Monday, May 7, 2018

पोस्टर बॉय का खात्मा पर अंत कब!

जिस प्रारूप में आतंक के सफाये को लेकर करीब एक महीने से सेना, अर्द्धसैनिक बल और जम्मू-कश्मीर   पुलिस ने घाटी में सक्रिय आतंकियों को खत्म करने का काम किया है वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। कष्मीर के षोपियां जिले में 5 आतंकियों को मार गिराने में मिली सफलता यह जताती है कि यह संयुक्त अभियान आतंकी संगठनों पर कहीं अधिक दबाव बनाने में कामयाब रहा है। यहां मारे गये आतंकी में एक हिजबुल मुजाहिद्दीन का कमाण्डर बताया जा रहा है जबकि बाकी मारे गये 4 अतांकियों में एक कष्मीर विष्वविद्यालय में समाजषास्त्र का सहायक प्रोफेसर मोहम्मद रफी भट है जो बीते षुक्रवार की षाम से घर से गायब था। साफ है कि दो दिन के भीतर आतंकी बना और अंत को भी प्राप्त किया। यह कल्पना षायद ही कोई करे कि विष्वविद्यालय में समाजषास्त्र का एक प्रोफेसर आतंक की राह चुनता है और 36 घण्टे के भीतर वही आतंक उसकी जिन्दगी खत्म कर देता है। यह समझना भी मुष्किल है कि समाजषास्त्र की पढ़ाई में ऐसा कौन सा चैप्टर इस प्रोफेसर ने पढ़ा कि आतंक की राह पकड़ ली और देष से ही गद्दारी कर बैठा। षिक्षालयों और विष्वविद्यालयों में जहां षिक्षक भटकों को सही राह पर लाने का काम करते हैं वहीं सहायक प्रोफेसर की नौकरी करने वाला भट इतनी बेतरतीब तरीके से भटका कि उसे सरल और जटिल समाज का ज्ञान ही मानो नहीं था। यह प्रसंग इस बात को भी इंगित करता है कि घाटी में पत्थरबाज हों या पाकिस्तानपरस्त हों या फिर भारत के विरोध में नारे लगाने वाले ही क्यों न हो उसमें पढ़े-लिखों की जमात भी कम नहीं है। कई अलगाववादी संगठन इन्हें आतंकी बनाने पर आमादा हैं और ये बेपरवाह अपने सपनों और अपने परिवार की उम्मीदों को रौंद कर पीठ पर मानो गोलियां खाने के लिए मजबूर हो। 
खास यह भी है कि कष्मीर की घाटी को मानो आतंक विरासत में मिला हो और अलगाववादियों की नजर से यह घाटी हमेषा स्याह होती रही है साथ ही बेइन्तहा आतंक का बोझ ढोती रही। पिछले वर्श जून-जुलाई के महीने में आॅपरेषन आॅल आउट के तहत घाटी से आतंकियों के सफाये का लम्बा अभियान चला था और जिस तर्ज पर यहां आतंकियों को ढ़ेर किया गया था उससे यह साफ था कि घाटी अमन की ओर जा रही थी पर ऐसा नहीं है। कष्मीर की घाटी पहले भी आतंकियों के भार से दबी थी और अब भी वह उससे मुक्त नहीं है। उस दौरान ऐसा भी दावा किया जा रहा था कि टेरर फण्डिंग पर षिकंजा कसा जा चुका है और जिस तरीके से लोगों को भड़काने से हुर्रियत नेता अब बाज आ रहे हैं साथ ही पत्थरबाजों की संख्या में कमी आयी थी उसे देखते हुए यह लगा था कि कष्मीर एक नये दौर में प्रवेष कर रहा है। गौरतलब है कि सेना द्वारा उन दिनों आॅपरेषन आॅल आउट के तहत चिन्ह्ति 258 दुर्दान्त आतंकियों के खात्मे का अभियान चलाया गया जिसमें सैकड़ों का खात्मा भी हुआ। इसी दौरान लष्कर का षीर्श कमाण्डर अबू दुजाना भी सेना के निषाने पर आ गया है। इससे न केवल पाकिस्तान के आतंकियों को बड़ा झटका लगा था बल्कि कष्मीर के अलगाववादी भी झुका हुआ महसूस कर रहे थे। आतंकी नेटवर्क बहुत बड़ा है इतना की इकाई-दहाई की सफलता से बात नहीं बनेगी बल्कि मामला सैकड़ों और हजारों की तादाद में है और यह बात तब अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है जब एक नई जमात आतंक की राह पकड़ लेती है। कष्मीर में ऐसी कई घटनायें हैं जिसमें कईयों ने घर-बार छोड़कर आतंक की राह पकड़ी, कुछ ने वापसी भी कर ली पर कई कष्मीर के अमन-चैन के दुष्मन आज भी बने हुए हैं।
