Tuesday, April 10, 2018

मौजूदा अर्थव्यवस्था की दिशा एवम दशा

जब प्रश्न आर्थिक होते हैं तो वे गम्भीर होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सामाजिक उत्थान और विकास के लिए इस पहलू को सषक्त करना पड़ता है। बीते कुछ वर्शों से आर्थिक वृद्धि को लेकर तरह-तरह की कोषिषें की जा रही हैं मसलन काले धन पर चोट, नोटबंदी और जीएसटी जैसे संदर्भ भारत के आर्थिक वातावरण में देखे जा सकते हैं। कहां कितनी सफलता मिली यह बड़ा सवाल है साथ ही इन तमाम कोषिषों से देष कितना आगे बढ़ा प्रष्न तो यह भी उठ रहा है। सरकार की ओर से कर सुधार के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा चुका है। तमाम कवायदों के बीच संसद के वित्त सम्बंधी स्थायी समिति ने जब यह खुलासा किया कि देष में कर दाताओं की सालाना बजट की आधी राषि जितना कर बकाया है तो सरकार की भी कलई खुली साथ ही बेसुध पड़े करदाताओं की पोल भी। सबसे बड़े कर सुधार की मषीनरी जीएसटी देष में बीते 1 जुलाई से लागू है। बावजूद इसके लोगों और कम्पनियों की ओर से फंसे हुए कर का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। इतना ही नहीं जुलाई में 95 हजार करोड़ कर वसूला गया था जो लगातार गिरावट के साथ मौजूदा समय में 80 हजार करोड़ के इर्द-गिर्द है। वीरप्पा मोइली के अध्यक्षता वाली समिति ने यह चिंता जतायी है कि ज्यादातर कर की वसूली सम्भव नहीं दिख रही। जाहिर है ऐसा हुआ तो राजस्व विभाग बकाया कर के दुश्चक्र में फंस सकता है। बड़े इरादे और बड़े वायदे से परिपूर्ण मोदी सरकार देष में अच्छा खासा आर्थिक अनुप्रयोग के लिए जानी जाती है पर हर जगह सफल है ऐसा दिखता नहीं है। बकाया राषि के मामले में सरकार अपने तरह के कदम उठा रही है जैसे बैंक खातों को जब्त करना, चल-अचल सम्पत्ति की बिक्री, नीलामी व रिकवरी सर्वे साथ ही जानबूझकर कर न चुकाने पर अभियोजन की कार्यवाही भी षामिल है।  
आर्थिक बदलाव के इस दौर में दबाव किस पर नहीं है। बैंक फंसे लोन की उगाही में कर्जदारों पर दबाव बनाये हुए है और जनता सरकार की बदलती नीतियों और रोजमर्रा की चुनौतियों के दबाव से जूझ रही है। मकान, मोटरकार या किसी अन्य प्रकार के लोन की मासिक किस्त अर्थात् ईएमआई में बदलाव की आस लगाये लोग खुष हों या चिंतित उन्हें समझ में नहीं आ रहा है। बीते 5 अप्रैल को आरबीआई ने अपनी द्विमासिक नीतिगत दरों की समीक्षा में ब्याज दरों को यथावत रखा है। रेपो दर को 6 फीसदी पर जबकि रिवर्स रेपो दर 
5.75 फीसद पर यथावत बनाये रखा है। सीआरआर अर्थात् नकद आरक्षित अनुपात 4 फीसदी जबकि एसएलआर अर्थात् संविधिक तरलता अनुपात 19.5 फीसदी पर बना हुआ है। सवाल है कि जब सब कुछ यथावत है तो बदलाव किसके लिए हो रहा है। जो लोन धारक ईएमआई के कम होने की प्रतीक्षा में थे क्या इस दर से खुष होंगे सम्भव है कि बढ़ा नहीं इसलिए चिंतित नहीं है और घटा नहीं इसलिए खुष नहीं है। हालांकि रिजर्व बैंक ने इस साल महंगाई की दरों में कमी का अनुमान लगाया है जबकि विकास दर में बढ़ोत्तरी का अनुमान है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस साल देष में निर्यात और निवेष दोनों का इजाफा होगा। स्पश्ट है कि आर्थिकी तुलनात्मक गुणवत्ता के साथ बढ़ेगी पर सरकार इस बात का इरादा नहीं जता रही है कि जनता को महंगाई की मार से बचा ले जायेगी। रिज़र्व बैंक जो भी आंकलन दे रहा है वह दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत है। चूंकि भारत में निर्यात और निवेष बढ़ेगा इसलिए बैंक ने इस वर्श 2018-19 में विकास दर 7.2 फीसदी से बढ़ाकर 7.4 फीसदी कर दिया है। आरबीआई ने भी यह आंकलन कर दिया है कि पहली छमाही में यह दर 7.3 से 7.4 रहेगा जबकि दूसरी छमाही में यह 7.6 फीसदी तक जा सकता है। सबके बावजूद यांत्रिक चेतना यह कहती है कि जनता को राहत मिलनी चाहिए जबकि सांख्यिकीय चेतना भारतीय अर्थव्यवस्था को नया आदर्ष प्रदान कर रही है। 
नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे धन्ना सेठों के देष से भाग जाने और विदेषों में बसने से चिंतित केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने एक समिति गठित की है जो इस तरह के मामलों का अध्ययन करेगी और बकायों के वसूली की कार्य योजना तैयार करेगी। बैंकों की हालत इन लोगों की वजह से बहुत खराब हो गयी है जिसके चलते छोटे लोन धारक इन बैंकों की नजरों में चढ़े हुए हैं। नीरव मोदी और उसकी कम्पनियों पर पीएनबी के साथ 13 हजार करोड़ रूपए की धोखाधड़ी करने का आरोप है जबकि विजय माल्या पर 9 हजार करोड़ का कर्ज है। पीएनबी की हालत काफी अव्यवस्था के दौर से गुजर रही है। बैंक अपने फंसे कर्ज की वसूली के लिए हर सम्भव विकल्प तलाष रहे हैं। वे न केवल अनाप-षनाप कटौती कर रहे हैं बल्कि कभी मिनिमम बैलेंस के नाम पर तो कभी एटीएम के अधिक प्रयोग या खाते में राषि के लेनदेन की मात्रा पर भी अपनी जेब भर रहे हैं। इतना ही नहीं चेक बाउंस की स्थिति में काटी जाने वाली राषि में बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। बैंक मैनेजर के केबिन में बैठकर काॅफी के साथ लोन गटकने वाले व्यापारी बैंकों को जो चूना लगाया है उससे आम खाताधारक बैंकों की मनमानी के चलते स्याह महसूस कर रहा है। यह बात बिल्कुल दुरूस्त है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर भी होनी चाहिए और सरपट भी दौड़नी चाहिए पर महंगाई के इस दौर में आम जीवन हांफ रहा है जबकि सरकार आर्थिक नीतियों के मामले में सषक्त तो है पर उदार नहीं दिख रही है।
सब्जी, फल, अण्डा, चीनी और दूध जैसी रोज़मर्रा की उपयोग की वस्तुएं अभी भी महंगाई के चरम पर ही हैं। गौरतलब है कि बीते नवंबर में खुदरा महंगाई दर पिछले 15 महीने की तुलना में उच्चत्तम स्तर पर थी जो किसी भी सरकार के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। रोचक यह भी है कि यूपीए सरकार के समय महंगाई पर छाती पीटने वाले यही भाजपाई आज इसलिए बढ़ी हुई महंगाई के बावजूद सुकून में है क्योंकि विपक्ष भी कान में तेल डालकर बैठा हुआ है। भारत के लोकतंत्र में सरकारों ने सचेतता का सिद्धांत तब अपनाया है जब सड़कों पर प्रदर्षन हुए हैं। गैस सलेंडर से लेकर हर खाने-पीने की चीज में आग लगी हुई है पर सब चुप हैं षायद इसी को मोदी और मजबूत सरकार कहते हैं। जब कभी यह सवाल मन में आये कि संवेदनषीलता और संवेदनहीनता में क्या अंतर है तो दो प्रकार की सरकारों की तरफ दृश्टि गड़ायी जा सकती है। एक वो जो महंगाई काबू रखने के साथ-साथ जनता की जेब और जीवन का ख्याल रखती है दूसरी वो जो इसके उलट होती है। हालांकि आरबीआई ने उम्मीद जतायी है कि महंगाई नहीं बढ़ेगी और विकास दर बढ़ेगा पर जनता की उम्मीदें हमेषा तार-तार हुई हैं इसलिए महंगाई का भार और दबाव से जनता तब तक चिंतित रहेगी जब तक ऐसा हो नहीं जाता। देष के बजट का आकार लगभग 25 लाख करोड़ रूपए का है और ठीक इसके आधा करीब 47 फीसदी बकाया फंसा हुआ है। प्रत्यक्ष कर को लेकर यह मामला 9 लाख करोड़ से ज्यादा का है जबकि अप्रत्यक्ष कर के मामले में यह करीब सवा दो लाख करोड़ से अधिक है। यह समझ नहीं आता कि आर्थिक मामले में कठोर कदम उठाने वाली सरकार यहां कैसे गच्चा खा रही है। साफ है सरकार कर वसूली और आर्थिक नीतियों के अनुप्रयोग के चलते दबाव में है। बैंक एनपीए के कारण दबाव और प्रभाव से मुक्त नहीं है जबकि जनता जीवन की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही है इसलिए कहीं अधिक दबाव में है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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