Wednesday, May 23, 2018

भारत-रूस संबंध का सारगर्भित संदर्भ

अब यह बात दुनिया के देष समझने लगे हैं कि कूटनीति के अलावा द्विपक्षीय रिष्तों को सारगर्भित बनाने के लिए अनौपचारिक बैठकों को महत्व दिया जाना चाहिए इस मामले में भारत अग्रणी है। वैसे देखा जाय तो कूटनीति पहले की तुलना में अधिक खुले स्वभाव को भी ग्रहण कर लिया है। बीते चार वर्शों में प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी समेत दुनिया के कई देषों के साथ कुछ इसी प्रकार के सम्बंध बनाते देखे जा सकते हैं। बीते 21 मई को मोदी द्वारा की गयी रूस यात्रा इसी श्रेणी में आती है जो पूर्व में की गयी तीन यात्राओं से अलग थी। रूस के राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ खुलकर अनौपचारिक बातचीत का यहां पूरा अवसर था और उसका लाभ भी उन्होंने उठाया। गौरतलब है कि रूस रवाना होने से पहले मोदी ने कहा था कि पुतिन से होने वाली उनकी मुलाकात दोनों देषों के विषेश रणनीतिक रिष्तों को और मजबूत करेगी। मुलाकात को भले ही अनौपचारिक बताया जा रहा हो पर मोदी ने एक तरह से इसमें भी अपने एजण्डे की झलक दिखाई है। दोनों नेताओं की मुलाकात यह भी निर्धारित करती है कि आने वाले दिनों में भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की दषा और दिषा तुलनात्मक कहीं अधिक सषक्त होगी। मुलाकात ने दोनों देषों के रिष्तों को भी नई सच्चाई के साथ रेखांकित किया है मगर जिस तर्ज पर अमेरिका रूस को घेरने की कोषिष कर रहा है वह रिष्तों के संतुलन के लिहाज़ से भारत के लिए चुनौती हो सकता है। हालांकि भारत द्विपक्षीय सम्बंधों को तीसरे देष से तटस्थ रखता आया है। ऐसे में चुनौती जैसी कोई बात उतनी संवेदनषील प्रतीत नहीं होती। गौरतलब है कि बीते सात दषकों से भारत एक गुटनिरपेक्ष देष रहा है और सम्बंधों को अपनी सीमाओं में रहते हुए तय किया है।
इसके पहले 27-28 अप्रैल को चीन के राश्ट्रपति षी जिनपिंग के साथ मोदी वुहान षहर में कुछ इसी तर्ज पर अनौपचारिक षिखर सम्मेलन कर चुके हैं जो रणनीति के लिहाज़ से दोनों देषों के बीच परस्पर क्रियाओं को मजबूती देने के संदर्भ में देखा गया। यहां मोदी ने सम्बंधों की बेहतरी के लिए जो पांच सूत्री एजेण्डा पेष किया जिसकी तुलना नेहरू के 1954 के पंचषील से की गयी जिसमें समान दृश्टिकोण बेहतर संवाद मजबूत रिष्ता और साझा विचार समेत साझा समाधान षामिल था। यह अनौपचारिक वार्ता इस लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण मानी गयी क्योंकि बीते वर्श जून में डोकलाम को लेकर दोनों देषों के बीच 73 दिनों तक काफी तनातनी थी। चीन तो युद्ध तक का वातावरण बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। वो तो भारत था जो उसके अनाप-षनाप वक्तव्य पर अपना संयम नहीं खोया। हालांकि इसे लेकर कूटनीतिक हल निकल गया है पर स्थायी हल अभी निकलना बाकी है। फिलहाल एक दिवसीय मोदी की रूस यात्रा और मुद्दों पर हुई गर्मागरम वार्ता चीन और पाकिस्तान समेत कईयों के लिये मंथन का विशय हो सकता है जैसा कि ऐसी मुलाकातों से इनकी पेषानी पर बल पड़ता रहा है। दो महीने पहले चैथी बार रूस के राश्ट्रपति चुने गये पुतिन प्रोटोकाॅल से हटकर मोदी को विदा करने हवाई अड्डे पहुंचे। अनौपचारिक षिखर सम्मेलन का एक लाभ यह होता है कि इसमें संयुक्त वक्तव्य समझौता के बन्धनों से स्वतंत्र होने के कारण दो नेता कई मुद्दे पर एक-दूसरे का विचार जान सकते हैं जिनसे भविश्य के सम्बंधों का पथ चिकना करना सम्भव हो सकता है। इसके अलावा ऐसे अनौपचारिक बैठकों के बाद प्रेस कांफ्रेंस की मजबूरी भी नहीं जुड़ी होती। इस वार्ता का एक और तथ्य यह है कि पुतिन स्वयं मोदी को बातचीत के लिए आमंत्रित किये थे और वह भी चैथी बार राश्ट्रपति बनने के एक पखवाड़े के भीतर। दरअसल पुतिन मोदी के साथ रूस के भविश्य की एहमियत, अपनी विदेष नीति, दोनों देषों की अर्थव्यवस्था और अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर भारत से रिष्तों को मजबूती देने पर वार्ता करना चाहते थे।
