Monday, April 30, 2018

परमाणु शक्ति हासिल कर बदला उत्तर कोरिया

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की मौजूदा कूटनीति बेशक अमेरिका चीन और जापान समेत कई देषों के लिए खुषी की बात हो पर जिस बदलाव को किम जोंग ने दिखाया है उससे कई हैरत में भी होंगे। अपनी छवि के विपरीत नेक इरादे से किम जोंग ने बीते 27 अप्रैल को दक्षिण कोरिया की जमीन पर कदम रखा। दक्षिण कोरिया के राश्ट्रपति मून जे इन के लिए भी यह 65 साल बाद पहला अवसर था जब उत्तर कोरिया के किसी षीर्श नेता की अगवानी कर रहे थे। यदि इतिहास के पन्नों को थोड़ा पलटें तो दोनों कोरियाई देषों में लगभग सात दषक से समानांतर दुष्मनी चलती रही। गौरतलब है कि 1953 में दोनों देषों के बीच युद्ध विराम हुआ था पर षान्ति समझौता नहीं। हालांकि बेहद कड़ी सुरक्षा के साथ दोनों देष के नेताओं ने दोनों की सीमाओं में कदम रखा और अन्ततः साझा घोशणा पत्र पर हस्ताक्षर कर बरसों की दुष्मनी को धता बता कर दुनिया को हैरत में भी डाला। किम जोंग ने इस यात्रा से यह भी बता दिया कि उसकी प्राथमिकताएं बदली हैं। बीते दिनों जब वह ट्रेन से पहली विदेष यात्रा के लिए चीन गया तभी से यह कयास था कि कोरियाई प्रायद्वीप में कुछ तो नया होने वाला है। अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप के साथ मुलाकात और बातचीत के सिलसिले से पहले किम जोंग में आये इस प्रकार के बदलाव को कहीं अधिक सकारात्मक लिया जा रहा है। तो क्या यह समझा जाय कि किम जोंग को दुनिया की ठीक समझ हो गयी या यह समझा जाय कि परमाणु और मिसाइल ताकत हासिल करने के बाद किम सुरक्षित महसूस कर रहे हैं और अब वह उत्तर कोरिया को आर्थिक ताकत बनाना चाहते हैं। 
ढ़ाई करोड़ की जनसंख्या वाला उत्तर कोरिया परमाणु षक्ति सम्पन्न बनने की फिराक में अपने देष की आंतरिक और आर्थिक दोनों परिस्थितियों को स्वाभाविक तौर पर कमजोर किया है। गरीबी और बेरोज़गारी के आलावा यहां की स्वास्थ व्यवस्थायें भी कहीं अधिक खराब हालत में हैं। परमाणु और मिसाइल परीक्षण के चलते कई बार इसे संयुक्त राश्ट्र द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ा है जिसके कारण भी यहां की स्थिति चरमराई हुई है। हालांकि चीन का समर्थन इसे हमेषा मिलता रहा है। यहां तक कि चीन के उत्पाद सामग्री भी उत्तर कोरिया के अंदर निर्मित होते रहे हैं और कमोबेष बाजार भी संवारने में उसकी भूमिका रही है। किम जोंग हमेषा इस डर को व्यक्त करता रहा है कि यदि वह षक्ति सम्पन्न नहीं होगा तो उसकी हालात भी इराक और लीबिया की तरह होंगे परन्तु अब वह आपसी दुष्मनी को न केवल भुलाकर दक्षिण कोरिया से दोस्ती कर रहा है बल्कि परमाणु हथियारों से कोरियाई प्रायद्वीपों को आजाद करने की बात भी हो रही है। गौरतलब है सीमा पार करने वाली पहले कोरियाई नेता किम जोंग ने षान्ति के मार्ग को अपनाने का पूरा मन दिखाया है। षिखर वार्ता के लिए दक्षिण कोरिया की सीमा को पैदल चलकर पार किया जहां राश्ट्रपति मून जे इन ने स्वागत किया। दोनों ने मिलकर षान्ति के लिए देवदार का पेड़ लगाया जिसके लिए उत्तर की तायडोंग नदी और दक्षिण की हाॅन नदी का पानी डाला गया साथ ही अपने-अपने देषों की लायी गयी मिट्टियां पेड़ में डालकर उर्वरता और खुषहाली का परिचय दिया। जिस तर्ज पर दक्षिण कोरिया की सीमा पर दोनों षीर्श नेताओं की मुलाकात हुई वादे-इरादे जताये गये तथा समझौते किये गये और फिर युद्ध का इतिहास नहीं दोहराया जायेगा की बात हुई इससे स्पश्ट है कि किम जोंग ने दुनिया का ध्यान तो अपनी ओर खींच लिया है।
