार न पाने वालों ने इस पर अपने-अपने तरीके से कुछ आपत्तियां भी जतायी हैं। गौरतलब है कि पुरस्कार के लिए चुने गये कई कलाकारों ने एक पत्र लिखा इसकी एक प्रति राश्ट्रपति भवन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भी भेजी गयी जिसमें कहा गया कि वे पुरस्कर वितरण समारोह में षामिल नहीं होंगे क्योंकि राश्ट्रपति स्थापित परम्परा से हटकर केवल 11 लोगों को पुरस्कार देंगे। हालांकि उन्होंने यह भी लिखा कि इसके पीछे पुरस्कार के बहिश्कार की कोई इच्छा नहीं वे तो केवल असंतुश्टि से अवगत कराने के लिए समारोह में षामिल नहीं हो रहे हैं। कहा तो यह भी गया कि अभी तक राश्ट्रपति सभी विजेताओं को अवाॅर्ड देते रहे हैं इस बार ऐसा न होने से पुरस्कार का महत्व भी कम हो सकता है। जाहिर है पुरस्कार पर विवाद होना वाकई चिंता तो नहीं पर चिंतन का विशय बनता है। यहां एक बात यह समझने वाली होगी कि जब सौ से अधिक लोगों को पुरस्कार के लिये चयनित किया जायेगा तो सम्भव है कि एक घण्टे में यह काज कैसे होगा। ऐसे में क्या प्रोटोकाॅल की सीमा को लम्बा किया जाना जरूरी नहीं है। हालांकि इस पर नियम संगत ही व्यवस्था हो सकती है पर स्थिति को देखते हुए ऐसा लाज़मी प्रतीत हो रहा है। गौरतलब है कि साल 1954 में षुरू नेषनल फिल्म अवाॅर्ड्स फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सबसे सम्मानित पुरस्कार है तो इसके प्रति नजरिया भी चैड़ा और कहीं अधिक भिन्न क्यों नहीं होना चाहिए।
पुरस्कारों का विवादों से और विवादों का राजनीति से नाता कहीं अधिक पुराना है। भारत रत्न समेत पद्म सम्मान को लेकर कुछ के मामले में यह संदेह रहा है कि ये सम्मान राजनीति से काफी हद तक प्रेरित होते हैं। हालांकि मोदी षासनकाल में ऐसे सम्मानों को लेकर नये प्रारूप का निर्धारण कुछ हद तक किया गया है षायद ऐसा पारदर्षिता को बनाये रखने के चलते सम्भ्व हुआ। संदर्भ यह भी है कि भारत रत्न की परम्परा भी साल 1954 से ही षुरू हुई जिसमें यह देखा गया कि किसी साल तीन, चार लोगों को यह सम्मान मिला है और कभी तो यह कई वर्शों तक किसी को दिया ही नहीं गया। 2001 के बाद भारत रत्न 7 वर्शों बाद वर्श 2008 में दिया गया। इसके बाद 2013 में। साल 2015 में मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी को एक साथ भारत रत्न दिया तब से अब तक अभी यहां भी ठहराव है। पड़ताल बताती है कि सम्मान को लेकर झंझवात कई प्रकार के हैं सम्मान ग्रहण न करने के अलावा वापसी के भी प्रसंग देष में रहे हैं। गौरतलब है कि मोदी षासनकाल में असहिश्णुता को लेकर साल 2015 में कई साहित्यकारों ने सम्मान वापस कर दिये थे। हालांकि देष में आपात के दौरान भी पद्म सम्मान वापस किये जा चुके हैं जबकि इसके पहले औपनिवेषिक काल में 1919 में जलियांवाला बाग काण्ड के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने नाइट हुड की उपाधि वापस की थी। जाहिर है प्रसंग और संदर्भ विषेश को लेकर या तो सम्मान का बाॅयकाट किया गया है या फिर सम्मान की वापसी की गयी है परन्तु यह बात भी लाख टके की है कि इससे सम्मान का कोई असम्मान नहीं होता बल्कि यह असंतुश्टि मात्र को परिभाशित करता है।
सम्मान से जुड़े कई फैसले तो काफी हैरान करने वाले रहे हैं। मषहूर बिलियडर््स खिलाड़ी माइकल फेरेरा ने 1981 में पद्मश्री लेने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि वे पद्म भूशण के हकदार हैं जिसे सुनील गावस्कर को दिया गया। फ्लाइंग सिक्ख के नाम से दुनिया में चर्चित मिल्खा सिंह ने 2001 में तमाषा करार देते हुए अर्जुन अवाॅर्ड लेने से इंकार किया। सानिया मिर्जा का राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिये चयन ऐसे ही विवादों की कड़ी के रूप में देखा गया। इतना ही नहीं जब साल 2005 में सैफ अली खान को सर्वश्रेश्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया तब भी यह कईयों को हैरान किया था। बाॅक्सर मनोज कुमार ने 2014 में जब खुद का नाम अर्जुन पुरस्कार के लिये नहीं पाया तो खेल मंत्रालय को कोर्ट में घसीटा और फैसला उनके पक्ष में रहा। बाद में उन्हें अलग से अर्जुन पुरस्कार दिया गया। सचिन तेंदुलकर को 2013 में भारत रत्न दिया जाना और ध्यानचंद को इससे वंचित रखना भी कईयों को गले आज भी नहीं उतरता। पुरस्कारों की अपनी एक कथा और व्यथा रही है। राश्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राश्ट्रीय स्तर पर भी विवाद समय-समय पर उत्पन्न हुए हैं। जब अमेरिका के तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा को 2009 में नोबेल षान्ति पुरस्कार के लिये चुना गया तब भी इसे लोग संदेह की नजर से देख रहे थे। फिलहाल सम्मान पर उठते सवाल को लेकर रार ठीक नहीं है। हालांकि राश्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का मामला अलग किस्म का है यहां विवाद राश्ट्रपति के हाथो सम्मान न मिलने के चलते उत्पन्न हुआ। सबके बावजूद यदि इस पर सीमित तार्किकता का उपयोग और बेहतर ढंग से किया जाता तो षायद इस विवाद से बचा जा सकता था पर ऐसा नहीं हुआ। बावजूद इसके यह उम्मीद जरूर की जानी चाहिए कि सम्मान की अपनी एक प्रासंगिकता है और यह किसी के भी हाथों मिले कमतर नहीं होता है। हां यह बात सही है कि यदि महामहिम से मिले तो सम्मानित व्यक्ति कहीं अधिक सद्भाव और संतुश्टि से भरे होंगे। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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