जाहिर है कि भारत के लिए यह कम गौरव का विशय नहीं है कि नैसर्गिक मित्र रूस ने परम्परा को नई सच्चाई के साथ आगे बढ़ाने का काम किया। गौरतलब है कि बीते कुछ वर्शों से दुनिया का कूटनीतिक मिजाज बदला है। जब भारत की प्रगाढ़ता अमेरिका के तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा के समय कहीं अधिक हो गयी थी। तब यह सम्बंध कुछ हद तक रूस को भी अखरा था और इसी दौरान रूस संयुक्त सैन्य अभ्यास को लेकर पाक की ओर भी झुक रहा था। हालांकि रूस समेत पूरी दुनिया जानती है कि रूस और भारत की दोस्ती 70 साल पुरानी है। ऐसे में अमेरिका व चीन जैसे देषों के साथ भारत को द्विपक्षीय वार्ता में उतनी कठिनाई षायद ही होती हो। रूस और भारत की मित्रता दोनों देषों के परस्पर सहयोग से आगे बढ़ रही है। रूस के सोची नामक स्थान में इस अनौपचारिक बैठक के दौरान मोदी ने भारत को एससीओ में स्थायी सदस्यता दिलवाने के लिए रूस की भूमिका की भी चर्चा की साथ ही इंटरनेषनल नाॅर्थ साउथ काॅरिडोर पर और ब्रिक्स के लिए मिलकर काम करने की बात भी कही। इसके अलावा आतंकवाद को लेकर दोनों देषों के समान रवैये की भी चर्चा हुई जिसे दुनिया के लिए खतरा बताते हुए मिलकर लड़ने की बात दोहरायी गयी। वैसे दो देषों के सम्बंध इस बात पर अधिक टिके होते हैं कि उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक उन्नयन के साथ सम्प्रभुता कितनी अक्षुण्ण है। जाहिर है रूस के साथ इसका ताना-बाना कहीं अधिक सटीक और संतुलित है। प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू रूस की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और उसे अंगीकार भी किया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद षब्द का उल्लेख देखा जा सकता है और इसी समाजवाद ने भारत को मिश्रित अर्थव्यवस्था का अवसर दिया। हालांकि 1991 में आर्थिक उदारीकरण और बदली दुनिया के मिजाज को देखते हुए भारत ने अपना आर्थिक पथ चिकना किया परन्तु बदला नहीं जबकि इन दिनों सोवियत संघ जो 1917 से निर्मित था भंग हो चुका था। समाजवाद के प्रति दुनिया का विष्वास भी डगमगा गया था बावजूद इसके भारत ने पूंजीवाद के साथ समाजवाद को और लोक के साथ निजी क्षेत्र के सम्बंध को बनाये रखने में कामयाब रहा। उदारीकरण के 25 वर्श बीतने के साथ भारत को आधुनिकीकरण, पष्चिमीकरण तथा निजीकरण के साथ वैष्विकरण की अवधारणा से पूरी तरह पोशित देखा जा सकता है।
पष्चिम की ओर देखो के साथ-साथ 1990 के दषक में पूरब की ओर देखो नीति का भी परिप्रेक्ष्य भारत ने विकसित किया। मध्य एषिया समेत पूर्व एषियाई देषों के साथ भारत का सम्बंध कहीं अधिक संयमित और सुचारू है। दक्षिण एषिया में विकसित माना जाने वाला भारत लगभग सभी महाद्वीपों में सम्बंधों को लेकर अच्छी दखल रखता है। इन्हीं सम्बंधों के बीच मास्को से चली आ रही दोस्ती बादस्तूर आज भी कायम है। 13 अप्रैल, 1947 को तत्कालीन सोवियत संघ और भारत ने आधिकारिक तौर पर दिल्ली और मास्को में मिषन स्थापित करने का फैसला लिया था। दोनों देषों के बीच षुरू हुई दोस्ती का यह सिलसिला आज भी जारी है। यह ऐतिहासिक दोस्ती आर्थिक और वैज्ञानिक दृश्टि से भी एक-दूसरे के लिए कहीं अधिक उपजाऊ रहे हैं। भारत आज भी 62 फीसदी रक्षा सम्बंधी खरीद रूस से करता है। हालांकि वह खरीदारी तो अमेरिका से भी करता हैं। पुतिन कुछ ही सप्ताह बाद नियमित बैठक के लिए भारत आने वाले हैं। जाहिर है परिणामों की झलक बढ़े हुए अनुपात में देखी जा सकेगी। खास यह भी है कि दोनों की बातचीत में ईरान के साथ नाभिकीय समझौते से अमेरिका के अलग होने के बाद की परिस्थितियों, अफगानिस्तान और सीरिया में आतंकवाद साथ ही रूस द्वारा भारत में लगायी जाने वाली नाभिकीय परियोजनाओं और रक्षा सम्बंधों को बातचीत में जगह देना एक लाज़मी मौका के रूप में देखा जा सकता है। 