कष्मीर के अमन-चैन का असल दुष्मन कौन है इसकी भी परख होनी जरूरी है। अगर पाकिस्तान में बैठा जैष-ए-मोहम्मद से लेकर हक्कानी और हाफिज सईद से लेकर अज़हर मसूद तक इसके दुष्मन हैं तो कष्मीर के अंदर हुर्रियत नेता इसी काम में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि आतंकी बुरहान वानी की जुलाई 2016 में मौत के बाद घाटी में आतंकियों की तादाद में 55 फीसदी का इजाफा हुआ इस बात का प्रमाण केन्द्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है। साल 2010 के बाद 2016 में सबसे अधिक तादाद में युवाओं ने आतंक की राह पकड़ी। खास यह भी है कि स्थानीय युवकों ने अभी भी यह मानसिकता परवान लिए हुए है। बुरहान वानी एक अलगाववादी था दूसरे षब्दों में एक बड़ा आतंकवादी था और जब इसका सफाया हुआ तो हुर्रियत समेत तमाम अलगाववादियों ने कष्मीर में ताण्डव मचाया। पाकिस्तान में बुरहान वानी की मौत को काला दिन घोशित किया गया। क्या यह बात पूरी तरह साफ नहीं है कि पाकिस्तान के आतंकी भारत में बम विस्फोट करते हैं और मौत का बड़ा खेल खेलते हैं जबकि कष्मीर के अलगाववादी जो तथाकथित हुर्रियत के लोग नेता कहलाते हैं वे भी वहां के युवाओं को इसी के लिए उकसा रहे हैं तो दोनों में फर्क क्या है यदि है तो विदेषी और देषी का जबकि उद्देष्य दोनों के एक जैसे हैं। युवाओं को उकसाकर सुरक्षा बलों पर हमला कराने की इनकी साजिष को जमींदोज करने की कोषिष की गयी पर पूरी तरह सफलता नहीं मिली। निःसंदेह यह अच्छा नहीं होगा कि देष के भीतर आतंक की घटना हो और सेना मात्र पूरी कूबत से इसके खात्मे में लगी रहे। जब स्थानीय प्रषासन प्रभावहीन हो जाता है तो बड़ी सरकारों को बड़े कदम उठाने होते हैं। आतंक एक दिन में खत्म नहीं होने वाला परन्तु खत्म नहीं होगा ऐसा सोचना भी उतना लाज़मी नहीं है। 
घाटी में दो काम करना है एक आतंकियों के खात्मे को लेकर अभियान बनाये रखना और हुर्रियत जैसे नेताओं के दिमाग को उबलने से रोकना, दूसरा राजनीतिक बिसात पर पारदर्षिता को प्रतिस्थापित करके कष्मीरियों का दिल भारत के लिए धड़काना। मुख्यतः यह बात उन पर लागू है जो अलगाववादियों की चपेट में है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि पाकिस्तान की जमीन पर भारत को नश्ट करने का जो खाका खींचा जाता है उससे पूरी तरह निजात तभी मिलेगी जब पीओके से भी आतंकी और लाॅचिंग पैड को पूरी तरह ध्वस्त किया जाय। सितम्बर 2016 में उरि घटना के बाद 10 दिन के भीतर जब भारतीय सेना ने पीओके में 10 किलोमीटर अंदर घुसकर 40 से अधिक आतंकियों को मार गिराया था और कई लाॅचिंग पैड नश्ट किये थे तो दुनिया ने भारत के साहस की तारीफ की थी और यह उम्मीद जगी थी कि पीओके के रास्ते घाटी में अमन को निगलने वाले आतंकियों को सबक सिखाया जा सकता है। आतंकियों के हमदर्द को भी यह समझ लेना चाहिए कि चपेट में तो वे भी आयेंगे। गौरतलब है कि संयुक्त आॅपरेषन के दौरान आतंकियों को भगाने के लिए पत्थरबाजी करने वाले 5 नागरिक भी मारे गये। इससे पहले 1 अप्रैल को दक्षिण कष्मीर में सेना और बाकी बलों के आॅपरेषन में 13 आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया है तब भी 4 पत्थरबाजों की मौत हुई थी। आंकड़े तो यही बताते हैं कि घाटी में हालात सुधरे नहीं हैं और रह-रह कर यह सर उठाता रहता है। मुख्य रूप से राज्य के दक्षिण में हालात अधिक चिंताजनक है पत्थरबाजी और सुरक्षाबलों पर हमले इसी क्षेत्र में अधिक हुए हैं। सरकार की दलील है कि आतंकी घटनाओं में कमी आयी है पर हालात को देखकर इस पर पूरा विष्वास होता नहीं है। फिलहाल भारतीय संविधान की पहली सूची में 15वें राज्य के रूप में दर्ज जम्मू-कष्मीर दषकों से आतंक झेल रहा है पर यह इस उम्मीद के साथ कि एक दिन यहां भी अन्य राज्यों की तरह अमन-चैन होगा और आतंकी बोझ से घाटी को मुक्ति मिलेगी।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment