Wednesday, April 18, 2018

बच्चियों को चाहिए सुरक्षा की संजीवनी

यदि सवाल यह किया जाय कि ऐसा क्या है कि सभ्य समाज का सर झुक रहा है तो दो टूक जवाब यह है कि कोमल हृदय की प्रतिक्रिया को अनसुना किया जा रहा है और उसे बेरहमी से रौंदा जा रहा है जबकि भारतीय संविधान का भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 के बीच 6 प्रकार के मूल अधिकार हैं जो स्त्री, पुरूश और बच्चे सभी की प्रतिक्रिया को समझता है। कह सकते हैं कि मूल अधिकार एक ऐसा अंदाज है कि किसी को नजरअंदाज नहीं करता बल्कि सबके लिए अधिकार की गारंटी है जिसमें समानता भी है, स्वतंत्रता भी है और जीवन भी है। कम उम्र की बच्चियों के साथ हो रहे रेप और नृषंस हत्या ने पूरे देष को गुस्से की आग में तो झोंक ही दिया है साथ ही पूरे समाज के सामने बेटी बचाओ की चुनौती भी खड़ी कर दी है। सरकार हो या सभ्य समाज बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी खिलाओ जैसे परिप्रेक्ष्य को तभी मकसद दिया जा सकेगा जब इनकी सुरक्षा की गारंटी उपलब्ध हो। हैरत की बात है कि जहां एक ओर काॅमनवेल्थ गेम में विदेष से मेडल लाकर लड़कियों ने अपने देष को पाट दिया उसका मान बढ़ाया वहीं देष के भीतर बच्चियां बलात्कार की षिकार हो रही हैं। जम्मू एवं कष्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ और उन्नाव में बलात्कार को लेकर बवाल अभी थमा नहीं था कि गुजरात के सूरत और उत्तर प्रदेष के एटा से ऐसी ही दुश्कर्म की खबर मन को क्षोभ से भर देती है। अगर हम पूरे देष का हाल देखें तो लगता है महिला सुरक्षा की हालत बहुत खस्ता है। प्रत्येक राज्य में बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। उत्तर प्रदेष और मध्य प्रदेष के मामले में तो पानी सर के ऊपर जा रहा है। 2012 के निर्भया काण्ड के बाद जब लोग दिल्ली के लाल किले से लेकर इण्डिया गेट तक ठसा-ठस हो गये थे तब देष में रेप के कमजोर कानून को मजबूती दी गयी थी पर दुःखद यह है कि इसके बावजूद भी घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। सरकार को कोसते हैं, पुलिस को कोसते हैं, कुछ दिनों तक गुस्सा दिखाते हैं, चाय-पान की दुकान और नुक्कड़ तथा चैराहों पर रोश के साथ चर्चा करते हैं और बाद में सब कुछ छोड़ देते हैं और भूल जाते हैं।
बलात्कारी कौन है, किस समाज से आता है और किस बनावट का होता है यह समझना सरल है पर पहचानना उतना ही कठिन। जो बच्चियों की जिन्दगियों को नश्ट कर रहे हैं, मसल रहे हैं और खत्म कर रहे हैं वे इसी समाज के हैं। गौरतलब है कि भारत में हर वर्श बलात्कार के मामले में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। आंकड़े थोड़े पुराने हैं पर राश्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो बताता है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। इस हिसाब से प्रत्येक घण्टे में दो महिलायें इसका षिकार हो रही हैं हालांकि यह आंकड़े पूरी सच्चाई नहीं बता रहे हैं क्योंकि जो केस रजिस्टर ही नहीं हुए वे इसमें षामिल नहीं हुए हैं। बलात्कार के मामले में मध्य प्रदेष सबसे आगे है जहां भाजपा की सरकार का दषक से अधिक समय हो गया है और उनकी सुषासन से भरी सरकार चल रही है। यहां बलात्कार के 1262 मामले दर्ज हुए इसके बाद उत्तर प्रदेष का क्रम है तब महाराश्ट्र की बारी आती है जहां क्रमषः 1088 और 818 मामले एक वर्श में बताये जा रहे हैं। यदि इन्हीं तीन प्रान्तों के आंकड़ों को जोड़ दें तो देष में होने वाले कुल बलात्कार का करीब 45 फीसदी के बराबर यह संख्या होती है। जब चुनाव में राजनीतिक दल जाते हैं तो महिला सुरक्षा से लेकर गरीबी और बेरोजगारी को दूर करना इनके जुबान पर सैकड़ों बार आता है पर षासन में आते ही पता नहीं कौन सी सत्ता चलाते हैं और कैसा सुषासन लाते हैं साथ ही किस प्रकार की कानून-व्यवस्था के हिमायती होते हैं कि महिलाएं और बच्चियां रेप के दलदल में फंसने से रोक नहीं पाते और ऐसी करतूत वालों को सबक नहीं सिखा पाते। सरकारें इस पर भी लीपा-पोती करते हुए भारी-भरकम राजनीति करती हैं। वैसे दिल्ली, मुम्बई, भोपाल, जयपुर, पुणे आदि बड़े नगर भी इस फहरिस्त में काफी ऊंचाई लिए हुए है। 
