Monday, May 7, 2018

पाकिस्तान के जिन्ना गांधी के देश मे क्यों!

भारत में देष के विभाजन को एक महान दुर्घटना माना जाता है और यह तथ्य आज भी नेपथ्य में नहीं गया है। इसके प्रणेता मोहम्मद अली जिन्ना थे जो पष्चिमोत्तर भारत पर काबिज होते हुए पाकिस्तान के हो गये पर भारत में अभी भी उनकी जो दखल है उससे तो यही लगता है कि पाकिस्तान के जिन्ना गांधी के देष से गये ही नहीं। सत्य और अहिंसा की कसौटी पर भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन में अपनी प्रयोगषाला चला रहे महात्मा गांधी भारत विभाजन की इस दुर्घटना से केवल आहत ही नहीं थे बल्कि कहीं न कहीं पूरी आजादी में अधूरी जीत महसूस कर रहे थे और जब बंटवारे के साथ आजादी का चित्र बना और देष इस आपा-धापी में जल उठा तब गांधी न तो दिल्ली में आजादी का जष्न मनाने के लिए उपलब्ध थे और न ही सुकून की राह पर थे। गौरतलब है कि उन दिनों पूर्वी बंगाल जो अब बांग्लादेष है के नोओखली में षान्ति के दूत बने हुए थे वो भी उनके बीच जिन्हें हिंसा के नीचे कुछ भी गवारा नहीं था। दो टूक यह भी है कि देष का बंटवारा जिन्ना की हठ् थी न कि गांधी की ओर से दी गयी सहूलियत। इतना ही नहीं अंग्रेजों की वो मुराद भी पूरी हुई थी जो फूट डालो, राज करो को लेकर 1909 के भारत षासन अधिनियम से ही वे प्रयास कर रहे थे। इन दिनों फिलहाल बात यहां मोहम्मद अली जिन्ना की एक बार फिर क्यों हो रही है? देष में मामले ने इसे लेकर तूल क्यों पकड़ा है। गौरतलब है कि अलीगढ़ मुस्लिम विष्वविद्यालय में पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की लगी तस्वीर से मामला उभरा है और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। छोटे-बड़े सभी चेहरे जिन्ना की इस तस्वीर को लेकर मामले में कूद-फांद कर चुके हैं। यह विवाद 2 मई को सामने आया था जिसे लेकर माहौल अभी भी गरम है। मामला यह है कि जिन्ना की एक तस्वीर छात्रसंघ के हाॅल में लगी हुई है और बताया जाता है कि यह 1938 से लगी है और यह भी बताया गया कि ऐसा जिन्ना के आजीवन सदस्यता के चलते सम्भव है। तस्वीर हटाने को लेकर मामला बिगड़ गया और दो गुट बन गये, एक तस्वीर हटाना चाहता है दूसरा इसके खिलाफ है।
लगता तो यही है कि जिन्ना की तस्वीर और देषभक्ति का भी अपना एक नाता है। सब जानते हैं कि  जिन्ना पाकिस्तान के राश्ट्रपिता हैं जो बंटवारे का परिणाम है और जिसके आतंक से आज भी भारत पीड़ा भोग रहा है। जिन्ना षायद भारत में इतने बुरे करार न दिये जाते यदि उन्होंने भारत के इतिहास की कुछ फिक्र भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में कर ली होती। मोहम्मद अली जिन्ना की वजह से देष दो हिस्सों में बंटा है जाहिर है वे बंटवारे के गुनाहगार हैं और इन्हीं की मदद से अंग्रेजों ने देष बांट दिया। ऐसे में भारत में उनकी तस्वीर को लेकर कोई जगह नहीं बनती। यह तर्क सरल भी है और सहज भी पर इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि दबाव से जिन्ना की तस्वीर विष्वविद्यालय से बाहर की जा सकती है लेकिन क्या लोगों के मन से जिन्ना को निकाला जा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो बात फिर अधूरी रह जायेगी। ऐसे में ऐसी कोई रणनीति होनी चाहिए कि नेतागिरी के बजाय गांधीगिरी हो जिसमें न हिंसा हो और न ही बर्बरता बल्कि ऐसे सत्य का रहस्य हो जिसमें इस बात का प्रयोग निहित हो कि जिन्ना ने देष का बंटवारा किया इसलिए वे अपराधी हैं और गांधी के देष में उनकी उपस्थिति ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया दिया कि जो भारत के बंटवारे का जिम्मेदार है उसे किसी तरह का सम्मान नहीं दिया जा सकता। सवाल है कि जिन्ना का सम्मान कौन कर रहा है और तस्वीरें कहां-कहां लगी हैं। जहां तक ज्ञान