Tuesday, April 10, 2018

विमर्श की ज़मीन पर भारत-नेपाल

परिस्थितियां बदल चुकी हैं अब अनिवार्यताओं की परिभाशा भी बदल चुकी है इसलिए नीतियों के फेरबदल भी अनिवार्य हो चलें हैं। इतना ही नहीं द्विपक्षीय सम्बंधों का संदर्भ कितना भी सषक्त क्यों न हो पर सत्ता व सत्ताधारक बदलते हैं तो कूटनीति को नये सिरे से साधना ही पड़ता है। प्रधानमंत्री मोदी के लगभग चार साल के षासनकाल में नेपाल में कई प्रधानमंत्री आये और गये जबकि भारत की तरफ से यही कोषिष रही कि सम्बंध नैसर्गिक मित्रता का रूप लिये रहें। पड़ताल बताती है कि प्रत्येक सत्ताधारकों के साथ सम्बंध में नये सिरे से गर्मजोषी भरने का काम भारत को करना पड़ा है। गौरतलब है बीते महीने नेपाल की सत्ता एक बार फिर परिवर्तित हुई फलस्वरूप भारत और नेपाल के मिलने-जुलने का सिलसिला एक बार फिर आगे बढ़ना था। नेपाल के चीन के पाले में जाने की षंका के बीच वहां के प्रधानमंत्री केपी षर्मा ओली ने अपनी पहली विदेष यात्रा के लिए नई दिल्ली को चुना। स्पश्ट है कि वह संकेत देना चाहते हैं कि सम्बंध सुधारने को लेकर वे वैसे ही इच्छुक हैं जैसे भारत रहा है। स्थिर और व्यापक बहुमत वाली ओली सरकार के साथ भारत ने भी न केवल परिपक्वता दिखाई है बल्कि एक मजबूत पड़ोसी और नेपाल के लिए बड़े भाई की भूमिका को उजागर भी किया है। नेपाल में चीन का दखल बढ़ रहा है मगर एक सच्चाई यह है कि काठमाण्डू दिल्ली की सच्चाई को नजरअंदाज नहीं कर सकता और न ही दूर जाने का कोई जोखिम उठा सकता है। 
गौरतलब है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली 6 से 8 अप्रैल तक भारत के दौरे पर थे और वह किसी भी नेपाली प्रधानमंत्री द्वारा पद ग्रहण करने के बाद विदेष दौरों की षुरूआत भारत से करने की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं हालांकि इसके पहले जब वे 2015 में सुषील कोइराला के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला तब उन्होंने अपनी पहली यात्रा 2016 में बीजिंग से षुरू करके यह जताने की कोषिष की थी कि भारत के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। इसके पीछे मूल कारण नेपाली संविधान के लागू होने के चलते मधेषी आंदोलन था। दरअसल पौने तीन करोड़ के नेपाल में सवा करोड़ की आबादी मधेषियों की है जो भारतीय मूल के हैं जिनकी यह षिकायत थी कि उनके साथ संविधान में भेदभाव बरता गया है। इसे लेकर भारत की ओर से नरम और सकारात्मक टिप्पणी हुई थी कि नेपाल इस पर न्यायिक रूख अपनाये और इसी बात को ओली नेपाल में भारत के दखल के रूप देख लिया साथ ही तराई के इलाके में मधेषियों के द्वारा रसद सामग्री को रोके जाने से नेपाल के अंदर जो दिक्कतें आयी उसके लिये भी भारत को ही जिम्मेदार मान लिया जिसके चलते वे तिलमिलाकर बीजिंग से अपनी यात्रा षुरू की जो परम्परा के उलट थी। गौरतलब है कि मोदी सरकार नेपाल सहित अन्य सभी सार्क देषों के साथ सम्बंध मजबूत करने के कई महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। अगस्त 2014 में मोदी दो बार नेपाल भी गये थे। जब अप्रैल 2015 में नेपाल भूकम्प की चपेट में आया तब भारत पहला देष था जिसने सहायता सामग्री समेत राहत और बचाव से नेपाल को विपदा से बाहर निकालने के लिए पूरी ताकत झोंक दी पर दुर्भाग्य से भारत के इस सहयोगात्मक व्यवहार को नेपाल ने विपरीत संदर्भों में भी देखा हालांकि बाद में सब कुछ ठीक हो गया था।
भारत एवं नेपाल में सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर जिस भांति निकटता है वैसी कहीं और नहीं। दोनों देषों के बीच रोटी और बेटी का सम्बंध भी रहा है। यात्रा के दौरान नेपाली प्रधानमंत्री ओली ने पुराने सम्बंधों को नई ताकत देने की जरूरत बताई और कहा कि खुषहाली और गरीबी दूर करने के लिए मिलकर काम करेंगे। मुख्य रूप से कृशि के विकास में यह सम्बंध अधिक उपजाऊ माना जा रहा है। 2016 में ओली की नई दिल्ली की यात्रा आज की यात्रा से काफी भिन्नता लिये हुए थी। जैसा कि विदित है कि बीजिंग के बाद ओली दिल्ली आये थे स्वाभाविक है कि परिपक्वता का आभाव नेपाली प्रधानमंत्री में झलका था जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने आड़े हाथ भी लिया था। कई दौर ऐसे भी आये हैं जब यह आरोप भारत पर लगाया जा सकता है कि उसने नेपाली लोगों की सदभावना खोयी है परन्तु राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर देखें तो यह सही नहीं है। जिस तर्ज पर भारत नेपाल के लिए झुकाव रखता है ठीक उसी तर्ज पर नेपाल भी झुकता है पूरे मन से नहीं कहा जा सकता। इसके पीछे कारण समय-समय पर नेपाल का चीन की ओर झुकाव रहा। बावजूद इसके भारत ने कभी नेपाल को झुका हुआ राश्ट्र या कमजोर राश्ट्र की हैसियत से नहीं निहारा और न ही कभी सामरिक दृश्टि से नेपाल को पोशित करने की कोषिष की जबकि चीन नेपाल को लेकर कुछ इसी प्रकार की सोच रखता है। देखा जाय तो नेपाल भारत के लिए बफर स्टेट का भी काम करता है। चीन नेपाल में किसी भी तरह भारत को पीछे छोड़ते हुए स्वयं को स्थापित करना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी की पड़ोसवाद की अवधारणा को उस कथन से भी आंका जा सकता है। जब अगस्त 2014 में नेपाल यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि दो पड़ोसी देषों के बीच सीमा को पुल का काम करना चाहिए न कि बाधा का। चीन एक के बाद एक दक्षिण एषियाई देषों में अपनी दखल बढ़ा रहा है। वहीं भारत दूसरों की सम्प्रभुता की आज भी चिंता कर रहा है। 
पिछले चार सालों में भारत-नेपाल रिष्ते में काफी खटास भी रही है जिसे गम्भीरता से सुधारने की जरूरत है। भारत ने 1950 की उस द्विपक्षीय संधि की समीक्षा की मांग पर हामी भरकर बेहतर संकेत दे दिये हैं जिसे न केवल नेपाल बल्कि वहां के कुछ वर्ग विषेश के लोग भी एकतरफा और अन्यायपूर्ण कहते रहे। प्रधानमंत्री मोदी का सौहार्द्रपूर्ण दृश्टिकोण भी पड़ोसियों का मान बढ़ाया है पर चीन की विस्तारवादी और दखल देने वाली नीति ने पड़ोसियों को कहीं न कहीं दुविधाओं से भी भरा है। भूटान में इन दिनों डोकलाम विवाद के चलते चीन नये तरीके से डोरे डाल रहा है जबकि बांग्लादेष के साथ नये रिष्ते का आसार पैदा कर रहा है और मालदीव को तो चीन ने उसे इतना कर्जदार बना दिया है कि वह इस समय भारत की तरफ देखना मुनासिब नहीं समझ रहा जबकि वह इन दिनों संकट से जूझ रहा है रही बात नेपाल की तो यहां भी चीन लोभ और लालच का पासा फेंकता रहता है। दक्षिण एषियाई देषों का संगठन सार्क मानो अप्रासंगिक हो गया हो जिसके चलते संगठन एक रस्मअदायगी का केन्द्र बना हुआ है और इसके सदस्य कुछ हद तक छिन्न-भिन्न दिखाई दे रहे हैं। यह बात पूरे षिद्दत से कही जा सकती है कि भारत अपनी क्षमता के अनुपात में पड़ोसियों की आर्थिक मदद करता रहा है बावजूद इसके पड़ोसी देष चीन के प्रभाव में भारत के साथ कुछ ठण्डी तो कुछ गरम कूटनीति करते रहे हैं। पाकिस्तान तो चीन की गोद में ही बैठा है जबकि श्रीलंका में भी चीन की सक्रियता देखी जा सकती है। फिलहाल नेपाल के प्रधानमंत्री ओली का भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता हर हाल में अच्छा कदम कहा जायेगा। नेपाल के लोगों के साथ सम्पर्क बढ़ाने, थोक में माल की आवाजाही के लिए बिहार के रक्सौल से नेपाल की राजधानी काठमाण्डू के बीच रेल सम्पर्क का निर्माण करने इतना ही नहीं आर्थिक वृद्धि और विकास का तेज करने को लेकर जो एकजुटता दिखाई गयी है जो हर हाल में फायदेमंद है। इतिहास और राजनीतिषास्त्र के साथ कूटनीतिषास्त्र के तहत भी देखें तो दोनों देषों के बीच सम्बंध प्राचीन भी हैं और समकालीन भी भले ही उतार-चढ़ाव रहे हों।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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