वैष्विक समीकरण मौजूदा समय में किस हाल में हैं इसकी भी पड़ताल जरूरी है। चीन के साथ कुछ हद तक अमेरिका की तनातनी और अमेरिका द्वारा एक तरफा ईरान के साथ परमाणु करार का तोड़ा जाना वैष्विक समीकरण को कुछ तो इधर-उधर करता है। वैसे एषियाई देषों में कुछ चीजे संतुलित भी हुई हैं मसलन उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच मेल-मुलाकात और जून में अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप और उत्तर कोरिया प्रमुख किम जोंग उन की होने वाली मुलाकात। हालांकि भारत का संदर्भित मापदण्ड इतना समस्या वाला नहीं है परन्तु दुनिया के संजाल में एक के साथ दूसरे का नाता एक-दूसरे को प्रभावित करता रहता है। अगले महीने षंघाई सहयोग संगठन और उसके बाद जुलाई में ब्रिक्स सम्मेलन में भी मोदी-पुतिन के साथ जिनपिंग की भी मुलाकात होगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी अब तक चार बार चीन की यात्रा कर चुके हैं जिसमें बीते अप्रैल की अनौपचारिक यात्रा भी षामिल है। ठीक इतनी ही यात्रा और लगभग इसी तर्ज पर मोदी रूस की कर चुके हैं। पहली बार वे जुलाई 2015 में ब्रिक्स बैठक के लिए जबकि दूसरी बार दिसम्बर 2015 में स्टेट विज़िट को लेकर दौरा हुआ। गौरतलब है कि इसी समय अफगानिस्तान तत्पष्चात् दिल्ली आने से पहले मोदी षरीफ से मिलने 25 दिसम्बर 2015 को मोदी लाहौर चले गये जो अपने आप में दुनिया के लिए एक अद्भुत घटना थी। यहां उन्होंने षरीफ के जन्मदिन की बधाई दी और उनके घर की षादी में षरीक हुए परन्तु सारा किया धरा पानी में तब चला गया जब 2016 की पहली सुबह में पठानकोट पर पाक प्रायोजित आतंक ने हमला कर दिया। तब से अब तक पाकिस्तान से सम्बंध बेपटरी हुए हैं। आतंक को समर्थन के मामले में पटरी पर तो सम्बंध चीन के मामले में भी नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके औपचारिक और अनौपचारिक वार्ता चीन से रूकी नहीं है। मई 2017 में मोदी ने रूस की तीसरी बार यात्रा की। गौरतलब है कि वर्श 2000 में रूस के राश्ट्रपति पुतिन और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने विषेश सामरिक साझेदारी को बढ़ाने का काम किया था जिसका जिक्र भी इस मुलाकात में हुआ। देखा जाय तो दोनों देषों के रिष्ते षीत युद्ध के दौर में और उसके बाद भी प्रगाढ़ होते गये। पिछले 70 सालों में अन्तर्राश्ट्रीय परिदृष्य बदल गये कई देष गृह युद्ध की आग में झुलस गये और कई देषों के बीच रिष्तों में गिरावट आयी मगर भारत और रूस आज तक बिना खटास के मित्रता निभा रहे हैं। भारत के हर मुष्किल में रूस खड़ा रहा है। दुनिया की परवाह किये बिना रूस अन्तर्राश्ट्रीय मंच पर भी दोस्ती निभायी है। संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में रूस ने 22 जून 1962 को अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कष्मीर मुद्दे पर भारत के समर्थन में किया था। हालांकि 1961 में 99वें वीटो का इस्तेमाल भी वह भारत के लिये ही किया था जो गोवा के मसले पर था। इसके अलावा पाकिस्तान के खिलाफ और भारत के पक्ष में रूस वीटों का इस्तेमाल करता रहा जबकि पड़ोसी चीन ठीक इसके उलट कार्य करता रहा। भारत-रूस के सम्बंध ऐतिहासिक तौर पर भी निकटता के सिद्धांत से जकड़े हुए हैं परन्तु कई मुद्दों पर सम्बंध भुनाना अभी बाकी है। एनएसजी से लेकर संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में स्थायी सदस्यता समेत कई बिन्दुओं पर रूस भारत के काम तो आ ही सकता है साथ ही कूटनीतिक संतुलन के मामले में भी रूस का साथ कहीं अधिक उपयोगी है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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