कठुआ, सूरत और उन्नाव में हुए बलात्कार के विरोध में देष भर में प्रदर्षन हो रहा है और बलात्कार के आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग हो रही है। गौरतलब है कि बच्चों से बलात्कार का दर तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2010 में लगभग साढ़े पांच हजार मामले बच्चों के बलात्कार से जुड़े दर्ज हुए थे जो 2014 में ये साढ़े तेरह हजार से अधिक हो गये। इतना ही नहीं बाल यौन षोशण संरक्षण अधिनियम पोक्सो एक्ट के तहत लगभग 9 हजार मामले दर्ज किये गये आंकड़े थोड़े पुराने हैं पर हिलाने वाले हैं। बच्चों से बलात्कार एवं छोड़छाड़ के मामले में मध्य प्रदेष अव्वल है जबकि महाराश्ट्र दूसरे स्थान पर फिर उत्तर प्रदेष और दिल्ली की बारी आती है। विषेशज्ञ भी मानते हैं कि बच्चों में बलात्कार के मामले बढ़ने की दो वजह हैं पहला लोक लाज के भय के कारण मामले दर्ज नहीं करवाते, दूसरा कानून। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कानून कितना भी सख्त बना लिया जाय बलात्कार को पूरी तरह रोक पाने में विफल ही रहेगा परन्तु इस मामले से मुक्ति पाने के लिए यह रणनीति काफी हद तक अचूक है कि लोक लाज के डर से बाहर निकलकर हर मामले को रजिस्टर करना है और सजा के लिए न्यायालय को सक्रिय और तेजीपन दिखाना है साथ ही समाज पीड़ित के साथ भेदभाव का रवैया छोड़े तो सम्भव है कि रेप को कम करने वाली दर जरूर मिलेगी। 2012 में आया पोक्सो और 2013 में आया आपराधिक कानून संषोधन अधिनियम भी बच्चों के बलात्कार के मामले दर्ज कराने में सहायक बने हैं बस कमी है तो समाज को थोड़ा बदलने की और काफी कुछ कानून भी सख्त करने की। कठुआ की घटना से क्षुब्ध केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी पोक्सो यानि यौन उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण कानून में अब बलात्कार के लिए फांसी की सजा जोड़ना चाहती है जो लाज़मी है।
दरअसल बलात्कार को लेकर देष और समाज कुछ गलतियां भी कर रहा है और न्याय में देरी भी रही है साथ ही जाति, धर्म को जोड़ कर इसमें राजनीति भी खूब होती रही है जो मानवाधिकार और मूल अधिकार दोनों का सीधे-सीधे हनन करता है। कठुआ में जिस प्रकार 8 साल की बच्ची के बलात्कार को धार्मिक रंग देने की कोषिष की गयी वह बेजा थी। इसका संदेष देष-दुनिया में सही तो नहीं गया बल्कि पीड़ित के साथ बलात्कार और नृषंस हत्या के बाद एक और अन्याय ही कहा जायेगा। देष की जनता सरकार चुनती है इस उम्मीद में कि रोजगार भी देगी और सुरक्षा भी पर सरकारें जो नहीं कर सकती उसका भी वायदा करती रहती हैं, घटना घटने पर जांच की बात तो करती हैं और न्याय की भी बात करती हैं पर कानूनी दांवपेंच के उलझन में बलात्कारी आराम से जेल में रहता है और पीड़ित समाज से बचता रहता है। बर्नाड बारूच ने भी कहा है कि वोट उन्हें दीजिए जो कम-से-कम वायदे करते हैं क्योंकि वे आपको सबसे कम निराष करेंगे। उक्त के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि षासन और सुषासन देने की बात करने वाली सरकारें न तो बच्चों को सुरक्षा दे पा रही हैं और न ही बलात्कार को रोक पा रही हैं। फिल्म अभिनेत्री षबाना आज़मी का एक कथन बहुत अच्छा है कि सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को प्रभावी बनाने के लिए हमारी बेटियों को जिन्दा रहना जरूरी है और सच यही है कि यह तभी जिन्दा रहेंगी जब इनके कोमल हृदय की प्रतिक्रिया को समझा जायेगा न कि नजरअंदाज किया जायेगा। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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