जाता है यदि यह मामला तूल न पकड़ता तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी नहीं पता था कि एएमयू में जिन्ना की तस्वीर लगी है। एक बात और यह भी कि क्या तस्वीर ही सम्मान का मात्र एक प्रतीक है यदि ऐसा है तो जिन महापुरूशों की तस्वीर गढ़ी ही नहीं गयी क्या उन महापुरूशों को लेकर हमारे हृदय में कोई सम्मान नहीं है। सम्भव है कि तकरार के अर्थ को सही समझना पड़ेगा मामला तस्वीर का नहीं है मामला जिन्ना की तकदीर का भी है। षायद पाकिस्तान में गांधी के चाहने वाले लोग बहुत मामूली हों लेकिन गांधी के देष में जिन्ना के चाहने वाले आज भी जान देने पर भी तुले हुए हैं आखिर इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है? यह भारत की मर्मज्ञता और गांधी का ज्ञान ही है जहां दुष्मनों को भी पनाह मिल रहा है। 14 बार गांधी की मुलाकात को बेजा सिद्ध करने वाले जिन्ना पर उठे बवाल ने फिर एक नई पीड़ा को ताजा कर दिया है। 
इस पूरी बहस का एक खतरनाक पहलू यह भी है कि देष की बहुसंख्यक आबादी को लगातार यह समझाने की कोषिष हो रही है कि अल्पसंख्यक मुख्यतः कुछ मुसलमान के सच्चे भारतीय होने पर संषय है या यह आरोप कि बहुसंख्यक हिन्दू उनके हक-हुकूक को छीन रहे हैं और उनकी राह में कांटे बो रहे हैं जबकि सच्चाई का दूसरा पहलू यह है कि भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में मौलाना अबुल कलाम आजाद और गांधीवादी खान अब्दुल गफ्फार खां जैसे राश्ट्रवादी मुसलमानों ने भारत की तकदीर और तस्वीर दोनों बदलने के काम आये थे। आजादी के बाद कौन सा ऐसा पद है जहां अल्पसंख्यकों तवज्जो न दिया गया हो। डाॅ0 कलाम और हामिद अंसारी क्रमषः राश्ट्रपति और उपराश्ट्रपति तक पहुंचना इसका पुख्ता सबूत है। दिलचस्प यह है कि देषभक्ति का बुखार तो अंग्रेजों के खिलाफ चढ़ा था और आजादी पाते-पाते आंदोलनकारी हिन्दू और मुसलमान बन गये पर इस सच्चाई को भी समझ लीजिये कि गांधी समेत कई राजनेता इस दरार से व्यथित थे। तभी तो पाकिस्तान न बने को लेकर गांधी पहला मुस्लिम प्रधानमंत्री बनाने को भी तैयार थे।
 बहुत आक्रामक देषभक्ति कभी-कभी संदेह से भरती है। ऐसे में उदार और विनीत होना अधिक उपजाऊ हो सकता है। देष में भड़काऊ बयान देना कई कठिनाईयां पैदा कर रहा है। जो लोग इस दुविधा में है कि जिन्ना का स्थान भारत में बनता है वे इतिहास ठीक से नहीं जानते हैं परन्तु उनकी आक्रामकता पर समझदार लोगों को इसलिए ठण्डक का काम करना चाहिए ताकि वो गांधी को ठीक से समझें। राश्ट्रपिता महात्मा गांधी को समझने वाले जिन्ना को जरूर समझ जायेंगे लेकिन केवल जिन्ना को समझने वाले गांधी को कभी समझ ही नहीं सकते। एएमयू में जिन्ना की तस्वीर पर कुछ का यह भी कहना है कि ये हिन्दुत्व के कमजोर होने का नतीजा है पर ऐसा समझने वाले यह भी जान लें कि सनातन और पुरातन हिन्दू व्यवस्था को एक तस्वीर मात्र से चुनौती नहीं मिल सकती। साफ है जिन्ना पसंद नहीं है तो गांधी के देष में क्यों हैं पर दुविधा तो यह भी है कि यहां तो कईयों को तो गांधी भी पसंद नहीं आते। जिन्ना विवाद का गूढ़ समाधान क्यों खोजा जा रहा है। अनाप-षनाप बयानबाजी क्यों हो रही है? देष के बंटवारे के जिम्मेदार जिन्ना के तथाकथित समर्थकों को यह जरूर समझना चाहिए कि आप क्रिया कर रहे हैं इसलिए दूसरे प्रतिक्रिया कर रहे हैं। जिन्ना को इस दुनिया से गये 70 साल हो गये और देष की आजादी को 71 साल होने वाले हैं जिन्ना समर्थक यह भी समझ लें कि उन्हें गांधी विरोधी और भारत की अखण्डता को चकनाचूर करने वाला जिन्ना चाहिए या सात दषक पुराना और आजाद वह देष जहां उनका और उनके बच्चों का भविश्य संवरेगा।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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