जापान के ऊपर से कई बार मिसाइल छोड़ने वाला उत्तर कोरिया भले ही षान्ति दूत की तरह अवतरित हुआ है पर दक्षिण कोरिया की यात्रा से पहले जापान ने यह संकेत दिया था कि वह संतुश्ट नहीं है और उत्तर कोरिया पर उसके दबाव की नीति जारी रहेगी परन्तु अब षायद जापान भी काफी कुछ संतुश्ट होगा। किम जोंग ने जापान यात्रा की भी बात कही है। दुविधा को सुविधा में बदलते हुए किम जोंग आगे बढ़ रहा है परन्तु इसकी पूरी पड़ताल तब होगी जब अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग के बीच सफल और सकारात्मक नतीजे वाली बात होगी। डोनाल्ड ट्रंप पहले कह चुके हैं कि यदि किम जोंग की बातें सही दिषा में नहीं रही तो वह मीटिंग को बीच में छोड़ सकते हैं परन्तु इसकी उम्मीद अब कम ही है। डोनाल्ड ट्रंप से मिलने से पहले किम जोंग अपने आस-पास के वातावरण को समुचित बनाने में लगा हुआ है। सम्भव है कि अमेरिका से भी वार्तालाप उचित दिषा में ही रहेगी। गौरतलब है कि चीन ने किम जोंग को सावधानी वाली पुड़िया पकड़ा दी है और उसका असर भी खूब दिख रहा है। कोरियाई युद्ध से लेकर अब तक चीन मात्र एक ऐसा देष है जिसने उत्तर कोरिया का साथ नहीं छोड़ा। दोनों देषों के बीच 1961 में एक सन्धि हुई थी जिसमें कहा गया था कि यदि चीन और उत्तर कोरिया में से किसी भी देष पर कोई अन्य देष हमला करता है तो दोनों देष को एक-दूसरे का सहयोग करना पड़ेगा। यही वजह है कि व्यापारिक और आर्थिक सहयोगी चीन आज भी है। इतना ही नहीं वह प्योंगयांग का प्रमुख सैन्य सहयोगी भी है। डोनाल्ड ट्रंप के बहुत दबाव के बावजूद भी चीन उत्तर कोरिया जाने वाले व्यापारी मदद को पूरी तरह बंद नहीं किया था। अमेरिका बार-बार उत्तर कोरिया को मिटाने की धमकी देता रहा पर बेखौफ किम जोंग पलटवार करता रहा। जाहिर है चीन के इस समझौते की भी इसमें भूमिका थी और अब वही चीन कहीं न कहीं इसे षान्ति बहाली की राह पर ले जाने का काम किया है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप भी मानते हैं। पड़ताल यह बताती है कि दोनों कोरियाई देषों के बीच युद्ध खत्म करवाने में भारत ने भी बेहद अहम भूमिका निभाई गई है। फिलहाल यह कहावत यहां चरितार्थ होते दिख रही है कि अंत भला तो सब भला। जिस प्रकार 1953 से लेकर अब तक तल्खी रही हालांकि दोनों देषों ने वर्श 2000 में करीबी बढ़ाने के लिए सम्मेलन में हिस्सा लेना षुरू कर दिया था पर बात वैसी की वैसी बनी रही पर अब दुष्मनी और धमकियों से ऊपर उठ कर षान्ति और एक होने की बात करना वाकई कोरियाई प्रायद्वीप के लिए ही नहीं दुनिया के लिए भी यह रोचकता के साथ सकारात्मकता का बोध कराता है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment